Wednesday, November 12, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव ८


राजौरी के रास्ते श्रीनगर

११ अक्तूबर को प्रात: ५ बजे जम्मू से श्रीनगर के लिए निकले| इतनी सुबह रवि जी ने कड़क चाय बना दी| बनिहालवाले रोड का हाल अभी भी‌ ठीक नही‌ है| इसलिए मुघल रोड से जाएँगे| अन्धेरे में जम्मू से बाहर अखनूर रोड पर निकले| एम्ब्युलन्स में‌ कल शाम ही सारा सामान डाला है| दवाईयाँ है और कल आए हुए लाईटस हैं| मै, दादाजी‌ और चाचूजी है जो गाड़ी चला रहे हैं| आज राजौरी में सेवा भारती के कुछ कार्यकर्ताओं से मिलना है| वहाँ भी राहत कार्य चल रहा है|

७ अक्तूबर में आयी बारीश के बाद मौसम साफ है| लुभावनेवाली ठण्ड है| अखनूर के पास रास्ते में बहुत अधिक धुन्द है| ऐसा लग रहा है जैसे बादलों से गुजर गए| फिर धीरे धीरे सूरज ने आ कर ऊर्जा प्रदान की| दादाजी से कल- परसो हुई चर्चा आगे हुई| दादाजी कहते हैं कश्मिरी पण्डितों में स्वयं को श्रेष्ठ मानने का एक भाव होता है जो हर समाज में नही होता| इसलिए वे स्वयं को सबसे अलग मानते हैं| कश्मीर को विशेष मानने का मूल इसी विचारधारा में है| बात तो सही है| लेकिन सिर्फ कश्मिरी पण्डित ही क्यों; सभी लोग कम अधिक मात्रा में यही सोचते हैं| जब भी हम कहीं‌ एक दूसरे से मिलते हैं तो हम में से कितने लोग 'मेरा जॉब फलाँ फलाँ है; मै ऐसी ड्रायव्हिंग करता हुँ; मैने ऐसी ऐसी दुनिया देखी है' आदि बातों द्वारा स्वयं का श्रेष्ठत्व ही तो बताते हैं| या फिर 'मेरा भारत महान' धारणा हो, या 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ' भी यही तो सोच हैं| भारत महान और सारे जहाँ से अच्छा क्यों क्यों कि वह मेरा है! खैर
 
इन सब बातों को समझते समय एक बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए| एक पुरानी कहानि है कि कुछ अन्धे लोग हाथी के पास गए| उन्होने हाथी क्या है, यह समझने का प्रयास किया| जिसका हाथ सूंड को लगा, उसे हाथी सूंड जैसा लगा|‌ जिसका हाथ पूछ को लगा, उसे हाथी डोरी जैसा लगा| ऐसा यहाँ भी है|‌ हम जिन चीजों को देखते है या समझ पाते है वे मात्र एक छोटा सा टुकड़ा है| सच्चाई बहुत गहन और व्यापक होती है| इसलिए दादाजी कहते है कि कहीं पर कोई जजमेंट मत करो; चीजों को समझने का प्रयास करते रहो|‌

दादाजी ने यह भी कहा कि अब कश्मिरी मुसलमानों की‌ सोच बदल रही है|‌ कुछ हद तक पहले से ही‌ उनकी सोच अलग होती है| कश्मीर में महिलाएँ बुर्का कम ही पहनती है| महिलाओं के प्रति इतना पक्षपात यहाँ नही है| और युवा पिढी में तो एक परिवार में दो या तीन तक ही बच्चें होते हैं| युवा पिढी अधिक डायनॅमिक है| कश्मीर के क्रीम क्लास से आनेवाले सभी युवा जम्मू, दिल्ली या भारत के अन्य शहर या विदेश में पढ़ते हैं| जाहिर है उनकी‌ सोच थोड़ी बढेगी| पर इसमें दिक्कत यह भी है कि ऐसे शहरों में पढ़ने के बाद उनका कश्मीर से नाता एक तरह से कुण्ठित होता हैं; वे सेटल बाहर ही होते हैं. . .

दादाजी ने आगे के कार्य की रुपरेखा भी बतायी| अब धीरे धीरे डॉक्टरों के शिविर कम होंगे| इसके बाद एम्ब्युलन्स- मोबाईल क्लिनिक को चलाना है| उसके लिए देशभर से डॉक्टर बारी बारी से आए, यह प्रयास चल रहा है| साल में पचास हप्ते होते है| देश के अलग अलग स्थानों से एक एक हप्ते के लिए भी डॉक्टर आते है तो भी एम्ब्युलन्स साल भर चल सकती हैं| अर्थात् उसके साथ ड्रायव्हर और मेंटेनन्स का भी प्रबन्ध करना है| अभी इस दिशा में कई लोगों से बात चल रही है| और उसके पश्चात् राहत के लिए जितनी सहायता सेवा भारती के पास आती रहेगी, उतना उसका काम चलता रहेगा| यहाँ ध्यान में रखना चाहिए कि सेवा भारती धरातल तक पहुँची हुई एक स्थानीय एनजीओ है| वो मात्र जरिया बना| राहत कार्य के कार्यकर्ता आम जनता से आए और देशभर की जनता से आए; राहत सामग्री या दवाईयाँ आदि भी बाहर से आया| अत: आगे जितना आएगा उतना काम जारी रहेगा|

इसके साथ आजीविका के लिए भी कुछ काम करना है| लोगों को आजीविका फिर से शुरू करने के लिए क्या कर सकते हैं इस पर विचार हो रहा है| राजौरी में इस विषय पर भी चर्चा होगी|‌ दादाजी यह जरूर मानते हैं कि बाहर से सहायता ले कर निरन्तर नही काम कर सकते हैं| पर स्थिति की आवश्यकता देखते हुए बाहर से थोड़ी मदद तो लेनी होगी| एक शुरुवात होने पर काम आगे बढ़ सकता है|

राजौरी पहुँचने तक अच्छी धूप खिली हुई है| जगह जगह मिलिटरी के युनिटस दिखे|‌ राजौरी में राणे हेलिपॅड ऐसा बोर्ड दिखा| यह जरूर राघोबा राणे नाम के जवान के स्मरण में होगा जिसने १९४७ के युद्ध के समय राजौरी की‌ रक्षा के लिए जान दी थी| कश्मीर एक विशाल भूमि है- बलिदान की- शौर्य की और राजनीतिक नासमझी‌ की भी| खैर| राजौरी! जम्मू क्षेत्र का एक मुख्य जिला| गाँव बड़ा हैं; पर रास्ते छोटे और संकरी गलियाँ| यहाँ सेवा भारती जम्मू- कश्मीर के उपाध्यक्ष रहते हैं| उनके ही घर जाना है| यहाँ सेवा भारती की राजौरी शाखा चलती हैं हालांकि उसकी बॉडी अलग है|

सेवा भारती का प्रयास है कि एक एम्ब्युलन्स राजौरी में भी‌ चले| यहाँ के दूर दराज गाँवों में बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है| इसलिए एम्ब्युलन्स चलेगी तो लोगों को मदद मिलेगी| यहाँ पहले चरण में शिविर चलाए गए हैं| इस एम्ब्युलन्स के संचालन का दायित्व राजौरी के सेवा भारती सदस्यों ने देखना चाहिए, ऐसा दादाजी मानते हैं| इसके लिए कहाँ से फंड्स मिल सकते हैं, यह भी देखा जा रहा है|‌ जिन लोगों के घर टूटे है या नष्ट हुए हैं, उनके लिए भी कुछ फंडस चाहिए जो उन्हे घर बनाने में थोडी सहायता कर सकें| इसके लिए प्रस्ताव बनाए जा रहे हैं| आजीविका के लिए एक प्रस्ताव यह है कि ठेले या स्टॉल के साथ लोग अपना दुकान फिर से शुरू कर सकते हैं| इसलिए इन प्रस्तावों पर थोड़ा विचारमन्थन कर उन्हे सम्भाव्य सहायता करनेवाली संस्थाओं के पास भेजना है| श्रीनगर में अजित कदम की राउंड टेबल फाउंडेशन नाम की‌ एक पुणे की एनजीओ कई एम्ब्युलन्सेस चला रही हैं ऐसा सुनने में आया| गूँज भी कार्यरत है| गूँज ने कुछ दवाईयाँ सेवा भारती को दी भी है|

राजौरी में मोहनलाल जी के घर काफी बातचीत हुई और अच्छा नाश्ता भी हुआ| आगे रास्ते पर थाना मंडी से सड़क छोटी होती है| शायद श्रीनगर का मुख्य रास्ता बन्द और जाम होने से काफी छोटे वाहन यहाँ‌ से ही जा रहे हैं और इसलिए रास्ते की स्थिति थोडी बिगड़ी हुई दिख रही है| डीकेजी नाम से एक जगह है| यहाँ से दूर पहाड़ पर कुछ सफेद चमक दिखाई दे रही है| क्या यह बर्फबारी है? आगे जा कर ही पता चलेगा| वहाँ से बाफ्लियाज तक सड़क नीचे उतरती है| बाफ्लियाज से मुघल रोड शुरू हुआ| नजारा अद्भुत है| वाकई सामने चोटी पर बर्फबारी हुई है!

रास्ते में भी दादाजी इस पूरे अभियान के लिए लोगों से बात कर रहे हैं| आगे भी डॉक्टर आए इसलिए एनएमओ और अन्य डॉक्टरों से बात कर रहे हैं| दादाजी की आयु करीब सत्तर के पास है; पर वे है बहुत सक्रिय और युवा जैसे! ईमेल, लॅपटॉप और व्हॉटस अप जैसे साधनों का भी बड़ा उपयोग करते हैं| सभी स्थानों का समन्वयन वही करते हैं और बच्चों जैसी सरलता से कहते हैं, 'हम तो कुछ नही करते बीरे!' बातचीत में यदि उनसे कुछ अनावश्यक प्रश्न पूछा जाए- जैसे क्या किश्तवाड़ से हिमाचल जाने का रास्ता ठीक है या फिर बनिहाल रोड़ कब तक खुलेगा- तो वे दो टूक कहते हैं, ऐसे बेकार के सवाल मत पूछो| होगा नही होगा, उससे क्या होगा? ऐसी नोक झोक चलती रहती है| बड़ा मजा आता है| दादाजी कश्मीर को बेहद अन्दर से जानते हैं|‌ लदाख, झांस्कर समेत सभी जगह रहें‌ है| साँस लेने पर दाढी में बर्फ जमती हो ऐसे ठण्डे मौसम में भी रहे हैं| एका बात छत्तीसिंगपूरा की निकली|‌ २००१ में जब बिल क्लिंटन भारत आए थे, तब छत्तीसिंगपूरा में आतंकवादियों‌ ने ३६ सीक्खों का कत्ल किया था| दादाजी ने बताया की यह गाँव अनन्तनाग जिले में‌ है और अब भी सीक्ख परिवार यहाँ रहते हैं| पीछले बार श्रीनगर गया था तब ही पता चला था की, अनन्तनाग तो अधिकृत नाम है; स्थानीय लोगों की‌ बोली में इसे अब इस्लामाबाद कहा जाता है क्योंकि अलगाववादियों ने उसे इस्लामाबाद कहना चालू कर दिया| खैर|

पीर की गली पास आते आते नजारा और बड़ा होता गया| पीर की गली में अच्छी खासी बर्फ मिली|‌ यह दोपहर न हो कर सुबह होती तो बर्फ हाथ में लिया जा सकता था| अब इसके बाद सीधा उतराई है| शोपियाँ और पुलवामा के रास्ते श्रीनगर| रास्ते में एक बार दादाजी की कुपवाड़ा में शिविर ले रही डॉ. प्रज्ञा दिदी से बात हुई| उनको शायद कुछ कठिनाई आ रही थी| गाँव में रूकना या श्रीनगर लौटना इस पर वे विचार कर रही थी| तब दादाजी ने फैसला उन्ही पर सौंपा और कहा कि आपको जो ठीक लगता हो वह करो| दादाजी लोगों को बखूबी पढ़ते है और उन्हे काम भी देते है| कई बार सिनिअर लोगों को निर्णय दूसरे के हाथों में सौपना नही आता है| लेकिन दादाजी व्यक्ति को परख कर निर्णय उसे करने देते हैं| आवश्यक हो तो वे सिर्फ अपनी राय देते हैं|

श्रीनगर पहुँचने में शाम के पाँच बज गए| लेकिन नजारा और अन्दरूनी कश्मीर देखने के आनन्द में देर का पता नही चला| अभी दफ्तर में कुछ स्थानीय कार्यकर्ता है- जावेदजी, नज़ीरभाई और संस्था के मयूरभाई, मुरैना के सुरेंद्र त्यागी जी, फार्मसिस्ट चेतनजी और वर्मा जी भी कुपवाड़ा से पहुँच गए हैं| शायद उनका वाहन वहीं बन्द पड़ने के कारण उन्हे वापस आना पड़ा| आज रात शायद डॉक्टर लोग कुपवाड़ा से दूसरे वाहन से लौटेंगे| श्रीनगर में गाडी सर्विसिंग की दिक्कत है| वाहन पानी के चपेट में आने के कारण तीन महिनों तक सभी सर्विस सेंटर्स बूक हो चुके हैं| अब या तो उस वाहन को किसी प्रकार चालू कर जम्मू तक ले जाना पड़ेगा| खैर|

अब कार्यालय एकदम सुनसान लगता हैं| चार दिन पहले यहाँ कई डॉक्टर लोग थे; आश्रम में भी कई कार्यकर्ता ठहरे थे| लेकिन अब तो बहुत से लोग वापस जा चुके हैं| और डॉक्टर शायद दो ही है| इसलिए श्रीनगर में रेसिडन्सी रोड़ पर आश्रम में‌ शिविर कुछ दिन नही हो सका| लेकिन दूसरे डॉक्टर आते ही होंगे| अब आगे फिल्ड में जाना है| और आज राजौरी में हुई चर्चा के अनुसार कुछ प्रस्ताव भी बनाने हैं| सुरेंद्र जी ने बनाया हुआ व्हिडिओ बहुत अच्छा है












































इस वर्ष बर्फ का प्रथम दर्शन!













 



















































































































क्रमश
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com

 

No comments:

Post a Comment

आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!