Monday, December 27, 2021

हिमालय की गोद में... (रोमांचक कुमाऊँ भ्रमंती) ६: गूंजी का हँगओव्हर

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२९ अक्तूबर की रात गूंजी‌ में सभी के लिए कठीन रही! एक तो अत्यधिक ठण्ड थी, साथ ही ऊँचाई लगभग ३३०० मीटर होने के कारण साँस लेने में भी कुछ दिक्कत हो रही थी| इसी कारण सोते समय कंबल सिर के उपर लेना सम्भव नही था, उसमें खतरा था| सभी लोग एक ही कमरे में अधिकसे अधिक कंबल आदि ले कर सोए| कितने अप्रत्याशित जगह पर हम है! और बिल्कुल भी अनप्लैन्ड तरीके से! लेकीन यह भी सच है कि अगर प्लैन किया होता तो शायद हम आते ही नही| क्यों कि सभी लोग उस अर्थ में घूमक्कड़ या ट्रेकर नही हैं| टूरीस्ट ही हैं| इसीलिए प्लैन नही किया, इसी लिए आ पाए| सभी लोग एक ही कमरे में होने से कुछ गर्मी मिली और छत लकड़ी का होने से भी लाभ मिला| हालांकी ठीक से नीन्द किसी की भी नही हुई| भोर होते होते सब जग गए थे| यहाँ के भोर का आकाश छूट न जाए, इसलिए मै बाहर आया! चाँद आसमाँ में‌ आया है और उसकी रोशनी में पास के शिखर अच्छे से चमक रहे हैं| बादल है, इसलिए तारे उतने ज्यादा नही दिखे|‌ लेकीन ठण्ड से उंगलियाँ जैसी ठिठुर गई हैं| और उससे भी बड़े मज़े की बात तो होटल के द्वार के पास रखी हुई बकेट का पानी जम गया है!! रात में होटलवाले ने थोड़ा दूर होनेवाला बाथरूम दिखाया था| वहाँ अन्दर प्लास्टीक के ड्रम का पानी लेकीन नही जमा है| उस ठण्ड में ब्रश करना भी टेढ़ी खीर है| जैसे तैसे अनिवार्य चीज़ें निपटा दी| कुछ मिनटों तक उंगलियाँ अकड़ सी गई थी| और साँस छोड़ना तो जैसे धुम्रपान ही बन गया है|





Wednesday, December 22, 2021

हिमालय की गोद में... (रोमांचक कुमाऊँ भ्रमंती) ५: है ये जमीं गूंजी गूंजी!


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२९ अक्तूबर की दोपहर! धारचुला पार करते ही मोबाईल नेटवर्क चला गया| अब सड़क भी पहाड़ में उपर उठ रही है और संकरी हो रही है| गूंजी जाना है, लेकीन सड़क कितनी दूर तक चल रही है, इसका अन्दाज़ा नही है| यहाँ के जानकार बता रहे हैं कि गूंजी तक अब गाडी चलती है| लेकीन मुझे शक है| इसलिए इसके आगे जो भी मिलेगा, पूरी तरह अप्रत्याशित होगा| तवा घाट के पास हमें एक परिचित मिले, वे सड़क पर हमारे लिए ही रूके थे| वे एक अर्थ में हमारी इस गूंजी यात्रा के संयोजक थे| उन्होने ही कहा था कि गूंजी जाईए, ॐ पर्वत देख आईए| वे हमारे लिए रूके थे और मिलते ही उन्होने हमारी गाडी चलाना शुरू किया| धीरे सड़क टूटने लगी थी, इसलिए हमारे ड्रायवर को उनके आने से राहत मिली| अब शुरू होता है एक रोमांचकारी यात्रा! 




यहाँ जॉईन हुए जितू जी वैसे तो पेशे से ड्रायवर हैं, लेकीन बिल्कुल ऑल राउंडर इन्सान| ड्रायवर, टूअर ऑपरेटर, टूरीस्ट गाडी, किसान, ट्रेकर इन सबमें कुशल| उन्होने फिर गूंजी के बारे में जानकारी दी| एक बार मैने उनसे पूछा कि अगर वास्तव में गूंजी तक जाया जात हो, तो इनर लाईन परमिट लगता होगा ना| उस पर उन्होने कहा कि उनकी पहचान है, इसलिए नही‌ लगेगा| फिर यहाँ की भीषण सड़कें, ड्रायवर्स कैसे चलाते हैं इसको ले कर वे बात करते रहें| तवा घाटच्या के कुछ आगे गूंजी की सड़क का अन्तिम होटल होनेवाला गाँव लगा| वहाँ दल- सब्जी राईस खा लिया| अब लोगों के चेहरे की शैलि में फर्क साफ नजर आ रहा है! और अब सड़क पर वाहनों में अधिक वाहन मिलिटरी के वाहन हैं!


 


Tuesday, December 14, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ४: गूंजी की ओर प्रयाण...

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२८ अक्तूबर की सुबह बुंगाछीना- अग्न्या परिसर में अच्छा ट्रेक हुआ| यह गाँव ठीक पहाड़ के बीचोबीच है| बस बैठ कर नजारों को आँखों में संजोना है! सबके साथ बातें हो रही हैं| बातों बातों में बाघ के बारे में बहुत कुछ सुनने में आया| यहाँ उत्तराखण्ड और कुमाऊँ में शेर अक्सर दिखाई देते हैं| शेर यहाँ बिल्कुल भी अपरिचित नही है| बल्की तो नरभक्षक शेरों की कहानियाँ और उनकी शिकार करनेवाला विख्यात शिकारी जिम कॉर्बेट की कर्म भूमि कुमाऊँ ही है| हाल ही के वर्षों में शेर की दहशत फिर से बढ़ रही है| एक समय तो शेर थोड़े कम हो गए थे| जंगल जैसे टूटता गया, वैसे वन्य प्राणियों पर मुश्कील समय आया| उसमें शेर भी थे| लेकीन अब फिर से उनकी दहशत बढ़ गई है| सत्गड़ और इस अग्न्या जैसे गाँवों में भी शेर आता है और दिन में जो गाँव सुहावना और रमणीय लगता है, वह रात में सुनसान हो जाता है! रात में कोई आँगन के बाहर तक नही जाता है!


 

Monday, December 6, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण)३: अग्न्या और बुंगाछीना गाँव में ट्रेक

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२७ अक्तूबर! रात जल्द सोने से नीन्द जल्द खुली| बड़ी भयंकर ठण्ड है! लेकीन भोर का माहौल और आकाश भी देखनी की बड़ी इच्छा है| इसलिए ठिठुरते हुए बाहर आया| आसमान में तारों के खूबसूरत नजारे हैं| अष्टमी का चन्द्रमा ठीक उपर है, जिससे सितारे कुछ कम दिखाई दे रहे है| कुछ देर तक मेरे छोटे टेलिस्कोप से आकाश दर्शन किया| सुबह भी नही हुई है और घर घर लोग उठे हुए दिखाई दे रहे हैं| सत्गड का आज दूसरा दिन| लेकीन आज यहाँ से दूसरे गाँव में जाना है| वापस यही आएंगे, इसलिए थोड़ा ही सामान ले जाएंगे| सब उठ कर तैयार होने के पहले जैसे तैसे सुबह का टॉर्चर- टास्क निपट दिया और छोटे ट्रेक के लिए निकला|





























Thursday, December 2, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) २: सत्गड परिसर में भ्रमण

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२६ अक्तूबर का दिन! अत्यधिक थकानेवाली यात्रा के बाद अच्छी नीन्द हुई| अलार्म ऑफ करने के बावजूद सुबह जल्दी नीन्द खुली| उजाला होने के पहले ही बाहर आया| अहा हा! सामने एक ही नजर में शब्दश: हजारो वृक्ष और घनी हरियाली! सत्गड से एक ही नजर में करीब तीन हजार देवदार वृक्ष तो दिख ही रहे हैं! अब पता चल रहा है कि हम देर रात कहाँ आए हैं| और महसूस हो रहा है कि हम कितने किस्मतवाले हैं| यहाँ के परिसर और दृश्यों का आनन्द लेते समय बड़ी ठिठुरन हो रही है| ब्रश करना भी जैसे एक टास्क है| टास्क नही, टॉर्चर! सुबह का फ्रेश होना सज़ा जैसे लग रहा है| ठण्ड पानी अत्यधिक ठण्डा जैसे वह जला रहा है| बड़ा दाह लग रहा है| दो दिनों की यात्रा के कारण कम से कम आज नहाना आवश्यक है| थोड़ी देर बाद सूर्य उपर आने पर और तपमान थोड़ा बढ़ने पर नहा लिया| लेकीन नहाने के लिए हुआ उबलता पानी भी सौम्य नही, शीतल लग रहा है! अर्थात् अत्यधिक ठण्डा पानी जला रहा है और उबलता हुआ पानी शीतल लग रहा है!



 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

Tuesday, November 30, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १: प्रस्तावना

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १: प्रस्तावना

सभी को नमस्कार| हाल ही में उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में घूमने का अवसर मिला| यह एक तरह का संयोग होता है और अगर किस्मत में हो, तो ही इस तरह का घूमना होता है| अन्यथ कितनी भी योजना बना के घूमना नही होता है| हिमालय में घूमने की यह दसवी बारी थी| इस बार मौसम बहुत स्वच्छ था, इसलीए दूर के बर्फ शिखर दिखाई दे रहे थे| कई जगहों पर ट्रेकिंग कर सका| और सबसे बड़ी बात दुर्गम मानस सरोवर- कैलाश पर्वत मार्ग पर गूंजी और काला पानी जैसे स्थानों तक की दुर्गम यात्रा हो सकी| पीछले वर्ष २०२० में ही यहाँ जीप की सड़क बनी है| सड़क नही, जीप का ट्रेक ही है! वहाँ जाने का रोमांचकारी अनुभव मिला| वहाँ जाना जीप के लिए और जीप के ड्रायवर के लिए तो हॉलीवूड मूवी जैसा था| कई हॉलीवूड मूवीज में नही, कोई साहसिक मुहीम दिखाते हैं| ज्ल्द ही वह भटक जाती है और वह एक सर्वायवल मिशन बनता है! गूंजी और काला पानी का जीप ट्रेक ऐसा ही सर्वायवल मिशन बना! उसके बारे में विस्तार से लिखूँगा|
 


 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

Friday, June 4, 2021

"राज" और "सिमरन": एक प्लॅटफॉर्म की कहानी


किसी रेल्वे जंक्शन का प्लॅटफॉर्म| वहाँ कई लोग ट्रेन में बैठ कर  यात्रा के लिए निकलते हैं| भागे भागे प्लॅटफॉर्म पर आते हैं, ट्रेन पकड़ते हैं और आगे निकल जाते हैं| पर यह सिर्फ रेल्वे स्टेशन पर ही नही घटता है| जीवन में ऐसे कई जंक्शन्स और अनगिनत प्लॅटफॉर्म होते हैं| प्लॅटफॉर्म एक माध्यम है जो हमें आगे ले जाता है| कभी स्कूल एक प्लॅटफॉर्म होता है और वहाँ विद्या मिलती है| कभी दु:ख एक प्लॅटफॉर्म होता है जो हमें आगे जाने के लिए सीखाता है|

जीवन भी एक प्लॅटफॉर्म है| ज्ञानी कहते हैं कि जीवन एक युनिवर्सिटी है| यहाँ इन्सान सीखते सीखते आगे जाता है| उसे एक प्लॅटफॉर्म से दूसरा ऐसे कई प्लॅटफॉर्म और कई ट्रेनें मिलती जाती हैं| ऐसे ही आगे बढ़ते हुए एक दिन साधक या शिष्य को गुरू की ओर ले जानेवाला प्लॅटफॉर्म मिलता है| यह कहानी उस प्लॅटफॉर्म की है| जब पहली बार गुरू साधक को पुकारता है, तब उसे तो भ्रम ही लगता है| लेकीन धीरे धीरे गुरू पुकारता रहता है| उसके बाद अदृश्य जरियों से गुरू शिष्य से मिलता है और उसका साथ देता रहता है| अहंकार और अज्ञान से भरा हुआ शिष्य का घड़ा गुरू एक एक अंजुली से खाली करता जाता है| और यह करते समय छलकने की आवाज़ भी नही होने देता है, कौन जाने, शिष्य नाराज होगा! ऐसा एक न दिखाई देनेवाला सत्संग शुरू होता है| एक सूक्ष्म शल्य- क्रिया शुरू होती है| और जब गुरू शिष्य को अपने पास पुकारता है, तो शिष्य को आना ही होता है| उसे गुरू के पास जाते समय कई बाधाएँ बीच में आ जाती है| उसका पूरा अतीत उसे रोकता है| लेकीन जब गुरू पुकारता है, तो उसे आना ही पड़ता है| शिष्य की इच्छा और आकांक्षाएँ गिर जाती है और सिर्फ गुरू के प्रति समर्पण की इच्छा बचती है| शिष्य की भाव दशा ऐसी हो जाती है-

मेरा है क्या, सब कुछ तेरा

जाँ तेरी, साँसें तेरी

तुने आवाज़ दी देख मै आ गई

प्यार से है बड़ी क्या कसम

या

मेरी आँखों में आँसू तेरे आ गए

मुस्कुराने लगे सारे ग़म

अब यहाँ से कहाँ जाएँ हम

तेरी बाँहों में मर जाएँ हम

Wednesday, May 26, 2021

मृत्यु का दंश

नमस्ते| आप सब कैसे हैं? सभी ठीक होंगे ऐसी आशा करता हूँ| इन दिनों हम जो भुगत रहे हैं, उसके बारे में कुछ विचार शेअर करता हूँ| इन दिनों हम लगातार मृत्यु से जुझ रहे हैं| हम में से कई लोगों ने उनके अपने खोए हैं| कई लोगों ने भीषण यातनाओं को सहा है| हमें वैसे तो आँख खोल कर मौत को देखने के लिए सीखाया नही जाता है| बचपन से ही हमें मौत को जानने ही नही दिया जाता है| मरघट भी गाँव के बाहर होता है और यह विषय कभी भी हमारी बातचीत में नही आता है|

लेकिन जब हम सजग होकर देखते हैं तो पता चलता है कि मौत शाश्वत चीज़ है| बल्की जीवन में मृत्यु जितना कन्फर्म है, उतना कन्फर्म बाकी कुछ भी नही है| धन, प्रतिष्ठा, सुख, सन्तोष, शान्ति ये चीज़ें मिलेगी या नही मिलेगी यह निश्चित कहा नही जा सकता है| लेकीन मौत निश्चित है| किसी का भी टिकट वेटिंग या आरएसी नही है, बल्की बिल्कुल कन्फर्म है| आज बुद्ध पूर्णिमा है| तथागत बुद्ध अपने भिक्षुओं को मौत पर ध्यान करने के लिए मरघट भेजते थे| दो दो महिनों तक वे भिक्षुओं को मरघट भेजते थे और कहते थे कि देखिए मौत को| देखिए जलनेवाली देह जो नष्ट हो रही है| और उसे सजग हो कर देखिए| इससे उन भिक्षुओं को समझ आता था कि, यहाँ अन्य कोई नही, खुद उनकी देह भी मर रही है, ऐसे ही मरनेवाली है|

जब हमारे प्रिय व्यक्ति का मृत्यु होता है, तो एक अर्थ में हमारा भी मृत्यु होता है| क्यों कि वह हमारा हिस्सा होता है या हम उसका हिस्सा होते हैं| इसलिए एक रिक्तता और सुनापन छा जाता है| लेकीन अगर हम सजग हो कर मौत को देख सकें, तो दूसरे व्यक्ति की मौत में हमें खुद की मौत भी दिखाई देती है| समाज ने तो हमें हमेशा से मौत को देखने से दूर रखा है| इसलिए हम खुली आँख से मौत देखना जानते नही है| लेकिन अगर हम थोड़ी हिंमत कर मौत को देख सके, तो होनेवाली हर मौत में हमें खुद की मौत दिखाई देने लगती है| और तब हमे वह सत्य समझता है कि हाँ, यहाँ हर व्यक्ति का मरना निश्चित है| जब हम दूसरे की मौत में खुद की ही मौत देख पाते हैं, हमारी मौत की ही खबर के तौर पर देखते हैं, तब धीरे धीरे उस मौत का दंश कम होता जाता है| भीतर से महसूस होता है कि जो कन्फर्म है, वह तो हो कर रहेगा, उसे इन्कार करने से कुछ भी नही होगा| और जब हम मौत को स्वीकार करते हैं, तब जीवन के दूसरे अर्थ हमारे लिए खुल जाते हैं| तब जब हम कोई असहाय और अति विकलांग रुग्ण देखते हैं, तो हमें भीतर से महसूस होता है कि एक दिन मेरा भी यही होनेवाला है| आज जो उस व्यक्ति के लिए सच है, वही मेरा भी कल का सच है|

Pain of death

Hello. How are you all? Hope all are fine. Just sharing some thoughts about the pain through which all of us are going. In these days, we are always confronting death. Many of us have lost their dear ones. Many of us have endured tremendous pain. Generally we are never taught to see death with open eyes. Mostly from childhood, we are kept away from death. Even the crematorium is outside the town and this topic never comes in our discussion.

Wednesday, April 28, 2021

Deep relaxation साठी योग निद्रा आणि ध्यान

सर्वांना नमस्कार. सर्व जण ठीक असतील अशी आशा करतो.

योगनिद्रा हा ध्यान म्हणजेच deep relaxation चा झोपलेल्या स्थितीमध्ये केला जाणारा प्रकार आहे. योगनिद्रेच्या अभ्यासाने शरीर रिलॅक्स होतं व मन शांत होतं. शरीराचे ताण व मानसिक स्ट्रेससाठीही उपयोगी आहे. शक्यतो डोक्याखाली उशी न घेता झोपलेल्या स्थितीमध्ये ३५ मिनिट दिलेल्या सूचना ऐकून सहजपणे करता येणारा हा ध्यान प्रकार आहे. आपल्या सोयीने चटई, सतरंजी किंवा गादीवर झोपून सकाळी, दुपारी किंवा संध्याकाळी किंवा झोपतानाही आपण हे करू शकता. शवासनात आडवे होऊन फक्त सूचनांनुसार स्वतःला रिलॅक्स करत जायचं आहे.  इथून आपल्याला सूचना डाउनलोड करून ऐकता येतील. हे एक music असलेलं guided meditation आहे. https://drive.google.com/file/d/12Ll2_N0IQgXACOMMduHP59VSJQOUQ8ja/view?usp=drivesdk

त्याशिवाय कोणत्याही प्रकारे कंफर्टेबल स्थितीमध्ये बसून करता येणारा ध्यानाचा- deep relaxation चा एक सोपा प्रकारसुद्धा मी घेतला आहे. हे अर्धा तासाचं खोलवरचं रिलॅक्सेशन आहे. इथून म्युझिकसह असलेल्या सूचना डाउनलोड करून ऐकता येतील:
https://drive.google.com/file/d/1VIdQ2AtUMbdkJVdnPyGgg58YyIx0EnX8/view?usp=sharing

अनेक जणांनी ह्या दोन्ही प्रकारांबद्दल फीडबॅक दिला आहे. तणाव, शारीरिक वेदना व अस्वस्थता असतानासुद्धा हे ऐकून बरं वाटलेलं आहे. आणि रिलॅक्स होण्यासाठी मदत झाली आहे. हे ऐकताना आपण शांत होणार असल्यामुळे हे ऐकताना आपला मोबाईलही शांत ठेवावा लागेल. सध्याच्या कठीण काळात खूप उपयोगी राहील. आपल्या जवळच्यांसोबत अवश्य शेअर करावं. धन्यवाद.


(योगनिद्रा व ध्यान निवेदक- निरंजन वेलणकर niranjanwelankar@gmail.com, 09422108376 सध्याच्या काळामध्ये अनेक लोकांच्या दु:खावर फुंकर घालणारा आणि मृत्युबद्दल विचारमंथन करणारा माझा लेख- http://niranjan-vichar.blogspot.com/2021/04/blog-post_28.html)

एक मृत्युपत्र


सर्वांना नमस्कार! हे एक प्रत्यक्षात लिहिलेलं पत्र आहे. एका काकाच्या मृत्युनंतर तीन महिन्यांनी त्याच्या आई- पत्नी (माझी आजी- मावशी) आणि मुलींना (माझ्या बहिणींना) लिहिलेलं. ह्यामधला आशय आपल्या सर्वांसोबत- आपल्या प्रत्येकासोबत शेअर करावासा वाटला म्हणून इथे देत आहे.

|| ॐ ||

दि. २७ एप्रिल २०१६

ती. आजी, ती. मावशी आणि मिताली- प्राजक्ता!

तुमच्याशी थोडं बोलायचं आहे. अगदी सविस्तर आणि मनमोकळेपणाने बोलायचं आहे. तुम्हांला माहितीच आहे की मी किती अबोल आहे! त्यामुळे समोरासमोर बोलताना मला कंठ फुटत नाही. म्हणून लिहून बोलतोय. खूप दिवसांपासून मनात होतं की तुमच्याशी बोलावं. अनेक गोष्टी आहेत. अनेक गोष्टी शेअर करायच्या आहेत. आणि तुमच्याशी बोलत असताना मी हे स्वत:शी सुद्धा बोलतोय. स्वत:ला ह्या गोष्टी परत सांगतोय.

मावशी आणि आजी, तुमच्याशी बोलताना जाणवतं की, तुम्ही सध्या स्वत:ला खूप कामात ठेवण्याचा प्रयत्न करता. सतत काही ना काही करता. प्रवचनं ऐकता. मावशीही म्हणते की, मनाला काही उद्योग हवा. मी समजू शकतो. पण त्याबरोबर हेही खरंच की आपण ज्या स्थितीतून जातोय, त्यामध्ये आपल्याला खूप त्रास होतोय आणि त्या स्थितीतून बाहेर पडायला खूप वेळ लागेल. किंवा कदाचित आपण पूर्णपणे त्यातून बाहेरही पडू शकणार नाही. मला एक- दोन गोष्टींकडे तुमचं लक्ष वेधून घ्यायचं आहे.

मी बॉसना लिहिलेल्या पत्रातही म्हणालो होतो तेच इथेही म्हणेन. बॉस शरीराच्या रूपाने आपल्यामध्ये नाहीत. पण शरीर काही अंतिम सत्य नाही. शरीर हा एक मुक्काम, शरीर एक तात्पुरता निवारा ना. आणि शरीर व नाम- रूप हे तर अगदी क्षणभंगूर. चेतना त्याहून जास्त महत्त्वाची जी २५ फेब्रुवारी १९५६ च्या आधी अस्तित्वात होती आणि ३१ जानेवारी २०१६ च्या नंतरही अस्तित्वात आहे. Form is temporary, formless existence is permanent. त्यामुळे त्या शरीराचा; त्या मनाचा; त्या नाम- रूपाचा जास्त विचार करणं त्रासदायक तर आहेच पण त्या चेतनेसाठीसुद्धा योग्य नाही. थोडं सविस्तर बोलतो.

आपण समुद्र किनाऱ्यावर उभे आहोत. आपल्याला सूर्य मावळताना दिसतो. हळु हळु सूर्य क्षितिजाखाली बुडतो. आपल्या दृष्टीने सूर्यास्त होतो. पण हा खरोखर सूर्याचा अस्त आहे का, सूर्याचा अंत आहे का? आपल्या नजरेने नक्कीच आहे. पण जर थोडी दृष्टी व्यापक केली; समजा आपण स्वत:ला अंतराळाच्या पातळीवर नेऊन बघितलं तर काय दिसेल? तर कळेल की सूर्याचा अस्त होतच नाही. फक्त आपण ज्या अँगलने बघत होतो, तिथून तो आता दिसत नाहीय. पण तो प्रकाशित आहेच, दुसऱ्या अँगलने दिसतोय. काही दुसरे लोक असतील ज्यांना तो सूर्योदय म्हणून दिसेल. मावशी- आजी तुम्ही इतके प्रवचनं ऐकता, वाचता, मला सांगा जन्म आणि मृत्यु हे एकाच नदीचे दोन किनारे नाहीत का? जन्म होतो तेव्हा कोणाच्या तरी मृत्युनंतरच तो होतो आणि जेव्हा मृत्यु होतो, तेव्हाही ती पुढच्या जन्माची, पुढच्या गतीची नांदीच नसते का? म्हणून त्याचं इतकं दु:ख करायचं का? आणि दुसरी गोष्ट म्हणजे नाम- रूपावरची इतकी आसक्ती त्या चेतनेच्या पुढच्या प्रवासात बाधा आणत असते. तुम्ही अनेक ठिकाणी वाचलं असेल की, जन्मलेल्या बाळाला पूर्व जन्माची स्मृती असते. किमान दिड वर्षापर्यंत. आणि मग हळु हळु नव्या जन्मातली नाती व प्रभाव त्याच्यावर असलेला मागच्या जन्माचा प्रभाव पुसून टाकतात. पण जेव्हा मूल बोलायला लागतं, तोपर्यंत ही पूर्वस्मृती काहीशी असते. आणि म्हणून आसक्ती असते. आणि ही आसक्ती त्या चेतनेच्या पुढच्या जन्मामध्ये बाधा निर्माण करू शकते.

Friday, April 23, 2021

जुन्या पिढीतली अभिनेत्री- विम्मी आणि तिची शोकांतिका

आज विमलेश अर्थात् विम्मी ह्या अभिनेत्रीचं नाव फारसं कोणाला आठवणार नाही. पण तिच्यावर चित्रित झालेली काही गाणी अजूनही प्रसिद्ध आहेत. सुनील दत्त आणि राजकुमारसोबतच्या "हमराज़" ह्या चित्रपटामधील तिच्यावर चित्रित झालेली ही गाणी आजही ऐकली- बघितली जातात आणि ह्या गाण्यांमध्ये एक हसरा चेहरा आपल्याला दिसतो.

हे नीले गगन के तले धरती का प्यार पले
ऐसे ही जग में आती हैं सुबहें ऐसे ही शाम ढले
 
तुम अगर साथ देने का वादा करो
मैं यूँही मस्त नग़मे लुटाता रहूं

आणि

किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा है

पण तिच्या आयुष्यामध्ये ह्या गाण्यातली शेवटची ओळच खरी ठरली- वो क्या जाने की अपना किस क़यामत का इरादा है! अतिशय शोकांतिक तिचं आयुष्य ठरलं. पडद्यावरची एक प्रसिद्ध अभिनेत्री असूनही तिच्या आयुष्याचा शेवट अतिशय दुर्दैवी झाला. तिचं आयुष्य व तिच्या आयुष्याचा "हमराज़" जाणून घेण्याचा हा छोटा प्रयत्न.

१९४३ मध्ये पंजाबमध्ये एका शीख कुटुंबात तिचा जन्म झाला. पुढे शिवराज अग्रवाल नावाच्या एका उद्योगपतीसोबत तिने लग्न केलं आणि १९६१ मध्ये १८ व्या वर्षीच तिला मुलगा झाला. ह्या मुलाची कहाणीही अतिशय वेगळी आणि तीसुद्धा वेगळ्या प्रकारची शोकांतिका ठरली. शिवराज अग्रवालांच्या पार्ट्या कलकत्त्यामध्ये होत असताना एका पार्टीमध्ये विमलेशची भेट संगीतकार रवींसोबत झाली आणि त्यांनी शिवराज अग्रवाल आणि विमलेशला मुंबईला बोलावलं आणि बी आर चोप्रांसोबत तिची ओळख करून दिली. आणि बी आर चोप्रांच्या बॅनरचा चित्रपट तिला मिळाला! १९६७ साली आलेला "हमराज़" हा तो चित्रपट. ह्या चित्रपटामुळे ती सुप्रसिद्ध झाली आणि नायिका बनली! पदार्पणाच्या मॅचमधल्या शतकासारखी ही गोष्ट होती! परंतु काही‌ बॅटसमन पहिल्या मॅचमध्ये जितके रन्स करतात तितके कधीच पुढे करत नाहीत आणि त्यांना संधीही मिळत नाही. विम्मी म्हणून प्रसिद्ध झालेल्या विमलेशच्या बाबतीत तेच झालं.

Sunday, April 18, 2021

चंद्रमा और मंगल की लुका छुपी

सभी को नमस्ते| सब लोग ठीक होंगे ऐसी आशा करता हूँ| कल १७ अप्रैल की शाम को आकाश में चंद्रमा और मंगल ग्रह की सुन्दर लुका छुपी दिखाई दी| कुछ देर तक मंगल चंद्रमा के पीछे छुप गया था और बाद में बाहर आया| इसे वैज्ञानिक भाषा में occultation- पिधान कहते हैं| यह एक तरह का चंद्रमा ने किया मंगल ग्रह का ग्रहण ही था|

शाम को जब सूरज डूबा तब पहले से ही मंगल चंद्रमा के पीछे जा चुका था| ठीक ७ बज कर २१ मिनट पर वह चंद्रमा के बिम्ब के पीछे से दिखाई देने लगा| मेरी टेलिस्कोप से इस सुन्दर दृश्य के फोटो और विडियोज लेने का अवसर मिला| आँखों से भी यह दृश्य दिखाई दिया| लेकीन चंद्रमा मंगल से अत्यधिक तेजस्वी होने के कारण मंगल खुली आँखों से दिखाई देने के लिए और समय लगा और चंद्रमा से कुछ दूर आने के बाद ही मंगल दिखाई देने लगा| इन फोटोज और विडियोज का जरूर आनन्द लीजिए|



Tuesday, April 6, 2021

आकाशातील आश्चर्य: चंद्र मंगळाला झाकणार!

सर्वांना नमस्कार. सर्व जण ठीक असतील अशी आशा करतो. येत्या १७ एप्रिल २०२१ च्या शनिवारी संध्याकाळी आकाशामध्ये एक आश्चर्य बघायला मिळणार आहे. जेव्हा चंद्र एखाद्या ग्रहाला किंवा ता-याला झाकतो तेव्हा त्याला पिधान असं म्हणतात. १७ एप्रिलच्या संध्याकाळी चंद्र मंगळाला झाकणार आहे आणि नंतर आपल्याला मंगळ चंद्राच्या मागून परत येताना दिसणार आहे. महाराष्ट्रामध्ये आपल्याला चंद्राच्या मागे जाताना मंगळ दिसणार नाही, पण सायंकाळी ७ वाजून २१ मिनिटांनी चंद्राच्या मागून तो परत दृग्गोचर होताना दिसेल. पूर्व भारतामध्ये आगरताळासारख्या ठिकाणी मंगळ चंद्राच्या अप्रकाशित भागाच्या आड जातानाही‌ दिसू शकेल. पण महाराष्ट्रामध्ये अंधार पडला असेल तेव्हा मंगळ आधीच चंद्रामुळे झाकला गेलेला असेल.

नुसत्या डोळ्यांनी आणि अगदी सहजपणे ही घटना बघता येईल. आकाशामधील किती तरी गमती नुसत्या डोळ्यांनी बघता येतात. अतिशय दूरवरचे तारे, तारकागुच्छ, आकाशगंगा आणि ग्रहण, पिधान, युती, ता-यांच्या पार्श्वभूमीवर ग्रह व चंद्राची हालचाल अशा गोष्टी नुसत्या डोळ्यांनीही बघता येऊ शकतात.

हे बघण्यासाठी सूर्यास्ताच्या सुमारास पश्चिम आकाश व्यवस्थित दिसेल अशा ठिकाणी जाऊन थांबावं लागेल. त्या दिवशी सूर्यास्त ६.५३ ला होईल आणि त्यानंतर थोड्या वेळात ७.२१ ला मंगळ चंद्राच्या आडून बाहेर येताना दिसेल. तेव्हा पुरेसा अंधार असेल व त्यामुळे १.५ इतक्या प्रतीचा व मध्यम तेजस्वी असा मंगळ चंद्राच्या आडून आलेला दिसू शकेल. चंद्राची पंचमीची कोर असेल. चंद्र व मंगळ हे वृषभ राशीमध्ये व अग्नी ता-यापासून दक्षिणेला साधारण साडेपाच अंश म्हणजे आपण बघताना हात पूर्ण लांब केल्यास हाताची तीन बोटे मावतील इतक्या अंतरावर असतील. ह्यावेळी आपल्याला मृग नक्षत्र, ब्रह्महृदय तारकासमूह, रोहिणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, व्याध, पुनर्वसू नक्षत्र, प्रश्वा, सप्तर्षी आदि ठळक तारे व तारकासमूह सहजपणे बघता येतील. ह्या घटनेच्या तांत्रिक तपशीलांसाठी ही वेबसाईट बघता येईल.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

चंद्राच्या पलीकडून बाहेर येणारा मंगळ

Tuesday, January 19, 2021

OSHO!!!!!


(Never born, never died. Visited this planet between 11.12.1931- 19.01.1990)

Today is the death anniversary of Osho! On this day, 19th January, he left his body some 31 years ago! I feel very much emotional when I talk about him. I mean how to describe him, how to tell who he was! It makes me just speechless. But still making an attempt to write something.

Osho..... I met him in July 2012. It is said that when a disciple is ready, Guru suddenly appears. It was all of a sudden! Before that also, I had heard a thing or two about him, read some lines here and there. But then proper encounter took place. So much of it that life got divided- before July 2012 and after July 2012. I.e. Before Osho and after Osho. When I met him, I felt as if all my erstwhile knowledge and information became irrelevant. When I met him, when he came into my life or rather when he stormed into my life, I felt that I have found something new that changed all my framework, all my knowledge and upbringing.

Slowly slowly I started hearing his discourses. It took some time to start listening too. But through his soft and gentle voice, his sharp poise and narration, he makes everything so crystal clear. In short, I would say that what our general wisdom does to us is we divide everything in our life- we divide things or people or aspects such as good or bad. We sort of differentiate between all dimensions of life and then we choose certain ones and reject certain ones. But Osho gives us some insight to integrate life. Then life becomes a solved jigsaw puzzle- all pieces fall in place and an integral picture becomes visible!

Osho, in his own words has said that when a proper path is found, you can smell the air of the destination right from the first step. Indeed. That kind of a very life- shaking feeling came when I sort of came near him. “This is the thing. This is that!” That is what the mind shouts from within. And then it was he who was all over me. All my knowledge, intellect, mind mechanisms till then were very much useful for me to bring me to him. Everything sort of prepared me and helped me like a launchpad. I was prepared to receive him and to understand him. I know I was very lucky.

Okay, put simply, who Osho is? Osho is the modern enlightened master, rightly called the master of masters and who talks about meditation or spirituality in the very 20th century language terminology. He is the modern day Krishna, Jesus, Nanak or the similar enlightened ones. From Hinduism, Jainism, Buddhism to Christianity, Zen, Sufism and all kinds of spiritual traditions, he has spoken on every tradition and every major master in that tradition. Be it Vedanta, be it modern masters like Kabir, Nanak, Meerabai, George Gurdjeef, Jesus, Saint Augustine, Bodhidharma, Buddha, Zarathustra and similar blessed ones. He has spoken about all of them, about hundreds of such traditions. Right from Yoga to Tantra, from Bhakti to meditation. And he has given us the essence. He has brought us the most essentials.