Thursday, November 19, 2015

दोस्ती साईकिल से ३: नदी के साथ साईकिल सफर

नदी के साथ साईकिल सफर







सितम्बर के पहले हप्ते में शतक करने के बाद कुछ दिन अन्तराल आया| इन दिनों पुणे में अधिक रहना होता था| इसलिए २० सितम्बर २०१३ को साईकिल पुणे में मंगा ली| यह साईकिल की पहली बस यात्रा रही! बिना कुछ हुए साईकिल पहुँच गई| फिर उस बस अड्डे से साईकिल को पुणे के फ्लॅट तक १७ किलोमीटर ले गया| बड़े शहर में साईकिल चलाने का थोड़ा डर जरूर था, लेकिन कोई कठिनाई नही आयी| सिर्फ एक दिक्कत आयी कि सुबह ११ बजे की धूप में डिहायड्रेशन हुआ| चलते समय एक बार रूका और अचानक बड़ी थकान महसूस हुई| थोड़ी देर विश्राम करना पड़ा| ऐसा लगा मानो थकान के कारण होश खोने के कगार पर था| लेकिन सही‌ समय पर विश्राम करने के कारण और पानी पीने के कारण राहत मिली| ऐसा अनुभव पहले भी आया था जब चौथे मंजिल पर बहुत सा सामान रखने के लिए उपर- नीचे चला था| शायद शरीर में ऊर्जा की खपत एकदम से बढ़ने के कारण और पानी‌ कम होने के कारण ऐसा हुआ हो| खैर|

पुणे में जहाँ उस समय रहता था, वह डिएसके विश्व एक छोटी चढाई पर स्थित है| साईकिल लाते समय पहली बार वह चढाई पर गया| वैसे तो है छोटी ही; एक किलोमीटर का चढाईभरा रास्ता और बस सबसे छोटा ५ वे ग्रेड का घाट| लेकिन वह भी नही‌ चढ पाया| जैसे ही‌ चढाई शुरू हुई, थोड़ी ही देर में पैदल जाने की नौबत आयी| इतना ही नही, पैदल जाते समय रूकना भी‌ पड़ा! अब पुणे के पास की पहाडी सडकों पर क्या हाल होनेवाला है, यह भी पता चला|

सत्रह किलोमीटर चलाने के बाद अगले दिन २१ सितम्बर को पास के खडकवासला डॅम पर गया| एन.डी.ए. के पास यह डॅम है| यह राईड अच्छी रही| चौदह किलोमीटर साईकिल चलायी| चढाई को देखते हुए डेढ घण्टा जरूर लगा, लेकिन नजारा अच्छा था| वापस घर आते समय वह डिएसके की चढाई पैदल ही चढनी पड़ी| और उसी में इतना थक जाता था कि दोपहर या शाम को वापिस नीचे जाने की इच्छा भी‌ नही होती थी|

अगले दिन २२ सितम्बर को बड़ी राईड करने की सोची| डिएसके विश्व से छब्बीस किलोमीटर दूर वाकड तक| यह यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग ४ से की| इस पर भी चढाई का रास्ता है और छोटे क्लाइंब भी है| लेकिन ये यात्रा बिना पैदल चले पूरी की| जाकर और आकर कुल बावन किलोमीटर हुए| लगभग चार घण्टे लगे| लेकिन अच्छा विश्वास भी आया| लगातार तीसरे दिन साईकिल चलाने से शरीर भी थोड़ा अभ्यस्त हो गया| और चढाईवाले रास्तों पर भी इतना चला सकता हूँ, इससे खुशी हुई| लेकिन थकान के कारण फिर तुरन्त बड़ी राईड करने की इच्छा नही हुई| यह अनुभव बार बार आता रहा| एक बड़ी राईड करो की अगली राईड करने की इच्छा अधमरी सी हो जाती| लेकिन फिर एक- दो दिनों में इच्छा फिर मन में आती है| २३ सितम्बर को पास ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर छोटी राईड की| यहा एक रिजरवॉईर है| छोटा तालाब| मज़ा आया| लगातार चार दिन साईकिल चलाना हुआ| इसका फायदा भी मिला| अब डिएसके की चढाई आधी साईकिल पर चला पा रहा हूँ| लेकिन बाद में पैदल ही जाना पड़ता है|

एक दिन विश्राम किया और अगले दिन बड़ी राईड करने का प्लॅन बनाया| स्वयं का प्रायवेट प्रोफेशन होने के कारण यह सम्भव हुआ| २५ सितम्बर को सुबह निकला| आज एक डॅम की‌ तरफ ही जाना है| और उसके साथ कई छोटी चढाईयाँ और पहाड़ी सडकों पर जाना है| सुबह खडकवासला डॅम के पास अच्छा कोहरा मिला| वहाँ मिलिटरी के कई युनिटसभी है| परिसर रमणीय है| यहाँ प्रगाढ़ शान्ति मिली| यहाँ से बेहद सुन्दर नजारे शुरू हुए| सड़क भी सुनसान होती गई|
अब रास्ता मुठा नदी के साथ ही आगे बढ रहा है| पास ही सिंहगढ़ दिखाई दे रहा है! सिंहगढ़! यह एक बहुत बढ़िया घाट सड़क है| वहाँ जाने का मन तो करता है; लेकिन उसके लिए पहले पात्र बनना होगा! साईकिल लेने का एक कारण लदाख़ में साईकिल चलाना भी है और पुणे से लदाख़ में साईकिल चलाने के लिए जानेवाले सिंहगढ़ पर ही प्रॅक्टिस करते हैं और कहते हैं कि सिंहगढ़ की चढाई डेढ घण्टे में पूरी करना लदाख़ में साईकिल चलाने का 'क्वालिफिकेशन' है! पर सिंहगढ़ तो दूर; उससे छह गुणा छोटी डिएसके विश्व की चढाई भी मुझसे नही चढ़ी जा रही है| इसलिए पहले अपनी हैसियत बनानी पड़ेगी. . .


बादलों से घिरा सिंहगढ़. .



एक गाँव पार करने के बाद थोड़ी लम्बी चढाई आयी| उसने काफी तकलीफ दी| मुश्किल से सबसे नीचले गेअर पर उसे पार कर पाया| योगोदा आश्रम के पास से सड़क गुजरी| गति कम ही है; लेकिन चलाने में कोई कठिनाई नही आ रही है| चढाई पर जरूर वक्त लग रहा है| पानशेत डॅम के पास पहुँचने में लगभग तीन घण्टे लगे| दूरी है लगभग ३२ किलोमीटर| थकान जरूर लग रही है; लेकिन और आगे जाने की इच्छा है| पानशेत‌ डॅम में अच्छा पानी है| बरसाती सीजन के कारण और भी मजा आ रहा है| थोड़ी देर रूक के पानशेत डॅम से आगे दूसरे रास्ते की ओर बढ़ा| अब दूसरी सड़क से वापस लौटूँगा|











इस सड़क पर बी.एस.एफ. का एक युनिट भी है| आगे एक पहाड़ पर नीलकण्ठेश्वर महादेव मन्दीर देखना है| एक ब्लॉग पर उसके बारे में पढ़ा था| यह सड़क भी शानदार और सुनसान है| यहाँ की‌ सड़कें किसी बड़े रोड़ से जुड़ी नही है; इसलिए सुनसान हैं| वह मन्दीर एक चोटी पर स्थित है| चढाई बड़ी ही है; इसलिए साईकिल नीचे एक गाँव में खड़ी की और पैदल चल पड़ा| यह तीन किलोमीटर की चढाई भी अच्छी खासी निकली| यहाँ पर जीप और बाईक आती हैं| लेकिन सड़क कच्ची ही है| और पार्किंग के उपर भी कच्ची सड़क जाती है| जैसे जैसे मन्दीर पास आता गया नीचे का नजारा और रमणीय होता गया| अब वही डॅम बहुत उपर से दिखाई दे रहा है| मन्दीर में पहुँचते समय उतरने के बारे में कुछ डर लगने लगा| क्योंकि सड़क कच्ची थी| उसमें पैर फिसलने का डर है!




















मन्दीर में कोई भी नही दिखाई‌ दे रहा है| लेकिन इस मन्दीर में काफी पुतलें बने है| मन्दीर घूमते घूमते अचानक आवाज सुनाई दी| एकदम से चौंक गया| लेकिन तब देखा की अन्दर तो कई लोग हैं| फिर थोड़ा सुकून मिला| अब उतरते समय किसी के साथ ही उतरूँगा| दोपहर का एक बज रहा है| इसलिए अधिक समय न गंवाते हुए निकला| दो सज्जन साथ मिले| पैर बिना फिसले उतर गया| मेरा पैदल पगडण्डी के रास्ते पर ट्रेकिंग का अनुभव न के बराबर है| उतरते समय एक मरा हुआ साँप देखा| अब जल्द से जल्द निकलना है| अभी काफी दूरी पार करनी है|

अपेक्षाकृत आगे की यात्रा कठिन होती गई| बीच में रास्ता भी पूछना पड़ा| यह सड़क अब खडकवासला डॅम के उस तरफ से जा रही है| एक अर्थ में इस डॅम की परिक्रमा हो जाएगी! बीच बीच में विश्राम जरूर करना पड़ा| लेकिन बहुत ज्यादा तकलीफ नही हुई| शाम के पहले डिएसके विश्व में पहूँच गया| छह किलोमीटर पैदल और ६६ किलोमीटर साईकिलिंग के साथ यह और एक अर्धशतक पूरा हुआ| इसका रूट यहाँ पर देखा जा सकता है| लेकिन उस समय अर्धशतक के एहसास के बजाय थकान का ही‌ अहसास है| आखरी चरण में तो एक डेस्परेशन आता है कि कब घर पहूँचता हूँ| और इतनी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा खर्च हो जाती है कि अगले राईड के बारे में कुछ भी सोचना सम्भव नही होता है! खैर| संयोग से चार ही दिन बाद फिर पानशेत जाना हुआ| इस बार दो मित्रों के साथ पहली ग्रूप राईड की| उसका भी अलग मज़ा आया| अब अच्छा विश्वास बढ़ने लगा है|





अगला भाग: ४: दूरियाँ नज़दिकीयाँ बन गई. . .

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-11-2015) को "हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है" (चर्चा-अंक 2167) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. रोचक वर्णन और सुन्दर चित्र

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!