Monday, October 5, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १० इस मोड़ से जाते हैं . . (अन्तिम)

१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . .  
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी   
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में    
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन  
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर      
६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा       
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर   
८. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन   
९. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ९ ऋषीकेश से प्रस्थान
इस मोड़ से जाते हैं . . (अन्तिम) 

दिसम्बर को अहमदाबाद से अगली ट्रेन ले ली| यात्रा अब अन्तिम चरण में है| जल्द ही घर पहुँचूँगा| लेकिन जीवन की यात्रा तो अविरत चलती रहती है| जीवन तो चलता ही जाता है| धीरे धीरे यह वर्ष समाप्त होगा| यह वर्ष अनुठा रहा| कह सकता हुँ कि इस वर्ष पहली बार ट्रेकिंग की शुरुआत की| इसी वर्ष महाराष्ट्र के गोरखगड में पहली बार ट्रेकिंग किया और अब हिमालय में| वाकई जो नजारे देखे वे अद्भुत ही थे| जितनी बार हिमालय में गया हुँ उतनी बार अवाक् हुआ हुँ|

जैसे हिमालय के चरणकम पर बसें गाँवों से आगे बढते हैं, वैसे ही उसका विशाल स्वरूप दृग्गोचर होता है| एक के बाद एक शृंखलाएँ दृश्यमान होती है| कुदरत के करीब जाने पर वहाँ की ताज़गी और शान्ति आल्हादित करती है| लौटने पर भी हिमालय बुलावा देता ही रहता है| लौटते समय एक साथ दिखाई दिए वे हिमशिखर अब भी पुकार रहे हैं! हिमालय का सम्मोहन ऐसा है कि जो इसमें फंस गया वह ज्यादा दिनों तक उससे दूर नही रह सकता है. . .

अब फिर वही शहर की घिसी पिटी शृंखला. . वही काम धाम| जब पूरी यात्रा कर घर पहुँचा, तब पहले कुछ समय विश्राम किया| २३ दिसम्बर का दिन है| जैसे ही न्यूज देखे, एक समाचार ने बड़ा ही अस्वस्थ कर दिया| एक झटके से लगा कि जीवन में बहुत कुछ बदल रहा है| वह समाचार था सचिन तेण्डुलकर के एकदिवसीय संन्यास का| अप्रत्याशित बिल्कुल भी नही; लेकिन उतना ही अस्वस्थ करनेवाला| मेरे जैसे कई करोड़ लोग होंगे जिन्हे शायद उस दिन लगा हो कि अब बचपन वाकई समाप्त हो गया. . . वह क्षण ही इस पूरी यात्रा का भरत वाक्य है| उस क्षण में जैसे एक आर या पार की स्थिती हो गई| खैर|

करीब ढाई साल की हुई इस यात्रा का और एक महत्त्व भी है| दिसम्बर २०१२ में यह यात्रा करने के छह ही महिनों बाद उत्तराखण्ड में प्रलयंकारी बाढ़ आयी| जिन जिन स्थानों पर मै गया था- वहाँ भारी तबाही मची| पिथौरागढ़ जिले से ले कर कर्णप्रयाग, पिपलकोटि, जोशीमठ, विष्णुप्रयाग, बद्रिनाथ रोड़ और फिर टिहरी, ऋषीकेश आदि स्थानों पर भाई हानि हुई| बड़ी ही डरावनी तस्वीरें सामने आने लगी| जो स्थान मैने करीब से देखे, वे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए| जोशीमठ के पास बने पनबिजली के केन्द्र हो या ऋषीकेश में गंगा रेसॉर्ट हो|

पश्चिमी विक्षोभ एक निमित्त बना और बरसों से मानव द्वारा पर्वत में किए गए अतिक्रमण की किमत चुकानी पड़ी| बड़ी संख्या में पेड़ कटते गए तो पर्वत में पानी पकड़ने की क्षमता कम हुई; मिट्टी फिसलने लगी| पहाड़ को तोड कर निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर हुआ था; तो उससे पहाड़ नाज़ुक बने थे| क्लाएमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण भी पर्यावरण अब अनिश्चित सा हो गया है| इन सब कारणों से बड़ा विनाश हुआ| यह एक तरह से इन्सान को रोकने का कुदरत का तरिका है| जिन लोगों ने वह दर्द सहा हो, वही उसे समझ सकते हैं|

इसलिए अब इन्सान के पास थोड़े ही विकल्प है| एक तो इस हादसे से सीख कर स्वयं को नियन्त्रण में लाए और प्रकृति में कोई भी हस्तक्षेप न दे या. . . या फिर इससे बड़ी किमत चुकाने के लिए तैयार रहें| लेकिन जो लोग ऐसी आपदा को दैवी आपदा कहते हो, वे कैसे अपनी गलतियाँ मानेंगे| अत: इस मोड़ से अब दो ही रास्ते आगे जाते हैं| लेकिन गलतियों से सीखना इन्सान का स्वभाव नही है| खैर|

व्यक्तिगत तौर पर इस यात्रा ने मेरे लिए भी नए रास्ते बनाए| जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण दिया| ट्रेकिंग या साईकिलिंग में यह खास बात होती है कि रफ्तार कम हो जाती है| और हम सामान्य जीवन में तेज़ रफ्तार से जाते समय जिन चीजों से वंचित रहते हैं, उन्हे ट्रेकिंग में करीब से देख सकते हैं| बल्कि कहना होगा पहली बार उन्हे देख पाते हैं| किसी भी मार्ग पर यदि हम बाईक या कार से जाते हैं तो झटके में से निकल जाते हैं| लेकिन कभी उसी मार्ग पर टहलते हुए जाते हैं, तो दृष्टि अलग होती है| बारिकी से चीजें देख सकते हैं| और छोटी छोटी चीजों का अधिक आनन्द भी ले सकते हैं| एक ही छोटे से मार्ग में इतनी चीजें भी होती हैं, उसका अहसास हमें तब होता है| इसके साथ हमारा ध्यान भी गन्तव्य के बजाय देखने पर अर्थात् दृष्टि पर होने लगता है|



















 
सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद दे कर नमन करते हुए अब इस लेखन को विराम देता हुँ| अगले किसी पड़ाव पर मिलने तक अलविदा, राम- राम! बहुत बहुत धन्यवाद!

Saturday, October 3, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ९ ऋषीकेश से प्रस्थान

१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . . 
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी  
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में   
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन 
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर    
६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा     
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर 
८. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन
 

ऋषीकेश से प्रस्थान
२१ दिसम्बर सुबह जल्दी ऋषीकेश से ट्रेन लेनी है| ऋषीकेश से सुबह करीब सात बजे दिल्ली के लिए एक पॅसेंजर चलती है| इस ट्रेन से मुझे गाज़ियाबाद जंक्शन तक जाना है जहाँ परिवार के अन्य सदस्य मुझे मिल जाएंगे और वापसी की यात्रा शुरू होगी| ऋषीकेश स्टेशन यहाँ से करीब चार किलोमीटर दूर है| सोचा कि यह पैदल ही चलूँ| इस पूरी यात्रा में सम्भवत: चलने को प्राथमिकता दी थी, इसलिए आज भी पैदल चलना है| स्टेशन कितना दूर है, यह ठीक पता नही है, इसलिए सुबह सवा पाँच बजे ही निकला| बाहर बिल्कुल रात का अन्धेरा छाया है| 

धीरे धीरे चलने के कारण ठण्ड कम हुई| पीठ पर बड़ी सी बॅग है, इसलिए पसीना भी आया| थोड़ी देर में रोशनी फूटने लगी| लोग दिखने लगे| धीरे धीरे कोहरे से ढके पहाड़ भी दिखने लगे| आज इनसे विदा लेना है| मन में एक तरह की अशान्ति और इस बिरह के कारण खेद है| वाकई पिथौरागढ़ से शुरू हुई इस यात्रा में यहाँ तक बहुत कुछ देखने को मिला| इनकी स्मृतियाँ तो साथ रहेगी ही|

आगे जाने पर थोड़ी पूछ ताछ कर स्टेशन का रास्ता ढूँढ लिया| सुबह वातावरण में बड़ी ताजगी होती है| एक तो मानवीय उपद्रव न के बराबर होने के कारण प्रकृति अपने शुद्ध स्वरूप में मिलती है| पँछियों की चहचहाट, ताज़ा हवा, पेडों की सरसराहट और शीतल ठण्ड! जल्दी निकलने का लाभ मिला- टिकिट के पास कोई भीड़ नही है| टिकिट निकाल कर प्लॅटफॉर्म में गया| यहाँ एक ट्रेन खड़ी है| लेकिन पूछने पर किसी ने नही बताया कि यही दिल्ली पॅसेंजर है| कुछ लोग कह रहे हैं कि यह लक्सर तक जाएगी; फलाँ गाँव तक जाएगी| उस पर कुछ ठीक से लिखा भी नही है| स्टेशन पर काम करनेवाले से पूछा तो उसने बताया कि यही दिल्ली पॅसेंजर है| मन कितना चंचल होता है| दो मिनट पहले तक इतना अस्वस्थ और अब बिल्कुल निश्चिंत! मन तो बस एक पेंडुलम है जो इस तरफ से उस तरफ भागा जाता है. . .

समय पर ट्रेन शुरू हुई| कोहरे में लिप्त भूमि से आगे बढ़ने लगी| हरिद्वार के दर्शन ट्रेन से ही कर लिए| धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी| यात्रियों में कई छात्र भी हैं| रूड़की के बाद ट्रेन ने उत्तराखण्ड छोड दिया| इस बार हिमालय से विदाई हो गई|

शाम की ट्रेन गाज़ियाबाद से रात दस बजे है| यह पॅसेंजर दो घण्टा भी लेट हुई तो भी सात बजेगी गाज़ियाबाद छोडेगी| ट्रेन अधिक लेट नही है| फिर भी मन में‌ थोड़ी असहजता जरूर है| परिवार के सदस्य भी सुबह टणकपूर से निकले हैं| वे गाज़ियाबाद में ही मिलेंगे और फिर आगे की यात्रा साथ होगी| ट्रेन कुप्रसिद्ध देवबन्द से गुजरी| जैसे जैसे दिल्ली पास आने लगा, ट्रेन की भीड़ बढ़ गई| अब तो यह मुंबई की लोकल जैसी भरने लगी है| शायद गाज़ियाबाद में उतरने में दिक्कत हो सकती है| हमेशा से मन में बड़े महानगरों के प्रति एक अस्वस्थ भाव रहा है| जितना हो सके, दिल्ली जैसे बड़े शहर टालने का प्रयास करता हुँ| एक तो कौनसी ट्रेन किस स्टेशन से छूटती है या कौनसी बस किस बस अड्डे से निकलती है, यह ठीक से पता करना मुश्किल होता है| और खर्चा भी बहुत होता है| इसलिए इस बार दिल्ली के बजाय गाज़ियाबाद से ही ट्रेन बदलने की योजना बनायी| जैसे गाज़ियाबाद पास आता गया, अस्वस्थता बढ़ने लगी| ट्रेन के दरवाजे के पास जाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी| लेकिन सकुशल उतर गया|

यहाँ परिवार के सदस्यों से मिलना हुआ| उन्हे मै पिथौरागढ़ में ही छोड आया था| आंठ दिनों के बाद हम मिल रहे हैं| अब यहीं से रात अहमदाबाद की ट्रेन है| १६ दिसम्बर के काण्ड को हुए मात्र चार- पाँच दिन हुए हैं| इसलिए वह भी एक चिन्ता का विषय है| जल्द से जल्द दिल्ली क्षेत्र से निकलना चाहता हुँ| खैर| कोई परेशानी के बिना अहमदाबाद एक्स्प्रेस ले ली| अब इस यात्रा का अन्तिम चरण शुरू हुआ|

पिथौरागढ़ से निकलने के बाद की यात्रा अब भी जेहन में ताज़ा है| पहले दिन प्रात: साढ़ेपाँच बजे पिथौरागढ़ से बागेश्वर की बस ले ली| कोहरे के बीच यात्रा शुरू हुई| 'हर हर भोले नमो शिवाय' के साथ इस यात्रा का प्रारम्भ हुआ! चौकोरी के पास पहली बरफ दिखी| बागेश्वर से बैजनाथ स्थानीय बस में आया| वहाँ बस में उतरते समय कई लोगों ने आत्मीयता से रास्ता बताया| फिर बैजनाथ में भ्रमण| ग्वालदाम का अपूर्व नजारा| पिण्डर नदी और कर्णप्रयाग! फिर जोशीमठ- अलकनन्दा और बद्रिनाथ के पास बरफ! लौटते समय आज्ञा देनेवाले हिमालय के शिखर! अन्तत: ऋषीकेश में आश्रम और गंगा के दर्शन| यह मेरे जीवन का हिमालय का पहला छोटा सोलो ट्रेक था| बहुत मज़ा आया|

यथा समय ट्रेन अहमदाबाद पहुँची| यहाँ से अब और एक ट्रेन बदलनी है| सीधे मुंबई तक के ट्रेन का बूकिंग नही मिल पाया है| कुछ घण्टे अहमदाबाद में रूकने के बाद आगे निकले| वैसे तो जीवन में कहीं ठहरना होता ही नही| जो स्थान मन्जिल जैसा लगता है, वह भी एक सराय के अलावा कुछ नही होता है. . 


















Thursday, October 1, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन

१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . . 
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
    

६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा    
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर
ऋषीकेश दर्शन

२० दिसम्बर की सुबह| अच्छा विश्राम मिला| आज कोई भागदौड नही है, इसलिए आराम से तैयार हुआ| होटल के पास ही गंगा का तट है| सुबह की ताज़गी और शान्ति से बहनेवाली गंगा की धारा. . . आज बस ऋषीकेश में घूमना है| कोई तय योजना नही है| बस ऋषीकेश में स्थित डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम देखना है, इतना विचार है| साथ ही गंगा के तट पर भी टहलूंगा|

कल जब मोबाईल में न्यूज देखें और बाहरी दुनिया से फिर अवगत हुआ, तो १६ दिसम्बर में दिल्ली में हुए बलात्कार काण्ड की जानकारी मिली| वाकई हम कितने रुग्ण समाज में जीते हैं, इसका अहसास हुआ| यही ख्याल मन में आया कि इस दुर्घटना को किसी अन्जान गुनहगार द्वारा किया कृत्य नही मानना चाहिए, वरन् इसे ऐसे समझना चाहिए कि मेरे जैसा- आपके जैसा ही कोई आदमी या आदमियों की टोली ऐसा कृत्य कैसे कर सकती हैं| एक इन्सान ऐसा कैसे कर सकता है- मेरे जैसा कोई ऐसा कैसे कर सकता है| मै ही ऐसा कैसे कर सकता हुँ, यह देखना चाहिए, यह सोचना चाहिए| मनस्विद कहते हैं कि जो इन्सान रोज ग़ुस्सा करता है; वह ग़ुस्सा इकठ्ठा नही करता है| उसका ग़ुस्सा निरन्तर बहता रहता है; निकलता रहता है| लेकिन अगर कोई आदमी हो जो ग़ुस्सा तो करता हो, लेकिन उसे दबा कर बैठा हो या उसे उसे दबाना पड़ा हो; तो वह ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा होता है| यह भी वैसी ही बात है| एक जटिल सामाजिक रुग्णता| खैर|

दिन धीरे धीरे बढ़ने लगा| होटल में अच्छी सजावट है; अच्छे फूल खिले हैं| गंगा की गूँज भी अविरत सुनाई देती है| हिमालय के चरणतल पर फैली हुई विश्रान्त धारा! इस माहौल में मन में शान्ति अपनेआप आती है| इस होटल में रूकने से इस नजारे का लुफ्त तो ले सकता हुँ! नाश्ता करने के बाद ऋषीकेश में स्थित डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम गया| ऋषीकेश में इस समय भीड़ तो कम है; लेकिन फिर भी एक शहर का ही अनुभव होता है| अतीत में यह स्थान और शान्त रहा होगा| डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम की स्थापना स्वामी शिवानन्द जी ने की थी| दक्षिण भारत से आए स्वामी शिवानन्द जी पूर्व एशिया के मलाया में डॉक्टर थे और वहीं से वे साधना की खोज में हिमालय आए और फिर इस आश्रम के जरिए उन्होने आगे कार्य किया|

आश्रम में शान्ति और सादगी है| इस तरह का आश्रम मै इतने करीब से पहली बार देख रहा हुँ| देखने लायक स्थान है| स्वामीजी की जीवनि के बारे में जानकारी दी हुई है| उसके साथ प्रार्थना कक्ष, सभागार और ध्यान कक्ष भी है| एक शीतलता फैली हुई है| दोपहर तक उसी आश्रम में बैठ कर ध्यान किया| फिर वहीं कंप्युटर के कक्ष में सिडी पर स्वामीजी की जीवनि की फिल्म देखी|

दोपहर आश्रम के बाहर आ कर गंगा के तट पर टहला| यहाँ कई घाट है| आम लोग, पर्यटक, साधू सब घूम रहे हैं| गंगा नदी अपनी ही लय में अपने पथ पर बह रही है| हिमालय की कुछ छोटी चोटियाँ- द्वारपाल जैसे- सामने दिखाई पड़ रही है| बड़ी देर तक तट पर ही बैठा रहा| फिर थोड़ी देर आश्रम में आया और ध्यान किया| जब जाने का मन हुआ, तो वापस चलते चलते होटल में आया और विश्राम कर लिया| रात आश्रम में प्रवचन होनेवाला है; उसे भी जाऊँगा|

शाम गंगा नदी के साथ बिताई| एक बूँद के साथ गोमुख में प्रविष्ट होनेवाली धारा. . . यहाँ युवावस्था में दिखती है और यही नदी जब गंगासागर पहुँचती है, तो सागर ही होती है| वाकई नदी एक बहती- गतिमान जीवनधारा की सुन्दर प्रतिक है| नदी जीवन का सातत्य दर्शाती है| नदी जीवन का प्रवाह दर्शाती है| हमारी भाषा में नदी जैसा ही एक शब्द है- नाड़ी| नाड़ी शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है| वैसे ही नदी जीवन का प्रवाह होती है| और जब ऐसी शान्त, धीमें से बहनेवाली नदी के पास आते हैं, तो अपने आप वैसा अनुभव भीतर भी होता है|

भोजन पश्चात् फिर आश्रम में गया| ठण्ड बढ़ रही है| पहाड़ में दिए जल उठे हैं| आश्रम में एक कार्यक्रम है| और आम जनता के लिए खुला है| वह देखते देखते ध्यान भी हो जाएगा| स्वामी शिवानन्द को करीब से देखनेवाली एक शिष्या अनुभव कथन कर रही हैं| जब वे छोटी थी, तब स्वामीजी के पास रहने का अवसर उन्हे मिला था| निवेदन सामान्य था फिर भी अच्छा लगा| और आश्रम के वातावरण से तो और भी शान्त लगा| वह कार्यक्रम समाप्त होते होते रात के साढ़े नौ बज गए हैं| ठण्ड बढ़ चुकी है| अब मै होटल तक पैदल ही जाऊंगा| करीब तीन- चार किलोमीटर का रास्ता होगा|

चलते चलते ऊर्जा मिलती गई| शहर में अब सन्नाटा छाने लगा है| होटल के पास रात में गंगा का पानी रोशनी से चमक उठा है| आज का दिन भी अच्छा जा रहा है| वाकई जिन्दगी किसे कब कहाँ ले आती है! कल अब यहाँ से निकलना है| पिथौरागढ़ गए हुए परिवार सदस्य कल दिल्ली पहुँचेंगे| मै भी उन्हे वहीं मिलूँगा| आज हिमालय के पास की यह अन्तिम रात|















आश्रम के ठीक सामने यह हॉस्पिटल
स्वामीजी की संक्षिप्त जीवनि