Thursday, September 24, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . .

चलो, तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में. . . .
कल रात बैजनाथ में यात्री निवास में पूरी डॉर्मिटरी में मेरे साथ सिर्फ एक यात्री था| अच्छी नीन्द आयी| सुबह जल्दी उठ कर पाँच बजे तैयार हुआ| लोगों ने बताया था बागेश्वर देहरादून बस ५ बजे बैजनाथ से गुजरती है| निवास से बाहर आकर प्रतीक्षा कर रहा हुँ| पक्षीयों की गूँज! सुबह की ठण्डक और कोहरा| काफी देर होने के बाद भी बस नही आई| लोग बहुत ही कम दिखाई दे रहे हैं| धीरे धीरे लोगों की संख्या बढ़ने लगी| थोड़े अन्तराल के बाद वाहन गुजरने लगे| आखिर कर एक जीप मिल गई| लेकिन यह जीप मुझे सिर्फ ग्वालदाम तक ही‌ छोडेगी जो यहाँ से मात्र बीस किलोमीटर दूर है| वहाँ से आगे का साधन मिलेगा ऐसे बताया गया









 









१५ दिसम्बर २०१२! आज बैजनाथ से ग्वालदाम- कर्णप्रयाग होते हुए जोशीमठ पहुँचना है| सुबह का कोहरा और बादलों के बीच से यात्रा शुरू हुई| बैजनाथ थोडे नीचले स्थान पर और कूमाऊँ में है तो ग्वालदाम लगभग २००० मीटर ऊँचाई पर और गढ़वाल में है| इसलिए यह रास्ता चढाई का है| देखते देखते रास्ता बादलों से जाने लगा| अद्भुत नजारे के साथ जीप आगे बढ़ती जा रही है| उत्तराखण्ड में यह भी देखा है कि जीप में गाने भी मौसम के जैसे ही लगाते है| साग्र संगीत यात्रा का लुत्फ उठाया| बीच बीच में‌ छोटे छोटे स्थान आते रहे| यह क्षेत्र सम्भवत: वन परिक्षेत्र होगा| जैसे ग्वालदाम पास आता गया, रास्ता बादलों को पार कर उपर उठता गया| अब दूर अच्छी खासी बरफ दिखाई‌ दे रही है| ठण्ड भी बढ गई है| करीब एक घण्टे के बाद जीप ने ग्वालदाम उतारा| लगभग सुबह के साढे आँठ बज रहे हैं| चारों तरफ स्वर्णिम नजारा है| हिमालय की कई चोटियाँ यहा से दृगोच्चर हो रही हैं| हिमाच्छादित शिखर और घाटी में नदी समान तैरते बादल!! वाणि अवाक् हो जाती हैं! अच्छी ठिठुरन हो रही है| देखता ही रहूँ ऐसा नजारा है|

ग्वालदाम ऊँचाई पर बसा छोटा सा गाँव है| एक होटल के छत पर बैठ कर चाय पी| छत से फोटो अच्छे आए| यहाँ से अब अगली बस या जीप मिलेगी| यहाँ ठण्ड के कारण दस्ताने खरिदें| काफी पूछताछ करने पर पता चला कि यहाँ से डाक की एक मिनी बस कुछ घण्टों बाद कर्णप्रयाग जाएगी| बाद में कुछ जीपें धराली इस गाँव तक जानेवाली दिखी| उनमें से एक जीप में बैठ गया| अकेले इन्सान को घूमते देख कर लोग चकित हैं| सामने बैठने का मौका मिला| अपूर्व नजारे के साथ यात्रा का अगला चरण शुरू हुआ| ग्वालदाम के बाद सड़क थोड़ी नीचे उतरती है| फिर बादलों और कोहरे के बीच से जीप निकली! दृश्यता (विजिबिलिटी) बहुत कम है| लाईट जला कर वाहन जा रहे हैं| बीच में इक्का दुक्का मकान/ मन्दिर दिख रहा है| कुछ देर बाद सड़क फिर से बादलों से जाने लगी| फिर बर्फाच्छादित पर्वत दिखाई देने लगे और नीचे बादलों की नदी! सड़क पर यातायात कम ही है| सड़क बीच बीच में कच्ची भी है| पहाड़ को काट कर ही उसे बनाया गया होगा| बिल्कुल सुनसान सड़क; चारो तरफ प्रकृति और सड़क के पास ऊँचे देवदार वृक्ष!
























 






















स्वर्णिम ग्वालदाम!!


































लगभग दो घण्टे की यात्रा के बाद धराली गाँव आया| पिण्डर नदी की गर्जना! यहाँ से अब पिण्डर नदी‌ साथ होगी| पिण्डर ऐसी एकलौती नदी है जो कूमाऊँ में पिण्डरी ग्लेशियर से आती है और गढ़वाल चली जाती है| आगे कर्णप्रयाग में इसका संगम अलकनन्दा के साथ होगा| धराली गाँव बहुत छोटा सा है| यहाँ सतलुज जल विद्युत निगम का कार्यालय भी है| मौसम सुहावना है और साथ में पिण्डर नदी का रौरव! यहाँ भी आगे का साधन नही मिला और रूकना पड़ा| मूँगफली खाता रहा और बीच बीच में चाय| कूमाऊँ और गढ़वाल को जोडनेवाला यह एकलौता पहाड़ी रास्ता है| और जो रास्ते है वे नीचे के मैदान से जाते हैं|



धराली के पास पिण्डर नदी

















 

एक घण्टे तक पिण्डर को देखता रहा| कुछ लोगों से बात होती‌ रही|  कर्णप्रयाग जाने के लिए और भी लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं| आखिर वही डाक की बस आ गई! उस बस के खलासी ने पूछा भी कि ग्वालदाम से ही क्यों नही पकड़ी! लेकिन बीच में जीप में सामने बैठ कर जो मजा आया वो छूटता| खैर| यहाँ से कर्णप्रयाग ज्यादा दूर नही है| लेकिन पहाड़ी सड़क है और बीच बीच में निर्माण/ रिपेअर कार्य चल रहा है| छोटे छोटे गाँव लग रहे हैं| पिण्डर नदी के पास पास से ही यह रास्ता जाता है| अब ग्वालदाम से दिखे बर्फाच्छादित पर्वत कुछ पास आते दिखाई दे रहे हैं| सड़क पर लगनेवाले गाँवों में खास बात यह है कि वहाँ सोलार लाईट हैं| बीच बीच में मन्दिर तो निरन्तर दिखाई‌ दे रहे हैं|

कर्णप्रयाग! प्रयाग अर्थात् संगम! कर्णप्रयाग में अलकनन्दा और पिण्डर का संगम है| बस ने कर्णप्रयाग में संगम के कुछ पहले ही उतार दिया| दोपहर के डेढ बज रहे हैं| कर्णप्रयाग एक पहाड़ी गाँव! बस्ती चढ़ाई पर फैली है| जोशीमठ की बस लेने के लिए गाँव में बस स्टँड पर जाना होगा| यहाँ काफी भीड है| पैदल पूल से नदी पार की और आगे बजार पहुँचा| जैसे ही मुख्य स्टँड के पास पहुँचा जोशीमठ की बस मिली| हालाकी उसके उपर हृषीकेश- श्री बद्रिनाथ लिखा है| लेकिन जाड़ों में बद्रिनाथ तक वाहन नही जाते हैं| वहाँ अधिक बरफ गिरती हैं| बद्रिनाथ जी की मूर्ति भी जोशीमठ लायी जाती है| इसी लिए यह बस जोशीमठ तक ही जाएगी| लेकिन वह बद्रिनाथ से बहुत दूर नही है| बद्रिनाथ से करीब पैतालिस किलोमीटर हि पहले जोशीमठ आता है| कर्णप्रयाग से जोशीमठ लगभग बयासी किलोमीटर दूर है| शायद यह सरकारी बसों में आखरी बस हो जो जोशीमठ जा रही है| बस लगभग खाली है! चालक, खलासी और मै! तीनों ही यात्री हैं| धीरे धीरे बीच के गाँवों के यात्री भी चढने लगे|

कर्णप्रयाग!























अलकनन्दा!


























अलकनन्दा! अब आगे का पूरा रास्ता अलकनन्दा के साथ आगे जाएगा| अद्भुत नजारा है! यहाँ से चमौली जिला शुरू होता है| चमौली शब्द चन्द्र मौली से बना है| यह राष्ट्रीय महामार्ग पक्का तो है; लेकिन बहुत दुर्गम स्थान से गुजरता है| नदी के रमणीय दृश्यों का आनन्द लेते यात्रा जारी रही| थोड़ी देर बाद पिपलकोटी में बस खाने के लिए रूकी| मुझे भी बहुत भूख लगी हैं| होटल में आलू पराठा खा लिया| टिव्ही पर मॅच चल रही है| खाते खाते स्कोअर देखा| अरे, धोनी ९९ रन पर आउट हो गया! फिर आगे बढ़े|

यह पूरा रास्ता दुर्गम घाटी से गुजरता है| इसलिए रास्ता बेहद संकरा तो है हि; बीच में खाली जगह भी कम ही है| चारधाम के दिनों में तो यहाँ बहुत जाम लगता होगा| अभी तो ठण्ड के कारण यह ऑफ सीजन चल रहा है| इसलिए बैजनाथ में भी होटल का डॉर्मिटरी रूम खाली मिला| इसलिए जोशीमठ में भी रूकने की समस्या नही आएगी| अब बर्फाच्छादित शिखर पास आने लगे हैं.. जोशीमठ आने के पहले तपोवन विष्णूगाड हायड्रो पॉवर प्रोजेक्ट का एक बहुत बड़ा केन्द्र लगा| इतने दुर्गम स्थान पर यह बंसा हुआ है... केन्द्र में ग्राउंड भी है और लोग व्हॉलीबॉल खेल रहे हैं! यहा से सड़क जोशीमठ के लिए उपर उठती है| काफी दुर्गम रास्ता है यह! शाम को करीब छह बजे जोशीमठ पहुँचा| अन्धेरा उसके पहले ही हुआ है| जोशीमठ पहाड़ के बीचोबीच बंसा हुआ एक गाँव! पहाड़ पर बस्ती फैलती गई है| कुछ दूरी पर अलकनन्दा है!
 
यहाँ छह बजे ही रात शुरू हो गई है| ठिठुरते हुए अन्धेरे में ही होटल ढूँढा| थोड़ी ही देर में गढ़वाल मण्डल यात्री निवास में डॉर्मिटरी मिली| पूरी डॉर्मिटरी खाली है! यानी इस बड़े से कमरे में मै अकेले सोऊँगा! दिन भर की यात्रा से थकान हो रही है| जोशीमठ में यह होटल कुछ ऊँचाई पर है| यहाँ आते समय भी कुछ कठिनाई हुई| वैसे जोशीमठ की ऊँचाई लगभग २००० मीटर के बराबर है| हाय अल्टिट्युड सिकनेस की सम्भावना न के बराबर है| खैर| खाने की बिल्कुल इच्छा नही है| होटलवालों से कुछ बातचीत कर जल्दी सो गया|


















 


... लगभग ढाई साल पहले की गई इस यात्रा के तिसरे दिन का विवरण अब सितम्बर २०१५ में लिख रहा हुँ| लगता ही नही कि यह बिती बात है| याद तो बिल्कुल ताज़ा है... २०१३ के प्रलय के पहले देखे हुए उत्तराखण्ड के ये संस्मरणीय अनुभव!

6 comments:

  1. आपकी उत्तराखंड यात्रा अच्छी लगी...... हम जा चुके है कर्ण प्रयाग, जोशीमठ और बद्रीनाथ भी....
    फोटो भी अच्छे लगे.

    www.safarhaisuhana.com

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  2. बहुत सुन्दर फोटो के साथ सुन्दर यात्रा वृतांत ... जोशीमठ यात्रा वृतांत का इंतज़ार रहेगा ...मैं भी गांव में देवता पूजन के लिए जब जोशीमठ गयी थी तो उस समय आकर ब्लॉग पोस्ट "पहाड़ : धार्मिक आस्था के शिखर" लिखी थी ...यह मेरा ब्लॉग पर पहला यात्रा संस्मरण है. आपके अवलोकनार्थ लिंक प्रस्तुत है : http://kavitarawatbpl.blogspot.in/2010/06/blog-post_07.html

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  3. धन्यवाद भगतसिंह जी, रितेश जी, कविता जी और जोशी सर! :)

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  4. सुंदर निसर्गाचे अनुभव आणि आठवतील क्षण

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