पहला
अर्धशतक
साईकिल!
एक
सामान्य सी चीज!
२००३
में जीवन से साईकिल विदा हो
गई| कालेज
में पढ़ते समय कुछ दिनों तक
साईकिल का प्रयोग किया|
लेकिन
बड़े शहर की भीड़-
भाड़
में साईकिल नही चला पाया और
२००३ में साईकिल छूट गई|
लेकिन
उसी जीवन ने फिर एक बार साईकिल
से मिलवाया-
२०१३
में! और
दस सालों की यह गैप काफी कारगर
रही| यदि
यह गैप न होती,
तो
शायद साईकिल से इतना कुछ किया
जा सकता है,
उसका
इतना आनन्द लिया जा सकता है,
यह
भी अनुभव में नही आता|
२०१३
में साईकिल लेते समय उद्देश्य
था कि इससे घूमा जाए,
ट्रेकिंग
की जाए, स्वास्थ्य
के साथ पर्यटन भी हो|
इंटरनेट
पर मिले कई साईकिलबाजों ने
इसके लिए प्रेरणा दी थी|
इस
प्रकार दोबारा साईकिल जीवन
में आयी| और
साईकिल के साथ धीरे धीरे जीवन
की वह पर्त उघड़ गई जो आम तौर
पर बहुत कम जानी थी|
प्रस्तुत
है साईकिल के साथ हुई दोस्ती
की दास्ताँ.
. .
जुलाई
२०१३ में साईकिल ली|
आज
यह साईकिल मुझे लगभग बच्चों
की साईकिल लगती है!
५५००
रूपए की क्रॉस कंपनी की बाईक|
गेअर
की सबसे सस्ती साईकिल|
सामने
के तीन और पीछे के छह गेअर्स|
लेते
समय दुकान में जब चलायी,
तब
पहले प्रयास में सन्तुलन बनाना
कठिन गया|
लेकिन
चूँकि दस साल की गैप होने पर
भी अतीत में कम से कम सात-
आंठ
साल (स्कूल
और कॉलेज के दिनों में)
साईकिल
चलायी हुई होने के कारण तुरन्त
चला पाया| अब
यह देखना है कि कितनी दूरी पार
कर सकता हूँ,
कहाँ
तक चला सकता हूँ|
इसलिए
पहले दिन थोड़ी ही चलायी|
दुकान
से घर तक और घर के आस-
पास.
फिर
दो दिनों के बाद दस किलोमीटर
चला पाया|
हौसला
बढ़ा| फिर
दो दिनों के बाद पच्चीस किलोमीटर
किए| पैर
थोड़े थक गए,
लौटते
समय गति कम हुई|
फिर
भी हौसला बहुत बढ़ा|
पच्चीस
के बाद चालिस किलोमीटर किए|
जाते
समय तो कुछ भी कठिनाई नही आयी,
लेकिन
लौटते समय आखरी दस किलोमीटर
बड़े कठिन लगे|
बार
बार रूकना पड़ा|
जाते
समय तो सवा घण्टा लगा था;
आते
समय दो- सवा
दो घण्टे लगे|
लेकिन
बड़ा मज़ा आया-
धीमी
गति से सड़क से जाना;
पेड-
पौधे
करीब से देखना;
खेतों
के तरफ देखते हुए आगे जाना.
. .
अब
धीरे धीरे एहसास हो रहा है कि
साईकिल चलाना क्या है|
इन
दो- तीन
राईडस में ही अतीत में एक बार
में कभी भी जितनी नही चलायी
थी, उससे
अधिक साईकिल चलायी|
स्कूल-
कॉलेज
के दिनों में कभी भी बीस किलोमीटर
से अधिक साईकिल नही चलायी थी|
लेकिन
अब चला पाया!
क्यों
कि अब आनन्द के लिए चला रहा
हूँ| उससे
बहुत फर्क पड़ता है|
आप
यदि दफ्तर जा रहे हो तो आपके
चलने जो ढंग होगा,
वह
मॉर्निंग वॉक के ढंग से अलग
होगा| अभी
मै जिस तरह एंजॉय कर रहा हूँ,
उसे
वे लोग नही एंजॉय कर सकेंगे
जो काम के लिए साईकिल चला रहे
हैं| शायद
बीच में दस साल का गैप न होता,
तो
मै भी कभी यह देख नही पाता|
खैर|
चालीस
किलोमीटर जाने के बाद अगला
लक्ष्य है पचास किलोमीटर से
उपर चलाना|
पहला
अर्धशतक! इसलिए
योजना बनायी|
घर
से लगभग बत्तीस किलोमीटर दूरी
पर गोदावरी नदी है|
इससे
कुल मिलाकर चौसठ किलोमीटर हो
जाएंगे| मजा
आएगा| और
क्षमता का एहसास भी होगा|
योजना
के अनुसार सुबह सात बजे निकला|
२०
जुलाई २०१३!
बारीश
का मौसम है और थोड़ी बूँदाबाँदी
भी हो रही है|
इसलिए
रेन कोट पहन कर निकला|
लेकिन
उससे जबर्दस्त पसीना आया|
एकदम
से थकान भी होने लगी|
जैसे
तैसे गाँव के बाहर निकला और
एक होटल पे चाय नही थी पर काफी
मिल गई| बारीश
तो रूक गई है|
अब
रेन कोट निकाल पर केरिअर पे
लगा दिया| यह
साधारण सी गेअरवाली साईकिल
होने के कारण ही इसमें केरिअर
था| अन्यथा
और एडव्हान्स्ड गेअर साईकिलों
में केरिअर नही आता है|
जैसे
ही आगे निकला,
ताजगी
आ गयी| थकान
कम हो गई| बारीश
भी रूकी रही और आगे बढ़ता गया|
रास्ते
में लोग गेअर की साईकिल देख
कर चौंक रहे है|
बच्चे
तो घूर घूर के देखते हैं!
अब
आसानी से पैर चल रहे हैं|
ऐसा
लग रहा है मानो यह टेस्ट क्रिकेट
की बल्लेबाजी जैसा है|
पहले
घण्टे में गेन्द नयी होती है;
स्विंग
होती है; घूमती
है| उसके
बाद धीरे धीरे बल्लेबाजी करना
आसान होता है|
इस
प्रकार अब साईकिल चलाना सहज
हुआ जा रहा है|
शायद
नीन्द के कारण पैर और शरीर कड़ा
था; जो
अब हलका हो रहा है|
इसलिए
कठिनाई नही हो रही है|
जल्द
ही आगे बढ़ता गया|
एक
होटल में नाश्ते के लिए रूका|
किसी
के मोबाईल पर रिंग टोन में
गाना बजा-
होशवालों
को खबर क्या.
. . एकदम
से माहौल ही बन गया|
आगे
निकलने पर भी वही गाना जेहन
में चलता रहा|
कम
भीड़ वाली सड़क पर साईकिल चलाने
का आनन्द और ही है!
कहते
है चलनेवालों को मन्जिल निश्चित
ही मिलती है;
बस
चलते रहना जरूरी है|
जल्द
ही नदी किनारे पर पहुँच गया|
थोड़ी
देर वहाँ रूका और मूडा|
वहा
रेत में से सोना ढूँढनेवाले
लड़के मिलें|
उन्हे
अचरज हुआ-
बत्तीस
किलोमीटर साईकिल पर?
लौटते
समय शुरू में दिक्कत नही हुई|
धीरे
धीरे आगे बढ़ता गया|
जल्द
ही अर्धशतक पूरा हो गया!
पहला
अर्धशतक! गति
काफी कम है और अब तो और भी कम
होगी| लेकिन
फिर भी बड़ा आनन्द आ रहा है|
आखरी
के पन्द्रह किलोमीटर बहुत
थकानेवाले लगे|
कब
घर आ जाए, यही
भाव मन में आ रहा है|
अन्तिम
दस किलोमीटर में भी बहुत रूकना
पड़ा| अन्त
में घर पहूँच गया और ६४ किलोमीटर
की यात्रा पूरी हुई!
पहला
अर्धशतक पूरा हुआ|
पैर
बिल्कुल भारी हो गए है|
लंगडे
जैसा चल रहा हूँ|
शायद
यह पहली बड़ी राईड है,
इसलिए
शरीर उसका आदि हो रहा होगा|
इसके
बाद ऐसी तकलीफ नही आएगी|
६४
किलोमीटर!
साढ़े
पाँच घण्टे जरूर लगे;
क्यों
कि अभी मै बड़ी राईड के लिए तैयार
हो रहा हूँ|
इसलिए
गति कम होना स्वाभाविक है|
लेकिन
साढ़े पाँच घण्टे और ६४ किलोमीटर
तक साईकिल चला सकता हूँ,
यह
विश्वास मिल गया है|
इस
हिसाब से एक दिन में तो शतक भी
किया जा सकता है|
देखते
हैं|
|
गोदावरी नदी |
३२
किमी दूरी में मामुली चढाई-
उतराई|
लेकिन
उस समय
मामुली चढाई भी बड़ी
लगी|
|
ये तो शुरुआत है |
अगला
भाग: दोस्ती साईकिल से २:
पहला
शतक!
Good.... Keep it up...
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज जी और शर्मा जी!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। जारी रखिये।
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