Friday, October 11, 2013

चेतावनी प्रकृति की: ११ (अन्तिम)


. . . ८ अगस्त! 'मैत्री' तथा 'अर्पण' संस्थाओं की इस टीम का यह अंतिम दिन है| सहायता कार्य आगे भी जारी रहेगा| पर यह चरण अब समाप्त होगा| वैसे आगे की योजना भी तैयार हो रही है| महिला डॉक्टरों की टीम को लाने का प्रयास किया जा रहा है| आगे अब कई अन्य पहलूओं‌ पर काम करना है| अब आपत्ति प्रबन्धन के आरम्भिक चरण समाप्त होने पर दीर्घकालीन कार्य पर अधिक जोर दिया जाएगा| और अन्य भी‌ कुछ क्षेत्रों‌ में‌ असेसमेंट किया जा सकता है|
. . . जैसे ही‌ कार्य का अंतिम दिन आया और वह भी सबसे बड़ा दिन; तो हर एक को हल्के तनाव का अनुभव होने लगा| आखिर कर इतने बड़े पैमाने पर सामान को गाँवों में‌ ले जा कर बाँटना आसान काम तो नही होता है| और सड़क भी‌ चिंता का ही विषय है| पर अब पूरी टीम इकठ्ठा हो गई है|अर्पण के भी सभी सदस्य आ गए हैं| अन्य भी‌ साथी साथ है| सामान उठाने के लिए कुछ लोग भी ले लिए गए हैं| इससे इतनी परेशानी तो नही‌ आनी चाहिए| हाँ, कुछ ग्रामीण जरूर उत्तेजित हैं; भीड भी करेंगे| पर ऐसी स्थिति को सम्हालने का अनुभव भी तो टीम के पास है!
सुबह बहुत जल्दी निकले| स्टोअर पर सब इन्तजाम किया हुआ है| ऐसे स्थिति में अक्सर जो होता है, वह भी हुआ| कुछ लोग अधिक चिंतित होते हैं; कुछ पीछे रह जाते हैं| कहिं कुछ क्षणिक तनाव होता है| यह सामान्य बातें‌ हैं और किसी भी टीम में देखी जा सकती हैं| अचानक से तेज़ बारीश होने लगी|रास्ते पर भी कोहरा छा गया|लेकिन अब रूकने का समय नही है| हालांकि जौलजिबी पूल पर कुछ समय रुकना पड़ा| क्योंकि आगे एक जगह रास्ता बन्द है, ऐसी सूचना मिली| रात में‌ तेज बरसात हुईं है| जरूर पहाड़ से आनेवाले झरनों का बहाव बढा होगा| इसी वजह से आगे रास्ते पर तेज पानी गुजर रहा है| थोडी देर रुकने के बाद आगे निकले|
अब रास्ता बिलकुल जाना पहचाना हुआ है| फिर भी लग रहा है कि नदी में अधिक पानी है| उपर पहाड़ में तेज बरसात हुईं है| बीच बीच में रुकना पड़ रहा है| बरम के पहले एक जगह पानी का काफी बड़ा प्रपात रास्ते पर दिखाई पड़ा| इतना तेज पानी है कि टेम्पो उसमें से सामान के साथ नही जा पा रहे हैं| जीप बड़ी मुश्किल से उसमें से पार हो गईं| हालां कि बाकी लोग चल कर उसके पास ही बनी एक छोटीसी पैदल पुलिया से पार हो गए| लेकिन जीप को पार होते देख कर भी डर लग रहा था|उसके बाद वहाँ के अधिकारियों ने कुछ समय के लिए वाहनों को रोक दिया| जे.सी.बी. रास्ते के पत्थर हटा कर पानी के बहाव का मार्ग साफ कर रहा है| फिर भी काफी समय लगेगा| एक साहसी मोटरसाईकिलवाले ने उस प्रपात में गाड़ी डालने का जोखिम उठाया| आधे रास्ते तक आ कर उसे लौट जाना पड़ा| पानी का बहाव वाकई इतना तेज है कि वह बड़े बड़े पत्थरों‌ को भी उठा ले जा रहा है|जे.सी.बी. चलानेवाले का धैर्य तारीफ़ के क़ाबिल है! वहीं काफी देर तक रुकना पड़ा| काम चलता रहा; पानी का बहाव कम होता नजर नही आ रहा है| लेकिन जे.सी.बी. चलानेवालेने उस बहाव को चौडा किया; जिससे उसका बल थोड़ा फैल गया| अब शायद वह वाहनों‌ को इतना फैंक नही सकेगा| फिर एक एक कर वाहन शुरू हुए|आखिर कर हमारे टेम्पो और मिनि ट्रक भी पार आ गए . . .
अब तक कालिका पुलिया के पास हुड़की, घरूड़ी और मनकोट गाँवों के लोग इकठ्ठा हुए हैं| और भीड अक्सर अनियंत्रित होती है| वहाँ‌ पहुँचने पर एक स्थान पर टेम्पो और ट्रक रोक कर पास ही दूसरे स्थान पर टेबल लगाया| वहाँ पर लोग अपने कूपन दिखाने लगे| तब तक टेम्पो और ट्रक में से हर परिवार के लिए पॅकेट बनाना चालू‌ हुआ| जल्द ही यह व्यवस्था बन गईं|एक के बाद एक परिवार आने लगे| आरम्भिक हड़बड़ाहट के पश्चात् सब ठीक होने लगा| एक चिंता यह है, कि कुछ और सामग्री का एक टेम्पो पीछे है, उसे आना अभी बाकी है| और रास्ते में रुकावट बढ सकती है| लेकिन अभी सामग्री पर्याप्त है| इसलिए यहाँ पर दिक्कत नही आएगी| एक बार वितरण कार्य शुरू होने पर हर एक सदस्य ने अपना अपना मोर्चा सम्हाल लिया| कोई ट्रक में से गठरियां नीचे दे रहा है; कोई टेबल पर कूपन्स देख कर लोगों‌ को आगे भेज रहा है| कोई लोग एक ही बार सामान ले रहे हैं, इस पर ध्यान दिए हुए है| कोई भीड को नियंत्रित कर रहा है| जल्द ही सामान ले जाने वाले लोग लौटने लगे|धीरे धीरे नदी के पार वे पहुँच गए|इस वितरण कार्य का सबसे कठिन हिस्सा उस सामान को- पैतीस किलो की गठरी को घर तक ले जाना ही है! और उसमें‌ लोग खरे उतर रहे हैं! दिक्कत होने के बावजूद वे सामान उठा रहे हैं| महिलाएँ भी इसमें‌ पीछे नही है| ग्रामीण आपस में मिल कर उसे ले जा रहे हैं. . .
इस प्रकार वितरण का पहला हिस्सा पूरा हुआ| कुछ लोगों‌ ने समस्या खडी करनी चाही| पर उन्हे समझाया गया| सुचि में नाम न होनेवाले गाँव के वास्तविक ग्रामीणों को भी सामान बाँटा गया|हर परिवार को चावल, सूजी, शक्कर, तेल आदि निर्धारित किया हुआ सामान दिया गया| इसके पहले गाँवों में अर्पण के सदस्यों‌ की निगरानी में महिलाओं‌ के लिए सैनिटरी नैपकिन्स भी दिए गए थे|
यह सब होते होते दोपहर होने को आयी| सभी परिवार पूरे होने के पश्चात् वहाँ से लुमती के लिए निकले| रास्ते में चामी में भीड़ इकठ्ठा हुयी है| उन्हे बता कर आगे जाने के लिए निकले| लुमती के ठीक पहले एक जगह पर रास्ता बन्द है| वहाँ कुछ समय बितने पर निर्णय कर लिया गया कि अब वितरण यहीं‌ करना पडेगा| लोगों को सन्देस भेजा और वे आने भी लगे| यहाँ‌ भी बी.आर.. का बड़ा काम चल रहा है| पीछले वितरण काम के जैसे ही यहाँ व्यवस्था बनते देर नही लगी| पीछे से आ रहे सामान की प्रतीक्षा जरूर है| लुमती ग्राम के लोगों‌ को भी काफी‌ दूरी पैदल चल के आना पड़ा| और अब सामान ले कर भी‌ जाना है| लेकीन उसके लिए उन्होने तरकीब निकाली|कुछ लोग साथ में‌ डोर लाए हैं| वे गठरियों‌ को अब कमर या पीठ पर बांध कर ले जाएंगे| अपेक्षाकृत तरिके से काम चलता रहा|स्थानीय लोग भी सहायता कर रहे हैं. . .
अब बस एक गांव बाकी है|वहां का वितरण होने पर इस चरण का कार्य पूरा हो जाएगा| लुमती का काम पूरा कर चामी आ गए| भीड अब अनियंत्रित हो रही है| लेकिन सर और अर्पण के सदस्यों ने लोगों को समझाया| टेम्पो और ट्रक गाँव के एक तरफ रख दिए| बस आनेवाले दूसरे टेम्पो की प्रतीक्षा है| क्यों कि अब कुछ चीजें खतम हुईं है| तब तक चामी का स्टोअर भी फायनल किया गया| अब यहाँ बाँटने पर सामान बाकी रहा, तो उसे इधर ही रखा जा सकता है| पीछे रुका हुआ टेम्पो आने पर वापस टेबल लगा कर एक के बाद एक परिवारों को कूपन दे कर सामान दिया जाने लगा| इसमें कुछ युवक भी सहायता के लिए आगे आए| जैसे काम पुरा होते गया, वैसे सभी के उपर नजर आनेवाला हल्का सा तनाव भी कम हो गया|
टीम में‌ काम करने की खास बात यह है कि हर कोई अपने अपने तरिके से हाथ बँटाता है| कोई लोगों‌ को सामान बान्धने में‌ सहायता कर रहा है; कोई सामान की गिनती कर रहा है; देख रहा है कि कुछ समाप्त तो नही हो रहा| इस पूरे काम में दो बातें‌ सबसे अहम थी| एक तो परिवारों की सही सुचि बनाना और सुचि में जिनका नाम नही है; पर जो गाँव के निवासी‌ है: उनको परख कर कूपन देना| दूसरी बात थी भीड को नियंत्रित करना| यह बातें स्वाभाविक रूप से होती गयी| इस काम में साथ आए टेम्पो तथा ट्रक के चालक; सामान उठाने के लिए बुलाए गए लोग आदि ने भी अच्छा सहयोग दिया| इस काम के समय पुलिस को भी रखा गया था|उन्होने ने भी सहयोग दिया. . .
वापस जाते समय भी रास्ते पर रुकना पड़ा| बरम के पास के जल प्रपात का स्तर और बहाव अब कम हुआ है| इसलिए रुके बिना आगे जा सके|मन में कई विचार है| जो कुछ देखने में‌ आया, वह काफी सोचने के लिए मजबूर करनेवाला है| इस चरण का काम तो पूरा हो रहा है; पर आगे भी बहुत काम करना पड़ेगा| सर ने जैसे कहा है; कि लोगों‌ को सामग्री पहुंचाना; शिविर आयोजित करना; दवाईयाँ बाँटना आदि काम मात्र प्राथमिक स्तर के हैं| आवश्यक है हि; मगर पहले चरण के वे काम हैं|इसके बाद अब पैरवी के स्तर पर; जल प्रवाह के संशोधन के स्तर पर और उपजीविका के स्तर पर भी बहुत कुछ काम किया जाना चाहिए| और इतना ही नही, मूलत: हमें‌ प्रकृति की इस चेतावनी से सीख लेनी चाहिए| जीवनशैली तथा विकास की परिभाषा पर गहराई से सोचना चाहिए|क्योंकि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए हम इकठ्ठे ही‌ तो जिम्मेदार है| जगत् में‌ सब घटनाएं एक दूसरे से सम्बन्धित हैं|इसलिए एक स्थान पर भी यदि पर्यावरण में‌ इतना बड़ा तनाव हो; तो उसका अर्थ यही‌ है; कि प्रकृति में‌ बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहें‌ है| इसी लिए जैसा पहले कहा जा चुका है; हर एक को विकास तथा जीवनशैली के बारे में‌ गहराई से सोचने की आवश्यकता है|
. . . आखरी दिन काफी भावनाप्रधान रहा| हेल्पिया में पहुंचने पर सर ने विशेष प्रकार से सभी का हौसला बढाया| अर्पण तथा मैत्री- सभी के लिए सभी ने उल्हास के साथ 'थ्री चिअर्स' किया|मतभेदों‌ को भुलाते हुए एक सकारात्मक सोच के साथ वह कार्य पूरा हुआ| सर और अन्य एक मित्र पीछे रुकनेवाले है| बाकी मित्र वापस लौटेंगे|
वाकई ज़िन्दगी में कुछ दिन ऐसे आते है; की पीछे हमे लगता है कि क्या वे दिन वास्तविक थे? या हमने सपना तो नही‌ देखा? ये दिन भी वैसे ही हैं| इतना कुछ इतने कम दिनों‌ में देखने को मिला|जो किया, वह काम वैसे तो साधारण सा हि है| कोई विशेष बात नही‌ है| पर अक्सर रुग्ण को दवा के साथ दुवा और साथ होने की‌ भी आवश्यकता होती है| हौसला बढाने की आवश्यकता होती है| कोई कुछ भी कहें, वास्तव में कोई दुर्बल या असहाय नही‌ होता है और ना हि कोई बहुत समर्थ या शक्तिशाली जो कि दूसरे को मदद दे सकें| यहां हर कोई एक सामान्य यात्री है| इसमें‌ एक ही‌ बात हो सकती है- एक दूसरे का कुछ पल साथ दिया जा सकता है| और कुछ भी नही| खैर|
२८ जुलाई से ८ अगस्त के इन दिनों के पहले भी मैत्री‌ ने काफी कार्य किया| उसके बाद भी कार्य बरकरार है| अब भी कई पहलूओं‌ पर कार्य हो रहा है| केदारनाथ में‌ समारोह शुरू होने के बाद भी‌ पुनर्निर्माण का कार्य समाप्त नही हुआ है| वरन् अब गहरा काम शुरू‌ हुआ है| और यह एक आह्वान भी‌ है| आव्हान इस बात का है कि किस प्रकार प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना वहाँ मानवी गतिविधियाँ चलायी जाए| रहन- सहन और उपजीविका चलायी जाए| इसके लिए विकल्प ढुंढने चाहिए‌ और वैकल्पिक विकास नीती के बारे में‌ भी अत्यधिक सोचना चाहिए. . .
उन दिनों की यादें तो कईं है; पर लेखनसीमा यहीं पर ठीक है|

वितरण के लिए जा रहा सामान
 
तेज़् बहाव का जल प्रपात
























वितरण स्थान पर आए हुए ग्रामीण
 
टीम वर्क



























































यह युद्ध अभी समाप्त नही हुआ है| इसके बारे में‌ आगे जानने के लिए तथा सहयोग लेने के लिए सम्पर्क कर सकते है-
www.maitripune.net; maitri1997@gmail.com, ०२० २५४५०८८२.

चेतावनी प्रकृति की: १०

. . . जुलाई और अगस्त के कुछ चंद दिनों के बारे में बात करते करते अक्तूबर आ गया है| दो महिने बितने पर भी सब बातें अब भी ताज़ा हैं. . . टीम लीडर सर का वाक्य याद याता है| उन्होने कहा था कि यहाँ काम करना एक अचिव्हमेंट जैसा होगा| अचिव्हमेंट कहना बड़ी बात होगी; पर यह चंद दिनों का छोटासा काम संस्मरणीय जरूर है| हाल ही में एक सप्ताह पहले केदारनाथ के कपाट खुल गए है| अब वहाँ का वातावरण हर्षोल्हास से भरपूर है. . . सर का दूसरा कथन याद आता है| उत्तराखण्ड में यातायात के खतरे को देखते हुए भी उनका कहना था कि यात्रा फिर से शुरू की जानी चाहिए| क्योंकि यात्रा एवम् यातायात शुरू होने से लोगों को उपजीविका तो मिलेगी| इसीलिए चाहे दुर्घटना होने का खतरा क्यों न मोल लेना पड़े, यात्रा आवश्यक है. . .
६ अगस्त को हमारी टीम का कार्य अब अपने चरम पर पहुंच रहा है|आज सर ने अब तक के काम का और निरीक्षण का रिपोर्ट बनाने के लिए कहा है| उसमें‌ फिर डॉक्टर लोग उनका निरीक्षण जोड देंगे| अब तक किए गए काम का ब्योरा संस्था में देना जरूरी है| इससे सहायता जुटाने में भी मदद मिलेगी| अब तक के कार्य के बारे में‌ समय समय पर टिप्पणियाँ की हैं| और जो भी देखा था, वह आँखों के सामने बिलकुल मौजुद है| इसलिए रिपोर्ट बनाने में दिक्कत नहीं हुई| आज सर ब्याड़ा के स्टोअर पर हैं| परसो गाँवों में सामग्री बाँटने के लिए तैयारी पूरी हो रही है| शाम को मीटिंग भी है| उसमें सब योजना विस्तार से बनायी जाएगी| डॉक्टर एवम् अन्य साथी भी अब धारचुला के करीब आ गए है| शाम को वे भी आ जाएंगे|
रिपोर्ट बनाने के साथ गाँवों के परिवारों की सूचि भी बनानी है| इस काम में भी सर का टीम के हर सदस्य के बारे में आंकलन दिखा| अर्पण के सदस्यों कि क्षमता को देखते हुए वे हर एक को काम सुझा रहे थे| गाँवों में वितरण करने के नियोजन का दायित्व भी उन्होने अर्पण के सदस्यों को दिया है| इस वजह से जैसे हि काम चरम पर पहुंचने लगा, हर कोई अपने अपने काम में जुट गया| वैसे गाँवों का डेटा बहुत पर्याप्त तो नही है; फिर भी हर गाँव के संपर्क क्रमांक हैं| और आंगनबाड़ी एवम् ए.एन.एम. से ली हुई जानकारी भी हैं|इसके आधार पर हर गाँव के परिवारों की और पीड़ित परिवारों की सुचि बनाने का काम शुरू हुआ. . . इसके लिए और रिपोर्ट के लिए लॅपटॉप पर बैठने पर एक सुकून मिला| इन्सान अपनी आदत से एक तरह से मजबूर तो होता हि है|
शाम को सर के लौटने पर बड़ी मीटिंग शुरू हुई| हर बात का और तैयारी के हर पहलू का जायजा लिया गया|यह तय हुआ कि परसो गाँवों में डिलिव्हरी करने से पहले वहाँ जा कर उन्हे सूचित करना होगा| इसके लिए टिमें बनायी गयी| यह होते होते डॉक्टर एवम् अन्य मित्र पहुंच गए! सबके चेहरे देखने लायक हैं| कई दिनों की थकान और मेहनत साफ दिख रही हैं! थके हुए होने के बावजूद जोश से भरे है| थोडी देर में वे भी मीटिंग में आए| कल के काम के बारे में एक बात यह भी तय हुई कि यहीं- हेल्पिया के पास एक चिकित्सा शिविर लेना है| यहाँ वनराजी आदिवासियों कि एक बस्ती है| वहाँ भी स्वास्थ्य सुविधा का अभाव है और चिकित्सा शिविर की आवश्यकता है|तो कल डॉक्टर वहाँ एक शिविर लेंगे| अर्पण में इस समाज के सदस्य है, वे उन्हे वहाँ ले जाएँगे| अर्पण में वनराजी के अलावा तिब्बत सीमा से सटे ऊंचे इलाकों के चरवाहे समुदायों‌ के भी लोग है| इन्हे भुतिया कहा जाता है| मशहूर खिलाडी बावचुंग भुतिया इसी समाज का है| यह समाज तिब्बत सीमा के पास भेडों को चराते है| अतीत में वे तिब्बत भी जाया करते थे और तिब्बतियों को नमक आदि बेचते भी थे| खैर|
शाम को दोस्तों से बातचीत में उनके द्वारा किए गए कार्य के बारे में‌ सुनने को मिला| उनका पहाड़ों के गाँवों का कार्य असाधारण रहा| कईं बातें‌ उनके देखने में आयी| पांगला, पांगू आदि गांवों में‌ कई लोग जड़िबुटियों का व्यवसाय करते हैं‌ तथा इसमें‌ लाखों रुपए अर्जित करते है| हालां कि इसमें‌ कई बातें गैरकानूनी भी हैं| क्योंकि कई जड़िबुटियां अफ़िम, चरस, गांजा जैसे नशिले पदार्थों की भी होती है| और अब विपदा के बाद ऐसे ग्रामीणों का भी बड़ा नुकसान हुआ है|और जहाँ जहाँ वे गए, उस पूरे इलाके में‌ सड़क की दुर्दशा थी| उन्हे खड़ें रास्ते चढ़ने पडे| नारायण आश्रम जाते समय रोड जरूर चलने योग्य था और उसके उपर उन्हे एक जीप भी मिली| पर जब पहुंचे; तो और एक झटका उनकी प्रतीक्षा कर रहा था| जीप के चालक ने हर एक व्यक्ति को लिफ्ट देने के हजार हजार रुपए मांगे! समझा बुझाने से बात न बनी और उन्हे उसे लगभग दो हजार रुपए देने पड़े| कुछ गाँवों में भी प्रतिकूल अनुभव आया| कुछ कुछ लोग हमेशा अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं‌ और अनजाने में‌ उल्टा सीधा बोलते हैं|इससे उनको बुरा जरूर लगा| पर उनका कार्य न रुका| योजना के हिसाब से उन्होने सभी गाँव पूरे किए| नारायण आश्रम में भी उन्हे रहने का मौका मिला| एक रात वहाँ नि:शुल्क रहने की सुविधा प्रदान की जाती है| वहाँ भी उन्होने चिकित्सा शिविर लिया| और मजे की बात, नारायण आश्रम की ऊँचाई २५०० मीटर से अधिक होने के कारण और कई चोटियाँ उसके पास होने के कारण उन्हे कुछ समय के लिए बरफ भी दिखी! उन्हे आर्मी के जवानों के साथ भी अच्छा समय बिताने का मौका मिला| बी.आर.. के लोगों से भी मुलाकात हुई| जिसमें पता चला कि बी.आर.. को दिया जानेवाला इन्धन न्यून गुणवत्ता का होता है| इसलिए वे उस इन्धन को दूसरे स्थानीय ड्रायव्हरों को बेचते भी हैं| यह बात काफी अस्वस्थ करनेवाली थी| देश के सच्चे सेवकों के कार्य में यह बाधा क्यों और कौन डाल रहा है. . .
मित्रों की यह दास्तान सुनते समय एक समय सबके चेहरे पर मुस्कान आयी जब उन्होने एक प्रसंग बताया| एक गाँव में‌ जब सब साथी गए, तब धूप के कारण और खुली हवा में‌ होनेवाले सन बर्निंग के कारण एक साथी का चेहरा कुछ काला सा हो गया था| उसे देख कर ग्रामीणों ने पूछा, आप सब तो महाराष्ट्र से हैं और यह केरला से है ना? यह बात कहते समय सब साथी खुषी से दंग रह गए! और मजे की बात यह थी कि इसी साथी ने तल्ला और मल्ला शब्दों‌ के बारे में‌ एक बार कहा था कि यदि तल्ला शब्द सबसे नीचले क्षेत्र के लिए होता है और मल्ला शब्द सबसे ऊँचे क्षेत्र के लिए होता है, तो फिर देश का सबसे नीचला क्षेत्र- केरला उसकी भाषा को 'मल्या'लम क्यों‌ कहा जाता है. . .
. . .वास्तव में अब यहाँ से जल्द ही लौटना है, यह बात जैसे खतरे की घण्टी बजा रही है| किसी को भी यह ज्ञान नही है कि यहाँ- हेल्पिया में आए हमे मात्र आंठ- नौ दिन हुए हैं और अब तीन दिन में हमें‌ निकलना भी है| मानो ऐसा लग रहा है कि हम यहीं‌ के हैं. . . लम्बी मीटिंग के साथ वह रात बीत गईं|
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७ अगस्त! इस टीम के कार्य का आज नौंवा दिन है| आज कुछ साथी चिकित्सा शिविर में जाएंगे और कुछ गाँवों में कल के सामग्री वितरण के बारे में‌ खबर करने के लिए जाएंगे| आज कुछ साथी हुड़की, घरूड़ी और मनकोट में भी जाएंगे! वहीं डरावना रास्ता! इस रास्ते पर किसे भेजें यह बात सामने आयीं, तो सर ने टीम के सबसे हरफौनमौला मित्र को ही चुना| वाकई ऐसे हरफनमौला लोग किसी भी टीम की ऊँचाईयों को और गरिमा देते है| उसके साथ एक अर्पण का सदस्य भी जाएगा| ग्रामीणों से अब तक अच्छा परिचय हुआ हि है|बाकी दो टीमें चामी और लुमती गाँवों में जाएंगी| वहाँ परिवारों की संख्या और नाम के बारे में पता करेगी और कल के वितरण के बारे में‌ ग्रामीणों को सूचना भी देगी| बिना कठीनाई के हर परिवार को सामग्री का वितरण सही ढंग से हो, इसके लिए एक कूपन भी बनाया गया है|वह कूपन अब गाँव के हर परिवार को देना है| तो कल जब सामग्री का वितरण किया जाएगा, तब हर परिवार यही कूपन दिखा कर अपना सामान ले जाएगा| इससे भीड नही होगी और दिक्कत नही होगी, ऐसी सोच है|
हेल्पिया से निकले और जौलजिबी होते हुए आगे बढे| रास्ता अब भी वैसा हि है|कई स्थानों पर रुकावट है| रुक रुक कर जाना पड रहा है|मन में चिंता हो रही है, कि कल इसी सड़क से सामान लाना है, तो छोटी ट्रक और टेम्पो आ तो सकेंगे ना? कालिका की पुलिया तक सब साथ ही गए| वहाँ से फिर घरूड़ी- मनकोट की‌ टीम अलग हुई|आगे चामी में हम लोग भी उतर गए|हर गाँव में दो तीन लोग जाएंगे| मैत्री के साथ अर्पण के सदस्य ऐसी टीमें बनीं‌ है|
चामी ग्राम में सरपंच तो नही मिले, मगर अन्य पंच को मिल के सभी परिवारों‌ के नाम ले लिए और कूपन भी बाँटें| अब डेटा में कुछ कमीं‌ थी, जिस वजह से लोगों‌ के नाम कई बार पूरे नही थे| और गांवों‌ में‌ एक जैसे नाम के कई लोग होते हैं| इससे कुछ दिक्कत जरूर हुई| और कल भी प्रत्यक्ष वितरण के समय और भी कुछ दिक्कत हो सकती हैं| लेकिन उसके लिए अब सभी तैयार है|
गांवों में‌ सरकारी अधिकारियों से भी मिलना हुआ| गाँव के कुछ सक्रिय लोग भी मिले; जो स्वयं पहल कर राहत सामग्री के वितरण में हाथ बढा रहे हैं| उफनती गोरी गंगा के पास पास ही चलना हुआ| दोपहर में लुमती जा कर आयी टीम भी मिली| चामी में एक इलाके में‌ काफी भीड जमा हुई है| यहाँ काफी नुकसान भी हुआ है और काफी सामग्री भी बंट गयी है| ऐसे में लोगों‌ में उत्तेजना होना स्वाभाविक है| हर कोई आगे आ रहा है| वहाँ के लोगों‌ के भी नाम ले लिए गए और जितने परिवारों की सुचि थी, उन्हे कूपन दिया| वहीं एक कमरा स्टोअर के लिए ठीक लगा|यहाँ भी ब्याड़ा जैसा एक स्टोअर बनाने की योजना चल रही है| पंचायत के एक सदस्य के घर जाना हुआ| उनके घर में नुकसान हुआ है|नदी के बिलकुल पास घर है| यहाँ ग्रीफ (General Reserve Engineering Force) में काम करनेवाले एक व्यक्ति घायल भी हुए हैं| बताया जा रहा है कि उन्हे ग्रीफ से सहायता नही मिल रही है| इसके बारे में सर और अर्पण संस्था से बात करनी होगी|
लौटते समय शाम ढलने लगी| घरूड़ी और मनकोट गए हुए साथी कहाँ होंगे? बात की तो पता चला कि वे आधे रास्ते में है| उन्हे और लम्बा रास्ता चलना है| उनकी प्रतीक्षा करने लगे| काफी देर बाद लगभग अन्धेरे में‌ वे कालिका पुलिया पार कर जीप के पास पहुंचे|और एक डरानेवाली खबर मिली| वहाँ‌ गए मित्र- प्रसाद- उसका पैर ठीक नदी के उपर बनी पगडण्डी पर ही फिसला था| जख्म भी हुआ| बड़ी मुश्किल से उसने पेड की ड़ाल को पकड़ा| जैसे तैसे उसे पकड़ते हुए वह आगे गया| उसके पैरों में दर्द भी है|यह होने पर भी उसने गाँव में काफी लोगों से बातचीत की| और अब वह आराम से मुस्कुराता हुआ जीप में‌ बैठ रहा है! इतनी थकान और दिक्कत होने के बाद भी उसका हौसला बुलन्दियों‌ पर है| जीप में‌ गाने की महफ़िल भी‌ हुईं‌ और उसी‌ मित्र ने कई बेहतरिन गाने गाए| ऐसे साथी हो तो कौनसी राह मुश्किल होगी?
. . . शाम वापस पहुंचने पर और बातचीत हुईं और कल के वितरण की योजना बनी|कल का दिन एक तरह से इस टीम के कार्य का आखरी दिन होगा| वैसे सर और एक मित्र पीछे रुकनेवाले है| सर सबको पूछ भी‌ रहे है कि कौन और आगे रुक कर काम करने के लिए उपलब्ध है|काम को और आगे बढाने की‌ इच्छा है| पर उसके लिए कुछ तैयारी भी करनी पडेगी| शारीरिक स्तर पर फिटनेस को और बढाना जरूरी है| और यह बात भी मन में है कि अब तक जो देखा गया है, उसे लोगों‌ तक पहुंचाना है|बाहर से इन बातों का बिलकुल भी पता नही चलता है| इसलिए रुकने के बजाय और तैयारी और फिटनेस पर काम करने के बाद और देखी हुईं‌ बातें‌ लोगों‌ के साथ शेअर करने के बाद आने का विकल्प अधिक उचित लग रहा है| तब तक हमारा कल का ही‌ दिन इस चरण के कार्य का अन्तिम दिन रहेगा. . . 

 





































ताण्डव पश्चात् शांत हुई नदी



हम इन्हे क्या भविष्य देने जा रहे हैं?






























 


 












क्रमश: