Saturday, November 22, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १६ (अन्तिम)

“मेरे रुह की तस्वीर मेरा कश्मीर. . .”

मेरे रुह की तस्वीर मेरा कश्मीर. . .
ओ खुदाया लौटा दे कश्मीर दोबारा. . .

यह गाना जेहन में बिल्कुल ताज़ा है| १९ अक्तूबर को प्रात: जल्दी आँखें खुली| जितना जल्दी हो सके जम्मू के लिए निकलना है क्यों कि मुघल रोड़ पर भी‌ बाद में ट्रॅफिक जाम हो सकता है| फिर से सुबह साढ़ेपाँच बजे ठण्ड में निकला| साथी सोए हुए है| सुनसान माहौल. . . बस अड़्डे पर जा कर जीप लेनी है| ठण्ड में‌ चलने का बड़ा मजा आया| कदम आगे चल रहे हैं पर विचार पीछे चल रहे हैं| मात्र पन्द्रह दिन का यह सफर रहा| लेकिन इसके बावजूद ऐसा लग रहा है कि यह साझेदारी पुरानी‌ है. . .

जिन जिन साथियों के साथ काम किया, वे याद आ रहे हैं| देश के कई स्थान से आए हुए डॉक्टर और अन्य कार्यकर्ता गण| सेवा भारती के कार्यकर्ता या अब दोस्त कहना ज्यादा ठीक होगा| जावेद भाई का गाना| कश्मीर का अन्दर से दर्शन| काफी बातें मन मे आ रही है| खैर| बस अड़्डे के करीब रोड़ पर ही एक जीप मिली| अभी जम्मू जानेवाले लोगों की संख्या अधिक और साधनों की संख्या कम है; अत: किराया बढ गया है| जीप जम्मू के सांबा जिले के पासिंग की है| जेके- २१| चालक ने श्रीनगर में‌ घूम कर और पाँच सवारियाँ इकठ्ठा की|‌ एक सरदारजी परिवार है| पुलवामा के रास्ते निकलते पंक्चर भी हो गया| सब कुछ हो कर बाहर निकले तो सात बज गए है| ठण्ड से अच्छी खासी ठिठुरन हो रही है| जाते समय शोपियाँ में साथ बैठे सरदारों ने कुछ खण्डहरनुमा मकानों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये कश्मीरी पण्डितों के मकान है| शोपियाँ में‌ ही कुछ स्थानीय लोग भी लिफ्ट चाहते है| पर किराए का विवाद हुआ और बात बनी नही| जगह जगह एक दूरी का अनुभव होता है| शोपियाँ में एक धाबे पर थोड़ी देर रूक कर आगे निकले| शोपियाँ सेब का शहर!

फिर पीर की गली| अब यहाँ रोड़ पर भी बर्फबारी हुई है! थोड़ी देर वहाँ के नजारे का आनन्द लिया| यहाँ ट्रॅफिक जाम भी है| लेकिन थोड़ी ही देर में ट्रॅफिक से आगे निकले| एक जगह मिलिटरी ने सभी की पूछताछ की| बीच बीच में चरवाहे सामने आते है| यह दृश्य भी अद्भुत है| इस यात्रा के फोटोज और व्हिडिओज यहाँ है| आगे थोड़ा जाम बीच में है; पर बिना रुकावट के पीर पंजाल उतर कर दोपहर में दो बजे तक राजौरी पहुँचे| भोजन के लिए नौशेरा के कुछ पहले रोका| वहाँ पास से ही‌ नदी जा रही‌ है और आसपास सब चिनार राज्य है! नि:सन्देह चिनार ही कश्मीर के सच्चे पहरेदार है! यहाँ मोबाईल नेटवर्क सर्च किए तो दो नेटवर्क पाकिस्तान के साफ दिखाई‌ पड़े| उनके सिग्नल भी‌ अच्छे थे| यह छोटीसी बात एक बडे तथ्य की तरफ इशारा करती है| हम आँखें खोल कर देखें तो दिखाई पड़ता है कि देश के कितने ही ऐसे हिस्से है जहाँ देश के लोगों के बजाय विदेशी ज्यादा रस लेते हैं| और यह बात मात्र राजनीतिक नही है कि कश्मीर में‌ पाकिस्तान के इंटरेस्ट है| यह बात व्यापक है और सामाजिक है| यदि हम देश के सभी हिस्सों से ताल्लुक रखेंगे ही नही; तो जाहिर सी बात है वहाँ से हमारे रिश्ते धीरे धीरे टूटेंगे| जैसे नॉर्थ ईस्ट प्रदेश हो| अगर हम वहाँ कभी गए नही; वहाँ के प्रदेश को; जनता को; वहाँ की संस्कृतियों‌ को समझा ही नही; तो जाहिर है जुड़ाव कम होगा| आज देश के कितने ऐसे हिस्से हैं जिनके बारे में‌ यदि हमे जानना हो तो विदेशी यात्रियों के विवरण पढ़ने पड़ते है| हिमालय में हमसे शायद अधिक विदेशी यात्री भ्रमण करते हैं| हिमालय के ऐसे सुदूर और दुर्गम स्थान हैं जहाँ हम जाने का सोच भी नही‌ सकते और ये लोग जाते हैं| यदि हमें लगता है कि ये सब स्थान हमारे देश में‌ हैं और आगे भी रहें तो हमें वहाँसे जुड़ना चाहिए| खैर|

यात्रा सकुशल रही और शाम को छह बजे जम्मू पहुँच गया| पैदल चलते और जम्मू शहर देखते सेवा भारती कार्यालय पहुँच गया|

यहाँ रोहितजी और दादाजी से मिलना हुआ| राहत कार्य का अपडेट लिया| बनाए गए कुछ पाम्पलेट भी मिले| आगे कुछ स्टॉल्स देने की योजना पर काम होगा| इससे लोगों को उनकी आजीविका रिस्टोअर करने में मदद मिलेगी| छह महिनों‌ के लिए डॉक्टर आए, इसके भी पुख़्ता प्रयास हो रहे हैं| रोहितजी भी बड़े उत्साह के साथ और कुछ करना चाहते हैं| शाम को जम्मू में थोड़ी सी शॉपिंग की| फिर रवि जी से बातें हुईं| कई यादों के साथ वह दिन समाप्त हुआ|

बीस अक्तूबर की सुबह दादाजी से विदा लिया| संस्था के साथ आगे भी कार्य करना है| जैसे सम्भव हो वापस आना है और पहली बात जो काम वहाँ‌ देखा उसे सभी तक पहुँचाना है| रवि जी ने ही‌ स्टेशन पर छोडा| उन्होने ने ही जम्मू में रात डेढ़ बजे रिसिव्ह भी किया था मात्र पन्द्रह दिन पहले| लेकिन उसे अब एक अरसा हो गया है. . . .

जम्मू से निकलते समय मन में कई विचार और भावनाएँ हैं| पहली बात तो कश्मीर में जितना कुछ देखना हुआ, उसमें लोग फिर से खड़े होते दिखाई दिए| कुछ कुछ जगहों पर तो लगा ही‌ नही कि इतनी तबाहकारी बाढ़ आ के गई है| लोगों में अपने बलबूते पर खड़े होने का जस्बा दिखा| ऐसे कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ जिन्होने राहत कार्य में अहम भुमिका निभाई| हिलाल भाई- जिन्होने कई जिंदगियाँ बचायी| उनके पिताजी‌ तब तक हॉस्पिटल में ही थे; बाद में उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ| अकेले चले आए कई कार्यकर्ता! सेवा भारती का कार्य और उसका 'good conductor' बनना! माध्यम बनना! दादाजी जैसे व्यक्तित्व से मिलना| ऐसे और भी‌ बहुत. . . .

और वे अस्वस्थ करनेवाली बातें| लेकिन अब इतनी भी अधिक अस्वस्थ नही कर रही है| जैसा पहले एक बार कहा, मजहब के भेद और रहने- बसने  से होनेवाले भेद बहुत उपरी‌ होते हैं| सीमित होते हैं| बड़ी सच्चाई इन्सान होना है| अत: इन संकीर्ण और उपरी भेदों को इतना महत्त्व देने की कोई आवश्यकता नही है| और हर एक बात के पीछे ठोस कारण है| जो भी प्रतिक्रियाएँ हैं; जो भी भावनाएँ हैं; उनके पीछे बड़ी पृष्ठभूमि है| ऐसी परिस्थितियों में हम भी शायद ऐसे ही विचार करेंगे| यह तो स्वाभाविक है|

थोड़ा सा दु:ख इस बात का जरूर है कि इन्सान को अब भी इन्सान नही देखा जाता है| उसके लेबल से; उसके बॅकग्राउंड से ही देखा जाता है| सिर्फ इन्सान देखनेवाली दृष्टि और वह समझ अब भी कम पैमाने पर है| लेकिन जब वह दृष्टि और वह समझ समाज में आएगी, तो हालात बदल जाएँगे| अभी के हालात जरूर अस्वस्थ करनेवाले हैं| ऐसे में मिल्खासिंह के फिल्म का एक संवाद याद आता है- “इन्सान बुरे नही होते हैं; हालात बुरे होते हैं|” और हालात को ठीक करना हो तो उसके लिए आधुनिक दृष्टि और समझ चाहिए जो युवाओं में‌ साफ तौर पर दिखाई पड़ती है| जैसे जैसे यह समझ बढ़ेगी हालात बदलेंगे| इसके लिए हमें बस एक कदम उठाना है| जो दूरी है उसे चल कर कम करना है| डॉ. त्रिपाठी जी इस कार्य के शुरू के चरण में बड़े सक्रिय रहें| उनकी एक बात याद आती है- आप जो कुछ करना चाहेंगे कश्मीर आ कर किजिए| घूमना हो, ट्रेकिंग करना हो, पर्यटन हो, उसके लिए कश्मीर आईए| यही बात देश के ऐसे अन्य हिस्सों के लिए भी लागू है| जम्मू- कश्मीर- लदाख हो, हिमाचल, उत्तराखण्ड, नॉर्थ ईस्ट, अन्दमान या लक्षद्विप हो; वहाँ पर हमे जाना चाहिए; जुड़ना चाहिए| अधिकारों के बारे में कहा जाता है कि जो अधिकार इस्तेमाल नही किए जाते हैं, वे धीरे धीरे समाप्त होते हैं| और यह हमारा चुनाव है| खैर|

युवा पिढी की बढ़ती हुई समझ एक सपना दे जाती है| अगर समझ ऐसी बढती रही तो एक दिन भारत पाकिस्तान भी युरोपियन युनियन जैसे करीब आ सकते हैं| युरोपियन युनियन में भी सभी‌ देश एक दूसरे से अनगिनत बार झगड़े हैं| और उन देशों में तो मतभेद और भिन्नताएँ बड़ी गहन है| भारत- पाकिस्तान में तो काफी समानताएँ हैं| भाषा का भेद ना के बराबर है; संस्कृति मोटा मोटी समान है| और स्ट्रेंथ और वीकनेसेस भी एक दूसरे जैसे ही है! अगर थोड़ी सी समझ आ जाए और सच्चे 'स्वार्थ' की दृष्टि की भनक लगे; तो ये देश करीब आ सकते हैं| क्यों कि वे करीब हैं ही| इसमें और भी एक बात हैं| कहते हैं ना कि दुश्मनी दोस्ती के सिक्के का ही दूसरा पहलू होता हैं; या प्यार में इन्कार भी होता है! वैसे यहाँ पर भी है| आप उसी से दुश्मनी कर सकते हैं जिसके आप दोस्त हो| उसी से झगड़ सकते हैं जिससे कुछ रिश्ता हो| अन्यथा किसी अन्जान व्यक्ति से कौन झगड़ेगा? इसलिए काफी कुछ चीजें सकारात्मक हैं|






















































































जहाँ दूर नजर दौडाए. . . आज़ाद गगन लहराए. . .  लहराए . . .
























































सभी यादों को संजोते हुए और सभी साथियों को प्रणाम करते हुए अब इस लेखन को रोकना होगा| मंजिल जैसी चीज जीवन में होती नही है| जीवन तो एक पड़ाव से अगले पड़ाव पर आगे ही जाता रहता है| जीवन की धारा रूकती नही है| सभी साथियों को प्रणाम करते हुए और आप जैसे सभी पढ़नेवालों को धन्यवाद देते हुए लेखणि को तात्कालिक विराम देता हुँ| किसी अगले पड़ाव पर मिलने तक रामराम, अलविदा!

बहुत बहुत धन्यवाद एवम् सभी को प्रणाम|

Friday, November 21, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १५


राहत कार्य सहभाग का अन्तिम दिन

१८ अक्तूबर की सर्द सुबह| शंकराचार्य मंदीर देखने के लिए जल्दी उठें और करीब सवा पाँच बजे बाहर भी निकले| डॉ. देसाई सर और मै दोनो पैदल निकले| यहाँ से करीब तीन किलोमीटर पर दल लेक के पास शंकराचार्य हिल की चढाई शुरू होती है| वह साढ़े पाँच किलोमीटर की चढाई है| अर्थात् कुल दूरी करीब आठ किलोमीटर होगी| अर्थात् जाने में करीब दो- ढाई घण्टे लगेंगे| करीब चार घण्टों में लौटना है और नौ बजे के बाद आश्रम के शिविर के लिए तैयार होना है| यह यात्रा काफी सुन्दर रही| सवेरे के घने अन्धेरे की ठण्ड में टॉर्च के साथ चल दिए| रास्ता मालुम ही हुआ था| सुबह ट्रॅफिक न के बराबर है|

अन्धेरे में भी चोटी पर स्थित शंकराचार्य मंदीर का प्रकाश दिशा दिखा रहा है| अन्धेरे में ही दल लेक शुरू हुआ| करीब सवा छह बजे मंदीर की ओर जानेवाले रस्ते पर पहुँचे| मंदीर एक बड़ी चोटी‌ पर है और सुरक्षा के कारणों से वहाँ शाम को पाँच बजे के बाद जाने की अनुमति नही दी जाती| इसलिए सुबह जल्द जाना तय किया| उजाला आना शुरू ही हो रहा है| वहाँ सीआरपीएफ की पोस्ट है| वहाँ के जवान ने अन्दर जाने की अनुमति नही दी| कहा कि साढे छह बाद आओ|‌ मिलिटरीवालों से अनुरोध करना नही चाहिए; लेकिन न रह कर कहा गया कि, आरती तो सुबह चार से ही चालू होती है, फिर क्यों नही जाने दे रहे हैं? उसने बड़े ही मिठे और प्यार भरे स्वर में कहा कि आरती तो शाम को आठ बजे भी होती है; फिर भी हम किसी को नही जाने देते!

कुछ समय दल लेक के किनारे टहलें|‌ अभी अन्धेरा है; इसलिए दल लेक नही देख सकते| हालांकि वहाँ होने का अनुभव भी काफी है| स्ट्रीट लाईट की रोशनी में एक बॅनर दिखा- सेव्ह गाजा| कुछ देर बाद वहाँ रूक कर आगे बढ़े| साढे छह बजे आगे बढ़ने की अनुमति मिली| और जाने के लिए क्यो रोका यह तुरन्त स्पष्ट हुआ|

आगे रास्ता जंगल से हो कर जाता है| धीरे धीरे दल लेक और श्रीनगर नीचे छूट गया| मन्दीर परिसर के दो वॉचमेन उपर जा रहे हैं; उन्होने हमे देख कर तुरन्त पूछा कि कैमरा है क्या? पहले मन में‌‌ डर लगा कि क्या ये कॅमेरा ले लेंगे? क्यों कि मन्दीर में मोबाईल कैमरा भी ले जाना मना है| हालांकि मन्दीर अभी बहुत उपर है| वास्तव में उन्होने एक भालू देखा है| और थोड़ी ही देर में हमें भी दिखा! सड़क एक जगह पार कर वह जंगल में चला गया! इन दो वॉचमेन के साथ चार बड़े कुत्ते भी हैं| उन्होने हमें उनके साथ ही रहने के लिए कहा| बाद में सड़क पर भालू की बड़ी टट्टी भी दिखाई पड़ी| तब अन्दाजा हुआ कि क्यों उस जवान ने हमें प्रकाश आने से पहले आगे नही बढने दिया|

रास्ता एकदम अच्छा है| पर उन लोगों के निर्देशानुसार हम लोगों ने एक जगह पक्की सड़क को छोड कर शॉर्ट कट लिया| यह बिलकुल जंगल के बीच से और सिधी चढ़ाई पर जा रहा है| लेकिन इससे हमारी दूरी कम हो गई और समय भी बच गया| करीब पन्द्रह मिनट तेज चढाईभरे रास्ते से बढ़ने पर पक्की सड़क तक पहुँच गए| तब तक नीचे का कुछ भी नही दिखाई दे रहा है| बाद में एक जगह से अच्छा नजारा दिखा| दूर पीरपंजाल में बरफ दिखाई दे रही है| जल्द ही मंदीर पहुँच गए| वहाँ मोबाईल्स रखने पड़े| यहाँ से २५० कदम उपर मन्दीर है| उपर मन्दीर बहुत शान्त है|‌ वहीं शंकराचार्य की साधना गुफा भी है| उपर से बहुत रमणीय नजारा दिखा| एक तरह से पूरे कश्मीर वादी का दर्शन हुआ| एक तरफ पीरपंजाल कि बर्फाच्छादित चोटियाँ, दूसरी तरफ सोनमर्ग की दिशा में भी धवल चोटियाँ दिखी| दक्षिण में भी बरफ दिखाई दे रही है| काफी रोमांचक रहा वह अनुभव| मोबाईल नीचे रखने के कारण फोटो नही खींच सके|

आते समय भी सड़क पर घना कोहरा लगा| फिर शॉर्ट कट से आए| तेज ढलान पर उतरना थोड़ा कठिन है; फिर भी उतर गए| एकदम नीचे आने पर ही कोहरा चला गया और फिर दल लेक का मनोहारी दर्शन हुआ| वाकई यह एक दरिया है! शिविर के लिए थोड़ा लेट होने की सम्भावना के कारण दल लेक पर कुछ दूरी चल के ऑटो कर ली| उतरते समय पैर में मोच आयी है| इसलिए चलने में थोड़ी कठिनाई हो रही है| खैर|

आज अन्तिम शिविर है; कल सवेरे श्रीनगर से जो निकलना है| डॉक्टर सर कह रहे है कि मेरे जाने के पश्चात् वे इस शिविर को अकेले सम्भलेंगे| वे सम्भल तो सकते हैं; पर उसमें समय जाएगा| क्यों कि वे जब तक रुग्ण को देखते हैं; तब तक हम लोग दवाईयाँ निकालते हैं| इसलिए मेरे स्थान पर कोई कार्यकर्ता उनके साथ होना चाहिए| शिविर यथा क्रम हुआ| इतने दिनों के शिविरों में करीब एकजैसे ही‌ रुग्ण आते रहें|‌ कुछ लोगों को बाढ़ के कारण त्वचा या चेहरे पर दाग आते हैं| बदन दर्द होता है| एक- दो बार डॉक्टर सर ने इन्जेक्शन भी दिए; लेकिन वे रुग्ण द्वारा स्वयं लाए गए थे| आज सत्तर रुग्ण आए| कई दिनों से रोज यहाँ आते रहने के कारण यहाँ पर एक जुड़ाव हो गया है| चिनार का यह विशाल वृक्ष! लेकिन अब चलना है|

वापस जाते समय घुटने में काफी दर्द होने लगा| चल तो सकता था; पर रफ्तार एकदम धिमी हो गई| और डॉक्टर सर जिनकी आयु ६४ हैं; बिलकुल फिट हैं! उनके पैर बिलकुल भी नही दर्द कर रहे हैं| खैर| दोपहर में थोड़ी देर पैरों को आराम दिया| थोड़ा ठीक होने के पश्चात डॉक्टर सर के साथ दवाईयों को लगाने का काम किया| कार्यकर्ताओं से बातचीत भी हो रही है| आज डॉक्टर सर गांदरबल जाएँगे| कल सुबह वहीं वे शिविर लेंगे| और पवनजी तो कल ही चले गए हैं| इसका मतलब आज यहाँ बस तीन लोग रूकेंगे| शाम को अब तक के शिविरों का संक्षिप्त रिपोर्टिंग भी कर दिया| आगे डॉक्टर सर उसे मेंटेन करेंगे|

शाम को कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ| नज़ीर भाई, फयाज़ भाई, हिलाल भाई, बिलाल भाई, जावेद भाई आदि सब से एक बार मिलना हुआ| जावेद भाई का तो गाना भी रेकॉर्ड कर लिया है! वाकई उनके गाने में एक भाव है| थोड़े से दिनों में ही ये सब लोग दोस्त बन गए थे| कई दिन साथ रहें| साथ में काम किया और किमती पल साथ बिताए. . .

सबके जाने के बाद दफ्तर सुना हो गया है| रह रह कर मन में कल की बातचीत आ रही है| अंकलजी और एक कार्यकर्ता द्वारा बतायी गई और भी कुछ बातें याद है| एक कार्यकर्ता ने कहा था कि, सभी स्थानीय कार्यकर्ता यहाँ पर रुकते हैं; यहीं भोजन करते हैं; सोते हैं; लेकिन कभी अपने बिस्तर ठीक नही‌ रखेंगे| कभी यहाँ का काम नही करेंगे| बाकी सब बातें ठीक हैं; पर मन ही मन इस दफ्तर से बाहर जाने पर हम लोग अलग अलग ही महसूस करते हैं| श्रीनगर में आने पर ऑटोवाले ने पहले यही पूछा था- मुसलमान या हिन्दु? यहाँ दादाजी मिठा बोल कर सबसे काम करवाते हैं; लेकिन वे जब यहाँ पर नही होते हैं तब इन लोगों का व्यवहार भी ढिला होता है| बात थोड़ी सही जरूर है| लेकिन कार्यकर्ताओं को साथ रखना और उनसे काम लेना वाकई टेढी खीर है| अक्सर ऐसा होता है कि कुछ कार्यकर्ता एक दो मामलों में बड़े अच्छे होते हैं; रात को दो बजे पुकारो तो तैयार होते हैं; लेकिन उनकी कुछ आदतें अड़चन खड़ी करती हैं| ये द्वंद्व तो रहता ही है और उसमें से ही आगे जाना पड़ता है|

एक बात मन में‌ बार बार आ रही हैं| यहाँ जो प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली; जो भी विचार सामने आए; वे सब बहुत मानवीय हैं; बहुत स्वाभाविक हैं| और वे व्यक्ति विशिष्ट न हो कर परिस्थिति विशिष्ट है| यदि ऐसी ही परिस्थिति में किसी फला व्यक्ति को डाला दिया जाए, तो बीस में उन्नीस बार उसका व्यवहार भी ऐसा ही होगा| इसलिए इन प्रतिक्रियाओं के बारे में या इन मतभेदों के बारे में व्यक्तिगत नजरिए से देखना नही चाहिए| जैसे तनाव एक सार्वजनिक चीज है; किसी व्यक्ति के लिए वह विशिष्ट नही हो सकता है| वैसे ही ये सब प्रतिक्रियाएँ; ये मतभेद भी सार्वजनिक है; individual न हो कर universal हैं| दूसरी बात मन में बार बार आई कि जो भिन्नताएँ हैं; जो मतभेद हैं; जो देखने के अलग अलग दृष्टिकोण हैं; उसमें एक बाद ध्यान में रखनी चाहिए| जो कुछ भी विचार हो; जो अलग अलग दृष्टिकोण हो; उन्हे जैसे हैं‌ वैसे ही देखना चाहिए| कई बार हम हमेशा दूसरे का मत परिवर्तन करने की कोशिश करते हैं; दूसरे के भिन्न विचार का स्वीकार नही कर सकते हैं| लेकिन ऐसा नही करना चाहिए| हर एक दृष्टिकोण का स्वीकार एवम् आदर होना चाहिए| दूसरे का मत परिवर्तन करने का या किसी बात के लिए convince करने का प्रयास एक तरह से असुरक्षा से आता है|‌ एक अच्छा हिन्दी गाना है- समझनेवाले समझ रहे हैं नासमझें है वो अनाड़ी है| जो लोग देख सकते हैं; समझ सकते हैं; वे समझ जाएँगे; और जो देख नही पा रहे हैं; वे बाद में भी नही देख पाएँगे| अत: किस बात के लिए विवाद करना या झगड़ना? हर एक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है और कुछ सच्चाई वहाँ है इतना जानना काफी है| खैर|

शाम को डॉक्टर सर और अन्य कार्यकर्ता चले गए| डॉक्टर सर की आयु अधिक होते हुए भी इन दिनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी|‌ वे अपने काम के के प्रति काफी committed थे| गोवा में उनका नर्सिंग होम है| वहाँ वे अब युवा डॉक्टरों को प्रॅक्टिस करने का अवसर देते है| गोवा आने का हार्दिक आमन्त्रण दे कर वे निकल गए| आज रात मै, मयूरभाई और अंकलजी तीनों ही रहेंगे| कल सवेरे जल्दी निकलना है| कल रात जम्मू रूक कर दादाजी से मिलना और फिर आगे चलना है| शाम को सबके साथ मिल कर भोजन बनाया| ठण्ड में नीचे जा कर पानी ले आने में भी काफी मज़ा आया| बस अब कल निकलना है. . .


शॉर्ट कट
नीचे बादलों का सागर और सुदूर पीरपंजाल के बर्फाच्छादित शिखर
दल लेक का नजारा
फिर से जीवित हो उठे शिकारें
दर्या ए जेलम और एक मन्दीर




























क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Shri. Jaidevji 09419110940
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com


जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १४


नैकपोरा में शिविर

१७ अक्तूबर की सुबह नींद जल्दी न खुलने से शंकराचार्य मंदीर नही जा सके| लेकिन ठण्डी सुबह में चाय का लुफ्त उठाया| जैसे ही सूरज की कृपा बरसी, उसका भी आनन्द लिया| सर्दी में धूप लेने का मजा और है| यहाँ के एक मुख्य कार्यकर्ता- हिलाल भाई के पिताजी अब भी हॉस्पिटल में हैं| उनकी कुछ चिन्ता हो रही है| यदि जाने का इन्तजाम होता है, तो उन्हे देखने भी जाना है| कल से ही दफ्तर में बार बार संस्था के राहत कार्य का व्हिडिओ बज रहा है-





यहाँ अब थोड़े ही लोग है| काफी लोग जा चुके हैं|‌ स्थानीय कार्यकर्ता आते जाते रहते हैं| और दफ्तर के पास ही रहनेवाले अंकल भी आते हैं| वो जम्मू के हैं और यहाँ मार्केटिंग के काम से आते हैं| सुबह के शिविर की तैयारी कल रात ही हो‌ गई थी| और भी कुछ मेडिसिन सेटस तैयार है| सोच रहे हैं आज तो गाँव का शिविर होना चाहिए|

सुबह के शिविर ले जाने के लिए बिलालभाई आए| इनसे पहली बार मिलना हुआ| ये गोपालपोरा के रहनेवाले हैं| सुबह का शिविर रोज की तरह सम्पन्न हुआ| इस शिविर का एक पहलू यह है कि बड़े विशाल चिनार (देवदार) वृक्ष के करीब होने का अवसर मिलता है; तथा बाद में आश्रम की शांति में भोजन भी मिलता है| और धूप भी मिलती है! बस एक ही‌ बात कुछ चिन्तित कर रही है कि २१ अक्तूबर के बाद कोई डॉक्टर आते नही दिख रहे हैं| वैसे अभी चार दिन हैं; फिर भी किसी के आने की सूचना नही मिल रही है| एक विचार यह भी है कि कश्मीर या जम्मू के डॉक्टर्स और फार्मसिस्टस की‌ सहायता ली जाए| पर वे शायद पहले ही काफी काम कर चुके हैं और आने की स्थिति में नही हैं| देखते हैं|

दोपहर में दफ्तर पैदल ही गए| श्रीनगर देखना वाकई‌ एक खास अनुभव है| जब तीन साल पहले श्रीनगर आना हुआ था, विश्वास ही नही हुआ था कि हम लोग श्रीनगर में हैं! इस बार तो श्रीनगर में होने का अभ्यास हो गया है, आदत हो गई है! फिर भी उसकी खासियत हर कदम महसूस होती है. . . दफ्तर जा कर थोड़ा विश्राम भी हुआ| कार्यकर्ताओं ने शाम के शिविर की योजना बनायी है| थोड़ी देर में‌ निकलना है| श्रीनगर से बीस किलोमीटर दूर नैकपोरा गाँव में शिविर लेना है|

जैसे ही वहाँ जाने के लिए निकले, पहले तो चोटी पर दीपस्तंभ की‌ भाँति अडिग खडा हुआ शंकराचार्य मन्दीर दिखा| फिर आगे जाने पर दूर चोटी पर कुछ दिखने लगा| बिलाल भाई ने बताया कि ये तो परिमहल गार्डन है! तीन साल पहले इस गार्डन में भी गए थे| आज उसी दिशा में उसके तले बसे एक गाँव में जाना है| बिलाल भाई का बोलना बहुत ही ढंग का है| यहाँ कई लोग काफी अच्छा हिन्दी और अंग्रेजी भी बोलते हैं| और कश्मिरी संस्कृति में बोलने की शैलि भी शायद ऐसी विनम्र और लुभावनी है| बिलाल भाई ने आगे बताया कि इस गाँव के पास ही वह बाँध है जो फटने के कारण ७ सितम्बर को श्रीनगर में सैलाब आया| नैकपोरा में १८ फीट तक पानी था| दोमंजिल मकान के दूसरी मंजिल तक पानी आया था|

लगभग श्रीनगर के आउटस्कर्टस में ही यह गाँव है| दूर से परिमहल दिखाई दे रहा है| गाँव की सड़कें ठीक है| लेकिन गाँव के बीच में अब भी सड़कों पर कीचड़ है| यहाँ बिलाल भाई अकेले कार्यकर्ता है और बाकी गाँव के ही कार्यकर्ता साथ में होंगे| एक दुकान की खाली जगह शिविर के लिए चुनी गई| यहाँ से थोड़ा ही आगे बाँध है| लेकिन शिविर के कारण उसे नही देख पाए| यह शिविर शायद गाँव का मेरा अन्तिम शिविर हो सकता है| क्यों कि कल डॉक्टर सर शायद गांदरबल जा सकते हैं| अभी तक जितने गाँव के शिविर हुए, उसमें यह सबसे ठीक लगा| लोगों की भीड़ नियंत्रित है| रुग्ण लगातार आते रहे; फिर भी उतनी दिक्कत नही हुई|

इस शिविर की खास बात यह भी है कि यहाँ आए रुग्णों में‌ करीब ९०% रुग्ण महिलाएँ है| अब तक पाँच- छह शिविर हुए हैं; अत: दवाईयों के नाम पता हो गए हैं| दवाईयाँ अब ढूँढे बिना तुरन्त मिलती है| इतना ही नही, कौनसी बीमारी के लिए क्या दवाईयाँ देनी है, यह भी पता है! किसी ने कमजोरी- थकान बताया तो उसको आयरन की बोतल| किसी को मल्हम चाहिए तो फेनाक प्लस| बदन दर्द बताया तो कॅल्शिअम के लिए सिपकॅल| और ऐसे अन्य भी! एक बार बड़ी मजे की बात हुई| एक महिला ने कमजोरी और बदन दर्द बताया| तुरन्त सिपकॅल और आयरन की बोतल निकाली| डॉक्टर सर भी हंस पड़े| मजे की बात यह थी कि आगे भी‌ दो महिलाओं को ठीक यही बीमारी है; अत:‌ वहीं‌ दवाईयाँ निकाली| एक तरह से हॅटट्रिक हो गई!

कश्मिरी भाषा के कुछ शब्द भी अब पल्ले पड़ते है| वे वस्तुत: अन्य भारतीय भाषाओं के ही शब्द है| जैसे यहाँ बुखार के लिए ताप कहते हैं; आमांश के लिए आमांश कहते हैं| तीन को त्रैण कहते हैं| मलने को मलना ही कहते है| और अब्र शब्द (बादल) अभ्र शब्द से जुड़ा है| आबो- हवा अर्थात् जल वायू कहते हैं| आबो शब्द आप (पानी) से आया है| यहाँ तक की पंजाब शब्द भी वैसा ही है| पंच + आब- आप (पानी) अर्थात् पाच नदियों का पानी जैसे उत्तर प्रदेश में दुआब है जिसमें गंगा यमुना का पानी है| खैर|

शिविर अच्छा चला| अन्धेरे के कारण बन्द करना पड़ा| हालाकि आखिर में और रुग्ण आते रहे| और पंजीयन बन्द करने के बाद भी रुग्ण चालू ही रहे| करीब ९३ रुग्ण हुए|

इस गाँव में सरकारी सहायता काफी कम मिली‌ है, ऐसा बताया गया| यहाँ जमाते इस्लामी ने कुछ मदद की है| यह गाँव बाढ़ से सबसे पहले डूबा था| यहाँ अब भी स्प्रे करने की आवश्यकता है| गाँव से निकलते समय वहाँ के एक डॉक्टर को लिफ्ट दी| तब उन्होने बताया कि इस सैलाब के बाद लोगों में ऐसी भावना है कि कश्मीर में हुए पापों के फल के रूप में यह बाढ़ आयी है| क्यों कि इतनी तबाही पीछले सौ सालों में भी नही‌ हुई थी| बाद में उन्होने यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में लोगों को एक तरह से निर्भर बना कर रखा है| केंद्र सरकार से इतनी अधिक आर्थिक सहायता दी जाती हैं; जिससे लोग आलसी हो जाते हैं| उन्होने यह भी कहा कि यह आर्थिक सहायता मुख्य रूप से दो सौ परिवारों तक पहुँचती है और उसका उद्देश्य इतना ही होता है कि लोग शांत रहें; आवाज ना करे| सुनने में यह भी आया कि जे- के सरकार एक तरह से अलगाववादियों का ही दूसरा युनिट है| खैर|

शाम को मयूरभाई और पडौसी अंकल ने भोजन बनाया है| आज हम चार ही लोग है दफ्तर में| भोजन बनाने के बाद आपस में बातचीत शुरू हुई| यह अंकल जम्मू के डोगरा समाज से आते हैं| काफी अनुभव और तजुर्बा उनके पास है|‌ हमारे शिविर के अनुभव उन्होने सुने| उसके बाद उन्होने कई बातें‌ कही| ये उनके अपने विचार हैं और पॉलिटिकली करेक्ट नही हैं| फिर भी उनके विचार महत्त्वपूर्ण लगे| परिस्थिति का आंकलन करने के लिए उपयोगी लगे| अंकलजी ने कश्मीर की थोड़ी पृष्ठभूमि बतायी और कहा कि कश्मीर के लोग- कश्मिरी पण्डित हो या अभी के कश्मिरी मुसलमान हो, उनमें यह धारणा होती है कि हम सबसे अलग हैं; सबसे श्रेष्ठ है| और इतिहास में कश्मिरी पण्डितों ने अन्य समुदायों का और मुस्लीम समाज का शोषण किया; उसे ही अब मुस्लीम समाज दोहरा रहा है| कश्मिरी पण्डित और मुस्लीम समाज में‌ आज भी कईं बातें समान है- जैसे खाने का ढंग; रहने का तरिका| उन्होने अपने पुराने नाम या गोत्र भी वैसे ही रखे है| जैसे जो भट या भट्ट थे वे मुस्लीम होने के बाद भट या बट्ट बने| जो धर थे; वे अब दर बन गए (तुरन्त ध्यान में‌ आनेवाले नाम- भारत की‌ महिला क्रिकेटर रुमेली धर और पाकिस्तान के अंपायर अलीम दर) और कचरू किचलू बने| ऐसे और भी है| मजहब बदलने के बावजूद एक तरह की उनकी पहचान समान है|

अंकलजी ने आगे कहा कि आज भी कश्मिरी पण्डित खुद को अलग मानते हैं और इसलिए इतना अन्याय सहने के बाद भी कश्मिरी मुस्लीमों के साथ ही पहचान रखते हैं| वे बीजेपी को नही वरन् नॅशनल कॉन्फरन्स को ही‌ सपोर्ट करेंगे| जब कश्मिरी पण्डितों को व्हॅली से खदेड़ा गया और बाहर निकलने पर बाध्य होना पड़ा, तब वे अधिक संख्या में जम्मू आए| तब वहाँ के गुज्जर, डोगरा जैसे समाजों ने ही‌ उनकी सहायता की|‌ यहाँ तक की वहाँ के संसाधनों पर भी उनकी संख्या से बर्डन हुआ| जम्मू के स्थानीय समाजों‌ की‌ तुलना में‌ वे अधिक अफ्लुअंट थे; इसलिए स्थानीय समाजों की प्रगति में‌ भी कुछ रुकावट हुई| फिर भी‌ उन समाजों ने इनकी बहुत सहायता की| उनको आसरा दिया| नया घर बनाने में मदद की| लेकिन. . इतना करने पर भी कश्मिरी पण्डित आज भी डोग्रा- गुज्जर जैसे जम्मू के समाजों को अपने से नीचा ही मानते हैं| और उनके घर खाना खाने के बजाय कश्मिरी मुसलमान के पास जाते हैं| अंकलजी इस पूरे विषय पर डोग्रा परस्पेक्टिव्ह ही कह रहे हैं|

बाद में उन्होने कहा कि एक तरह से इन लोगों‌ के आने से हमें तकलीफ जरूर हुई; संसाधन शेअर करने पड़े; पर उससे हमारा अन्त में लाभ ही हुआ| कंपिटिशन के कारण हम भी आगे बढ सकें| उन्होने आगे कहा, कश्मीर के लोग ऐसा दिखाते है कि वे सबसे शक्तिशाली है; आपको डराने की कोशिश करते हैं| अगर आप नही डरे फिर वे आपसे डरते हैं| और अधिकतर लोग ऐसे है जो पैसों के लालची‌ है| पैसों के ही दोस्त हैं| आज कश्मिरी पण्डितों‌ को काफी कन्सेशन्स हैं; काफी बेनिफिटस मिलते हैं; फिर भी वे अपना दर्द बाँटते रहते हैं| . . . नि:सन्देह इस डोग्रा परस्पेक्टिव्ह को जाने बिना इन चीजों का आंकलन अधुरा रहता|

आगे उन्होने कहा, कि कुछ लोगों को जरूर लगता है कि, पाप अधिक हो जाने से बाढ़ आयी|‌ पर लोग यह उनका पाप नही‌ देखते हैं; लोग यही कहते हैं कि आर्मी ने इतने जुल्म ढाए; उससे बाढ आयी| उनके कहने में आया कि कश्मिरी लोग खुद को कितना श्रेष्ठ मानते है इसका एक उदाहरण यह भी है कि श्रीनगर के राजभवन को स्वच्छ करने के लिए कोई कर्मचारी नही मिल रहा था| इसलिए १९६० के दशक में चंडीगढ़ से ख्रिश्चन सफाईवालों को यहाँ लाया गया| उनकी पिढियाँ अब भी यहीं रहती हैं; लेकिन अब भी‌ वे स्टेट सब्जेक्ट (राज्य के नागरिक) नही बने हैं और किराए से ही रहते हैं|

उसके बाद बात राजनीति पर आयी| कश्मीर में इलेक्शन्स हैं| अभी, यह लिखते समय, वहाँ रॅलियाँ शुरू हो चुकी‌ है| कश्मीर आने से पहले लगता था कि वहाँ पर भी मोदी जी की लहर होगी|‌ पर लोगों की सोच का अन्दाजा होने पर लगता है कि यहाँ मोदी जी लहर बिलकुल भी नही है| अंकलजी ने भी यही कहा कि जम्मू और लदाख में बीजेपी को अच्छा अवसर है; पर कश्मीर में बिलकुल नही| यहाँ कश्मिरी पण्डित भी बीजेपी को व्होट नही देंगे| कश्मीर की विधानसभा की सीटें देखें तो कुल १११ सीटें है| उनमें से २४ सीटें पाकव्याप्त कश्मीर की‌ हैं जो रिक्त रहती‌ हैं| बाकी बची ८७ सीटें| उनमें से ४६ कश्मीर व्हॅली की; ४ लदाख क्षेत्र की और ३७ जम्मू क्षेत्र की‌ है| देखा जाए तो क्षेत्रफल और जनसंख्या के अनुपात से जम्मू और लदाख क्षेत्र की‌ अधिक सीटें बनती‌ हैं| लेकिन जम्मू- कश्मीर में शुरू से ही‌ कश्मीर का डॉमिनंस है और इसलिए जम्मू और लदाख क्षेत्रों को दबाया जाता है| अंकलजी ने बाद में कहा की बीजेपी जम्मू और लदाख में अच्छा प्रदर्शन करती‌ हैं और कश्मीर व्हॅली में एक सीट भी‌ ला सकती है तो वह पीडीपी के साथ सत्ता में आ सकती‌ है| क्यों कि ओमर अब्दुल्ला पर लोग खासे नाराज है| इसलिए उनकी सत्ता जाना लगभग तय है| यह बातचीत व्यक्तिगत और आउट ऑफ द वे हो कर भी महत्त्वपूर्ण लगी| ऐसे सभी दृष्टीकोण समझना आवश्यक है| चाहे हम उनसे सहमत ना भी हो| बाद में‌ कुछ बात श्री अमरनाथ श्राईन आन्दोलन पर भी हुई| उस आन्दोलन में पहली बार जम्मू‌ क्षेत्र ने अपनी पहचान के लिए लड़ते हुए कश्मीर क्षेत्र के शोषण के खिलाफ आवाज उठायी और अपनी माँगे पूरी करने के लिए सरकार को मजबूर किया| उससे वादी में हालात बदलने शुरू हो गए है| खैर

दाए तरफ दूर चोटी पर परिमहल गार्डन

































नैकपोरा की सड़क

डॉ. सर शिविर लेते हुए
















































 

क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
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