Monday, October 16, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे) 
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
 

४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई

३० सितम्बर| रात अच्छी नीन्द हुई| सुबह नीन्द जल्द खुली| पास से ही निरा नदी बह रही है! शाम के समय पता नही चला, लेकीन अब उसकी गूँज सुनाई दे रही है! मेरे जल्द उठने कारण घर में सब जल्द उठ गए| आज दशहरे का दिन है! आज मेरी पहली परीक्षा होगी|‌ पहले लगा था कि कोहरा होने से थोड़ी देर से निकलना पड़ेगा| लेकीन समय पर सवा छह बजे निकल पाया| मित्र दत्ताभाऊ ने वाई में भी एक लॉज बताया है, आज वही ठहरूँगा| भाभीजी ने सुबह जल्दी उठ कर मेरे लिए नाश्ता बनाया| भूख़ तो नही है, फिर भी वह खा कर निकला| दोस्त के घर से निकला| साईकिल यात्रा के लिए आदर्श मौसम| बारीश रूक गई है, लेकीन माहौल बारीश जैसा है!

भोर गाँव से निकलते ही हल्की चढाई शुरू हुई| इसके साथ धीरे धीरे दूर दिखाई देनेवाले पहाड़ भी करीब आने लगे| मराठा इतिहास की दृष्टि से रोहिडेश्वर किला महत्त्वपूर्ण है| यहीं शिवाजी महाराज ने स्वराज्य स्थापना की शपथ ली थी! वही रोहीडेश्वर किले के करीब से यह सड़क जाएगी| मन में हल्का सा डर भी है| क्या यह पहला घाट मुझे पास करेगा? हल्की चढाई दस किलोमीटर तक है और घाट छह किलोमीटर का है| सड़क बहुत बढ़िया बनी है| बरसाती मौसम के बाद भी सड़क अच्छी है| छोटे छोटे गाँव लग रहे हैं| एक गाँव में दूर से एक गाना सुनाई दिया| गाना तो जाना पहचाना है, लेकीन सुनाई नही दे रहा है| पास जाने पर सुनाई दिया| इससे माहौल और भी आकर्षक बना| हर गाँव में नवरात्रि का त्यौहार मनाया जा रहा है|






रोहिडेश्वर का पहला दर्शन!




दस किलोमीटर पार करने के बाद सड़क मूडी और घाट शुरू हुआ| घाट के पहले मोड़ पर एकदम तेज़ चढाई आई| हालाकी १-१ गेअर पर उतनी कठिनाई नही हुई| फिर भी थोड़ी ज्यादा ताकत लगानी पडी| आगे बढने के बाद चढाई जारी रही, लेकीन उतनी तिखी नही है| जरूर यह पहला मोड़ होने के कारण तेज होगा| नजारे बेहत सुन्दर है| आराम से आगे बढ़ने लगा| थोड़ी ही देर में लगा कि कुछ दूरी मै १-१ के बजाय १-२ पर भी आगे जा सकता हूँ| फोटो खींचते खींचते आगे बढ़ता गया| बेहद अद्भुत नजारे हैं! क्या कहे!








उपर चढ़नेवाली सड़क!


पीछे देखने पर





कोई कठिनाई नही हो रही है| बादल होने के कारण गर्मी भी नही है| अब पीछे मूडने पर नीचे दूर गाँव दिखाई दे रहे हैं| घाट का अगला चरण सामने दिखाई दे रहा है| एक- दो बार फिर १-१ पर आना पड़ा, लेकीन बाकी कोई दिक्कत नही हुई| बीच में कोई भी होटल नही है! इसलिए घाट के पहले ही बिस्किटस और चिक्की खायी थी| भाभीजी ने सुबह जल्दी उठ कर बनाया नाश्ते के कारण ही अब तक मुझे फ्रेश लग रहा है| वरना बड़ी दिक्कत हो जाती| आराम से घाट पूरा किया| यहाँ से एक रास्ता मांढरदेवी मन्दीर की‌ तरफ जाता है| यहाँ पर अच्छा नाश्ता किया| चाय- बिस्किट भी लिए| यहाँ से अब वाई के लिए तेज़ उतराई मिलेगी|




यहीं से मै उपर आया हूँ


पाच किलोमीटर की उतराई है| घाट अब नीचे उतरेगा| यहाँ से अब महाबळेश्वर के पहाड़ और नीचे दूर धोम डॅम दिखाई देने लगा| अच्छा झरना दिखाई दिया| जल्द ही वाई पहुँच गया| यहाँ बस स्टँड के पास एक लॉज में कमरा बूक किया| मुझे जो चाहिए था, वैसे ही साधारण सा लॉज मिला| लेकीन अब सुबह के दस बज चुके हैं| इसलिए वाई के आगे धोम डॅम देखना है, उसे शाम को देखूँगा| पहले सब सामान उतारा, थोड़ा विश्राम किया| वाई बस स्टँड के सामने महाबळेश्वर रोड़ पर ही यह लॉज है| यहीं पर मै अब दो दिन ठहरूँगा|













शाम को धोम डॅम देखने गया| जाते समय मेणवली गाँव देखा| यहीं पर स्वदेस फिल्म का कुछ शूटिंग हुआ था| और 'मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में है' गाना भी यहीं पर फिल्माया गया है! और आज दशहरे का दिन! मेणवली गाँव का और एक महत्त्व यह है कि यहाँ पर अब भी नाना फडणीस का एक घर है (पारंपारिक वाडा)| मराठा इतिहास और भारत के इतिहास में भी नाना फडणीस एक बहुत महत्त्वपूर्ण नाम है! इसके बाद नृसिंह मन्दीर भी देख लिया| लेकीन अब दिन ढलता जा रहा है| और आते समय अन्धेरा भी हो जाएगा, बारीश भी हो सकती है| इसलिए बहुत जल्दी में यह मन्दीर और डॅम देखा| डॅम देखने के लिए करीब दो सौ मीटर चलना था| एक छोटी सी चढाई थी| लेकीन बहुत आराम से वहाँ चढ सका| इससे साफ महसूस हुआ कि मेरा स्टॅमिना बहुत अच्छा हुआ है| चढाई तिखी थी, लेकीन बिना साँस फूले चढ पाया और बिना डरे तेज़ी से नीचे उतर भी गया| बिना वक्त गवाँए तेज़ी से निकल पड़ा| अन्धेरा होने के पहले वाई गाँव में पहुँच गया| लेकीन अच्छी बरसात आयी थी| इसलिए थोड़ा भीग भी गया|


नाना फडणीस का वाडा










नृसिंह मंदीर




इसी मन्दीर में धौम्य ऋषी की समाधी है जिससे गाँव को नाम मिला धोम

लेकीन क्या दिन रहा! सुबह छत्तीस किलोमीटर साईकिल चलाई थी और शाम को भी बीस किलोमीटर चलाई| आज पहला कठिन पेपर था, फिर भी आराम से मै "पास" हुआ| चढाई का डर बहुत कम हुआ| अब शाम को जल्द सोना है और अच्छे से विश्राम करना है| कल इस पूरी यात्रा का सबसे बड़ा दिन होगा| कल मै महाबळेश्वर जाऊँगा| सामान लॉज पर रखने से जाने में थोड़ी आसानी जरूर होगी| कल इस यात्रा का आधा हिस्सा भी पूरा हो जाएगा| देखते हैं!


भोर से वाई के बीच ८६० मीटर का क्लाईंब




आज कुल दूरी ५६ किमी हुई|



अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: वाई- महाबळेश्वर- वाई

2 comments:

  1. बढते रहो, कोई हमसफर मिले ना मिले, अकेले चलने का ना यात्रा है।

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