Saturday, May 21, 2016

प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा



पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा

सूखे और अकाल के रेगिस्तान में हरियाली जैसे लगनेवाले कुछ उदाहरण भी हैं! उनमें से एक है राजेन्द्रसिंह राणा जी अर्थात् भारत के पानीवाले बाबा (Waterman of India)! आज यह इन्सान कई राज्यों के अकाल से संघर्ष करता हुआ नजर आता है| पहले राजस्थान के कई गाँवों मे जोहड़ और जलस्रोतों को पुनरुज्जीवित करने के बाद आज वे देशभर जाते रहते हैं और लोगों को पानी के संग्रह का महत्त्व बताते हैं| साथ में कई सरकारी योजनाओं को भी मार्गदर्शन देते हैं| द गार्डियन ने उनका नाम उन ५० लोगों की‌ सूचि में रखा है जो इस ग्रह को बचा सकते हैं|

इस पानीवाले बाबा से मिलना हुआ महाराष्ट्र के नान्देड जिले के देगलूर गाँव में| देगलूर में विश्व परिवार नाम के एक संघटन के 'अकाल निवारण परिषद' में जाना हुआ| वहाँ पहली बार इन महामना से मिलना हुआ| उनके भाषण को सुनने का अनुभव अनुठा था| उन्हे सुन कर बहुत विशेष लगा| पहली बात तो वे बड़ी यात्रा कर आए| उनकी ट्रेन छह घण्टा लेट थी| ट्रेन के बाद दो घण्टे का सफर उन्होने किया| लोग काफी समय से प्रतीक्षा कर रहे थे, इसलिए बिना रेस्ट हाऊस गए, वे सीधा कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे| और उनका एकदम अनौपचारिक शैलि का भाषण हुआ| भाषण कहना नही चाहिए, मैत्रीपूर्ण बातचीत कहनी चाहिए| उन्हे सुनते हुए लगा कि ऐसा यह कोई अपना जाना पहचाना डाक्टर है जो हमारी बीमारी का ठीक इलाज जानता है|





पहले बात करते हैं इस कार्यक्रम के आयोजक विश्व परिवार की| विश्व परिवार नान्देड जिले के गाँवों में कई सालों से कार्यरत संघटन है| इसके संयोजक श्री कैलास यसगे मेरे प्रिय मित्र! कई सालों विश्व परिवार (औपचारिक संस्था नही, बल्की अनौपचारिक संघटन) कई तरह के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है| हर साल व्याख्यानमाला, प्रतियोगिताएँ, चिकित्सा शिविर, सरकारी योजनाओं के लाभ में जनता की सहायता करना और हाल के कुछ वर्षों में पानी की समस्या के उपर गाँवों में कार्य ये कुछ इसके कार्य के उदाहरण है| नान्देड जिले के देगलूर और उदगीर गाँवों के युवाओं का यह सकारात्मक और सृजनात्मक काम करनेवाला संघटन है| आज सैकडों गाँवों तक यह कार्य फैल चुका है|

देगलूर पहुँचते पहुँचते ही इसकी प्रतिति आयी| जैसे देगलूर में पता पूछा, कि एक सहयात्री ने पूछा, परिषद के लिए आए हो? वह भी कैलास का ही मित्र है! देगलूर जैसे छोटे गाँव में एक बड़े मैदान में कार्यक्रम का आयोजन हुआ| देखते देखते हजार की संख्या में किसान आए| नीचे बैठने की जगह खतम हो गई लेकिन लोग आते रहे| एमएलए और एमपी भी आए; सरकार के कलेक्टर और अन्य अधिकारी भी आए| कुछ किसानों ने अपनी बात भी रखी| लेकीन सबको प्रतीक्षा थी पानीवाले बाबा की! जैसे ही वे आए, सभी लोग आनन्दित हुए| और इतनी देर की प्रतीक्षा जैसे सार्थक हुई| लेकिन एक बात जरूर अखरी की जो शख्स बिना विश्राम किए यात्रा से सीधा यहाँ आ रहा है, उनका कितना समय हम अतिथियों के सत्कार- सम्मान में व्यय कर रहे हैं| खैर|

राजेंद्रसिंहजी ने कईं सारी बाते कहीं| धीरे धीरे जैसे अकाल की पर्ते दर पर्ते उघडती चली गई| उन्होने बताया कि कई बार बरसात के मौसम में हम देखते हैं कि बहुत बादल आते हैं; लेकिन वे बरसते नही हैं| बिना बरसे चले जाते हैं| उसका कारण है बादलों को नीचे लाने के लिए पेड़ का न होना है| जहाँ हरियाली होगी, जहाँ पेड़ होंगे, वहाँ बादल नीचे आएंगे| अगर हम पेडों का कव्हर धरती पर लगाते हैं, तो बादल बिना बरसे नही जाएंगे| उन्होने यह भी कहा कि हमें ऐसी फसलें लेनी चाहिए जो स्थानीय आबो- हवा के अनुकूल हो| लेकिन ज्यादातर मामलों में हम प्रतिकूल फसलें ही लेते हैं| पानी के कन्सर्वेशन का एक ही उपाय है- पानी बचाते जाओ| जैसे भी हो सके, पानी को रोको; उसे भागने मत दो| इसके लिए उन्होने कई फॉर्म्युले बताए| जैसे नान्देड जिले का पानी नान्देड जिले के बाहर बह कर न जाए| हर जगह पानी रोका जाए| और इस तरह रोका जाए कि सूरज भी पानी की चोरी न कर सके| इसलिए वॉटर हार्वेस्टिंग; छोटे ट्रेन्चेस, सीसीटी (कंटिन्युअस कोंटूर ट्रेंच) आदि लगाने चाहिए| जो पानी तेज बह रहा है, उसकी गति कम की जानी चाहिए| छोटी नदियों की सफाई करनी होगी| उनका और एक फॉर्म्युला था कि नान्देड जिले के युवा भी नान्देड के बाहर न जाने चाहिए| तभी यह सब काम हो सकेंगे| बिल्कुल फते की बात लगी|



सौजन्य: कैलास यसगे (vishwaparivar@gmail.com)























पानी के कन्जर्वेशन के कई प्रयास महाराष्ट्र में हुए भी है| जैसे शिरपूर पैटर्न है; जैसे अभी चल रही जलयुक्त शिवार योजना है और अन्य भी कई सारे हैं| पूरे देश के ४०% डैम्स तो महाराष्ट्र में है| फिर भी यह सूखा और अकाल| इसका कारण एक ही है कि जो बात सबको पता है, वह करने के लिए इच्छाशक्ति चाहिए| जब भी हम बीमार होते हैं, तब हमे बीमारी का अहसास ही इसलिए होता हैं क्यों कि हम स्वास्थ्य भी जानते हैं| अगर हम स्वास्थ्य जानते ही ना होते, तो बीमारी भी बीमारी नही लगती| आज हम जानते हैं कि यह अकाल है| इसका मतलब भी यही है कि हम यह भी जानते हैं कि सम्पन्नता क्या है; लेकिन बस अपने को उससे जोड़ नही पा रहे हैं| यह सिर्फ एक डिस्कनेक्टिव्हिटी‌ है| इसे दूर करना कठिन है, असम्भव नही| उसके लिए लोग चाहिए जो वह करना चाहते हैं| जिद चाहिए; हौसला चाहिए| जैसे राजेन्द्रसिंहजी ने राजस्थान में किया| पारंपारिक पानी की जोहड़ प्रणालि को फिर से सजीव बनाया| वक़्त के साथ उसमें आयी कमीयाँ दूर की| हजारों गाँवों तक वह काम फैलाया| पानी के स्रोत पुनरुज्जीवित किए| यह काम करने के लिए बड़ा जनसंघटन खड़ा किया| छोटे छोटे कामों से लोगों को आगे बढ़ाया| अक्सर छोटे छोटे कामों से ही बड़े कार्य की नींव रखी जाती है| जैसे गाँधीजी ने भी जो कार्य किया, उसकी नींव ऐसे ही कामों में थी| गाँधीजी के कार्य का सूत्र ही यही था कि लोगों को करने में जो सहज हो, ऐसे कार्यक्रम उन्हे दिए जाने चाहिए| जैसे एक दिन सत्याग्रह करना; एक छोटे से कदम से सरकार के खिलाफ असन्तोष जाहिर करना जैसे| इसी से लोगों में हौसला आता हैं; उनका सहभाग बढ़ने लगता है| और यही ठीक है, क्यों कि महान कार्य की अपेक्षा जन समुदाय से नही की जा सकती है| सभी लोग क्रान्तिकारी हो कर फांसी नही जा सकते हैं| लेकिन हर कोई छोटा मोटा काम तो कर ही सकता है|

 
देखा जाए तो परिवर्तन के लिए रॉकेट साईन्स की कोई आवश्यकता नही है| सबने एक कदम भी उठाया तो भी बड़ा मक़ाम हासिल होता है| प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अभय बंग का एक सूत्र याद आता है| जब उन्होने बालमृत्यु पर कार्य करना शुरू किया तो उनके रिसर्च में उन्हे बालमृत्यु के १८ कारण पता चले| लेकिन सभी कारणों की स्थिति में सुधार करना बहुत कठिन था| तब उनके अनुभव से उन्हे पता चला की बालमृत्यु के अनुपात को कम करने के लिए इन १८ में से तीन- चार कारणों पर भी कार्य किया जा सकता है| उनके कार्यक्रम द्वारा उन्होने मुख्य तीन- चार कारणों पर कार्य किया और कुछ ही‌ सालों में बालमृत्यु का अनुपात कम हुआ| वैसा ही इस सूखे का भी है शायद| उसके कई कारण हैं और अधिकतर कारण हमारे नियंत्रण में नही है| लेकिन कुछ कारण तो हमारे नियंत्रण में है| अगर हम उन पर काम करते हैं, तो भी स्थिति में परिवर्तन आएगा ही|

अगला भाग: प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग

2 comments:

  1. निरंजन वालंकर जी आपने इस लेख के जरिये जलसंकट का बेहद सजग वर्णन किया है. इस लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई. आपका यह लेख शब्दनगरी (http://shabdanagari.in/post/33569/-pryavarn-aur-hum-baba-5938997)के पेज पर पढ़ा और फिर सर्च करके आपके इस ब्लॉग तक आ गया. आपका लेख में समाज में हो रहे जलसंकट का सजीव चित्रण हैं.

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  2. पढने के लिए और कमेंट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!