जोशीमठ
दर्शन!
१६
दिसम्बर २०१२!
नीन्द
जल्दी खुली|
सुबह
पाँच बजे से ही नीचे बजार से
देहरादून और ऋषीकेश की बसें
निकलती हैं|
उनके
चालक निरन्तर आवाज दे रहे हैं|
ठण्ड
अब पता चल रही है|
रजाई
के बाहर आने का मन ही नही हो
रहा है|
कुछ
देर वैसे ही लेटा रहा|
धीरे
धीरे सुबह हुई और फिर तैयार
हो कर होटल के रिसेप्शन पर
आया|
आज
के दिन में मुख्य रूप से जोशीमठ
में ही घूमना है|
सर्दियों
में इस यात्रा पर आने का एक
उद्देश्य जहाँ तक सड़क चालू
हो वहाँ जाना और खास कर औली
जाना है|
औली
जोशीमठ से भी अधिक-
लगभग
२७०० मीटर ऊँचाई पर है|
इसलिए
सोचा कि एक दिन जोशीमठ में रूक
कर इस वातावरण से अनुकूल होता
हुँ|
होटल
के रिसेप्शन पर पूछा कि कहाँ
तक रोड़ खुला रहेगा तो पता चला
कि पण्डुकेश्वर जाया जा सकता
है|
यह
स्थान बद्रिनाथ रोड पर बद्रिनाथ
से बीस किलोमीटर पहले है|
जोशीमठ
प्रसिद्ध है आदि शंकराचार्य
के पीठ के लिए!
इसका
वास्तविक नाम ज्योतिर्मठ था
जो बाद में जोशीमठ हो गया|
बिलकुल
संकरा और चढाई पर बंसा हुआ सा
गाँव|
सुबह
आरती के समय एक मन्दिर में
गया|
सर्दियों
में बद्रिनाथ जी की मूर्ति
जोशीमठ रखी जाती है|
यहाँ
आदि शंकराचार्य ने साधना की
थी और ज्योतिर्मठ
तथा बद्रिकाश्रम की स्थापना
की थी!
वाकई
करीब १२०० साल पहले वे सुदूर
दक्षिण भारत से कैसे यहाँ तक
आए होंगे?
१२००
वर्ष जाने दिजिए,
अभी
भी सड़क जो बनी है बड़ी नाजुक
है|
कभी
भी टूट सकती है|
दादाजी
के पिता एक बार यहाँ आए थे-
करीब
साठ साल पहले|
तब
उन्होने चूल्हा आदि सामान
साथ ही लाया था|
बीते
जमाने में चुनौतियाँ चाहे
कितनी हो;
एक
बात जरूर अनुकूल रही होगी|
इन्सान
सरल थे|
आज
जैसा मार्केट और स्वार्थ का
जाल नही होगा|
इसलिए
यात्रियों को कठिनाईयाँ तो
होती ही होगी;
लेकिन
साथ में लोग सहायता भी अवश्य
करते होंगे|
ऑफ
सीजन होने पर भी मन्दिर परिसर
में यात्री है|
जोशीमठ
के मन्दिर देखते समय आदि
शंकराचार्य की दूरदृष्टि पता
चल रही है|
शंकराचार्य
ने जहाँ जहाँ पीठ बनाए,
वही
स्थान आज भारत के सीमा के पास
हैं|
जैसे
द्वारका और श्रीनगर!
और
उन्होने उत्तर भारत के पीठों
के लिए दक्षिण भारत के पुजारियों
को नियुक्त किया था और आज भी
यही परंपरा चल रही है|
मन्दिरों
का समूह-
ध्यान
भूमि और उसके साथ में बर्फिली
चोटियाँ!
मन्दिर
में एक स्वामीजी मिले|
उन्होने
बुलाया तो आरती में जा कर बैठा|
बातचीत
होने पर उन्होने बताया कि
तपोबन तक भी सड़क खुली हैं और
शेअर जीप चलती हैं|
मन्दिर
देखने के बाद जोशीमठ कस्बे
में चक्कर लगाया|
दूर
पहाड़ में एक गाँव की सड़क उपर
उठती दिख रही है|
धूप
का आनन्द लेने में बड़ा मजा आ
रहा है|
बस
लग रहा है कि धूप में ऐसे ही
बैठा रहूँ|
आज
आराम ही करने का मन हो रहा है|
ठण्ड
में थोड़ी सुस्ती तो आती ही है|
आम
तौर पर हम गर्म क्षेत्र के लोग
जो हैं|
टहलते
टहलते ही नाश्ता कर लिया|
दोपहर
में फिर डॉर्मिटरी जा कर विश्राम
किया|
यहाँ
मोबाईल में इंटरनेट बन्द है|
फोन
पर बात करने की भी अधिक इच्छा
नही हो रही है|
एक
तरह का सुकून जरूर मिल रहा है|
काफी
देर लेटने के बाद तीन बजे फिर
बाहर घूमने के लिए निकला|
जोशीमठ
में नीचले हिस्से में भी कुछ
मन्दिर है|
वहीं
बद्रिनाथ जी की गद्दी रखी जाती
है|
उन्हे
देखने के लिए गया|
यह
परिसर थोड़ी ढलान पर स्थित है|
जाते
समय शहर से आनेवाला एक नाले
जैसा झरना भी लगा|
यहाँ
से दूर अलकनन्दा दिखाई दे रही
है|
घण्टे
भर तक टहला और फिर शाम ढलने
लगी|
यहाँ
शाम के पाँच बजे ही अन्धेरा
हो रहा है|
और
ठण्ड भी तेजी से बढ़ने लगी|
कल
बद्रिनाथ रोड़ पर पण्डुकेश्वर
जाना है|
वहाँ
जानेवाली जीप का पता कर लिया|
शाम
का भोजन अभी कर लेता हुँ|
साढ़ेपाँच
बजे तक तो रात हो चुकी है|
अब
रजाई में घुसने के अलावा चारा
नही है|
ठण्ड
फैल रही हैं...
लेकिन
इसी ठण्ड के कारण ही डॉर्मिटरी
खाली पड़ी है!
ये
डॉर्मिटरी का सिस्टम पसन्द
आया|
वहाँ
बैजनाथ में भी मामुली दाम पर
आराम से ठहरा था|
वहाँ
सिर्फ ८० रूपए लगे तो यहाँ १४०
रूपए|
लेकिन
सुविधा अच्छी है|
लेटे
लेटे मोबाईल पर संगीत का आनन्द
लिया|
'ॐ
मणि पद्मे हुँ'
इस
तिब्बती मन्त्र पर कुछ प्रवचन
भी सुने|
वाकई
ऐसे स्थानों पर प्रवचन सुनने
में भी बड़ी गहराई अनुभव में
आती है...
आज
का दिन एक तरह से आलस में ही
बिता|
लेकिन
अगर कल मुझे घूमना है तो आज
विश्राम करना ही ठीक था|
विश्राम
और श्रम एक ही ऊर्जा के तो दो
पहलू है|
जितना
अच्छा विश्राम होगा,
उतना
ही श्रम किया जा सकेगा|
विश्राम
भी एक कला है और लोग अपनी चिन्ताएँ
और परेशानियों को सहज नही भूला
सकते|
इसलिए
आज विश्राम हुआ तो वही सही|
और
ठण्ड भी ऐसी है कि कोई उपाय
नही है|
जल्द
ही १६ दिसम्बर का दिन बीतता
गया|
यह
वही दिन था जिसने पूरे देश को
हिला दिया|
दिल्ली
में हुए बलात्कार और अपराध
काण्ड ने सभी को अस्वस्थ कर
दिया|
लेकिन
उस समय मुझे उसकी खबर नही है...
मै
एक तरह से दुनिया से दूर विश्राम
में हुँ|
जोशीमठ यात्रा वृतांत पढ़कर और फोटो देखकर जून २०१० में की गयी धार्मिक यात्रा की याद ताज़ी हो गयी...
ReplyDeleteयाद ताज़ी करने और बहुत सुन्दर संस्मरण के लिए धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद कविता जी!
ReplyDeleteumda jankari ..sundar chitra ..
ReplyDeleteजोशी मठ यात्रा वृतांत पढकर अच्छा लगा.... और अपनी यहाँ की यात्रा को याद भी किया ...
ReplyDeletepadh kar pura chitra yaad aa jata hai.
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