Wednesday, November 11, 2015

दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक

पहला अर्धशतक

साईकिल! एक सामान्य सी चीज! २००३ में जीवन से साईकिल विदा हो गई| कालेज में पढ़ते समय कुछ दिनों तक साईकिल का प्रयोग किया| लेकिन बड़े शहर की भीड़- भाड़ में साईकिल नही चला पाया और २००३ में साईकिल छूट गई| लेकिन उसी जीवन ने फिर एक बार साईकिल से मिलवाया- २०१३ में! और दस सालों की यह गैप काफी कारगर रही| यदि यह गैप न होती, तो शायद साईकिल से इतना कुछ किया जा सकता है, उसका इतना आनन्द लिया जा सकता है, यह भी अनुभव में नही आता| २०१३ में‌ साईकिल लेते समय उद्देश्य था कि इससे घूमा जाए, ट्रेकिंग की जाए, स्वास्थ्य के साथ पर्यटन भी हो| इंटरनेट पर मिले कई साईकिलबाजों ने इसके लिए प्रेरणा दी थी| इस प्रकार दोबारा साईकिल जीवन में आयी| और साईकिल के साथ धीरे धीरे जीवन की वह पर्त उघड़ गई जो आम तौर पर बहुत कम जानी थी| प्रस्तुत है साईकिल के साथ हुई दोस्ती की दास्ताँ. . .

जुलाई २०१३ में साईकिल ली| आज यह साईकिल मुझे लगभग बच्चों की साईकिल लगती है! ५५०० रूपए की क्रॉस कंपनी की बाईक| गेअर की सबसे सस्ती साईकिल| सामने के तीन और पीछे के छह गेअर्स| लेते समय दुकान में जब चलायी, तब पहले प्रयास में सन्तुलन बनाना कठिन गया| लेकिन चूँकि दस साल की गैप होने पर भी अतीत में कम से कम सात- आंठ साल (स्कूल और कॉलेज के दिनों में) साईकिल चलायी हुई होने के कारण तुरन्त चला पाया| अब यह देखना है कि कितनी दूरी पार कर सकता हूँ, कहाँ तक चला सकता हूँ| इसलिए पहले दिन थोड़ी ही चलायी| दुकान से घर तक और घर के आस- पास. फिर दो दिनों के बाद दस किलोमीटर चला पाया| हौसला बढ़ा| फिर दो दिनों के बाद पच्चीस किलोमीटर किए| पैर थोड़े थक गए, लौटते समय गति कम हुई| फिर भी हौसला बहुत बढ़ा| पच्चीस के बाद चालिस किलोमीटर किए| जाते समय तो कुछ भी कठिनाई नही आयी, लेकिन लौटते समय आखरी दस किलोमीटर बड़े कठिन लगे| बार बार रूकना पड़ा| जाते समय तो सवा घण्टा लगा था; आते समय दो- सवा दो घण्टे लगे| लेकिन बड़ा मज़ा आया- धीमी गति से सड़क से जाना; पेड- पौधे करीब से देखना; खेतों के तरफ देखते हुए आगे जाना. . .

अब धीरे धीरे एहसास हो रहा है कि साईकिल चलाना क्या है| इन दो- तीन राईडस में ही अतीत में एक बार में कभी भी जितनी नही चलायी थी, उससे अधिक साईकिल चलायी| स्कूल- कॉलेज के दिनों में कभी भी बीस किलोमीटर से अधिक साईकिल नही चलायी थी| लेकिन अब चला पाया! क्यों कि अब आनन्द के लिए चला रहा हूँ| उससे बहुत फर्क पड़ता है| आप यदि दफ्तर जा रहे हो तो आपके चलने जो ढंग होगा, वह मॉर्निंग वॉक के ढंग से अलग होगा| अभी मै जिस तरह एंजॉय कर रहा हूँ, उसे वे लोग नही एंजॉय कर सकेंगे जो काम के लिए साईकिल चला रहे हैं| शायद बीच में दस साल का गैप न होता, तो मै भी कभी यह देख नही पाता| खैर|

चालीस किलोमीटर जाने के बाद अगला लक्ष्य है पचास किलोमीटर से उपर चलाना| पहला अर्धशतक! इसलिए योजना बनायी| घर से लगभग बत्तीस किलोमीटर दूरी पर गोदावरी नदी है| इससे कुल मिलाकर चौसठ किलोमीटर हो जाएंगे| मजा आएगा| और क्षमता का एहसास भी होगा| योजना के अनुसार सुबह सात बजे निकला| २० जुलाई २०१३! बारीश का मौसम है और थोड़ी बूँदाबाँदी भी हो रही है| इसलिए रेन कोट पहन कर निकला| लेकिन उससे जबर्दस्त पसीना आया| एकदम से थकान भी होने लगी| जैसे तैसे गाँव के बाहर निकला और एक होटल पे चाय नही थी पर काफी मिल गई| बारीश तो रूक गई है| अब रेन कोट निकाल पर केरिअर पे लगा दिया| यह साधारण सी गेअरवाली साईकिल होने के कारण ही इसमें केरिअर था| अन्यथा और एडव्हान्स्ड गेअर साईकिलों में केरिअर नही आता है|

जैसे ही आगे निकला, ताजगी आ गयी| थकान कम हो गई| बारीश भी‌ रूकी रही और आगे बढ़ता गया| रास्ते में लोग गेअर की साईकिल देख कर चौंक रहे है| बच्चे तो घूर घूर के देखते हैं! अब आसानी से पैर चल रहे हैं| ऐसा लग रहा है मानो यह टेस्ट क्रिकेट की बल्लेबाजी जैसा है| पहले घण्टे में गेन्द नयी होती है; स्विंग होती है; घूमती है| उसके बाद धीरे धीरे बल्लेबाजी करना आसान होता है| इस प्रकार अब साईकिल चलाना सहज हुआ जा रहा है| शायद नीन्द के कारण पैर और शरीर कड़ा था; जो अब हलका हो रहा है| इसलिए कठिनाई नही हो रही है| जल्द ही आगे बढ़ता गया| एक होटल में नाश्ते के लिए रूका| किसी के मोबाईल पर रिंग टोन में गाना बजा- होशवालों को खबर क्या. . . एकदम से माहौल ही बन गया| आगे निकलने पर भी वही गाना जेहन में चलता रहा| कम भीड़ वाली सड़क पर साईकिल चलाने का आनन्द और ही है!

कहते है चलनेवालों को मन्जिल निश्चित ही मिलती है; बस चलते रहना जरूरी है| जल्द ही नदी किनारे पर पहुँच गया| थोड़ी देर वहाँ रूका और मूडा| वहा रेत में से सोना ढूँढनेवाले लड़के मिलें| उन्हे अचरज हुआ- बत्तीस किलोमीटर साईकिल पर? लौटते समय शुरू में दिक्कत नही हुई| धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| जल्द ही अर्धशतक पूरा हो गया! पहला अर्धशतक! गति काफी कम है और अब तो और भी कम होगी| लेकिन फिर भी बड़ा आनन्द आ रहा है| आखरी के पन्द्रह किलोमीटर बहुत थकानेवाले लगे| कब घर आ जाए, यही भाव मन में आ रहा है| अन्तिम दस किलोमीटर में भी बहुत रूकना पड़ा| अन्त में घर पहूँच गया और ६४ किलोमीटर की यात्रा पूरी हुई! पहला अर्धशतक पूरा हुआ| पैर बिल्कुल भारी हो गए है| लंगडे जैसा चल रहा हूँ| शायद यह पहली बड़ी राईड है, इसलिए शरीर उसका आदि हो रहा होगा| इसके बाद ऐसी तकलीफ नही आएगी| ६४ किलोमीटर! साढ़े पाँच घण्टे जरूर लगे; क्यों कि अभी मै बड़ी राईड के लिए तैयार हो रहा हूँ| इसलिए गति कम होना स्वाभाविक है| लेकिन साढ़े पाँच घण्टे और ६४ किलोमीटर तक साईकिल चला सकता हूँ, यह विश्वास मिल गया है| इस हिसाब से एक दिन में तो शतक भी किया जा सकता है| देखते हैं|












































गोदावरी नदी


 


३२ किमी दूरी में‌ मामुली चढाई- उतराई| लेकिन उस समय

मामुली चढाई भी बड़ी लगी|


ये तो शुरुआत है










































अगला भाग: दोस्ती साईकिल से : पहला शतक!

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