दोस्ती साईकिल से १: पहला अर्धशतक
पहला शतक
साईकिल पर पहला अर्धशतक पूरा करने के बाद शतक का इन्तजार कुछ ज्यादा लम्बा हुआ| आरम्भिक यात्राओं के बाद कुछ हप्तों तक बाहर जाना हुआ| इसलिए करीब एक महिना साईकिल दूर ही रही| आखिर कर जुलाई के बाद सितम्बर महिने में ही साईकिल चलाने का मौका मिला| इतने दिन साईकिल चलाने के बारे में डे- ड्रिम कर रहा था! अब देखना है कैसे चला पाता हूँ|
पेट्रोल के दाम तो पहाड़ से भी अधिक ऊँचाईयों को छू रहे हैं। ऐसी स्थिति में साईकिल एक सशक्त विकल्प के रूप में सामने आती है। साईकिल कई मायनों में उपयोगी है। एक तो इन्धन खर्चे की बचत। यह एक अच्छा व्यायाम भी है। तथा इससे हमारे जीवन का नियंत्रण करनेवाली तथाकथित आधुनिक जीवनशैली की बेहुदा रफ्तार को भी नियंत्रण में लाया जा सकता है। मंजिल से अधिक रोमांच सफर में आता है। तो फिर काहे को भेडचाल की तरह हर समय छोटे मोटे लाभ की ओर दौडना? चलिए, एक साईकिल उठाते है और शुरू करते है यात्रा।
२ सितम्बर २०१३. दोपहर अचानक साईकिल उठायी और चल पड़ा| महाराष्ट्र में परभणी में घर से वसमत की तरफ निकला| यहाँ से वसमत ४४ किलोमीटर दूर है| निकलते समय दोपहर का एक बज रहा है| सोचा कि जितना जा सकता हूँ, जाऊँगा| काफी दिनों के विराम के बाद चलाने पर भी कठिनाई नही आयी| डेढ घण्टे में २० किलोमीटर पार हुए और वसमत सिर्फ २४ किलोमीटर दूर रहा| तो सोचा कि चलो, थोड़ा और आगे चलता हूँ| ऐसा करते करते वसमत ही पहुँच गया| अतीत में यह गाँव वसुमती नगरी नाम से जाना जाता था| पहुँचने पर बड़ा नाश्ता किया| करीब साढे तीन घण्टे लगे पहुँचने में|
हमारे लोगों की सोच अभी भी काफी स्थितिशील है। कितना भी कुछ कहिए, अभी कुछ भी उतना बदला नही है। सब कुछ वैसा ही है। रास्ते पर साईकिल और वह भी गिअर की साईकिल देख कर बच्चे चिल्लाते है, ‘वो देखो, गिअर वाली साईकिल!’ कुछ बच्चे तो साईकिल उठा कर चक्कर लगाते हैं। शहर से जितने दूर जाओ, लोगों का अचरज बढता है। उन्हे कुछ अटपटा सा लगता है। इतनी दूर (हालांकि दूरी मात्र बीस- पच्चीस किलोमीटर ही हो) साईकिल पर? और उनके कौतूहल का जवाब भी उन्हें मिल जाता है- जरूर गिअर वाली होने के कारण यह खूब दौडती होगी। कुछ लोग तो नई चीज दिखने से कुछ ज्यादा ही उत्साहित होते हैं। एक ग्रामीण ने तो कहा, यह तो मोटरसाईकिल जैसी दौडती होगी। नई चीज दिखाई देने पर ऐसी प्रतिक्रिया! शायद वे अपनी सारी निराशाएँ, अपने सारे तनाव जैसे उसके सहारे व्यक्त करते है। उनको बडी बेसब्री से ऐसी चीज की तलाश है जो उन्हे सहारा देगी। इसलिए एक छोटी सी पर नई चीज दिखाई पडने पर उनकी प्रतिक्रियाएँ उस चीज के बारे में कम और उनकी सोच के बारे में ज्यादा बताती है। खैर।
अब वापस निकलना है| साढ़ेपाँच बज रहे हैं| कम से कम सांत बजे तक तो रोशनी रहेगी| लेकिन उसके बाद घण्टा- डेढ घण्टा अन्धेरे में चलना होगा| और मेरे साथ एक मोबाईल के छोटे फ्लॅश लाईट के अलावा रोशनी नही है! देखते हैं| निकलते समय सूर्यास्त करीब आया है| शाम का लाल- पिले उजाले का नजारा और रास्ते में लगनेवाले पेड़! उस अनुभव को स्वयं ही लेना होता है; उसका निवेदन सम्भव नही है| किसी तितलि का स्पर्श कर जाना, पास के खेतों में पेडों का हिलना, गाँव के लोगों के चेहरे; बार बार बात करनेवाले स्कूल के लड़कें. . . ऐसे कई अविस्मरणीय अनुभव| जाते समय एक होटल में चाय के लिए रूका था, जाते समय भी वही रूका| वहाँ की दिदी ने चुल्हे को फिर से जला कर चाय बनाई| थोड़ी बातचीत हुई| ऐसे समय कहीं पर न मिलनेवाले लोगों के साथ मिलना होता है. .
इस यात्रा का कठिन पड़ाव सांत बजे के बाद शुरू हुआ| घर अभी २५ किलोमीटर दूर है और पूरा अन्धेरा हुआ है| एक छोटे से फ्लॅश लाईट की ही रोशनी साथ है| हालांकि सड़क पर लगभग सतत आवाजाही शुरू है| उन वाहनों का प्रकाश है| सूरज डूबने के बाद सामने शुक्र का दिया जला हुआ है| उसने डेढ़ घण्टा साथ दिया| उसके अलावा ज्येष्ठा, अनुराधा, धनु और मूल आदि तारका समूह भी नॉन स्ट्राईकर एंड से साथ दे ही रहे हैं| बीच में लगनेवाले गाँवों में दो मिनट विश्राम करते हुए यात्रा जारी रखी| इस बार भी आखरी दस किलोमीटर ने बड़ा कष्ट दिया| घर पहुँचते पहुँचते रात के नौ बजे है| अर्थात् कुल आठ घण्टे साईकिल चलायी| एक घण्टा वसमत में रूका था| अर्थात् सांत घण्टों में ८८ किलोमीटर हुए| सिख्खड़ साईकिलिस्ट के लिए बहुत आत्मविश्वास देनेवाली बात!
अब शतक का इन्तजार है| लेकिन थोड़ा रूकना होगा| करीब दो दिनों तक पैरों में थोड़ा कड़ापन रहा| उस समय में बाकी काम निपटाए| अब ५ सितम्बर २०१३ को बड़ी यात्रा करने के लिए परभणी के जिन्तुर के पास स्थित येलदरी डॅम और नेमगिरी स्थान को चुना| कुल यात्रा १२१ किलोमीटर की होगी, ऐसी योजना बनायी| इस बार सुबह साढ़े पाँच बजे निकला| सुबह शरीर बहुत सख्त होता है| फिर भी एक घण्टे में चौदह किलोमीटर जा सका| आगे कोई कठिनाई नही आयी और नौ बजे घर से ४४ किलोमीटर दूर जिन्तुर तक पहुँचा| वहाँ बड़ा नाश्ता किया| थोड़ी देर रूक कर आगे निकला|
जिन्तुर के बाद कुछ फर्क आया| गाँव की भीड़ खतम होने के बाद चढाई शुरू हुई| बीच बीच में कुछ शैक्षिक संस्थाएँ और यात्रियों से खचाखच भरे रिक्षा! कुछ साईकिल पर जानेवाले बच्चे मिले| अब सड़क बहुत खराब हो गई है| कई स्थानों पर टूटी- फूटी है| सड़क पर एक दाया मोड लगा जो नेमगिरी को जाता है| लौटते समय वहाँ जाऊँगा| एक स्कूली लड़का- शिवाजी- साथ आ कर बातचीत करने लगा| वह है तो दसवी में; पर दिखाई दे रहा है छटी कक्षा का| चढाई अब थोड़ी कठिन लगी| नीचले गेअर्स पर चलाने का प्रयास किया, लेकिन फिर पैदल चलना पड़ा| अब ग्यारह बजे हैं| इसलिए धूप बहुत अधिक है| जैसे ही चढाई समाप्त हुई, फिर साईकिल शुरू की| लेकिन थोड़ी ही देर में फिर चढाई और फिर पैदल यात्रा| दो बार ऐसा हुआ| एक जगह के बाद सीधा ढलान मिली| वहाँ रास्ता भी अच्छा है, इसलिए फिर साईकिल तेज़ दौड गई| फिर थोड़ी चढाई| ऐसा करते करते येलदरी पहूँच गया| जिन्तुर से इसकी दूरी थी मात्र १४ किलोमीटर; पर उसके लिए डेढ़ घण्टा लगा|
येलदरी कँप यह गाँव डॅम के पास ही है| पूर्णा नदी पर स्थित इस डॅम में अच्छा पानी है| गेट पर सरकारी लोगों ने फोटो खींचने को मनाही की, पर फिर भी फोटो लिए| जल्द ही वापस मूड़ा| आज बैल का त्योहार होने के कारण बैल बहुत दिखाई दे रहे हैं| यह परिसर देखने जैसा है| बीच बीच में फूलों की खेती! फिर से चढते- उतरते नेमगिरी की ओर जानेवाली सड़क तक पहूँचा| यह भी कच्चा ही रास्ता है! यहाँ और अधिक चढाई मिली| बड़ी मुश्किल से साईकिल चला पा रहा हूँ| आखरी एक किलोमीटर तो पैदल जाना पड़ा| यहाँ कुछ देर रूक कर मन्दिर का दर्शन लिया| यह श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है| यहाँ शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, आदिनाथ, महावीर आदि के पुतले गुफा में है| जब सड़कें नही थी, उस समय यह स्थान निश्चित दुर्गम रहा होगा| यहाँ छोटे पहाड़ है| पास में ही चन्द्रगिरी नाम की एक गुफा है| पहले देखी होने के कारण और मुख्य उद्देश्य साईकिलिंग होने के कारण वहाँ गया नही और तुरन्त निकला|
लौटते समय जिन्तुर तक ढलान है| जिन्तुर में बड़ा नाश्ता किया| साईकिलिंग करते समय भोजन करने के बजाय थोड़े थोड़े अन्तराल में नाश्ता करता हूँ| इसके बाद भी थोड़ी ढलान होने के कारण पचास मिनट में पन्द्रह किलोमीटर हुए| उसके बाद और एक विश्राम- गाँव में चाय- बिस्किट ले कर आगे निकला| दोपहर की तेज धूप होने के कारण रूकना पड़ रहा है| इसके बाद चढाई नही होते हुए भी अधिक बार रूकना पड़ा| आखरी बीस किलोमीटर तो बड़े कठिन गए| सारी ताकत लगानी पड़ी| लेकिन तब तक शतक पूरा हो गया| परभणी में पहूँचते समय शाम के साढ़े छह बजे है. . . दिन में कुल १२१ किलोमीटर साईकिल चलाई| शतक करने का मज़ा चखा! एक मलाल यह लगा कि यह शतक सिक्स के साथ पूरा नही कर पाया; और सभी रन्स सिंगल्स में ही बनाने पड़े!
यात्रा में यह अनुभव में आया कि यह शरीर के श्रम का कार्य तो था ही, लेकिन मन का भी था| शरीर जितना ही मन का भी सहभाग इसमें था| और मन तो अस्थिर होता है| वह और अस्वस्थ हो जाता है| इसलिए उसको कुछ काम चाहिए| इसी लिए साथ में गाने रखे थे| गानों के कारण अधिक मज़ा आया| लक्ष्य और स्वदेस के गाने! जब शरीर थकता है; गति कम होती है और चलाना कठिन होता है; तब तो यह शरीर से अधिक माइंड गेम बन जाता है| क्यों कि मन का साथ भी उतना ही चाहिए| इसलिए उसे किसी जगह एंगेज रखना पड़ता है|
. . . शाम को बहुत ज्यादा थकान लगी| पहले ८८ किलोमीटर चलाने के बावजूद थकान लगी| तेज़ धूप और चढाईभरे रास्ते के कारण अधिक ऊर्जा व्यय हुई| नही तो शायद उतने ही समय में और अधिक जा पाता| अब और आगे जाना है| लेकिन पहले शरीर को ऐसी यात्रा का अधिक अभ्यस्त बनाना होगा|
तीन दिन पहले की हुई ८८ किलोमीटर की यात्रा ने शरीर के साथ मन को भी तैयार किया था| ८८ किलोमीटर करने के बाद शतक करने के सम्बन्ध में मन में पूरा विश्वास बन गया| वैसा ही अब डेढ़ सौ किलोमीटर के बारे में लग रहा है| उसमें कठिन कुछ भी नही है| सब परिस्थिति देख कर साईकिल चलाना, इतना ही तो है| मुश्किल या विशेष कुछ भी नही| यह तो सृष्टि का नियम होता है कि हम एक समय पर एक ही काम कर सकते हैं| इसलिए यदि हम दस अन्य काम थोड़े दूर रख कर एक काम पर ही ध्यान देते है, तो वह होगा ही| मल्टी टास्किंग के ज़माने में यह एक कमी है कि हमारी एकाग्रता खो रही है| कहते हैं, ९९ चीजों से यदि ध्यान हटाया, तो वह अपने आप एक चीज पर केन्द्रित हो जाता है| उसमें खास कुछ भी नही| बात सिर्फ ९९ चीजों को डिस्कनेक्ट करने की है| तेरह घण्टों में एक ही काम किया| अर्थात् ऑफिस का काम, घर का काम, रसोई, सामान रखना, रुटीन आदि बातें उस समय के पहले या बाद में करनी पड़ी| और कुछ नही|
एक व्हिडिओ: युंही साईकिल पर चला चल राही
परभणी- जिंतूर- येलदरी
अनुभवी साईकिलवालों के लिए आसान; मगर सिख्खड के लिए 'कठिन' चढाई!
यात्रा जारी है. . . अभी मन्जिल नही आयी. .
अगला भाग: ३: नदी के साथ साईकिल सफर
बढिया यात्रा, हमें सायकिल चलाना छोड़े ही 30 बरस हो गए। अब चलाने की हिम्मत नहीं होती। हां बाईक से बहुत घुमक्कड़ियों को अंजाम दिया है।
ReplyDeleteAapke sath sair me apne ve din yaad aa gaye jab ham cycle se school jaya karte the, 52 saal pahle...
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteपैर भारी होने का अर्थ होता है गर्भवती होना| कृपया इस मुहावरे का प्रयोग अपने लिए न किया करें|
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज जी! :) सुधार कर दिया है!
DeleteGood job. Please keep doing more and keep writing. I loved this post.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत.......आपके साथ हमने भी घूम लिया....बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteनयी पोस्ट@दर्शन दो
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-11-2015) को "ज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री" (चर्चा-अंक 2164) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब !
ReplyDeleteNice. Literally took me on a ride. All the best for all your future ventures.
ReplyDeleteपढने के लिए और प्रतिक्रिया के लिए सभी को बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteयह यात्रा वृतांत बेहद रसप्रद और जीवंत लगा। अपने अतीत की याद दिला गया। अब भाग दौड भरी ज़िन्दगी और नीरी व्यस्तताओं के बीच हमारे लिए ऐसा कर पाना मुश्किल लगने ही लगा था कि आपके वृत्तांत ने जैसे फिर से साइकिल चलाने के लिए प्रेरित कर दिया। बहुत बहुत धन्यवाद और लिखते रहें।
ReplyDeleteDear Niranjanji,
ReplyDeleteI was very happy to read about your cycle yatra. Keep it up.
I ran half marathon (21 kms. ) in 2 hrs. 50 mins. on 1st. Nov.
Nice experience.
Regards,
Dr. Dattaram Desai.
बधाई!
ReplyDeleteमै भी व्यायाम हेतू प्रातः Cyclingकरता हूं।
डॉ.रमेश गौतम
बधाई!
ReplyDeleteमै भी व्यायाम हेतू प्रातः Cyclingकरता हूं।
डॉ.रमेश गौतम
छान निरंजन. अभिनंदन आणि शुभेच्छा.
ReplyDeleteबहोत बढीया. पढकर आनंद आया.
ReplyDeleteमैने कॉलेज लाइफमे सायकल बहोत चलाई. लेकीन शहरमे. बाईक और कार से बहोत घुमा. कार से तो कन्याकुमारी तक दो बार ड्राईविंग की.
अभी भी सायकल चलाने की अतीव इच्छा है. आपकी यात्राका वर्णन पढकर हौसला बढ गया है.
आपको बहोत बहोत शुभकामनाये.
सुधीर देशपांडे (आबा )
आपकी यात्रा वृत्तांत पढ़कर बहुत अच्छा लगा. साइकिल पर चलना अपने आप में बड़ा अच्छा लगता है और आपने तो इतनी बड़ी यात्रा की, बहुत बधाई. सभी तस्वीर बहुत मनोरम है. अगली साइकिल यात्रा के लिए शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग्स को पढ़कर काफी उत्साह वर्धन हुआ , चूँकि मैं ब्लॉगिंग की दुनिया में एक नौसीखिआ हूँ , तो अभी अपनी साइकिल यात्राओ के बारे में लिखना शिुरु नहीं किआ ,
ReplyDeleteहम ३ लोग है जो की कुछ 800 किलोमीटर तक की साइकिल , साथ में यात्रा कर चुके है ,
एक मेरे क्लासमेट है और एक घनिष्ट मित्र ,
उन में से एक सौरभ साइकिलिंग पे ब्लॉग लिखते है http://cyclereturns.blogspot.in/
और दूसरे तरुण गोयल ट्रैवलिंग पे http://www.tarungoel.in/
आशा करता हूँ की जल्द ही आपसे, अपना कोई अपना अनुभव संझा करूंगा
http://paryatanpremi.blogspot.in/