Tuesday, October 24, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे) 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई

चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
१ अक्तूबर की सुबह| नीन्द जल्दी खुल गई और उठने पर ताज़गी भी लगी| अच्छा विश्राम हुआ| कल तीसरा दिन होने के कारण शरीर अब इस रूटीन का आदी हो गया है| इसलिए नीन्द आसानी से लगी| सुबह पाँच बजे उठ कर तैयार हुआ| मेरा लॉज वाई बस स्टँड के ठीक सामने है| इसलिए सुबह भी अच्छी चहल- पहल है| बाहर चाय भी मिली| सुबह का सन्नाटा और अन्धेरा! हल्की सी ठण्ड, वाह! आसमान में जाने पहचाने मित्र- व्याध, मृग, रोहिणी, कृत्तिका! कुछ देर चाय का आनन्द लिया और फिर निकलने के लिए तैयार हुआ| लेकीन बाहर निकलने के पहले पाँच मिनिट फिर कंबल ओढ कर नीन्द का भी आनन्द लिया! आज मुझे कोई सामान साथ नही लेना है| सिर्फ पंक्चर का किट, पानी की बोतल और चॉकलेटस- बिस्किट आदि| इसलिए बिल्कुल फ्री हो कर जाऊँगा|

एक डर था की बारीश या कोहरा हो सकता है| लेकीन आसमान बहुत साफ है| सुबह छह बजे अच्छे से डबल प्लेट पोहे खाए और निकल पड़ा| महाबळेश्वर का रास्ता सामने से ही जाता है| आज इस पूरी यात्रा का सबसे अहम पड़ाव है| यहाँ से बारह किलोमीटर तक घाट है| एक तरह से इसी चरण पर पूरी यात्रा निर्भर करती है| अगर यहाँ मै साईकिल चला पाता हूँ, तो आगे भी दिक्कत नही आएगी| और अतीत की असफल यात्राओं का मलाल भी मिट जाएगा| इस तरह ये बारह किलोमीटर बहुत निर्णायक होंगे|  मेरे गाँव परभणी में दो कहावतें हैं| लोग कहते हैं, 'दुनिया में जर्मनी वैसे भारत में परभणी' और इसके साथ 'बनी तो बनी, नही तो परभणी!' भी कहते हैं! देखते हैं आज इनमें से क्या होता है| ये विचार मन में होने के बावजूद काफी हद तक मन शान्त है|














Monday, October 16, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे) 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
 

४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई

३० सितम्बर| रात अच्छी नीन्द हुई| सुबह नीन्द जल्द खुली| पास से ही निरा नदी बह रही है! शाम के समय पता नही चला, लेकीन अब उसकी गूँज सुनाई दे रही है! मेरे जल्द उठने कारण घर में सब जल्द उठ गए| आज दशहरे का दिन है! आज मेरी पहली परीक्षा होगी|‌ पहले लगा था कि कोहरा होने से थोड़ी देर से निकलना पड़ेगा| लेकीन समय पर सवा छह बजे निकल पाया| मित्र दत्ताभाऊ ने वाई में भी एक लॉज बताया है, आज वही ठहरूँगा| भाभीजी ने सुबह जल्दी उठ कर मेरे लिए नाश्ता बनाया| भूख़ तो नही है, फिर भी वह खा कर निकला| दोस्त के घर से निकला| साईकिल यात्रा के लिए आदर्श मौसम| बारीश रूक गई है, लेकीन माहौल बारीश जैसा है!

भोर गाँव से निकलते ही हल्की चढाई शुरू हुई| इसके साथ धीरे धीरे दूर दिखाई देनेवाले पहाड़ भी करीब आने लगे| मराठा इतिहास की दृष्टि से रोहिडेश्वर किला महत्त्वपूर्ण है| यहीं शिवाजी महाराज ने स्वराज्य स्थापना की शपथ ली थी! वही रोहीडेश्वर किले के करीब से यह सड़क जाएगी| मन में हल्का सा डर भी है| क्या यह पहला घाट मुझे पास करेगा? हल्की चढाई दस किलोमीटर तक है और घाट छह किलोमीटर का है| सड़क बहुत बढ़िया बनी है| बरसाती मौसम के बाद भी सड़क अच्छी है| छोटे छोटे गाँव लग रहे हैं| एक गाँव में दूर से एक गाना सुनाई दिया| गाना तो जाना पहचाना है, लेकीन सुनाई नही दे रहा है| पास जाने पर सुनाई दिया| इससे माहौल और भी आकर्षक बना| हर गाँव में नवरात्रि का त्यौहार मनाया जा रहा है|






रोहिडेश्वर का पहला दर्शन!




Saturday, October 14, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर










: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर

२९ सितम्बर| कल रात अच्छी नीन्द हुई| आज इस यात्रा का दूसरा दिन है और आज एक घाट भी पार करना है| हालांकी, अब टनेल होने के कारण यह घाट अब सिर्फ मामुली चढाई ही रह गया है| फिर भी शुरू में लगातार बारह किलोमीटर तक चढाई होगी, उसके बाद पच्चीस किलोमीटर तक उतराई और बाद में थोड़ी चढाई- उतराई रहेगी| आज से मेरे लिए बिल्कुल नया रास्ता शुरू हो जाएगा|

सुबह निकलते समय लगा था कि शायद कोहरे के कारण थोड़ा लेट निकलना पड़ेगा| लेकीन समय पर निकल गया| सामान बान्धने में थोड़ी दिक्कत हो रही है| उसे बार बार रूक कर ठीक करना पड़ा| सुबह इतने जल्दी मुझे मेरी एक दोस्त ने शुभकामनाएँ दी| ऐसी दोस्त जो मेरे लेखन के कारण मुझसे जुड़ी! जल्द ही टनेल के पहले की चढ़ाई शुरू हुई| याद आ रही हैं अतीत की कुछ राईडस जो मैने इस रोड़ पर की थी| सुबह की ताज़गी और ठण्ड में चढाई भी कुछ खास नही लगी| धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| अब टनेल आएगा| उसके लिए एक जगह पर रूक कर ब्लिंकर शुरू कर लिया| लगभग डेढ किलोमीटर का यह टनेल है| इस टनेल के बाद माहौल बदल ही जाएगा| बड़ा फैला हुआ कॅनव्हास सामने आएगा और लम्बी उतराई भी शुरू होगी| इसी चढाई के बीच एक खूबसूरत झील दिखी जो अब धीरे धीरे शहर में खो जा रही है| शहर इसे निगल रहा है|



























जांभुळवाडी लेक या उसका बचा हुआ छोटासा हिस्सा!






























टनेल के पहले का दृश्य


Wednesday, October 11, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)


योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख


: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)

२८ सितम्बर| सुबह जल्द उठ कर निकलना है| आज पहला दिनहै, लेकीन सामान बान्धना, सब चीज़ें साथ में रखना इसकी तैयारी पहली की है| इसलिए सुबह आराम से निकला| मन बिल्कुल शान्त है| कल से कुछ भी तनाव नही है| बिजनेस एज युज्वल जैसा ही लग रहा है| पूरा उजाला होने के पहले पौने छे बजे निकला हूँ| आज का पड़ाव वैसे बहुत छोटा है| पहले कई बार यह दूरी पार भी की है| करीब सवा तीन घण्टों में पहुँचूंगा ऐसी उम्मीद है|

सुबह का सन्नाटा, हल्की सी ठण्ड और ताज़गी! और एक अन्जान यात्रा का आरम्भ! मन में अपनेआप गीत गूँजने लगा- तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो! उसके बाद अपने आप पूरा गाना बजता गया और मै सुनता गया| अगर कोई गाना- सिर्फ उसके बोल नही, उसका पूरा संगीत अगर याद हो, तो मन ही मन ऐसा गाना सुनने में बड़ा मज़ा आता है| इसके बाद दूसरा गाना मन में बजने लगा- तू मेरे साथ साथ आसमाँ से आगे चल, तुझे पुकारता है तेरा आनेवाला कल, नई हैं मन्जिलें, नए हैं रास्ते, नया नया सफर है तेरे वास्ते!



पहली नदी- इन्द्रायणी!





































Monday, October 9, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख

नमस्ते! साईकिलिंग दोबारा शुरू कर चार साल हो चुके हैं| साईकिल ने इतना कुछ सीखाया, इतनी नई दृष्टि दी! इस पूरी यात्रा में साईकिल के साथ कई दिग्गज साईकिलिस्ट, फिटनेस के खिलाडी और प्रेरणा देनेवाले लोग मिलते रहे हैं| इस विवरण को शुरू करने के पहले उन सबको एक बार नमन करता हूँ|

मेरी पीछली अन्तिम साईकिल यात्रा या बड़ी राईड २०१५ के दिसम्बर में हुई थी|‌ तब दूसरे ही दिन मै पूरी तरह थक गया था| और जैसे लगा कि साईकिल चलानी छोड ही देनी चाहिए| हर साईकिलिस्ट के अनुभव में यह जरूर आता है| लेकीन खैर, साईकिल नही छूटी| कुछ दिनों के बाद ही लम्बी यात्राओं के सपने दिन में आने लगे| २०१५ में ही लदाख़ की आंशिक यात्रा की थी, तो लगा कि २०१६ में भी एक बार ट्राय करता हूँ| पहले के अनुभवों से सचेत हो कर और बेहतर तैयारी शुरू की| इस बार स्टैमिना और फिटनेस को और बढ़ाने के लिए रनिंग शुरू किया| रनिंग शुरू करना कठिन रहा| शारीरिक रूप से नही, बल्की मानसिक रूप से| कई दशक पहले जब स्कूल में कभी दौड़ा करता था तो सब चिढाते थे कैसा दौड़ता है यह! वह बात अब भी मन में थी| इसलिए लगा की सुबह के अन्धेरे में ही दौड़ूंगा! लेकीन सुबह के अन्धेरे में दौड़ने के लिए बहुत जल्द उठना पड़ता है! वो तो अक्सर नही ही होता था| लेकीन फिर भी धीरे धीरे दौड़ना शुरू किया| पहले दो दिन तो पाँच किलोमीटर चला और उसमें सिर्फ सौ सौ मीटर दौड़ता था, हाँफता था और फिर कुछ समय खड़े रह कर दौड़ता था| उसे चलना और थोड़ासा जॉगिंग ही कहना चाहिए| ऐसे २-३ दिन जाने के बाद धीरे धीरे पूरे पाँच किलोमीटर जॉगिंग कर सका| उसमें भी बहुत बार रूकना पड़ता था| लेकीन धीरे धीरे कुछ ही हफ्तों में रफ्तार भी बढी और आसानी भी होने लगी| ऐसे करते करते एक ही बार में दस किलोमीटर की भी दौड़ लगा सका| चलो, साईकिलिंग के साथ यह भी बहुत सीखना हुआ, स्वास्थ्य और फिटनेस की दिशा में एक कदम और आगे जाने लगा|






लेकीन २०१६ में लदाख़ की साईकिल यात्रा नही हो पायी| तैयारी बहुत की, बहुत योजना बनाई| लेकीन फिर भी साईकिलिंग का उतना अभ्यास नही कर पाया| और एक बड़ी राईड ने घूटने (सचमूच) टेकने के लिए मजबूर कर दिया| तब तय किया की लदाख़ नही जाऊँगा| लेकीन फिर भी २०१६ के मान्सून में भी डे- ड्रिमिंग करता था कि इधर जाऊँगा| ये ये देखूँगा| लेकीन कहीं भी नही जा सका| बस कुछ प्रैक्टीस राईडस ही हुईं और यदा कदा दौड़ना हुआ| एक तरह से मन में बार बार लग रहा था कि लम्बी साईकिल यात्रा करना मेरे बस में नही है! खैर|

भला हो उन लोगों का जो अक्सर दूसरों को प्रेरणा देते रहते हैं| कई साईकिलिस्ट के विवरण पढ़ता था| एक बार तो लगा भी कि अब क्यों ये सब पढ़ें! जाने दो! लेकीन नही| साईकिल से रिश्ता टूटा नही और थोड़ी साईकिलिंग शुरू रही| इसको गति २०१७ के मई में मिली जब तय किया की २०१७ के बरसाती सीज़न में कही ना कही तो साईकिल यात्रा करनी ही है! मई से ही छोटी प्रैक्टीस राईडस शुरू की| बीच बीच में थोड़ा दौड़ता भी था| क्यों कि यह तो साफ हुआ था कि अगर स्टैमिना/ फिटनेस बढ़ाना है, तो उसका रास्ता रनिंग से जाता है| क्यों कि साईकिल चलाने की तुलना में रनिंग ज्यादा हेवी एक्टिविटी है; ज्यादा थकानेवाला व्यायाम है| इसलिए अगर मै कुछ दूरी तक रनिंग कर पाता हूँ- जैसे १० या १५ किलोमीटर तो उससे मेरा स्टैमिना बढ़ेगा और साईकिल चलाने में आसानी होगी| जल्द नही थकूँगा| इस सोच के साथ दौड़ना भी चालू था| मन बना लिया था|



Sunday, October 8, 2017

एक ड्रीम साईकिल यात्रा!!!!


एक ऐसी साईकिल यात्रा जिस पर मुझे अब तक भरोसा नही आ रहा है! बरसों का एक सपना सा पूरा हो गया है! महाराष्ट्र में महाबळेश्वर हिल स्टेशन और उसके आस- पास के अनुठे प्राकृतिक सुन्दरता से सजे क्षेत्र में सात दिन की साईकिल यात्रा सफल हुई| अब धीरे धीरे उसके बारे में लिखूँगा| शुरुआत आज इस पोस्ट से करता हूँ|‌ इसकी योजना क्या थी, किस थीम के साथ यह यात्रा की यह बताता हूँ| आज सिर्फ इतना कहूँगा की ठीक इसी योजना जैसी यात्रा रही| बिल्कुल भी बदलाव करने की ज़रूरत नही हुई| बहुत ही रोमँटिक या कहें तो रोमँटिकेस्ट साईकिल यात्रा रही!!! आईए, इसकी योजना से शुरुआत करते हैं|










































योग- ध्यान के लिए साईकिल यात्रा

नमस्ते! योग- ध्यान यह थीम ले कर एक साईकिल यात्रा करने जा रहा हूँ| साईकिल चलाने का करीब से सम्बन्ध योग और ध्यान से है| इतना ही नही, साईकिल चलाना, दौड़ना, अलग तरह के स्पोर्टस या नृत्य इन सब का सम्बन्ध योग और ध्यान से है| पश्चिमोत्तानासन जैसे कुछ आसन कठिन होते हैं| या सूर्य नमस्कार की तीसरी स्थिति में कई लोगों के हाथ जमीन को स्पर्श नही कर पाते हैं| लेकीन साईकिलिंग- रनिंग के साथ ऐसे आसन करना आसान होता है| इसके साथ एंड्युरन्स की गतिविधि में हृदय अधिक हवा पंप करता है| इसलिए साईकिल जैसे व्यायाम के बाद भस्त्रिका जैसा प्राणायाम भी अधिक शक्ति के साथ किया जा सकता है| साईकिल चलाते समय एक बात होती है कि हमारी गति कम हो जाती‌ है| अक्सर हमें गति की आदत होती है| लेकीन साईकिल चलाते समय हम धिमे से बढ़ते हैं और हमारी 'सजगता' बढ़ती है| उसके साथ साँस लेने की क्षमता भी बढ़ती है| गहरी साँस लेने की क्षमता ध्यान की बुनियाद होती है| इसके अलावा जब हम किसी प्राकृतिक क्षेत्र में घूमने जाते हैं, तब हमारा हर रोज का रूटीन अलग रह जाता है और एक गैप क्रिएट होता है| प्रकृति हमें शान्त करती है, रिचार्ज कराती है| इस कारण साईकिल चलाने में एक डायनॅमिक मेडिटेशन भी होता है|