Wednesday, September 30, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर


१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . .
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
 
६.अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा
 
हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर

१९ दिसम्बर की सर्द सुबह! साढ़ेपाँच बजे डॉर्मिटरी से निकल कर बस स्टँड की तरफ पहुँचा| उनकी पुकार बड़ी दूर तक गूँज रही है| बस निकलने में दो मिनट है; इसलिए जा कर चाय ली जा सकती है| सीट पकड़ने का सवाल ही नही; क्यों कि उंगलियों पर गिने जा सकनेवाली सवारियाँ ही बैठी हैं| लेकिन ठण्ड. . . आज हिमालय से निकलने का दिन आ ही गया| अभी तकनिकी रूप से सुबह हो भी गई हो तो रात ही चल रही है| कम से कम एक घण्टा अन्धेरा रहेगा और तब तक आनेवाला नजारा छूट जाएगा| लेकिन उजाले के बजाय प्रतीक्षा धूप की है|

ठिठुरते हुए चाय पी ली और बस चल पड़ी| नजारा अन्धेरे में ही पीछे जाता रहा| बड़ी देर बाद उजाला हुआ और धूप खिलने तक तो बस पिपलकोटी पहुँच गई| अब जान में जान आ रही है| सुबह की धूप में हिमालय का नजारा और अलकनन्दा! चाहे बुद्धी कितना भी अस्वीकार करें; पहाड़ों में होने पर एक डर तो बना ही रहता है| रास्ता इतना दुर्गम है कि मन के नीचले तल में एक असुरक्षा की भावना होती ही है कि एक बार यहाँ से निकल कर मैदान में कब पहुँचूं... क्यों कि रास्ता इतना खतरनाक है. . वास्तव में इन्सान पंच महाभूतों से बना हुआ होता है और जब हम पहाड़ों में जाते है तो जागृत स्तर पर नही लेकिन अर्धजागृत मस्तिष्क में जरूर जमीन- धरती माँ की याद आती रहती है| बल्कि धरती से टूटे होने का भी अस्पष्ट ख्याल होता है| क्यों कि हम इन पाँच तत्त्वों से बने हुए हैं और इसलिए यदि हम ऐसी जगह जाए जहाँ हवा, पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश से हमारा सम्पर्क खण्डित हो जाए तो हम असहज होते हैं| समन्दर के नीचे, किसी बन्द टनेल में; किसी रोप वे में बैठे हुए यही तो महसूस होता है अलग अलग अनुपात में| शायद इसी वजह से घर में रोता हुआ छोटा बच्चा खुली हवा में ले जाने पर तुरन्त शान्त होता है| खैर|

जोशीमठ छोडने के बाद ऊँचाई निरंतर कम होती है; बाद में कोई भी ऊँचा स्थान नही है| लेकिन सड़क चढती और उतरती ही रहती है| एक पहाड़ी पार करने पर फिर दूसरी| उतरने के लिए भी चढना होगा; जैसे हिमालय में जाते समय एक चोटि पार करने के बाद खाई से गुजरना होता है. . . इसी लिए तो इसे नगाधिराज कहते हैं| जोशीमठ से ऋषीकेश की दूरी महज २५३ किलोमीटर है| लेकिन पहाड़ी रास्ता होने से पूरा दिन लगता है| बीच बीच में रास्ता अधिक दुर्गम भी दिख रहा है| नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग! बीच में एक स्थान से बड़ा अपूर्व नजारा देखने को मिला| एक जगह पर हिमालय की रेखा साफ नजर आ रही थी| जैसे उत्तुंग पर्वत शिखर पुन: एक बार आशीर्वाद दे कर विदा कर रहे हो और इस दृश्य के पास ही नीचे घाटि से बहनेवाली गंगा नदी| जब पहली बार हिमालय के पास आया और जब पहली बार हरिद्वार के निकट गंगा नदी देखी थी; तो ऐसी शान्ति महसूस हुई थी| वाकई पहाड़ की हवा कुछ और है| यहाँ तक कि कहते हैं कि पहाड़ आम बस्ती का स्थान न हो कर ध्यान या साधना की भूमि ही है| इसी लिए इसे देवभूमि कहते हैं या कश्यप ऋषी का स्थान होने के कारण उस भूमि को कश्मीर कहा जाता है|

अब ऋषीकेश में एक- दो दिन ठहरना है| वहाँ गंगा के तट पर और एक आश्रम में जाऊँगा| यहाँ ऋषीकेश में वाकई हिमालय का चरणस्पर्श होता है| यहाँ हिमालय की सीमा जो है| ऋषीकेश पहुँचने तक दोपहर के चार बजे है| अर्थात् लगभग नौ- दस घण्टे लगे इस यात्रा में| बहुत थकान हो रही है| और कुछ उदासी भी छा रही है| कुदरत के पास जाते है तो उसकी कृपा से प्रसन्न हो उठते हैं और इसी कारण उससे दूर जाते समय अस्वस्थता तो होगी ही| ऋषीकेश पहुँचने पर एकदम शहर जैसा लग रहा है|

यहाँ भी सरकारी डॉर्मिटरी ढूँढी| एक जगह पसन्द नही आयी तो दूसरी डॉर्मिटरी चला गया| यह बिल्कुल गंगा के किनारे स्थित है| यह सरकारी डॉर्मिटरी वास्तव में एक रेसॉर्ट के भीतर है| इसलिए यहाँ दाम थोड़ा अधिक हैं- एक बिस्तर के २५० रूपए- लेकिन सुविधा बेहतर है| साथ ही गंगा से होटल गंगा से सटा है| रमणीय बनाया गया है| जब नदी ऊँचे पहाड़ों से गिरनेवाले झरनों की और प्रपातों की धारा के रूप में दौडती है तो उसका एक अलग रूप होता है| यहाँ गंगा के रूप में अनगिनत पहाड़ी धाराएँ शान्ति से बह रही‌ हैं| यह जीवन की ओर एक संकेत तो नही? जब हम उथले होते हैं; जब गिरते और उठते हैं; तो बहुत आवाज के साथ चलते हैं; संघर्ष होता हैं| लेकिन जब गहराई मिलती है और स्थिर होते हैं; तो बिल्कुल शान्त होते हैं|

ऋषीकेश में निवास की व्यवस्था तो हो गई; लेकिन मन अशान्त है| एक तो यहाँ से मोबाईल में इंटरनेट मिल गया| फिर वही शहर का घिसा- पिटा माहौल| कुछ लोगों को पहाड़ में जाते समय अक्लमटाईज़ होना पड़ता है| ऊँचाई- ठण्ड का आदि होना पड़ता है| शायद मुझे वापस शहर में आने के लिए थोड़ा अक्लमटाईज़ होना पड़ेगा| वह शाम नदी के पास ही बिती| यहाँ ठण्ड एकदम कम है| गंगा नदी कुछ सान्त्वना दे रही है, बता रही है कि तुम अब भी पहाड़ के करीब ही हो| आज के दिन अब ऋषीकेश में कहीं जाना नही होगा| मुश्किल से एक होटल में जा कर कुछ भोजन कर पाया| जैसे ही रात हुई, पहाड़ में कई स्थान रोशनी से भर गएं| पहाड़ के बीचोंबीच कितने लोग रहते हैं| एकाध वाहन गुजरता है|

कई बार यह भी महसूस किया है कि पहाड़ में जाने के पहले कितने दिन हम उस यात्रा के लिए तरसते हैं| चाहे कोई भी यात्रा हो| पिकनिक ही हो| लेकिन एक बार जब हम यात्रा में होते हैं; 'गन्तव्य' स्थान पर होते हैं; तो फिर मन भटकने लगता है| वापस चला जाता है| पहाड़ में घूमते हुए भी हमें शहर की और घर- कारोबार की याद अनिवार्य रूप से आती ही है| और अब पहाड़ से दूर आने पर पहाड़ की बड़ी याद आ रही है| खैर, पहाड़ के पास होने का अनुभव करने के अभी एक- दो दिन बचे है|


दूर हिमालय के शिखर और पास में बहती गंगा. . .


































































SHIVALIK THE JEWEL OF BRO!!
 
ऋषीकेश में ही तो पहाड़ी सड़क शुरू और समाप्त होती है. .








































Monday, September 28, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा


१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . . 
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में

४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर


औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा
दिसम्बर. आज इस यात्रा का चरम् चरण होगा| आज औली जाना है| औली ही इस यात्रा का मुख्य आकर्षण है| औली एक स्कीइंग स्पॉट है| औली जाने का या इस पूरी यात्रा मुख्य उद्देश्य यह था कि, जाड़े के मौसम में उत्तराखण्ड में जहाँ सड़क खुली हो ऐसे ऊँचे स्थान पर जाना| पीछले साल ही लदाख़ जा कर आया था, इसलिए सोचा था कि उतनी नही; पर थोड़ी बहुत बरफ जरूर मिले| कल बद्रिनाथ रोड़ पर यह इच्छा काफी हद तक पूरी हो गई है| औली की ऊँचाई २७०० मीटर से ३००० मीटर तक है|
जोशीमठ से औली जाने के कम ही विकल्प है| एक विकल्प तो जीप बूक कर जाना है| अर्थात् यह बहुत महंगा है| वहाँ भी शेअर जीपें चलती हैं, ऐसा सुनने में तो आया, लेकिन वैसा कुछ दिखा नही| और एक रास्ता बचा था और वह था ट्रेक करते जाना| औली जोशीमठ से लगभग १८ किलोमीटर दूरी पर है| नीरजजाट जी के ब्लॉग से प्रेरणा ले कर पैदल जाने की योजना बनाई है| ट्रेक करने के भी दो विकल्प है| एक विकल्प है की सीधी सड़क से चलो- लाँग कट| इसमें १८ किलोमीटर चलना पड़ेगा| दूसरा विकल्प है कि पगडण्डी से चलो- शॉर्ट कट| इसकी दूरी लगभग साढ़ेसात किलोमीटर ही है| अर्थात् इसमें चढाई बहुत ज्यादा रहेगी| आज सड़क पर जा कर देखूँगा कैसे जा पाता हुँ|
शंकराचार्य के मन्दिर के पीछे से औली जाने का पैदल रास्ता जाता है यह नीरज जी के ब्लॉग पर पढ़ा था| लेकिन उस सड़क पर आगे जाने पर रास्ता खो गया| एक सज्जन से पूछा तो उसने बताया कि यह सड़क तो जंगलात जाती है; वहाँ से जाओ| फिर थोड़ी देर भटकने के बाद एक पगडण्डी से जुड़ा| यह पगडण्डी शॉर्ट कट की है| बीच बीच में यह मुख्य सड़क से भी जुड़ेगी| जैसे ही पगडण्डी उपर उठने लगी; नजारा बेहद सुन्दर होने लगा| दूर जोशीमठ के नीचे अलकनन्दा दिखाई दे रही है| और वो दुर्गम स्थान पर बंसा हुआ एक गाँव! लेकिन थोड़ी ही देर में कठिनाई आने लगी| पगडण्डी अच्छी थी| जो तजुर्बेकार ट्रेकर होंगे, वे तो कहेंगे कि यह तो पक्की सड़क ही है; पगडण्डी थोडे ही है! लेकिन मुझे कठिनाई हुई क्युंकि पगडण्डी में एक एक स्टेप की लम्बाई या ऊँचाई अधिक है| लगभग दो फीट की एक स्टेप और निरन्तर ऐसी स्टेप्स| जल्द ही थकने की नौबत आयी| थोड़ा चलना और फिर रूकना शुरू हुआ| जोशीमठ के उपरी हिस्से की बस्ती अब भी चल रही है| कुछ कुछ घर लग रहे है| एक जगह माँग कर पानी पिया| यहाँ भी पेडों पर अच्छे फूल हैं! लेकिन अब पैर लड़खड़ा रहे हैं|
यह इसलिए हो रहा है कि शायद मुझे ट्रेकिंग का पहले का कोई अनुभव नही है| कल मै जरूर उन्न्सीस किलोमीटर चला था; लेकिन वह पगडण्डी नही थी| और पण्डुकेश्वर में पगडण्डी पर थोड़ा ही चला तो दिक्कत हुई| यह वैसा ही शॉर्टकट हैं; जिसमें लम्बाई तो कम हैं; मगर ऊँचाई का अनुपात अधिक है| इसलिए अधिक ऊर्जा लग रही है और पैर जल्दी थक रहे हैं| और शायद कल की १९ किलोमीटर की ट्रेकिंग के कारण शरीर में पहले से ही ऊर्जा स्तर कम होगा| जो भी हो; अब बिल्कुल भी चढ़ा नही जा रहा है| जोशीमठ से सुबह ९ बजे निकला हुँ| दो घण्टों में मुश्किल से तीन- चार किलोमीटर आगे पहुँचा होऊँगा| रूकते रूकते चलने के बाद कुछ देर में मुख्य सड़क मिली| चलो, पगडण्डी से तो राहत मिली| लेकिन इतना थका हुँ कि अब इस सड़क पर चलने में भी दिक्कत हो रही हैं| थोड़ी देर रूक कर ऊर्जा आने की प्रतीक्षा की| लेकिन बात बन नही सकी और पैर बिल्कुल थक गए|
अब एक ही विकल्प बचा है कि कोई वाहन मिल जाए औली जानेवाला| चाय पीते पीते उसकी भी प्रतीक्षा की|‌ प्रायवेट टूरिस्ट गाडीयाँ तो जा रही हैं, लेकिन कोई गाड़ी रूक नही रही है| अब दोपहर के बारह बज रहे हैं| अगर घसीटते घसीटते चला भी जाऊँ; तो वहाँ पहुँचने में चार- पाँच घण्टे लगेंगे| अर्थात् वही रूकना होगा| और शायद औली में होटल इस समय या तो बन्द हैं या फिर बहुत महेंगे रेसॉर्ट है| इन दोनों के लिए मै तैयार नही हुँ| वैसे भी ट्रेकिंग की पहली ही कक्षा में मैने प्रवेश किया है| अत: और कोई उपाय न देख वापस जोशीमठ के लिए लौटना पड़ा|
मन स्वयं को कोस रहा है| लेकिन क्या करें! मेरी तैयारी शायद कम रही| या मेरी इच्छाशक्ती नाकाफी है| जो भी हो| उतरते समय कुछ शान्ति मिल रही है| उतरते समय मुख्य सड़क से आया और उसके बाद एक शॉर्ट कट लिया जो मिलिटरी एरिया से जाता है| जोशीमठ सिर्फ एक पर्यटक स्थान ही नही है, वरन् एक सैनिकी स्थान भी है| तिब्बत सीमा से ७५ किलोमीटर पहले इस स्थान पर सेना का बड़ा केन्द्र होना स्वाभाविक है| स्काउट का केन्द्र हैं; बीआरओ के भी कार्यालय यहाँ हैं| मिलिटरी एरिया से जाते समय एक जवान से पूछ लिया की साबजी इस रास्ते से जाने की परमिशन तो है ना| नही तो और मुसीबत हो जाती| खैर; यह सड़क जल्द ही जोशीमठ ले गई| रास्ते में मिलिटरी के कई युनिटस, क्वार्टर्स और कँटिन्स लगे| करीब एक घण्टे में जोशीमठ के स्टैंड पर पहुँच गया|
कुछ जीपें खड़ी हैं| एक पल के लिए लगा कि, क्या आज तपोबन जा सकूँगा? दोपहर के डेढ़ बज रहे हैं| शायद कोई जीप जानेवाली हो| पता किया तो तुरन्त जीप मिल गई| यह तपोबन गाँव जोशीमठ- मलारी सड़क पर स्थित है| इस तरफ जीपें इस गाँव तक चल रही है, ऐसा बताया गया| जोशीमठ से तपोबन लगभग बीस किलोमीटर होगा| एक नक्शे में तपोबन की ऊँचाई ३००० मीटर से अधिक बतायी गई थी, इसलिए तपोबन जाने की इच्छा थी|
नजारे अद्भुत ही हैं| एक और रमणीय स्थान की सैर! उत्तराखण्ड में जब भी जीप में बैठा; बड़े शानदार गाने बजते रहें| अब भी यही क्रम चल रहा है| नए शिखर दिखाई दे रहे हैं| लगभग एक घण्टे में तपोबन आ गया| एक छोटा सा गाँव| सड़क यहाँ से आगे भी खुली है| कम से कम अगले एक- दो गाँवों तक जरूर खुली होगी| लेकिन उतना चलने की इच्छा नही है| फिर भी तपोबन के पास थोड़ा घूम लिया| सड़क से लग कर कुछ दूरी पर एक मन्दिर है| वहाँ तक पैदल गया| सड़क के किनारे स्कूल भी हैं| फैली हुई बस्ती है| रोड़ निर्माण के कार्मिक भी दिख रहे हैं| टहलते टहलते उस मन्दिर तक पहुँचा| इसी सड़क की दिशा में आगे द्रोणगिरी पर्वत है!
मन्दिर के पास एक गर्म पानी का झरना (कुण्ड) मिला| प्रकृति की कृपा भी बहुत खुब है! जितना उसके पास जाओ; उसकी कृपा बढ़ती जाती है| यहाँ का माहौल बहुत ठण्डा होता है| शायद उसी से बचने के लिए कुदरत ने यहाँ गर्म पानी दे रखा है| लदाख़ में भी देखा था कि नुब्रा व्हॅली में पनामिक के पास भी गर्म पानी के झरने हैं| इतने ठण्डे मौसम में भी उस पानी से भांप आ रही हैं| थोड़ी देर वहाँ टहल कर कच्चे रास्ते से वापस मूड़ा| यहाँ पास से ही एक छोटी नदी भी बह रही है| उस पर भी काफी निर्माण कार्य चल रहा है| कच्ची सड़क मुख्य सड़क को समानान्तर है| बीच बीच में काम करनेवाले मजदूर दिखाई दे रहे हैं| थोड़ी ही देर में स्कूल की इमारत पास आई और वहीं से यह कच्ची सड़क मुख्य सड़क से जुड़ गयी|
तपोबन गाँव छोटा हो कर भी यहाँ पर मिनि बँक है| डाक का दफ्तर है| होटल हैं| जोशीमठ की जीप जल्दी ही मिलेगी| गाँव के लोग बहुत सरल हैं| यहाँ अभी तक टूरिजम का रोग नही फैला है| इसलिए होटल भी सस्ते हैं| यह सड़क मलारी गाँव जाती है जो तिब्बत सीमा से सटा है| हालाकि अभी मलारी के बहुत पहले ही सड़क बन्द हुई होगी| लेकिन एक बात जरूर लग रही है कि तपोबन की ऊँचाई शर्तिया ३००० मीटर नही होगी| उसके कम ही होगी| शायद जोशीमठ के बराबर होगी| लेकिन नजारे की खूबसुरती में कोई कमी नही है| वापसी में सड़क से अपूर्व नजारे दिखें| बी.आर.. सड़क को बनाए रखने के लिए निरन्तर कार्यरत है| आज भी बहुत बरफ दिखी; लेकिन वह सब दूर पहाड़ी पर| कल जैसी सड़क पर नही मिली| खैर|
पाँच बजे जोशीमठ पहुँचा| आज मेरा जोशीमठ का आखरी दिन है| कल ऋषीकेश के लिए निकल जाऊँगा| जोशीमठ में एक जगह पेठा दिखी| पूछा की क्या यह जोशीमठ का स्थानीय उत्पाद है, तो दुकानवाले ने कहा कि नही; यह तो आगरे की ही पेठा है! और दुकानवाला भी सहारनपूर का है| सर्दी‌ के मौसम में भी व्यापार चलता है| अब रात फैलने लगी है| जल्द ही डॉर्मिटरी में रजाई के भीतर हुँ| आज भी अच्छे नजारे देखने को मिले| लेकिन. . . औली नही जा पाया| मन में एक सवाल बार बार आ रहा है| कल मै बद्रिनाथ की ओर जाते समय आसानी से सात किलोमीटर की चढाई चढ़ गया, कोई परेशानी नही आयी| ऐसा लग रहा था कि मानो कोई मुझे खींच रहा है| लेकिन औली में तो लगा की कोई रोक रहा है. . . खैर| कोई बात नही; असफलता ही सफलता का पहला कदम होता है| रात के साथ ठण्ड भी बढ़ने लगी और नीन्द भी आने लगी| अब बस सुबह जल्दी उठ कर साढ़ेपाँच की ऋषीकेश की बस पकड़नी है. . .
शंकराचार्य मन्दिर से आगे जानेवाली पगडण्डी से पीछे देखने पर










नीचे जोशीमठ और सामने एक दुर्गम गाँव की ओर जाती सड़क
यही पगडण्डी. . .























मलारी रोड़ पर स्थित तपोबन!



मन्दिर के पास गर्म पानी का झरना










































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