योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
१ अक्तूबर की सुबह| नीन्द जल्दी खुल गई और उठने पर ताज़गी भी लगी| अच्छा विश्राम हुआ| कल तीसरा दिन होने के कारण शरीर अब इस रूटीन का आदी हो गया है| इसलिए नीन्द आसानी से लगी| सुबह पाँच बजे उठ कर तैयार हुआ| मेरा लॉज वाई बस स्टँड के ठीक सामने है| इसलिए सुबह भी अच्छी चहल- पहल है| बाहर चाय भी मिली| सुबह का सन्नाटा और अन्धेरा! हल्की सी ठण्ड, वाह! आसमान में जाने पहचाने मित्र- व्याध, मृग, रोहिणी, कृत्तिका! कुछ देर चाय का आनन्द लिया और फिर निकलने के लिए तैयार हुआ| लेकीन बाहर निकलने के पहले पाँच मिनिट फिर कंबल ओढ कर नीन्द का भी आनन्द लिया! आज मुझे कोई सामान साथ नही लेना है| सिर्फ पंक्चर का किट, पानी की बोतल और चॉकलेटस- बिस्किट आदि| इसलिए बिल्कुल फ्री हो कर जाऊँगा|
एक डर था की बारीश या कोहरा हो सकता है| लेकीन आसमान बहुत साफ है| सुबह छह बजे अच्छे से डबल प्लेट पोहे खाए और निकल पड़ा| महाबळेश्वर का रास्ता सामने से ही जाता है| आज इस पूरी यात्रा का सबसे अहम पड़ाव है| यहाँ से बारह किलोमीटर तक घाट है| एक तरह से इसी चरण पर पूरी यात्रा निर्भर करती है| अगर यहाँ मै साईकिल चला पाता हूँ, तो आगे भी दिक्कत नही आएगी| और अतीत की असफल यात्राओं का मलाल भी मिट जाएगा| इस तरह ये बारह किलोमीटर बहुत निर्णायक होंगे| मेरे गाँव परभणी में दो कहावतें हैं| लोग कहते हैं, 'दुनिया में जर्मनी वैसे भारत में परभणी' और इसके साथ 'बनी तो बनी, नही तो परभणी!' भी कहते हैं! देखते हैं आज इनमें से क्या होता है| ये विचार मन में होने के बावजूद काफी हद तक मन शान्त है|
नजारा इतना अद्भुत है कि बार बार मन में यही भाव आ रहा है- आहा, क्या कहें! और अचानक मन में 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है' गाने का संगीत बजने लगा! उसको सुनते सुनते आगे बढ़ रहा हूँ| वाई या लॉज से निकलते ही हल्की चढाई शुरू हुई और एक किलोमीटर बाद घाट शुरू हुआ| पहले किलोमीटर में लगा कि पैर थोड़े हेवी हैं| शायद पैरों को सही विश्राम नही हुआ है| लेकीन धीरे धीरे पैर खुलते गए| बहोत सारे लोग मॉर्निंग वॉक और जॉगिंग करते हुए दिखाई दे रहे है| घाट शुरू होने पर साईकिल का गेअर १-१ डाल दिया| गेअर सेटिंग में कुछ खराबी होने से नीचे उतर कर उसे डालना पड़ा| अब अच्छा खासा घाट शुरू हुआ| लेकीन कोई भी परेशानी नही है| आराम से स्लो स्पीड पर आगे बढ़ता जा रहा हूँ| पीछे मूडने पर ही उतराई का अन्दाजा हो रहा है| इस घाट की एक बात बहुत अच्छी है कि सड़क बहुत चौडी है और घाट भी बारह किलोमीटर फैला हुआ है| और सुबह भीड़ भी नही है|
एक बात जरूर खटकी| मौसम बहुत ही साफ है| महाबळेश्वर जा रहा हूँ, तो बारीश नही तो बादल तो होने चाहिए ना! लेकीन बिल्कुल निला आसमान! चढाई भी कोई खास नही लगी| बिल्कुल कम्फर्ट में होते हुए चला पा रहा हूँ! सामने घाट का एंड भी दिखाई दे रहा है| एक एक मोड़ लेते हुए सड़क नागीन जैसी उपर उठ रही है| और नीचे का नजारा दिखने लगा है| नीचे छोटे गाँव और दूर धोम डॅम का परिसर| एक बार साईकिल चलाते समय मिट्टी में एक चिटी देखी थी| मिट्टी के एक ढेर पर चिटी धिमे से चल रही थी| आज मै भी तो वैसे ही बढ़ रहा हूँ! उस चिटी के लिए वह मिट्टी का ढेर जितना छोटा या बड़ा होगा, जितना चुनौतिपूर्ण होगा, उतना ही तो यह पहाड़ मेरे लिए चुनौतिपूर्ण है| कुछ भी तो फर्क नही!
देखते देखते पंचगनी पास आता गया| लगभग सवा घण्टे में बारह किलोमीटर का घाट पूरा हुआ| मुख्य घाट यही है! इसके बाद अब कुछ चढाई और कुछ उतराई भी आएगी| बारह किलोमीटर का घाट चढ कर मै अब १२०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर आ गया हूँ और इसलिए बहुत आरामदायक ठण्डक मिल रही है! अब महाबळेश्वर यहाँ से बीस किलोमीटर दूर है| लेकीन सबसे कठिन चरण तो पार हुआ! बनी तो बनी, पंचगनी भी बनी!! बहुत सारी खुशी हो रही है! एक तरह से यकीन नही हो रहा है! पंचगनी में चाय पी ली| बिस्कीट भी खाए| हालाकी सादा होटल ढूँढने में थोड़ा समय लगा| लेकीन बजार में सब तरह की चीज़ें मिलती हैं| बिना रूके आगे बढ़ा| पंचगनी का पारसी प्वाईंट बहुत अच्छा लगा| यहाँ से धोम डॅम और अन्य स्थानों का नजारा बहुत अच्छा दिखाई देता है|
पंचगनी से आगे का रास्ता पेडों से बीच से आगे बढ़ता है| एक तरह से यह पठार है| इसलिए यहाँ कुछ बस्ती भी है, गाँव भी हैं| और अर्थात् फेमस हिल स्टेशन होने के कारण आनेवाला मानवीय प्रदूषण भी बहुत है| जगह जगह पर होटल, दुकान, रेसॉर्ट! इस रास्ते पर विराना कम ही लगा| पंचगनी में और इस रोड़ पर देखने के लिए कई सारे 'प्वाइंटस' हैं, लेकीन मेरा मन नही हुआ| मुझे महाबळेश्वर पहुँचना है और दोपहर के पहले वापस निकलना भी है| इसलिए बिना रूके आगे बढ़ता गया| बीच बीच में मामुली चढाई लगी| लेकीन पंचगनी में फिर साईकिल का गेअर २-२, २-३ कर दिया है| फिर भी चढाई जैसा कुछ लगा नही| बाद में मॅप में देखा तो पता चला कि यहाँ दो सबसे छोटे स्तर के घाट भी है|
लेकीन क्या सफर रहा है यह! देखते देखते महाबळेश्वर पहुँच गया| वाई से बत्तीस ही किलोमीटर थे, लेकीन मन में बहुत सन्देह था, डर था| पहुँचूंगा, यह तो लग ही रहा था, लेकीन इतनी आसानी से कतई नही| महाबळेश्वर कुछ तो सताता! पैदल चलना पड़ता, थकान तो होती! लेकीन कुछ भी नही हुआ और देखते देखते महाबळेश्वर में वेण्णा लेक पहुँचा| निकल कर सिर्फ तीन घण्टे ही हुए हैं! वाह! यहाँ थोड़ी देर रूका| फोटो खींचे| यहाँ से महाबळेश्वर गाँव सिर्फ दो किलोमीटर है| लेकीन उसमें चढाई थी और वहाँ थोड़ी सी थकान हुई| हल्के से क्रँप्स भी आए| इसलिए बहुत पानी पिया| महाबळेश्वर के बस स्टँड के पास गया और वहाँ से वापस मूडा| यहाँ एक वन वे रास्ता था और उस पर बहुत तिखी चढाई थी, इसलिए फिर नीचे उतर कर १-१ गेअर डालना पड़ा| यहाँ धीरे धीरे ट्रॅफिक जाम होने के आसार है| महाबळेश्वर में डबल आमलेट खाया और वापस निकला!
वेण्णा लेक
महाबळेश्वर में और कुछ देखने की इच्छा नही हुई| साईकिल पर वहाँ जाना, यही उद्देश्य था जो आराम से पूरा हुआ| बीच में जो दो प्वाईंट लगे- पारसी प्वाईंट और वेण्णा लेक, वही देखे| वेण्णा लेक अच्छा लगा| वहाँ से लौटते समय कुछ भी दिक्कत नही हुई| तेज़ गति के साथ आ पाया| बीच में कुछ साईकिलिस्ट भी दिखे| दोपहर के वक्त पारसी प्वाईंट के पास से नीचे का नजारा सुबह से अलग दिखाई दे रहा है| वे दोपहर की धूप में घाट चढ रहे हैं और सम्भवत: सुबह पुणे से निकल कर आए हैं| उन्हे हाथ से अभिवादन किया| जैसे ही घाट उतरने लगा, दूर वाई गाँव दिखाई देने लगा| काश, मौसम इतना साफ न हो कर थोड़ी बारीश होती तो? मन में ऐसा लग रहा है कि जैसे महाबळेश्वर ने मेरे साथ चीटिंग की| कुछ तो कठिनाई होनी चाहिए थी ना! शायद मेरी योजना बड़ी कारगर साबित हो रही है| मैने सामान लॉज में ही रख दिया और वाई में ही रूकने का निर्णय किया| सामान न लेते हुए चलने से बोझ तो कम होता है, लेकीन मानसिक रूप से भी हल्का लगता है| और वापस वाई में जाना मतलब आधे रास्ते पर उतराई और जाने के बाद लॉज ढूँढने की झंझट नही होगी| इससे मानसिक रूप से मै फ्रेश रहा| लेकीन अगर सामान ले कर आता और महाबळेश्वर- मेढा रास्ते से सातारा जाने का प्रयास करता, तो शायद घाट भी इतनी आसानी से नही चढ पाता और फिर सातारा जाने में भी कठिनाई होती| खैर!
दूर दिखनेवाला वाई गाँव
अपेक्षा के बहुत पहले डेढ बजे ही वाई में लॉज पर पहुँच गया| यह घाट फैला हुआ होने के कारण उतराई में भी कुछ गति के साथ उतर पाया और ट्रॅफिक जाम से भी बच पाया (पंचगनी में ट्रॅफिक जाम लग चुका था)! घी में शक्कर! दोपहर विश्राम किया| आज रविवार है| लगातार चौथा दिन भी मेरी योजना के अनुसार ही पूरा हुआ! साथ ही इस यात्रा का मुख्य चरण भी पूरा हुआ! दोस्तों को जब यह बताया तो एक मित्र- दिग्गज साईकिलिस्ट डॉ. पवन चांडक ने कहा कि वाई में भी एक दिग्गज साईकिलिस्ट रहता है, उनसे मिलो| प्रसाद एरंडे उनका नाम है| उनकी साईट मैने पढ़ी थी (www.prasaderande.in)| गिनीज बूक रेकार्ड होल्डर हैं वे! और वाई में रहते हैं| उन्हे फोन किया तो पता चला कि वे भी वाई में हैं| फिर उनसे भी अच्छा मिलना हुआ| उनसे अच्छी बातें भी हुईं! उनके मिल्खा सिंह और राहुल द्रविड के साथ फोटो देखें! उनसे कईं बातें सीखने को मिली| उन्होने कहा कि जो कोई १० किलोमीटर साईकिल चला सकता है, वह दुनिया में कही भी साईकिल चला सकता है| साईकिल चलाने के लिए चलना यह सबसे अच्छा व्यायाम है| इससे साईकिल के लिए मसल तैयार होते हैं| उन्होने साईकिल चलाते समय आहार कैसा हो, इसके बारे में भी बताया| काफी अच्छा लगा उनसे मिल कर| मेरे लिए क्या दिन रहा! एक तरह से अब भी विश्वास नही हो रहा है!
अब कल यहाँ से सातारा होते हुए सज्जनगढ़ जाऊँगा| दूरी लगभग पचास किलोमीटर ही होगी| और कोई बड़ी चढाई भी नही है| और होगी तो होगी, अब मुझे चढाई से डरने की जरूरत नही रही! बस पर्याप्त विश्राम, सही आहार और बेसिक्स का क्रम आगे भी जारी रखना है|
आज ६२ किलोमीटर चलाई साईकिल और कुल चढाई १२५३ मीटर
चढाई का विवरण
अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ६: वाई- सातारा- सज्जनगढ़
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
१ अक्तूबर की सुबह| नीन्द जल्दी खुल गई और उठने पर ताज़गी भी लगी| अच्छा विश्राम हुआ| कल तीसरा दिन होने के कारण शरीर अब इस रूटीन का आदी हो गया है| इसलिए नीन्द आसानी से लगी| सुबह पाँच बजे उठ कर तैयार हुआ| मेरा लॉज वाई बस स्टँड के ठीक सामने है| इसलिए सुबह भी अच्छी चहल- पहल है| बाहर चाय भी मिली| सुबह का सन्नाटा और अन्धेरा! हल्की सी ठण्ड, वाह! आसमान में जाने पहचाने मित्र- व्याध, मृग, रोहिणी, कृत्तिका! कुछ देर चाय का आनन्द लिया और फिर निकलने के लिए तैयार हुआ| लेकीन बाहर निकलने के पहले पाँच मिनिट फिर कंबल ओढ कर नीन्द का भी आनन्द लिया! आज मुझे कोई सामान साथ नही लेना है| सिर्फ पंक्चर का किट, पानी की बोतल और चॉकलेटस- बिस्किट आदि| इसलिए बिल्कुल फ्री हो कर जाऊँगा|
एक डर था की बारीश या कोहरा हो सकता है| लेकीन आसमान बहुत साफ है| सुबह छह बजे अच्छे से डबल प्लेट पोहे खाए और निकल पड़ा| महाबळेश्वर का रास्ता सामने से ही जाता है| आज इस पूरी यात्रा का सबसे अहम पड़ाव है| यहाँ से बारह किलोमीटर तक घाट है| एक तरह से इसी चरण पर पूरी यात्रा निर्भर करती है| अगर यहाँ मै साईकिल चला पाता हूँ, तो आगे भी दिक्कत नही आएगी| और अतीत की असफल यात्राओं का मलाल भी मिट जाएगा| इस तरह ये बारह किलोमीटर बहुत निर्णायक होंगे| मेरे गाँव परभणी में दो कहावतें हैं| लोग कहते हैं, 'दुनिया में जर्मनी वैसे भारत में परभणी' और इसके साथ 'बनी तो बनी, नही तो परभणी!' भी कहते हैं! देखते हैं आज इनमें से क्या होता है| ये विचार मन में होने के बावजूद काफी हद तक मन शान्त है|
नजारा इतना अद्भुत है कि बार बार मन में यही भाव आ रहा है- आहा, क्या कहें! और अचानक मन में 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है' गाने का संगीत बजने लगा! उसको सुनते सुनते आगे बढ़ रहा हूँ| वाई या लॉज से निकलते ही हल्की चढाई शुरू हुई और एक किलोमीटर बाद घाट शुरू हुआ| पहले किलोमीटर में लगा कि पैर थोड़े हेवी हैं| शायद पैरों को सही विश्राम नही हुआ है| लेकीन धीरे धीरे पैर खुलते गए| बहोत सारे लोग मॉर्निंग वॉक और जॉगिंग करते हुए दिखाई दे रहे है| घाट शुरू होने पर साईकिल का गेअर १-१ डाल दिया| गेअर सेटिंग में कुछ खराबी होने से नीचे उतर कर उसे डालना पड़ा| अब अच्छा खासा घाट शुरू हुआ| लेकीन कोई भी परेशानी नही है| आराम से स्लो स्पीड पर आगे बढ़ता जा रहा हूँ| पीछे मूडने पर ही उतराई का अन्दाजा हो रहा है| इस घाट की एक बात बहुत अच्छी है कि सड़क बहुत चौडी है और घाट भी बारह किलोमीटर फैला हुआ है| और सुबह भीड़ भी नही है|
एक बात जरूर खटकी| मौसम बहुत ही साफ है| महाबळेश्वर जा रहा हूँ, तो बारीश नही तो बादल तो होने चाहिए ना! लेकीन बिल्कुल निला आसमान! चढाई भी कोई खास नही लगी| बिल्कुल कम्फर्ट में होते हुए चला पा रहा हूँ! सामने घाट का एंड भी दिखाई दे रहा है| एक एक मोड़ लेते हुए सड़क नागीन जैसी उपर उठ रही है| और नीचे का नजारा दिखने लगा है| नीचे छोटे गाँव और दूर धोम डॅम का परिसर| एक बार साईकिल चलाते समय मिट्टी में एक चिटी देखी थी| मिट्टी के एक ढेर पर चिटी धिमे से चल रही थी| आज मै भी तो वैसे ही बढ़ रहा हूँ! उस चिटी के लिए वह मिट्टी का ढेर जितना छोटा या बड़ा होगा, जितना चुनौतिपूर्ण होगा, उतना ही तो यह पहाड़ मेरे लिए चुनौतिपूर्ण है| कुछ भी तो फर्क नही!
देखते देखते पंचगनी पास आता गया| लगभग सवा घण्टे में बारह किलोमीटर का घाट पूरा हुआ| मुख्य घाट यही है! इसके बाद अब कुछ चढाई और कुछ उतराई भी आएगी| बारह किलोमीटर का घाट चढ कर मै अब १२०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर आ गया हूँ और इसलिए बहुत आरामदायक ठण्डक मिल रही है! अब महाबळेश्वर यहाँ से बीस किलोमीटर दूर है| लेकीन सबसे कठिन चरण तो पार हुआ! बनी तो बनी, पंचगनी भी बनी!! बहुत सारी खुशी हो रही है! एक तरह से यकीन नही हो रहा है! पंचगनी में चाय पी ली| बिस्कीट भी खाए| हालाकी सादा होटल ढूँढने में थोड़ा समय लगा| लेकीन बजार में सब तरह की चीज़ें मिलती हैं| बिना रूके आगे बढ़ा| पंचगनी का पारसी प्वाईंट बहुत अच्छा लगा| यहाँ से धोम डॅम और अन्य स्थानों का नजारा बहुत अच्छा दिखाई देता है|
पंचगनी से आगे का रास्ता पेडों से बीच से आगे बढ़ता है| एक तरह से यह पठार है| इसलिए यहाँ कुछ बस्ती भी है, गाँव भी हैं| और अर्थात् फेमस हिल स्टेशन होने के कारण आनेवाला मानवीय प्रदूषण भी बहुत है| जगह जगह पर होटल, दुकान, रेसॉर्ट! इस रास्ते पर विराना कम ही लगा| पंचगनी में और इस रोड़ पर देखने के लिए कई सारे 'प्वाइंटस' हैं, लेकीन मेरा मन नही हुआ| मुझे महाबळेश्वर पहुँचना है और दोपहर के पहले वापस निकलना भी है| इसलिए बिना रूके आगे बढ़ता गया| बीच बीच में मामुली चढाई लगी| लेकीन पंचगनी में फिर साईकिल का गेअर २-२, २-३ कर दिया है| फिर भी चढाई जैसा कुछ लगा नही| बाद में मॅप में देखा तो पता चला कि यहाँ दो सबसे छोटे स्तर के घाट भी है|
लेकीन क्या सफर रहा है यह! देखते देखते महाबळेश्वर पहुँच गया| वाई से बत्तीस ही किलोमीटर थे, लेकीन मन में बहुत सन्देह था, डर था| पहुँचूंगा, यह तो लग ही रहा था, लेकीन इतनी आसानी से कतई नही| महाबळेश्वर कुछ तो सताता! पैदल चलना पड़ता, थकान तो होती! लेकीन कुछ भी नही हुआ और देखते देखते महाबळेश्वर में वेण्णा लेक पहुँचा| निकल कर सिर्फ तीन घण्टे ही हुए हैं! वाह! यहाँ थोड़ी देर रूका| फोटो खींचे| यहाँ से महाबळेश्वर गाँव सिर्फ दो किलोमीटर है| लेकीन उसमें चढाई थी और वहाँ थोड़ी सी थकान हुई| हल्के से क्रँप्स भी आए| इसलिए बहुत पानी पिया| महाबळेश्वर के बस स्टँड के पास गया और वहाँ से वापस मूडा| यहाँ एक वन वे रास्ता था और उस पर बहुत तिखी चढाई थी, इसलिए फिर नीचे उतर कर १-१ गेअर डालना पड़ा| यहाँ धीरे धीरे ट्रॅफिक जाम होने के आसार है| महाबळेश्वर में डबल आमलेट खाया और वापस निकला!
वेण्णा लेक
महाबळेश्वर में और कुछ देखने की इच्छा नही हुई| साईकिल पर वहाँ जाना, यही उद्देश्य था जो आराम से पूरा हुआ| बीच में जो दो प्वाईंट लगे- पारसी प्वाईंट और वेण्णा लेक, वही देखे| वेण्णा लेक अच्छा लगा| वहाँ से लौटते समय कुछ भी दिक्कत नही हुई| तेज़ गति के साथ आ पाया| बीच में कुछ साईकिलिस्ट भी दिखे| दोपहर के वक्त पारसी प्वाईंट के पास से नीचे का नजारा सुबह से अलग दिखाई दे रहा है| वे दोपहर की धूप में घाट चढ रहे हैं और सम्भवत: सुबह पुणे से निकल कर आए हैं| उन्हे हाथ से अभिवादन किया| जैसे ही घाट उतरने लगा, दूर वाई गाँव दिखाई देने लगा| काश, मौसम इतना साफ न हो कर थोड़ी बारीश होती तो? मन में ऐसा लग रहा है कि जैसे महाबळेश्वर ने मेरे साथ चीटिंग की| कुछ तो कठिनाई होनी चाहिए थी ना! शायद मेरी योजना बड़ी कारगर साबित हो रही है| मैने सामान लॉज में ही रख दिया और वाई में ही रूकने का निर्णय किया| सामान न लेते हुए चलने से बोझ तो कम होता है, लेकीन मानसिक रूप से भी हल्का लगता है| और वापस वाई में जाना मतलब आधे रास्ते पर उतराई और जाने के बाद लॉज ढूँढने की झंझट नही होगी| इससे मानसिक रूप से मै फ्रेश रहा| लेकीन अगर सामान ले कर आता और महाबळेश्वर- मेढा रास्ते से सातारा जाने का प्रयास करता, तो शायद घाट भी इतनी आसानी से नही चढ पाता और फिर सातारा जाने में भी कठिनाई होती| खैर!
दूर दिखनेवाला वाई गाँव
अपेक्षा के बहुत पहले डेढ बजे ही वाई में लॉज पर पहुँच गया| यह घाट फैला हुआ होने के कारण उतराई में भी कुछ गति के साथ उतर पाया और ट्रॅफिक जाम से भी बच पाया (पंचगनी में ट्रॅफिक जाम लग चुका था)! घी में शक्कर! दोपहर विश्राम किया| आज रविवार है| लगातार चौथा दिन भी मेरी योजना के अनुसार ही पूरा हुआ! साथ ही इस यात्रा का मुख्य चरण भी पूरा हुआ! दोस्तों को जब यह बताया तो एक मित्र- दिग्गज साईकिलिस्ट डॉ. पवन चांडक ने कहा कि वाई में भी एक दिग्गज साईकिलिस्ट रहता है, उनसे मिलो| प्रसाद एरंडे उनका नाम है| उनकी साईट मैने पढ़ी थी (www.prasaderande.in)| गिनीज बूक रेकार्ड होल्डर हैं वे! और वाई में रहते हैं| उन्हे फोन किया तो पता चला कि वे भी वाई में हैं| फिर उनसे भी अच्छा मिलना हुआ| उनसे अच्छी बातें भी हुईं! उनके मिल्खा सिंह और राहुल द्रविड के साथ फोटो देखें! उनसे कईं बातें सीखने को मिली| उन्होने कहा कि जो कोई १० किलोमीटर साईकिल चला सकता है, वह दुनिया में कही भी साईकिल चला सकता है| साईकिल चलाने के लिए चलना यह सबसे अच्छा व्यायाम है| इससे साईकिल के लिए मसल तैयार होते हैं| उन्होने साईकिल चलाते समय आहार कैसा हो, इसके बारे में भी बताया| काफी अच्छा लगा उनसे मिल कर| मेरे लिए क्या दिन रहा! एक तरह से अब भी विश्वास नही हो रहा है!
अब कल यहाँ से सातारा होते हुए सज्जनगढ़ जाऊँगा| दूरी लगभग पचास किलोमीटर ही होगी| और कोई बड़ी चढाई भी नही है| और होगी तो होगी, अब मुझे चढाई से डरने की जरूरत नही रही! बस पर्याप्त विश्राम, सही आहार और बेसिक्स का क्रम आगे भी जारी रखना है|
आज ६२ किलोमीटर चलाई साईकिल और कुल चढाई १२५३ मीटर
चढाई का विवरण
अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ६: वाई- सातारा- सज्जनगढ़
शानदार यात्रा,
ReplyDeleteबहुत बढिया सरजी आप की विवेचन शैली काफी सुंदर है।साक्षात आपके साथ यात्रा का अनुभूति हो गयी ।आपकी यात्रा हमारेलिये हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत बनी है।
Deleteप्रकृति की गोद में थकान का काम नहीं
ReplyDeleteलगे रहो
बढे चलो
वाह बढ़िया।
ReplyDeleteAapki bbat jachi ki महाबळेश्वर में और कुछ देखने की इच्छा नही हुई| साईकिल पर वहाँ जाना, यही उद्देश्य था जो आराम से पूरा हुआ| Aur Prasad ke saath ke anubhav ka bhi maja aaya (Y)
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