Saturday, September 26, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर




अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर

१७ दिसम्बर २०१२ की सुबह! आज बद्रिनाथ रोड़ पर पण्डुकेश्वर जाना है| जहाँ तक रोड़ चालू रहेगा, वहाँ जाने का प्रयास करूँगा| सर्दियों में भी इस रोड़ पर जीपे चलती है और स्थानीय लोग आते- जाते रहते हैं| सुबह चाय पीते समय पता चला की जोशीमठ के उपरी हिस्से में रात में बर्फबारी हुई है| हल्की बरफ गिरी है| जोशीमठ चढाई पर बंसा कस्बा होने के कारण नीचले और उपर के हिस्से में ऊँचाई का अन्तर है| वाकई अब पास के पहाड़ों पर भी अच्छी बरफ दिखाई दे रही है| शायद मुझे बद्रिनाथ रोड़ पर भी अच्छी बरफ मिलें!

यथावकाश पण्डुकेश्वर की जीप ले ली| शेअर यात्रियों को ले जानेवाली जीपें अच्छी हैं! अभी भी पण्डुकेश्वर तक और उधर तपोबन तक ऐसी जीपें चल रही हैं| पर इस यात्रा का एक मुख्य आकर्षण- औली के लिए शेअर जीपें नही चलती| या तो अठारह किलोमीटर सड़क पर पैदल जाना होगा या आंठ किलोमीटर के पैदल मार्ग से जाना होगा| लेकिन उसके पहले आज बद्रिनाथ की तरफ जाता हुँ| इन दिनों बड़ी बस जोशीमठ तक ही आती है| जोशीमठ के आगे जीपें ही अधिकतर चलती है और आर्मी/ आयटीबीपी के ट्रक्स आदि वाहन चलते हैं| जगह जगह बी.आर.. के पट्ट देख कर खुशी हुई|

जोशीमठ से सड़क पहले नीचे उतरती है और अलकनन्दा के पास जाती हैं| यहाँ भी एक 'प्रयाग' है अर्थात् दो नदियों का संगम| यहाँ विष्णुप्रयाग है जहाँ पर एक हायड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट हैं| यहाँ एक नदी अलकनन्दा को मिलती है| इसके बाद सड़क फिर से उपर उठती है| नजारा बेहद रोमांचक है! बर्फाच्छादित शिखर पास आ रहे हैं| सड़क भी दुर्गम स्थान से जा रही है| हालाकि सड़क अच्छी है| थोड़ी ही देर में गोविन्दघाट आया| यहाँ से एक पैदल रास्ता घांघरिया की तरफ जाता है जो आगे फूलों की घाटी और हेमकुण्ड साहिब जाता है| वैसे तो प्रसिद्ध फूलों की घाटी और हेमकुण्ड साहिब यहाँ से पास ही है; लेकिन पैदल मार्ग पर बरफ जमने के कारण सर्दियों में वहाँ नही जाया जा सकता है| वे स्थान अधिक ऊँचाई पर है| हेमकुण्ड साहिब के बारे में एक रोचक बात यह है कि हर साल मई के समय में बन्दों के जत्थे आते हैं और वे स्वयं हेमकुण्ड साहिब का रास्ता साफ करते जाते हैं| इस कार्य को कार सेवा कहा जाता है| सात पर्वतों से घिरा हेमकुण्ड ४६०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित एक ग्लेशिअर है| यहाँ सीक्खों के दसवे गुरू श्री गोविन्द सिंह जी ने साधना की थी| खैर

















































गोविन्द घाट! एक तरह से विश्वास नही हो रहा है कि पहाड़ में यहाँ तक आ गया हुँ| क्या अपूर्व नजारा! गोविन्द घाट से थोड़ा आगे पण्डुकेश्वर है| करीब डेढ घण्टा लगा यहाँ पहुँचने में| लेकिन यह क्या! जीप तो और आगे जा रही है! तो यह जीप चार किलोमीटर और आगे लामबगड़ गाँव तक जाएगी| आखिर कर लामबगड़ में जीप रूक गई| वापिस जानेवाली जीप भी यहीं से मिलेगी| सुबह के लगभग ग्यारह बज रहे हैं| चाय पीते हुए पता किया कि और आगे कहाँ तक सड़क चल रही है? तो बताया गया कि पैदल आगे जाया जा सकता है| यहाँ से बद्रिनाथ मात्र १९ किलोमीटर दूर हैं| सड़क तो अच्छी दिख रही है| सोचा कि चलो, आगे पैदल चला जाए| जहाँ तक सड़क खुली होगी, वहाँ तक जाऊँगा| वापस भी पैदल ही आऊँगा|

चारों तरफ पास आते बर्फिले पहाड़! अलकनन्दा का कलरव! भूजलशास्त्र की दृष्टि से अलकनन्दा ही गंगा नदी की मुख्य धारा है| क्यों कि गंगोत्री से आनेवाली गंगा (भागीरथी) की लम्बाई और उसमें बह कर आनेवाला पानी अलकनन्दा से कम है| हालाकि मान्यता में गंगा को मुख्य नदी और अलकनन्दा को उसकी उपनदी माना जाता है.. यहाँ पर भी एक पॉवर प्रोजेक्ट चल रहा है- जेपी पॉवर प्रोजेक्ट! अलकनन्दा नदी के तट पर यह बसा है| कंपनी ने नदी के किनारे मन्दिर भी बनाया है| आते समय इसे देखूँगा| सड़क अब लगभग खाली है| कुछ कंपनी की गाड़ियाँ और कुछ मिलिटरी के वाहन| इस यात्रा का वास्तविक ट्रेकिंग अब शुरू हो रहा है! रास्ता चढाई- उतराईवाला है| धीरे धीरे रास्ता उपर उठता गया| ये क्या! सड़क पर रुई जैसा यह क्या गिरा है? यह तो बरफ है! सड़क पर गिरी बरफ को हटा कर एक जगह रख दिया गया है! अब तो सामने ही बरफ दिख रही है! एक जगह अलकनन्दा को सड़क ने पार किया|

धीरे धीरे सड़क पर ताज़ी बरफ नजर आने लगी| जरूर सुबह बरफ गिरी हैं| यहाँ यातायात न के बराबर होने के कारण अभी भी वैसे ही है! अब तो ढेर सारी बरफ दिखाई दे रही है| जीवन में दूसरी ही बार इतनी बरफ देख रहा हुँ| इसके पहले इससे भी अधिक- पूरी बर्फाच्छादित सड़क सिर्फ एक बार लदाख़ के चांगला में ही देखी थी| चलो, आज अच्छी बरफ देखने की कामना पूरी हुई जाती है! एक जगह अलकनन्दा पर एक छोटी पुलिया बनी हुई है और एक पैदल सड़क नदी को पार कर रही है| जरूर यह बीआरओ का कुछ स्थान होगा|

आगे जाने पर नदी का विहंगम दृश्य दिखा! एक झरने जैसी अलकनन्दा बह रही हैं! और सड़क के किनारे के विशाल वृक्ष! अब सब तरफ बरफ ही बरफ! सामने जो पहाड़ दिखाई दे रहे हैं वे जरूर बद्रिनाथ के पास के नर- नारायण आदि पहाड़ होंगे| किसी अन्जान आकर्षण से खींचा हुआ आगे जाता रहा| बीच बीच में फोटो जारी रहे| धूप खिली होने के कारण ठण्ड उतनी नही लग रही है| और निरन्तर चलने से भी शरीर को ऊर्जा मिल रही है| एक जगह बीआरओ के मजदूर भी मिले| मुस्कान से ही पूछताछ हुई और आगे निकला| बद्रिनाथ बिल्कुल पास आता जा रहा है| लगभग दो घण्टों में मै छह किलोमीटर चला हुँ| यानी बद्रिनाथ यहाँ से बामुश्किल बारह- तेरह किलोमीटर होना चाहिए| दोपहर का एक बज रहा है| अगर बीच में पुलिस या आयटीबीपी नही रोकती है तो मै आज बद्रिनाथ जरूर पहुँचूँगा! लेकिन फिर आज वहीं रूकना पड़ेगा| देखते हैं






















 


थोड़ी चढाई मिली| लेकिन चलना इतना स्वस्थ व्यायाम है कि ऐसी चढाई पर चलने में कोई कठिनाई नही आती हैं| मिलिटरी के वाहनों के सड़क पर गिरे बरफ में निशान हुए हैं| एक झरने पार करने के लिए एक पुलिया आयी| सामने अब कुछ लोग दिखाई पड़ रहे हैं! और वे तो खेल रहे हैं! यह तो हनुमान चट्टी गाँव है! लेकिन पूरा बन्द है| दुकान तो है पर बन्द है| आगे जाने पर स्थिति स्पष्ट हुई| सामने खेलनेवाले लोग उत्तराखण्ड पुलिस हैं और यहाँ उनका एक चेक पोस्ट है| आम नागरिकों को यहीं तक आने की अनुमति है| इसके बाद का क्षेत्र भारत- तिब्बत सीमा पुलिस और अर्थात् आर्मी के नियंत्रण में हैं| अर्थात् मुझे यहीं से लौटना होगा| यहाँ से भारत- तिब्बत सीमा मुश्किल से पचास किलोमीटर होगी| और बद्रिनाथ की सड़क पर अत्यधिक बरफ भी हैं जिसके कारण आगे जाने की अनुमति नही है. . . लेकिन क्या नजारा है!

यह स्थान हनुमान चट्टी है!‌ यहाँ लिखा है कि जिस स्थान पर वृद्ध हनुमानजी ने भीम का गर्वहरण किया था, वह स्थान यही हैं! थोड़ी देर यहाँ रूका; फोटो खींचे और यादों को संजोया| ढाई घण्टे मैं चला हुँ| शायद साढे- सात किलोमीटर आया हुँ| इस स्थान की ऊँचाई भी करीब २५०० मीटर्स होगी| जीवन में पहली बार इतनी ऊँचाई पर ट्रेकिंग कर रहा हुँ! आज का दिन अद्भुत है! और खास बात यह रही कि थकान बिल्कुल भी नही है| उल्टा ऐसा लग रहा है कि मै तो बद्रिनाथ की ओर खींचा जा रहा हुँ| काश यह चेक पोस्ट न होती और बाकी के ग्यारह किलोमीटर भी खुली सड़क होती... 

























बीआरओ की शिवालिक परियोजना!



























लेकिन अब जल्द निकलना चाहिए| दोपहर के दो बज रहे हैं| यहाँ शाम तो होती ही नही; सीधा दोपहर से रात हुई जाती है| इसलिए अब तेज़ चलना होगा| आते समय भी फोटो खींचता रहा| लेकिन अब सूरज पहाड़ के पीछे गया है और इसलिए इस घाटी के स्थान में अब छाया फैली हुई है और उससे ठण्डक लगने लगी है... अलकनन्दा पर जहाँ पूल था; वही पर नदी तक जाने का पैदल रास्ता भी था! अलकनन्दा को नमन किया| कितनी शुद्ध जलधारा है ये! जीवन के उद्गम के जितना पास जाते हैं, उतनी शान्ति और प्रसन्नता मिलती है! अलकनन्दा के कुछ छोटे पत्थर साथ ले लिए! लौटते समय भी पैर नही दुख रहे हैं| उतराई मामुली सी है| जेपी कंपनी द्वारा बनाए गए मन्दिर का भी दर्शन कर लिया| फूलों की घाटी न सही; यहाँ के फूल भी कम सुन्दर नही हैं!

लामबगड़ पहुँचने तक साढ़ेतीन बजे हैं| यहाँ चाय मिली| यहाँ से वापस बस्ती शुरू हुई| लेकिन अभी जोशीमठ की जीप नही दिख रही है| शायद उसके आने में समय होगा| चलने में इतना मजा आ रहा है कि आगे पण्डुकेश्वर की ओर पैर चल दिए| जोशीमठ की जीप जब भी आएगी, उसे सड़क पर रोक लूँगा| पण्डुकेश्वर में ध्यान- योग बद्रि मन्दिर है| लामबगड़ से पण्डुकेश्वर चार किलोमीटर दूर है| पैरों में बिल्कुल थकान नही है| रास्ता बीच बीच में थोड़ा कच्चा या टूटा हुआ है| एक स्थान पर थोड़ा डरावना भी लगा| आज लगभग उन्नीस किलोमीटर चलना हो जाएगा मेरा| पण्डुकेश्वर आने के ठीक पहले जीप मिली| चलानेवाले ने कहा कि यही जोशीमठ की आंखरी जीप होगी| उससे अनुरोध किया कि ध्यान योग बद्रि मन्दिर के पास सड़क पर रूकिए; जल्द मन्दिर देख कर आता हुँ| यह मन्दिर पण्डुकेश्वर गाँव के भीतर नीचले हिस्से में है| नीचे जाने में अधिक समय नही लगा| फटाफट मन्दिर देख लिए| शाम के साढे चार बज रहे हैं| रोशनी कम हो रही है| उपर जीप भी रूकी होगी| इसलिए जल्द निकल आया| लेकिन गाँव के भीतर की पगडण्डी बड़ी है| लगभग दो फीट की एक स्टेप होगी| इस वजह से चढते समय कुछ थकान हुई और रूकना पड़ा| पहाड़ में बंसे एक गाँव का शाम का रूप देखने को मिला| जल्द ही उपर आ कर जीप ले ली|

अविश्वसनीय दिन रहा ये! यकिन नही आता की उन्नीस किलोमीटर चला हुँ| और वो भी ऐसे अपूर्व नजारों के बीच! अब शाम- नही रात का मन्जर आने को है| ठण्ड हो रही है| जीप में कुछ सहयात्रियों से थोड़ी बात हुई| उतने में एक महिला ने बताया- वो देखो- हिरन गया अभी! पहाड़ के लोग कितने सरल होते हैं और कितना आतिथ्य करते हैं! पहाड़ देख रहा हुँ तो कुछ भी नही छूटना चाहिए, इस लिए उस महिला ने हिरन की तरफ इशारा किया था... जोशीमठ में पहुँचने तक लगभग अन्धेरा हो चुका है| स्टैंड से होटल जाते समय बहुत ठिठुरन हो रही है| ध्रुव तारा आकाश में दक्षिण भारत के मुकाबले कुछ उपर दिखाई दे रहा है! जैसे तैसे कुछ खा लिया और फिर डॉर्मिटरी में रजाई की शरण गया| आज के दिन में जो कुछ देखा, उस पर अब भी यकीन नही आ रहा है| आज इतना चला हुँ तो कल जरूर औली जा सकूँगा| देखते हैं


अलकनन्दा!
योग- ध्यान बद्रि मन्दिर





















... ढाई साल बाद यह वृत्तान्त लिखते समय भी सब बिल्कुल ताज़ा है| ये जो नजारे देखे- जो नदी, जो सड़क, जो गाँव और जो स्थान देखें- वे सब एक तरह से अब खो गए हैं| मेरी यात्रा के बाद छह महिनों में ही प्रलय आनेवाला था और उसमें सब बुरी तरह क्षतिग्रस्त होनेवाला था| लेकिन मेरी स्मृति में सब अब भी वैसा ही जीवन्त है...

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-09-2015) को "बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर!

    ReplyDelete
  3. do baar gaya hun badri nath . yaad taaza ho aayi hai. dekho agla programme kab banta hai.

    ReplyDelete

आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!