Tuesday, November 30, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १: प्रस्तावना

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १: प्रस्तावना

सभी को नमस्कार| हाल ही में उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में घूमने का अवसर मिला| यह एक तरह का संयोग होता है और अगर किस्मत में हो, तो ही इस तरह का घूमना होता है| अन्यथ कितनी भी योजना बना के घूमना नही होता है| हिमालय में घूमने की यह दसवी बारी थी| इस बार मौसम बहुत स्वच्छ था, इसलीए दूर के बर्फ शिखर दिखाई दे रहे थे| कई जगहों पर ट्रेकिंग कर सका| और सबसे बड़ी बात दुर्गम मानस सरोवर- कैलाश पर्वत मार्ग पर गूंजी और काला पानी जैसे स्थानों तक की दुर्गम यात्रा हो सकी| पीछले वर्ष २०२० में ही यहाँ जीप की सड़क बनी है| सड़क नही, जीप का ट्रेक ही है! वहाँ जाने का रोमांचकारी अनुभव मिला| वहाँ जाना जीप के लिए और जीप के ड्रायवर के लिए तो हॉलीवूड मूवी जैसा था| कई हॉलीवूड मूवीज में नही, कोई साहसिक मुहीम दिखाते हैं| ज्ल्द ही वह भटक जाती है और वह एक सर्वायवल मिशन बनता है! गूंजी और काला पानी का जीप ट्रेक ऐसा ही सर्वायवल मिशन बना! उसके बारे में विस्तार से लिखूँगा|
 


 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 


 

१५ दिनों तक कुमाऊँ में अच्छा घूमना हुआ| २५ अक्तूबर से ११ नवम्बर तक हिमालय का सत्संग हुआ| कुमाऊँ के पिथौरागढ़ जिले में कई जगह जा पाया| कुछ सुन्दर ट्रेक भी किए| मेरी पत्नि मूलत: वहीं की है| वहाँ के रिश्तेदारों से मिलने के लिए यह फैमिली ट्रिप थी| लेकीन उसके साथ जिन जिन गाँवों में रह रहा था, वहाँ सब जगह ट्रेकिंग किया| जाने के कुछ ही दिन पहले उस क्षेत्र में लगातार ५५ घण्टों तक तेज़ बारीश हुई थी| उससे कई सड़कें कुछ दिनों के लिए बन्द थी| इसलिए जाते समय हमें कितना जा सकेंगे, कौनसी सड़कें खुली है, इसको ले कर शंकाएँ थी| और इसी कारण दिल्ली से जाते समय प्रचलित टनकपूर- पिथौरागढ़ राजमार्ग के बजाय हल्द्वानी- दन्या- घाट- पिथौरागढ़ ऐसा जाना पड़ा| वहाँ सभी जगहों पर इस तेज़ बारीश के परिणाम नजर आ रहे थे| बाद में काफी सड़कें शुरू भी हुईं, लेकीन लैंड स्लाईडस, सड़क पर गिरनेवाले पत्थर, फिसलन का कारण बननेवाला किचड़, संकरी सड़कें सभी जगह पर दिखीं| और इसका रोमांच तो ठीक लौटने के दिन हिमालय उतर कर नीचे आने तक जारी रहा!




 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

आशा, बेटी अदू, कुछ रिश्तेदार और दो मित्रों के साथ यह यात्र शुरू हुई| २४ अक्तूबर को पुणे से ट्रेन से दिल्ली के लिए निकले और २५ की सुबह दिल्ली से आगे की यात्रा टैक्सी में शुरू की जो पिथौरागढ़ की ही थी| स्पीति में साईकिल चलाने के दो साल बाद फिर हिमालय के सत्संग का अवसर! हिमालय में जाना तब ही होता है जब हिमालय बुलाता है| कितने ही बार ऐसा भी हुआ है कि बहुत प्लैन बनाया, तैयारी की, लेकीन ठीक समय पर किसी कारण से जाना नही हुआ! और ऐसा भी कई बार हुआ है कि इच्छा भी नही थी, योजना भी नही थी और फिर भी आसानी से हिमालय में पहुँच ही गए! हिमालय का जब बुलावा आता है, तो उसे हाँ में ही उत्तर दिया जाता है! तब सब चीज़ें एकदम से ठीक हो जाती हैं!

दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन से सुबह ८ बजे निकले| ट्रेन की यात्रा में तापी, नर्मदा, चम्बल आदि नदियाँ मिली थी| दिल्ली में यमुना भी मिली| आगे गढ़मुक्तेश्वर में गंगा ने दर्शन दिया! उत्तर प्रदेश! मुरादाबाद और रामपूर! वहाँ से अन्दर मूडे| 'बा अदब, बा मुलाहिजा! होशियार! नगाधिराज महाराज पधार रहे हैं!' यही भाव मन में आ रहा है| रुद्रपूर सिटी अर्थात् सरदार उधमसिंह नगर से उत्तराखण्ड शुरू हुआ! और हल्द्वानी से हिमालय के चरण कमल शुरू हुए!

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

भीमताल से गुजरते हुए

कितना अजस्र और अमानुष नगाधिराज! आँखों से ठीक तरह से देखा भी नही जा सकता है! शुरू में चरण कमल के जैसे पहाड़! उसके बाद एक दूसरे के सटे पहाडों का मेला! जितने हम आगे जाएंगे, आगे के पहाड़ दिखाई‌ देने लगते हैं| हल्द्वानी से तुरन्त ही आगे संकरी सड़क, खाई, पहाड़ और हरियाली! हल्द्वानी से नैनिताल पास ही है, लेकीन अभी उसकी मुख्य सड़क शुरू नही हुई है| इसलिए हमारी भीमताल की सड़क पर ही नैनिताल की यातायात चल रही है| दोपहर के ३ बजे हैं, इसलिए नैनिताल के वाहन तेज़ी से नीचे उतर रहे हैं| हमारे ड्रायवर एकदम आसानी से मोडों पर भी तेज़ी से गाडी चला रहे हैं| एकदम बड़ा वाहन आ जाता है तो हमें कहीं कहीं रूकना पड़ रहा है या वह वाहन जगह देख कर रूकता है| या कभी कभी रिवर्स ले कर पीछे भी जाना पड़ रहा है| घाट की सड़क, पर्वतों की मालिका और जंगल जैसी हरियाली! सड़क के किनारे बन्दर! ऐसे कुछ स्थानों पर हिमालय में सह्याद्री पर्वत की याद आती है| लेकीन वह बस वहीं तक! उसके बाद की भूमिति और मिति ही बिल्कुल अलग! सड़क की यातायात में कुछ साईकिलवाले तेज़ी से क्रॉस हुए| वे जरूर नैनिताल काम के लिए जाते होंगे| जाते समय तो वे उनकी दुधवाले जैसी साईकिलें गाड़ी में ले जाते होंगे और वापसी में पच्चीस किलोमीटर की उतराई! एक होटल में रूक कर आगे की यात्रा शुरू हुई| इस पहाड़ी यात्रा में और मोड़ों भरे घाट की सडकों से पूरी तरह परिचित होने के कारण भोजन नही लिया और चाय भी नही पी|











 

 शाम को पाँच बजे के बाद अन्धेरा होने लगा| इस सड़क से हल्द्वानी से पिथौरागढ़ की दूरी १९५ किलोमीटर है| पर पहाड़ी सड़क, यानी हर घण्टे मुश्किल से २५ किलोमीटर की रफ्तार| इसलिए पिथौरागढ़ पहुँचने में देर रात हो जाएगी| और हमें तो उसके भी १८ किलोमीटर आगे सत्गड गाँव जाना है| लेकीन क्या अद्भुत नजारे! इस सड़क की विशेषता यह है कि इस पर बड़ा शहर लगता ही नही है| अल्मोडा जिले के केन्द्र को कुछ किलोमीटर दूर रखती हुई यह सड़क जाती है| हिमालय में हो कर भी यहाँ रात में यातायात चलती है| हाल ही की बारीश में भी यह सड़क चालू रही| इसकी बजाय टनकपूर से पिथौरागढ़ १५१ किलोमीटर की सड़क थोड़ी सुगम है लेकीन वो इस बारीश में अवरुद्ध हो गई| एक स्थान पर तो डेढ किलोमीटर सड़क ढह गई है| इसलिए यह दूर का मार्ग लेना पड़ा|
 


 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अब धीरे धीरे सड़क उपर उठने लगी है| लगभग १५०० मीटर ऊँचाई पर आने के बाद देवदारों का आगमन हुआ! चारो ओर पहाड़, खाई और उनके ठीक भीतर बंसे गाँव और उतराई पर होनेवाली खेती! अन्धेरे में पहाडों में बसे ये घर दूर से टिमटिमाते दिए जैसे दिखाई‌ दे रहे हैं| आसमान में तो तारों की जैसे बरसात हो रही है| लेकीन अब ठिठुरन लानेवाली ठण्ड भी शुरू हुई| सड़क हर सेकैंड मूड़ रही है| इसलिए यह जीप की यात्रा भी‌ एक थकानेवाला ट्रेक ही मानी जाती है| कई लोगों तो आदत होने के बाद भी इसकी तकलीफ होती है| यहाँ इतना निर्जन इलाका है कि घण्टे भर में मुश्किल से दो- तीन वाहन ही मिल रहे हैं| जीप में रिश्तेदार और मित्र मिला कर छह लोग हैं| ड्रायवर रफिक़ पिथौरागढ़ का ही है इसलिए बहुत बातें हो रही हैं| बीच बीच में एक एक जन नीन्द भी ले रहा है| बिल्कुल धिमी गति से यात्रा जारी रही और शहर फाटक, दन्या ऐसे बस्तियों जैसे छोटे गाँव पार हुए| घाट नाम के स्थान पर यह सड़क टनकपूर- पिथौरागढ़ सड़क से जुड़ गई| यहाँ भी लैंड स्लाईड के कारण सड़क कुछ ही समय पहले बन्द की गई थी| लेकीन हमारे आने तक खुली है| रात के १० बजे हैं! घाट पर यह सड़क रामगंगा को पार करती है| पुलिस ने गाड़ी की जाँच की और आगे जाने दिया| यहाँ से नेपाल सीमा पास ही है! और यहाँ से आगे बॉर्डर रोडस ऑर्गनायजेशन का हिरक विभाग शुरू होता है! आगे कुछ कुछ स्थानों पर गाड़ी बड़ी मुश्किल से पास हो सकेगी, इतना ही रास्ता बचा है| या सिर्फ उतना ही मलबा हटाया है| बाकी जगहों पर बारिश ने बरपाया कहर दिखाई दे रहा है| पहाड़ के हिस्से ढह गए हैं, पत्थर गिरे हैं और सड़क क्षतिग्रस्त हुई है|




 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

दिल्ली से निकल के कब के बारह घण्टे हुए हैं| और भी समय लगनेवाला है| कई लोगों को उल्टी और सिरदर्द हुआ| जीप जब तेज़ी से मूड़ती हुई जाती है, तो पेट हिलता है| मैने पेट खाली रखा था, इसलिए मुझे ज्यादा दिक्कत नही हुई| छोटी अदू तो सो गई है, उसे भी तकलीफ नही हुई| आखिर कर देर रात बारह बजे सत्गड को पहुँचे| लेकीन अभी यात्रा समाप्त नही हुई है| सत्गड पहाड़ पर बंसा गाँव है| इसलिए यहाँ पर पगडण्डी से उपर चढ़ के जाना है| यह भी एक १० मिनट का छोटा ट्रेक ही है! पन्द्रह घण्टों की जीप की सफर के बाद (और अंग्रेजी suffer भी!) बहुत थकान लग रही है| बड़ी बॅग्ज नीचे एक दुकान में ही रख दी| यहाँ सभी ग्रामीण एक दूसरे को पहचानते हैं और सबका सबसे जुड़ाव होता है! इसलिए भारी बैग्ज दुकान में रख दी| सत्गड के नवीनजी और उनका बेटा आयुष सड़क पर आए हैं| जीप से उतरने के बाद तेज़ ठण्ड लग रही है! रात्रि के सवा बारह बजे हैं! दात पर दात बजने जैसी ठण्ड! छोटी बैग्ज हाथ में ले कर सभी तुरन्त निकले| मै यहाँ २०१७ में रहा हूँ, इसलिए परिसर से परिचित हूँ| हिमालय के इस बुलावे का बहुत आनन्द हो रहा है| सामान के साथ चढ़ते हुए धीरे धीरे शरीर गर्म होता गया| चलते समय नवीनजी ने सहजता से कहा, परसो रात को ही यहाँ पर शेर आ गया था| इसलिए रात में कोई अकेला बाहर नही जाता है| लोग कुत्ते और गाय- बकरियों को भी घर के अन्दर ही रखते हैं| सोया हुआ पहाड़ी गाँव! पास ही स्थित देवदारों का वन और उपर का दिखनेवाला ध्वज मन्दिर का दिया! उसके साथ आसमान में अनगिनत तारे जैसे कह रहे हो- 'प्यार के हजार दीप हैं जले हुए!' रूकते रूकते, साँस लेते लेते पन्द्रह मिनट में रिश्तेदारों के घर पहुँचे! सात साल की अदू भी अपनी छोटी बैग के साथ बहुत दूर तक चली और बाद में मौसाजी ने उसे उठाया| घर पहुँचने पर हार्दिक स्वागत हुआ और अपनापन मिला! १८५० मीटर ऊँचाई पर स्थित सत्गड गाँव! ठीक हिमालय की गोद में! और गाँव के ठीक उपरी छोर पर उनका घर! यात्रा की थकान इतनी ज्यादा है कि नहाना तो दूर (वैसे भी ठण्ड के कारण यहा नहाना वैकल्पिक ही होता है), कपड़े तक बदलने की इच्छा नही हो रही है! कैसे तो भी कपड़े बदले| शाम को ६ बजे ही भोजन लेने का मेरा नियम एक तरफ रख कर बेहतरीन रोटी- सब्जी और चांवल का भोजन किया| रिश्तेदारों के आँगन से ध्वज मंदीर का दिया चमकनेवाले तारे जैसा दिखाई दे रहा है और उसके ही पास आसमान में व्याध का तारा! और कितने सारे तारों के गुच्छ खुली आँखों से दिखाई दे रहे हैं! एक रोमांचकारी यात्रा का आरम्भ हुआ है! वाकई, इसके लिए किस्मत ही वैसी चाहिए! अगर योग ना हो, किस्मत में ना हो, तो कितनी भी कोशिश कर यह नही होता है| यह जीवन के प्रसाद जैसा ही मिलता है| अगले कुछ दिनों में हिमालय के इस सत्संग को बस लूट लेने का अवसर मिला है!
 


 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) २: सत्गड परिसर में भ्रमण

मेरे हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com

4 comments:

  1. वाह रोचक यात्रा रही ये। मैं खुद पौड़ी गढ़वाल से आता हूँ। जिन्हे लोग अक्सर ट्रेक कहते हैं वो हमारे लिए आम रास्ते हुआ करते थे। गाँव में तो आप जिस दिशा में निकल जाओ एक अलग ट्रेक आपका इंतजार करती दिखती है। आने वाले संस्मरणों का इंतजार रहेगा।

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  2. बेहद खूबसूरत है वह पूरा क्षेत्र। आपने बखूबी जीया है उसे प्राकृतिक सौंदर्य को...।

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  3. सभी को बहुत धन्यवाद! @ विकास जी, आपका whats app no. मिल सकेगा? सम्पर्क करने में आसानी होगी! धन्यवाद|

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