Monday, November 10, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव ६

आपदा के विभिन्न पहलू

९ अक्तूबर का दिन| कल रात हुई बातचीत अब भी ताजा है| दादाजी ने कल की मीटिंग में यह भी कहा था कि आज सुबह एक जगह जाना है| जम्मू से  दस किलोमीटर दूर एक कोलोनी है| वहाँ संस्था के बीस स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं| सुबह पहला काम वहाँ जा कर वहाँ का काम देखना हैं| अब देखा जाए तो यह राहत कार्य का हिस्सा नही कहा जा सकता| यह बात मन में जरूर आयी| पर सब लोग वहाँ जा रहे हैं; इसलिए जाना हुआ| जाने से पहले डॉ. प्रज्ञा दिदी ने सुबह जल्दी उठ कर सबके लिए परोठे बनाए और ब्रेड जाम भी लाए| उन्होने उत्तराखण्ड में भी कुछ महिने काम किया था| 

जहाँ हम जा रहे हैं वह कोलोनी उधमपूर हायवे के पास जागती गाँव में बसी हुई है| वास्तव में यह कश्मिरी पण्डितों के पुनर्वास की मिनि टाउनशिप है| जब १९८९ में कश्मीर में हालात बिगड़े और कश्मिरी पण्डितों को वादी से बड़ी संख्या में निकलना पड़ा, तब वे जम्मू, दिल्ली‌ और अन्य जगहों पर जाने के लिए बाध्य हुए| उनके पुनर्वास हेतु कुछ समय पहले यह कोलोनी‌ बनायी गई| आज यहाँ कश्मिरी पण्डितों‌ के हजार से अधिक घर होंगे| रास्ते में कल हुई चर्चा आगे बढ रही है|

दादाजी ने बताया कि, १९८९ वर्ष से वादी में आतंक का साया मँडराने लगा| अब तक चैनो अमन से बसी वादी में भूचाल आया| कश्मिरी पण्डितों को वहाँ से हटाया गया| सदियों से साथ रहनेवाले लोग एक दूसरे से दूर जाने के लिए मजबूर हुए| यहाँ उन्होने एक बात कही कि कश्मिरी पण्डित और कश्मिरी हिन्दु एक ही है| क्यों कि कश्मीर में अधिकतर पण्डित ही रहते थे| और समाज के अन्य तबकें जैसे श्रमजिवी हो; चरवाहे हो; घूमन्तू समुदाय हो; उन्हे इन पण्डितों ने कभी अपने में नही गिना| यह वही जाति केन्द्रित कालबाह्य सोच का उदाहरण है| कश्मिरी पण्डित कश्मीर का एलिट क्लास बनते गए और धीरे धीरे कश्मीर में मुसलमानों की संख्या बढ़ गई| १९८९ वर्ष आते आते इन मुसलमानों की अलग पहचान बन गई थी| इसके कई कारण थे| पाकिस्तान का उकसावा, कश्मिरी राजनीतिक पार्टियों के षडयंत्र, केंद्र सरकार की डिपेन्डन्स और लाचारी बढ़ानेवाली नीतियाँ ऐसे कारण तो थे ही| उसके साथ यह स्थिति थी कि कश्मिरी पण्डित एक तरह से मुख्य कश्मिरी समाज (जो काफी हद तक मुसलमान बना था) से अलग- थलग पड़ गए थे| वे एलिट होने के कारण अच्छी स्थिति में थे; अन्य तबकों के शोषण का भी कारण बन रहे थे| शिक्षा, आधुनिक सोच, संसाधनों पर नियंत्रण आदि अनुकूलताओं के कारण वे अधिक समृद्ध हो रहे थे और अन्य समाज उनकी‌ तुलना में विकास की‌ राह पर पीछड़ा हुआ था| इस पीछड़ेपन को सकारात्मक तथा रचनात्मक तरिके से दूर करने के प्रयास नही हुए| इससे असन्तोष बढता गया| जैसा हर समाज के इतिहास में हम देखते हैं एलिट क्लास कई तरह से शोषण का कारण बनता है| यहाँ भी‌ यही हाल था| कश्मिरी पण्डित पढे लिखे होने के कारण गाँवों के मुसलमानों के खत पढ़ा करते थे; लेकिन साथ में उनके पूरे परिवार से काम करवाते थे| एक तरह से विकास के टापू जैसी स्थिति पैदा हुई और रचनात्मक आन्दोलन के अभाव में असन्तोष का बवँडर खडा हुआ| लम्बे समय से शोषण का अनुभव किए समाज ने उसी अस्त्र का प्रयोग इन पण्डितों पर भी किया| वे एलिट थे; पर संख्या में काफी कम थे| अत: उनके लिए धीरे धीरे मुसीबतें बढी और फिर वहाँ से उनका पलायन हुआ|

इस बात पर चर्चा करते हुए संस्था की‌ एक वरिष्ठ दिदी‌ द्वारा बतायी गई बात याद आती है| वे कश्मिरी पण्डित हैं और उनके परिवार को भी कश्मीर के गाँवों से मजबूरन बाहर निकलना पड़ा| उन्होने अपने बचपन के अनुभव बताए| तब सब अमन और चैन था| लोग स्वस्थ थे| फिर १९८९ के बाद उन्हे मायग्रेट होना पड़ा| फिर एक बार उनका करीब १९९४ के समय वादी में जाना हुआ| बचपन में जिन गाँवों मे उनके प्रिय जन थे; वे अब नही दिखें| उनके घर जैसे खण्डहर बन गए थे| गांदरबल जिले के खीर भवानी मन्दीर में उनका जाना हुआ| उनके बचपन में उस मन्दीर में पुजारी रहते थे; मुसलमान दुकानदार प्रसाद और दुध बेचते थे| लेकिन इस बार वे जब वहाँ गई तो मन्दीर बिलकुल सुनसान था| सिर्फ कुछ जवान मन्दीर की रक्षा के लिए मौजूद थे| खीर भवानी मन्दीर में दुध अर्पण करने का रिवाज है; पर वे दुध भी नही ले जा सकी थी| उनसे रहा न गया और वे बुरी तरह रो पड़ी| तब वहाँ के एक जवान ने उन्हे उनके कैंटिन से दुध ला कर दिया| ये दिदी कहती है कि १९८९ के बाद जो हुआ, वह एक भीषण आपदा थी| सब कुछ तहस नहस हुआ| पर वे उसमें सकारात्मक बातें भी देखती हैं| वे कहती हैं, एक तरह से इसी दुर्घटना के कारण हम लोग बाहर के जगत् में आए; गाँव की सीमित सोच से उपर उठे; जम्मू, दिल्ली और अन्य स्थानों पर हम धीरे धीरे आगे बढ़े| नए जमाने की सोच हमें मिली| अच्छी शिक्षा और रोजगार के अच्छे अवसर मिले| हमारे कई लोग विदेश में भी गए| यह सब उस संकीर्ण अवसरों के जगत् में सम्भव नही था| आज हमारे लोगों के पास बड़ी प्रॉपर्टीज हैं; इतना कुछ शायद वहाँ रहते हुए कभी होने की सम्भावना न थी| खैर|

कोलोनी में स्वयं सहायता समूह का एक कार्यालय और बिक्री का दुकान है| नया नया बना है| यहाँ की दिदीयाँ संस्था की‌ सहायता से हँडिक्राफ्ट, सिलाई, ब्युटी पार्लर जैसे विषयों में‌ कार्यरत हैं| सुविधाओं के लिए अभी सरकार से थोडा झगडना पड़ता है| फिर भी ये महिलाएँ पुराने जख्मों को भुलाते हुए अब नए घर बनाने की राह पर काफी आगे निकल चुकी हैं| कुछ घर जानेवाले कार्यकर्ताओं ने यहाँ शॉपिंग भी की| थोडी देर वहाँ रूक कर सब लोग वापस लौट भी गए| आते समय भी अच्छी बातचीत हुई|‌ दादाजी मुसलमान व्यक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं| वे कहते हैं, कि मुसलमान समाज में एक समाज के तौर पर कई सारे गुण हैं| समाज के नाते वे सब हमेशा एक साथ होते हैं| अपने मजहब के प्रति उनकी श्रद्धा और दृढ विश्वास बड़ा होता है; वे हमेशा कलेक्टिव्ह होते हैं| उनमें अन्तर्गत प्रतिरोध नही के बराबर होता है| मजहब के लिए काम करनेवाले से कोई वैचारिक विवाद नही‌ करता है| एकता की‌ ताकत उस समाज की बुनियाद है| दादाजी के बातों से लगता है कि एक ही चीज में कितने सारे सकारात्मक पहलू देखे जा सकते हैं, यह उनसे सीखना चाहिए|

दोपहर में दवाईयों की सामग्री एम्ब्युलन्स में रखने का काम हुआ| अब डॉ. प्रज्ञा दिदी और डॉ. अर्पित कश्मीर जा रहे हैं| उन्हे निकलने तक दोपहर के करीब दो बज चुके हैं और आज रात उन्हे कुपवाड़ा जाना है| कुपवाड़ा जिला श्रीनगर से भी १०० किलोमीटर उत्तर में है| पुलवामा से शायद हिलाल भाई उन्हे जॉईन होंगे और रास्ता बताएँगे| . . अब रिपोर्ट और पाम्पलेट लगभग तैयार हैं| आज प्रिंटर और पेज डिजाईनर से बात करनी‌ है| जल्द ही यह बन जाएगा| लेकिन यह 'लगभग' शब्द बड़ा जटिल है! जैसे हम कोई फाईल कम्प्युटर पर कॉपी करते हैं; ९९% कॉपी हो जाने पर भी वह वास्तव में कॉपी नही हुई होती है! या किसी खिलाडी शतक के लगभग करीब पहुँचता है; फिर भी शतक से दूर रह जाता है| करीब यही हाल आज भी चल रहा है| टेक्स्ट तो तैयार है; लेकिन फोटो अभी और डालने है| अब दिक्कत यह है कि ये फोटोज इकठ्ठा उपलब्ध नही है| और हो भी‌ नही सकते| जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के अलग अलग जिलों में काफी कुछ काम हुआ है| उसकी जानकारी अच्छे तरिके से ही रखी गई हैं; पर वह एक जगह पर नही है| इसलिए उसे इकठ्ठा करने में और समय लग रहा है|‌ और मुझे यहाँ आ कर चार दिन भी नही हुए हैं! वाकई, लगता तो नही, पर आ कर अभी चार दिन होने हैं| स्वाभाविकत: मुझे कई लोगों से जानकारी जुटानी होगी| जिन्होने पहले से काम जाना है, उनके सुझाव ले कर रिपोर्ट और पाम्पलेट बनाना है| इसी में आज का दिन भी जाएगा| हालांकी अब दोनो लगभग फायनल हैं और अब प्रिंटर/ डिजाईनर से बात होगी| संस्था ने अब तक क्या काम किया यह संस्था से जुड़े लोगों तक पहुँचाना है|

दोपहर में विदुषी दिदी से काफी बातचीत हुई| अर्थात् वे ही अधिकतर बातें कह रही थी| इंदौर से आते समय उन्होने वहाँ के कमिशनर को एक लेटर दिया जिसमें उन्होने कहा था कि अपनी जिम्मेदारी पर मै कश्मीर राहत कार्य के लिए जा रही हुँ| अकेली वे चली आयी| सेवा भारती का सम्पर्क कहीं से मिल गया था| आने के बाद दादाजी के मार्गदर्शन में उन्होने अकाउंटस का काम देखा| वे लॉयर भी हैं| उनके अनुभव उन्होने शेअर किए| उनके जीवन की‌ सबसे बड़ी डाँट उन्हे दादाजी से ही मिली| लेकिन उन्होने उसे भी‌ एँजॉय किया| उससे काफी सीखने का प्रयास किया| वे इंदौर में रिश्तेदारों के साथ रहती हैं| लौटने के बाद वापस आने की‌ इच्छा उन्होने बतायी| और ताजा समाचार यह है कि नवम्बर के पहले हप्ते में वे वापस सेवा भारती आयी‌ है- अब की बार लम्बे समय रूकने के लिए| ऐसे ऐसे अनुठे लोग इस यात्रा में हर समय मिलते रहें|

. . उसी ड्राफ्ट पर फिर से काम करना काफी कठिन लग रहा है| कई बार दादाजी जब लिखा हुआ काटने के लिए कहते तो कुछ पल गुस्सा भी आता है; पर थोड़ी ही‌ देर में उनकी बात पल्ले पड़ती है| चाहे रिपोर्ट छोटा भी क्यों न हो, उसमें सभी बाते आनी चाहिए, यह उनकी सोच है| कई लोग जो बारिकी से काम करते है वो ऐसा ही सोचते हैं| छोटे काम को भी‌ तराशते हैं;  निखारते हैं| जैसे जापानी लोग दो पन्ने के समझौते को बनाने के लिए कई दिन लगा देते हैं या कई मनोवैज्ञानिक छोटी सी घटना का लम्बा विश्लेषण कर अर्थपूर्ण सार निचोड़ लेते हैं. . .

शाम को रोहितजी से मिलना हुआ| रोहितजी‌ कश्मीर के हैं और अभी जम्मू में जॉब करते हैं| वे भी कश्मिरी पण्डित हैं| श्रीनगर में हुए काम के समय से उनका परिचय हुआ और अब तो अच्छी‌ दोस्ती भी हुई|‌ वे कहते हैं कि अब वादी में हालात बदल रहे हैं; श्रीनगर में सभी द्वारा सहजता से काम किया जाना सम्भव हुआ है यह भी इस बात को दर्शाता है| कश्मीर के गाँवों में भी उन्हे एक एक्सेप्टन्स का अनुभव हुआ| वहाँ उन्होने चिकित्सा शिविर में भाषान्तर करने का भी कार्य किया था|

उनके साथ जम्मू की सड़कों पर चलते समय जगह जगह आर्मी के जवान दिख रहे हैं| पीछले कुछ दिनों से जम्मू से सटी‌ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर फायरिंग हो रही है| एक सड़क पर आर्मी के ट्रक्स का बड़ा काफ़िला जा रहा है| उनसे पूछा तो यह उनके लिए भी नया दृश्य हैं| यह काफ़िला जम्मू से पश्चिम की‌ तरफ जा रहा हैं. . .  सेना के प्रति गौरव का अनुभव हुआ|

रोहित जी रिपोर्ट और पाम्पलेट बनाने में सहायता कर रहे हैं| उनका कम्प्युटर से जुड़ा जॉब करते हुए वे कुछ समय इसके लिए दे रहे हैं| अब प्रिंटर और डिजाईनिंग के लिए भी वे सहायता करेंगे| उनके कहने में आ रहा है कि यदी एक बाढ़ के लिए सहायता करने के लितने हाथ सामने आते हैं; तो कश्मीर के हालात कितनी बड़ी समस्या है! उन्होने कहा कि ये उग्रवादी और चरमपन्थी लोग बिलकुल डरपोक हैं; यदि थोड़े से लोग भी खड़े हो कर सामने आएँगे, तो वे ठण्डे पड़ जाएँगे| वास्तव में हिंसा या आवेश अन्दरूनी डर को दर्शाता है| जो भीतर से असुरक्षित होता है, उसे ही बाहरी आक्रमण में अधिक रूचि होती है| खैर|

कहते हैं कभी कभी जो होता है अच्छे के लिए ही होता है| शायद इस आपदा में देशवासीयों ने जो सहायता की और मिलेटरी ने जो मदद दी, उससे वहाँ के लोगों का कुछ मन परिवर्तन हो . . . कुछ ऐसा ही एक कार्यकर्ता ने भी कहा| उन्होने कहा कि जेलम नदी में जितने भी अवैध निर्माण किए गए थे, नदी‌ को दबा कर जहाँ अतिक्रमण किया था, नदी ने ठीक ऐसे अतिक्रमण को साफ कर दिया! कभी‌ कभी बुराई से भी अच्छाई निकलती है|

स्वयं सहायता समूह का केन्द्र































सीमा सड़क संगठन. . . राहत कार्य के जीवनदूत . . .



























क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com

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