राहत कार्य के धुरन्धर
क्रमश:
SEWA BHARTI J&K
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१० अक्तूबर की सुबह| आज पाम्पलेट और रिपोर्ट का काम पूरा होगा| अब पेज का डिजाईन करनेवाले व्यक्ति को वह सौंप दिया जाएगा| इच्छा हो रही है कि फिल्ड का कुछ काम किया जाए| बस आज की बात है| कल श्रीनगर जाना है| सुबह विदुषी दिदी को छोडने के दादाजी और अन्य एक दिदी के साथ स्टेशन जाना हुआ| दादाजी सबके दोस्त जैसे हैं| दोस्त के नाते प्रेम भी करते हैं और डाँटते भी है| इसी समय पता चला कि कल दोपहर जम्मू से निकले हुए डॉ. प्रज्ञा दिदी और डॉ. अर्पितजी काफी देर रात कुपवाड़ा पहुँचे| पुलवामा (जो श्रीनगर से पहले बीस किलोमीटर है) पहुँचने तक ही रात्रि के बारा बज गए थे और हिलाल भाई वहाँ उनकी प्रतिक्षा कर रहे थे| उसके बाद वे आगे गए| चलानेवाले वर्मा जी जम्मू के हैं इसलिए उन्हे कश्मीर के रास्ते ठीक पता नही हैं| फिर भी सकुशल पहुँच गए| मुघल रोड़ से जम्मू- श्रीनगर यात्रा थकान देनेवाली है| उन्हे तो जीप के बजाय एम्ब्युलन्स में जाना पड़ा| निश्चित ही काफी थकान हुई होगी| और सुबह थोड़ा विश्राम कर वे अब शिविर लेंगे| इतना ही नही; ये दोनो डॉक्टर वैसे तो दो तीन दिन पहले वापस जानेवाले थे; पर उन्होने अपनी यात्रा पाँच दिन पोस्टपोन की| शायद उसका कारण यह है कि अब सारे डॉक्टर वापस लौट चुके हैं और शिविर चालू रखने के लिए डॉक्टर होना आवश्यक है| इसलिए वे कुछ दिन और कार्य करेंगे|
सेवा भारती दफ्तर में काम करनेवाली एक दिदी से डिजाईन और प्रिंटिंग करनेवाले के बारे में पूछा| कुछ गलतफहमी से दिदी ने पेंटिंग वाला समझा और बताया कि पेंटर तो आनेवाले हैं| यह मुझे तो पता नही चला कि उन्होने कुछ और समझा है; पर दादाजी का बारिकी से ध्यान था| उन्होने तुरन्त पूछा और तब जा कर पेंटिंग के बजाय प्रिंटिंग और डिजाईन करनेवाले व्यक्ति से बात हुई| दादाजी की नजर कितनी पैनी है, इसका यह और एक प्रमाण है| उसके बाद और दूसरे प्रिंटिंग करनेवाले व्यक्ति से बात हुई और फिर रेट तय कर उसे फाईल दिखायी| उस समय भी कंप्युटर से प्रिंट निकालते समय वहाँ काम करनेवाली दिदी ने भी करेक्शन बताया| एक अर्थ में अच्छा लगा कि चलो काम और निर्दोष हो रहा है और दूसरे अर्थ में यह भी लगा कि इतने लोग इतनी बार उसे देख रहे हैं; फिर भी चीजें कैसी छूट जाती हैं| खैर|
दोपहर में एक प्रेस रिलीज पर भी थोड़ा काम किया| अब तक के राहत कार्य के बारे में प्रेस को जानकारी देनी है| अब तक सेवा भारती का मुख्य ध्यान चिकित्सा शिविरों पर ही रहा है| आनेवाले दिनों में एम्ब्युलन्स की योजना भी चालू करनी है| राहत कार्य के लिए सेवा भारती को तीन एम्ब्युलन्सेस मिली हैं| अब उसे चलाने का प्रबन्ध करना है| इसमें कई अप्रत्याशित दिक्कतें आती है और उनमें से आगे जाना होता है| जैसे एम्ब्युलन्स का पंजीयन एवम् पासिंग कराना| इसमें भी कठिनाई आयी| सरकारी बाबू रुकावट करते हैं| उसमें से मार्ग ढुँढना होता है| कभी मिठी बात कर; कभी कठोर शब्दों द्वारा या कभी झगड़ कर आगे जाना होता है| इसमें सभी कार्यकर्ता तत्पर दिखें| पासिंग कराने के बाद एम्ब्युलन्स पर फटाफट संस्था और देनेवाली संस्था के नाम के बैनर; एम्ब्युलन्स का साँपोंवाला चिह्न आदि लगाए गए|
राहत कार्य में सेवा भारती सम्भवत: सामग्री वितरण से दूर ही रही है| एक तो देने की बात भी थोड़ी निर्भर बनाती है| उसके अलावा वितरण करना सीमित होता है और लोगों की आवश्यकता काफी अधिक होती है| फिर भी कुछ विचार विमर्श के पश्चात् सोलार लाईटस की एक कंपनी को लाईटस प्रदान करने की अनुमति दी गई| पहले तो मना किया था, पर बाद में देखा गया कि लाईटस गाँवों के लिए उपयोगी होंगे| इसलिए लाईटस सेवा भारती के पास वितरण के लिए भेजे गए हैं| वे जम्मू एअरपोर्ट पर आए हैं; उन्हे दफ्तर लाना है| कल हमारी एम्ब्युलन्स के साथ वे श्रीनगर जाएँगे| जम्मू एअरपोर्ट शहर के बाहर पर अधिक दूर नही है| ट्रॅफिक की वजह से अधिक समय लगा| नि:सन्देह जम्मू पूरे जम्मू- कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा और आधुनिक शहर है| जाते समय रोड़ पर आर एस पूरा की दिशा दर्शानेवाला बोर्ड दिखा| साईकल मास्टर अर्थात् रविजी का हुनर यहाँ पर भी देखने को मिला| ऐसा लगा जैसे कार्गोवाले लोग उनके दोस्त हो! जब भी इन्सान कई तरह से कार्य करता है; तो उसके पास हर स्थिति में खुद को ढालने का हुनर आ जाता है|
आने के बाद बिना रूके बाहर निकलना हुआ| रियासी जिले के एक गाँव में कुछ लोगों को राशन और फूड पॅकेटस आदि सामग्री पहुँचानी है| यह गाँव वैष्णोदेवी का गाँव अर्थात् कटरा से थोड़ा आगे है| दोपहर को दफ्तर से निकलते थोड़ी देर हो गई है| जैसे ही उधमपूर रोड़ पर आए, तवी नदी के शान्त प्रवाह का दर्शन हुआ| कुछ ही दिन पहले यही तवी तबाहकारी थी| और आपदा के निशाँ आगे रोड़ पर भी दिखाई पड़े| जैसे ही जम्मू से थोड़ा आगे पहुँचे, रोड़ चौडा और टू बाय टू हुआ| पर ये क्या? इस रोड़ पर ट्रकों की काफी लम्बी कतार खड़ी हुई है| करीब दो- तीन किलोमीटर लम्बी यह कतार! जम्मू श्रीनगर व्हाया बनिहाल रास्ता कुछ जगह पर बन्द और जाम होने की वजह से ये जरूर काफी दिनों से यहाँ रुके हुए हैं| इन ट्रकवालों का हाल बेहाल हैं| पता नही कब रोड़ इनके लिए खुलेगा| रामसू और रामबन के पास अभी भी रास्ता थोडा टूटा हुआ है| तब तक इनकी मुसीबतों का अन्त नही| ट्रकवालों के साथ बड़ा सामान भेजनेवाले दुकानदार और व्यापारियों की मुसीबतों का भी अन्त नही है| जिन लोगों ने चुंगी और बीमा भरने से बचने के लिए लोड को कम लिखा था, अब उनका बुरा हाल है| क्यों कि उन्होने जितना लोड लिखा था, उसी का ही उनको कुछ मुआवजा मिलेगा| उस बचत के चक्कर में उनको यहाँ भारी नुकसान उठाना पड़ेगा| खैर|
त्रिकुटा पर्वत के तले बंसा हुआ कटरा जम्मू से करीब ४२ किलोमीटर दूर है| दूर से ही त्रिकुटा पर्वत दिखने लगते हैं| कटरा से कुछ पहले तक रास्ता काफी अच्छा है; पर कटरा के पास खराब है| कटरा जम्मू से वैसे पास हो कर भी रियासी जिले में आता है| जम्मू- कश्मीर में जिलें मात्र बीस- पच्चीस किलोमीटर में बदलते हैं| जैसे श्रीनगर का बड़गाम एअरपोर्ट| वह अलग जिला है| ऐसे यह रियासी जिला| कटरा में संस्था का एक छात्रावास भी है- दिशा हॉस्टेल| वहाँ करीब पैंतीस बच्चे हैं| उनका स्कूल कटरा में है| हॉस्टेल में भी कुछ स्कूल बॅग्ज देनी है| यह हॉस्टेल सेवा भारती ने डोनेशन की सहायता से खड़ा किया और चलाया है| सेवा इंटरनॅशनल और अन्य संस्थाओं ने इसके लिए डोनेशन दिया था| ये स्कूल बॅग्ज भी यूथ फॉर सेवा से आए हैं| पीछले करीब पाँच सालों से यह छात्रावास चलता है|
इस छात्रावास में कश्मीर के विभिन्न हिस्सों से छात्र आए हैं| कुछ छात्र आतंकवाद के शिकार हुए परिवारों से हैं; कुछ अनाथ हैं; कुछ दुर्गम और सुविधाओं से वंचित स्थानों से हैं| जम्मू कश्मीर के सभी मुख्य सम्भागों से वे आते हैं- जम्मू क्षेत्र में डोडा, किश्तवाड़, पूँछ, कश्मीर के गांदरबल, अनंतनाग जैसे इलाकें और लदाख से भी हैं| दसवी तक के छात्र हैं| छात्राओं का छात्रावास अलग जम्मू शहर में है| छात्रों की सुविधा के लिए कुछ लोग भी यहाँ रहते हैं|
जब वहाँ पहुँचे तब जैसे त्रिकुटा पर्वत के तले बच्चे मजे से खेल रहे हैं| छात्रावास वाकई देखने जैसा है| अत्यंत आधुनिक; गहरी सोच से बनाया हुआ और एकदम सुविधासम्पन्न| छात्रों के लिए मॉडर्न ढंग की डॉर्मिटरी; साफसुथरे कमरें; हॉल, कम्प्यूटर रूम, किचन, अतिथियों के लिए अलग से गेस्ट रूम्स तो हैं ही; साथ में हर जगह अच्छे विचार और अच्छे चित्र भी लगाएँ गए है| मुख्य द्वार पर विवेकानन्द जी का फोटो और सन्देश है| इतना ही नही; बच्चों को खेलने के लिए हराभरा ग्राउंड और वाचनालय भी है| ड्रेनेज वॉटर को रिसाईकल करने की प्रणालि भी है| बच्चों के चेहरे भी बहुत निष्पाप; आनन्द से भरे हुए! कश्मीर की समृद्ध संस्कृति को दर्शानेवाले सब अनुठे चेहरें! यहाँ दो- तीन लोग रहते हैं| हिमाचल के राजकुमारजी सपरिवार यहाँ रहते हैं| लेकिन हर काम में बच्चों का भी सहभाग होता है| नौंवी और दसवी के छात्रों की समितियाँ हैं जो स्वच्छता, रसोई, कम्प्युटर उपकरण, पढ़ाई जैसे दायित्व देखती है!
यह सब देख कर मुँह से निकल गया की, वैष्णोदेवी के बजाय वास्तविक तीर्थस्थान तो यहाँ है! पर दादाजी को this against that के बजाय this and that अच्छा लगता है| उन्होने कहा अपनी अपनी आस्था होती है| यह छात्रावास देखने के चक्कर में और बच्चों से थोडी दोस्ती करने में यहीं अन्धेरा हो गया| इसलिए आगे गाँव में दी जानेवाली सामग्री अब यहाँ रखनी पड़ेगी| गाँव के कार्यकर्ता आ कर उसे ले जाएँगे| तब और एक बात पता चली कि श्रीनगर में एकल विद्यालय में टीचर होनेवाले इरफान भाई इसी छात्रावास के प्रॉडक्ट है! और साईकल मास्टर रवि जी भी यहीं रहते थे! दादाजी ने बताया कि रवि जी का परिवार भी आतंकवाद से पीडित है| रवि जी यहीं आँठवी तक पढे| लेकिन तब उनमें पढ़ाई के बजाय प्रत्यक्ष किए जानेवाले कामों में ज्यादा रुचि थी| जब उनका पढ़ाई में ध्यान लगा ही नही तब कठिन फैसला करना पड़ा| लेकिन अब उसके कुछ सालों बाद यह फैसला ही सही साबित हुआ दिख रहा है| पढाई में रुके रहने के बजाय वे कितने सारे काम कर लेते हैं! और डिस्टन्स से डिग्री भी ले सकते हैं| मन ही मन विचार आया, शायद हुनर को बढावा देनेवाली आमीर खान की लेह स्थित स्कूल भी ऐसी ही होगी!
जैसे शाम रात बन गईं, वैष्णो देवी का त्रिकुटा पर्वत झगमगा उठा| कटरा से ही चौदा किलोमीटर का रास्ता मन्दीर तक उपर उठता है| अन्धेरे में भी वह प्रकाशमान है| यह छात्रावास कटरा गाँव से करीब डेढ किलोमीटर दूर करीब जंगल में है| यहाँ से जाते हुए एक सन्तोष का अनुभव हो रहा है|
रास्ते में दादाजी से कईं बाते हुईं| जब अगस्त २०१० के पहले हप्ते में लेह में क्लाउडबर्स्ट हुआ था, तब भी सेवा भारती ने राहत कार्य किया था| उसके बारे में उन्होने बताया| कई स्कूल्स के लिए सेवा भारती ने मदद की| वहाँ उस समय कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण चल रहा था, वे तुरन्त आपदा में सहायता करने के लिए पहुँचे| अचानक से पानी आने से काफी तबाही हुई थी| कार्यकर्ताओं के जरिए सहायता पहुँचाई गई| ये कार्यकर्ता जहाँ से आते है उस एकल विद्यालय परियोजना का काम लोगों को बहुत जचा है| कश्मीर की आपदा में कई टिचरों ने जान पर खेल कर कई लोगों की जान बचायी| बड़ी मदद पहुँचाई| इसके बाद कई गाँवों में लोग ऐसे विद्यालय- अनौपचारिक शिक्षा क्लासेस शुरू कराने की माँग कर रहे हैं और कई कार्यकर्ता भी इसमें टीचर बनने के लिए आगे आए हैं| इसलिए पीछले दिनों सेवा भारती से नए एकल विद्यालय शुरू करने हेतु एकल विद्यालय फाउंडेशन को प्रस्ताव भी भेजा गया है| एकल विद्यालय के पीछे सेवा भारती का बच्चों को सकारात्मक और रचनात्मक वातावरण उपलब्ध कराने का प्रयास है|
एक जगह डोमेल स्थान हैं| यहाँ कटरा से आनेवाला रास्ता उधमपूर जम्मू हायवे को मिलता है| दादाजी से पूछा कि क्या यह वही डोमेल है जहाँ १९४७ में पाकिस्तानी फौज ने हमला किया था? तब दादाजी ने स्पष्ट किया कि डोमेल यहाँ बहुत हैं और डोमेल का अर्थ होता है दो रास्तों का मिलना- जंक्शन! बातों बातों में दादाजी ने बताया कि आज सारे देश में सरदारों के खिलाफ जोक्स का जो प्रचलन बना हुआ है; गहराई से देखें तो इसके पीछे अंग्रेजों का हाथ है| सरदार बहुत शक्तिशाली और बहादूर समाज हैं| यदि वे और प्रबल होते, तो अंग्रेजों को मुसीबत होती| इसलिए उनका अपमान हो; वे अपनी क्षमता परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भूल जाएँ इसलिए अंग्रेजों ने ऐसी मूलत: अपमानजनक बातें फैलायी! बातें कितनी गहरी होती है!
सेवा भारती दफ्तर में पहुँचने तक रात के साढ़े नौ बज चुके हैं| रविजी द्वारा बनाया गया बेहतरिन भोजन उनके ही साथ एंजॉय किया| जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर के रंजनजी से भी परिचय हुआ| इसी स्टडी सेंटर के निदेशक श्री. अरुणकुमार जी द्वारा सेवा भारती के कार्य की जानकारी मिली और यहाँ कार्य करने का अवसर मिला| सुबह जल्दी उठ कर श्रीनगर के लिए निकलना है|
आधुनिक छात्रावास! |
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जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .
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