Sunday, April 21, 2013

ओशो: एक आकलन




ओशो! हाल ही में उनकी जीवनी पढने में आयीं। ओशो ने कभी किताबें नही लिखीं। उनकी कही जानेवाली किताबें उनके भाषणों का संग्रह है। इसी प्रकार उनकी जीवनी उनके कई हजार भाषणों में स्वयं के बारे में दिए गए कथन का संकलन मात्र है। यह एक तरह से बोली गयी जीवनी है जो कि १३०८ पृष्ठों में संकलित की गई है।

इस जीवनी को पढने का अनुभव अद्भुत है। ‘ओशो हमारी विचारधारा के विपरित है, वे गलत है अथवा वे मात्र सेक्स और ड्रग से ही सम्बन्धित है,’ ऐसा सोच कर हममें से कितने सारे लोग शायद ओशो को जानने से वंचित रह जाते होंगे। इसलिए इस जीवनी को पढने के पश्चात् मन में हुई प्रतिक्रियाओं को प्रस्तुत कर रहा हुँ। 

ओशो अथवा जो लोग उन्हे १९८९ के पूर्व जानते होंगे उनके लिए रजनीश.....  निश्चित रूप से एक असामान्य व्यक्तित्व।एक अलग किस्म के साधु अथवा संत। ओशो को जानने का प्रयास करते समय दिक्कत यह होती है, कि हम उन्हे अपने पूर्वग्रहों से बनाए गए दायरे में ही देखते है। और यह स्वाभाविक भी है। परंतु जैसे उनके बारे में आकलन बढता है, तब महसूस होता है, कि उनका व्यक्तित्व काफी व्यापक है। जैन परिवार में जन्मे वह जैन नही थे। भारत में जन्मे वह भारतीय नही थे। वरन् उनकी गरिमा इन सब मर्यादाओं से परे है।

अतीत में जैसे गुरू नानक साहाब और रामकृष्ण परमहंस जी ने जिस तरह का प्रयास किया था, कुछ उस तरह का परंतु उससे अधिक गहन तथा अधिक वैश्विक प्रयास ओशो ने किया। गुरू नानक और रामकृष्ण परमहंस ने हिंदु, मुस्लीम, ईसाई, बौद्ध आदि सभी धर्मों का सार तत्त्व निकाल कर उसे जोड कर एक सच्चे तत्त्व को प्रस्तुत करने का प्रयास किया था। इस दिशा में ओशो और आगे गए हुए प्रतीत होते है। उन्होने धर्म, सम्प्रदाय तथा परंपराओं के नाम पर संकुचित किए गए सार तत्त्व का एक अद्भुत संश्लेषण किया, उसे संग्रहित किया, उसे simplify एवम् amplify भी किया। आज की भाषा में, आज के इन्सान के लिए अनुकूल तरिके से विश्व के सामने रखा। भगवान बुद्ध ने जो बातें कही, वे यथार्थ है; पर उनके बाद पच्चीससौ साल बीत चुके है और मानव बदला है। यह ध्यान में रखते हुए उन्होने भगवान बुद्ध की बातों को आज के समय के अनुरूप सामने रखा। यही कार्य उन्होंने सभी धर्म, सम्प्रदाय तथा विचारधाराओं के साधु, संत तथा साक्षात्कारी व्यक्तियों के साथ किया। इसमें ख्रिश्चन, इस्लामी, बौद्ध, जैन, पारसी, सीख्ख और अन्य सभी मतों के महान व्यक्ति थे। वरन् संत पलटूदास, बोधिधर्म, अतिसा और भी कई ऐसे कई महान व्यक्ति थे, जिन्हे आज इतिहास की धूल ने हमारे नजरों से ओझल कर दिया है। उन्होने अज्ञात को ज्ञात तो किया ही, पर ज्ञात पर भी काफी प्रकाश डाला। 

ओशो की वाणि तथा उनका विवेचन सुनने योग्य है। उसका वर्णन शब्दों में करना ठीक नही होगा।

उनकी यह जीवनी उनके असामान्य जीवन को बारिकी से दर्शाती है। बचपन से ही वह तीक्ष्ण तथा दृढ प्रज्ञा के व्यक्ति थे। उनका बचपन, युवावस्था तथा आत्मसाक्षात्कार और फिर व्याख्याता और अध्यापक का कार्य विस्तार से बताया गया है। आचार्य के रूप में बीस साल तक देश में जनजागरण करने के पश्चात उन्हें उनके ‘अपने लोग’ मिल गए और उनके साथ उन्होने नव संन्यास आन्दोलन शुरू किया। पारंपारिक संन्यास जीवन  विरोधी था। उन्होने उस संन्यास के सभी कर्मकाण्ड तथा कालबाह्य तरिकों को छोड कर मात्र ध्यान पर आधारित तथा जीवन केन्द्रित संन्यास का समर्थन किया। वे खुद को कोई मसीहा, भगवान या कोई प्रेषित नही समझते थे। सभी व्यक्तियों के अन्दर बसे भगवान को पुकारने के लिए उन्होने खुद को भगवान कहना शुरू किया। खुद के आत्मसाक्षात्कार के अनुभव सामने रखे। वे समझाते है कि जैसे धर्मों में बताया गया है, वैसे आत्मसाक्षात्कार कोई सैकडों या हजार जन्मों के प्रयास का ही परिणाम नही है, अगर कोई चाहें तो इसी जीवन में स्वयं का साक्षात्कार कर सकता है। इस प्रकार उनका समस्त प्रतिपादन अनुठा और अपूर्व है और आज के समय के अनुकूल है। मूलत: वह जीवन विरोधी न हो कर जीवन केन्द्रित है। जीवन के सभी पहलूओं को स्वीकार करनेवाला है।

जैसे उनका कार्य बढता गया और नए नए ‘कम्युन’ बनते गए, वैसे राजनीतिक तथा धार्मिक सत्ताओं ने उनका विरोध करना शुरू किया। और यह स्वाभाविक भी था। क्यों कि बचपन से उन्हों ने इन लोगों के विरुद्ध जैसे युद्ध आरम्भ किया था। धर्मसत्ता (जिसमें सभी सम्प्रदाय एवम् परम्पराएँ शामील है) की स्थिति आज मूर्दाघर जैसी है, यह उनका कहना था। उन्होने धर्मसत्ता के अपराधों पर कठोर प्रतिपादन किया। सभी धर्मों के पण्डित और पुरोहित अपराधी है यह उनका कहना है। उन्होने पोप और अमरिका के उस समय के अध्यक्ष रेगन जैसे व्यक्तियों के बारे में भी कहा की वे बडे अपराधी है। एक आम आदमी के द्वारा यह कहा जाना नि:संशय काफी हिम्मत और वैचारिक प्रतिबद्धता का सूचक कहा जा सकता है।

उनके प्रबोधन के कारण लोगों का विश्वास दूर जाता हुआ देख कर राजनीतिक और धार्मिक सत्ताएँ बुरी तरह डर गईं और अमरिका में ओशो के कम्युन को नष्ट कर दिया गया। उन्हें काफी प्रताडना दे कर अमरिका से एक राजद्रोही जैसे निकाल दिया गया। अमरिकी सेना, पुलिस और सरकार उनके कार्य को रोकने के लिए ऐसे सामने आयी जैसे वह ओसामा जैसे किसी दुश्मन से लड रही हो। समूचे ख्रिश्चन जगत् एवम् अमरिका जैसी महासत्ता से ओशो की टक्कर वाकई पढने लायक है। एक अकेले जागे हुए इन्सान का भय इतनी महान सत्ता भी सह नही सकती इसका वह प्रमाण है। बुरी तरह पीडा दे कर और प्रजातंत्र के नाम के नीचे शैतानी ताकत के द्वारा कुचल कर और अंत में विषबाधा कर ओशो को अमरिका ने बाहर कर दिया। और फिर किसी भी देश में उनके कार्य को काफी समय तक ठीक चलने नही दिया। सोए हुए लोगों में इतना भय और इतना विलक्षण प्रभाव एक जागा हुआ इन्सान उत्पन्न कर सकता है, यह विश्व ने देखा। 


असामान्यता और अपने समय से आगे होने का एक परिणाम यह भी होता है, कि प्रचलित तथा पारंपारिक नजरें ऐसे अविष्कार का आकलन करने में असमर्थ होती हैं। जो कोई उन्हे अपने अपने नजरिए से देखता है और कही न कही उनको देखते समय पूर्व परम्परा से बनी धारणाएँ चरमराती हैं। इसकी एक प्रतिक्रिया तो रचनात्मक और नम्र हो सकती है कि चलिए, देखें इस इन्सान को जो हमारा सब कुछ हिला के रख दे रहा है। और दुसरी प्रतिक्रिया तो नकारात्मक होती ही है। जब भी हमें कुछ अलग दिखता है, तब हम उसे सकारात्मक नही तो नकारात्मक तरिके से देखते है। ओशो के साथ यही हुआ और यही हो रहा है। उनके अपूर्व विचारों को समझना आसान नही है और इसलिए ‘वह हमारी विचारधारा के विपरित है, मात्र सेक्स और ड्रग्ज के समर्थक है’ ऐसे पूर्वग्रहों में कई लोग फंस जाते है।

ओशो कहते है, उनका कार्य ऐसा है, कि वह हृदय को हिला के रख देगा। एक तो अत्यंत अनुकूल प्रतिक्रिया आएगी या फिर अत्यंत प्रतिकूल प्रतिक्रिया आएगी। या तो लोग उन्हे सुनते और देखते ही प्रभावित होंगे या फिर तिरस्कार करने लगेंगे। ओशो कहते है, यही उनकी ताकत है। प्रेम हो या तिरस्कार हो, हृदय से संवाद जरूर होगा। और यदि तिरस्कार भी कोई करता है, तो भी वह उनकी प्रक्रिया का भाग बन रहा है। क्यों कि तिरस्कार होने के कारण ऐसा व्यक्ति और कुछ लोगों के सामने उनके बारे में टिप्पणि करेगा और उससे कुछ और लोगों में उनके बारे में कौतुहल निर्माण होगा। ओशो कहते है, कि उनके साथ या तो आस्था या फिर तिरस्कार ये ही दो विकल्प है और मूलत: दोनो उनके कार्य के लिए अनुकूल है। उपेक्षा या अनास्था को अवसर है हि नही।

ओशो के बारे में कुछ जानना हो तो सबसे सही तरिका शायद उनके कुछ व्याख्यानों को पहले सुनना है। पूर्वग्रह और पहले के विचार जरूर होंगे, पर उन्हे थोडा दूर रख कर यदि हम उनके कुछ व्याख्यान सुनते है, तो शायद हम उनके विचारों के वैभव का रस ग्रहण कर सकेंगे। 

ओशो का सन्देश या उनका विचार संक्षेप में क्या है? वे यह नही कहते है कि मुझे एक गुरू की भाँति या एक पूजनीय प्रेषित की भाँति देखिए। मै एक मित्र जैसा हुँ जो आपको मात्र राह दिखा रहा हुँ। वे यह भी कहते है, कि मुझे मित्र भी मत कहिए, क्यों कि मित्र कहने से भी कुछ आसक्ती निर्माण होगी। वे कहते है, कि मै तो मात्र एक अंजान राही हुँ, जो आपको मात्र रास्ता दिखा रहा हुँ। मुझमें आसक्त या मुझे देखते रहने से अच्छा है कि आप मेरे द्वारा अनुभव लिए गए रास्ते पर आगे चलिए। 



WITNESSING




उनका जीवन सन्देश संक्षेप में कहना हो तो साक्षीभाव या जागरूकता कहा जा सकता है। वे कहते है, कि सब कुछ त्यागने की या जीवन को छोडने की आवश्यकता नही है। आवश्यकता जागने की है, साक्षी और सजग हो कर द्रष्टा बनने की है।

अधिक जानकारी

१.     उनके हिन्दी तथा अंग्रेजी व्याख्यान यहाँ नि:शुल्क उपलब्ध है।
२.     उनकी जीवनी यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है।   


3 comments:

  1. One of his Interview ..Osho has clarified the meaning of word BHAGWAN. In Prakrit language and In Sanskrit language ..The word Bhagwan means the person who is Enlightened and not the God as we think. So Buddha and Mahavir are not God but they are called Bhagwan.

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  2. धन्यवाद! यह भी एक पहलू है| भगवान का अर्थ- the blessed one भी होता है| H.G. Wells has said that the Buddha is the most godless man and yet the most godly. :)

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