१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . .
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
औली
जाने का असफल प्रयास और तपोबन
यात्रा
१८
दिसम्बर.
आज
इस यात्रा का चरम् चरण होगा|
आज
औली जाना है|
औली
ही इस यात्रा का मुख्य आकर्षण
है|
औली
एक स्कीइंग
स्पॉट है|
औली
जाने का या इस पूरी यात्रा
मुख्य उद्देश्य यह था कि,
जाड़े
के मौसम में उत्तराखण्ड में
जहाँ सड़क खुली हो ऐसे ऊँचे
स्थान पर जाना|
पीछले
साल ही लदाख़ जा कर आया था,
इसलिए
सोचा था कि उतनी नही;
पर
थोड़ी बहुत बरफ जरूर मिले|
कल
बद्रिनाथ रोड़ पर यह इच्छा काफी
हद तक पूरी हो गई है|
औली
की ऊँचाई २७०० मीटर से ३०००
मीटर तक है|
जोशीमठ
से औली जाने के कम ही विकल्प
है|
एक
विकल्प तो जीप बूक कर जाना है|
अर्थात्
यह बहुत महंगा है|
वहाँ
भी शेअर जीपें चलती हैं,
ऐसा
सुनने में तो आया,
लेकिन
वैसा कुछ दिखा नही|
और
एक रास्ता बचा था और वह था ट्रेक
करते जाना|
औली
जोशीमठ से लगभग १८ किलोमीटर
दूरी पर है|
नीरजजाट जी के ब्लॉग से प्रेरणा ले
कर पैदल जाने की योजना बनाई
है|
ट्रेक
करने के भी दो विकल्प है|
एक
विकल्प है की सीधी सड़क से चलो-
लाँग
कट|
इसमें
१८ किलोमीटर चलना पड़ेगा|
दूसरा
विकल्प है कि पगडण्डी से चलो-
शॉर्ट
कट|
इसकी
दूरी लगभग साढ़ेसात किलोमीटर
ही है|
अर्थात्
इसमें चढाई बहुत ज्यादा रहेगी|
आज
सड़क पर जा कर देखूँगा कैसे जा
पाता हुँ|
शंकराचार्य
के मन्दिर के पीछे से औली जाने
का पैदल रास्ता जाता है यह
नीरज जी के ब्लॉग पर पढ़ा था|
लेकिन
उस सड़क पर आगे जाने पर रास्ता
खो गया|
एक
सज्जन से पूछा तो उसने बताया
कि यह सड़क तो जंगलात जाती है;
वहाँ
से जाओ|
फिर
थोड़ी देर भटकने के बाद एक
पगडण्डी से जुड़ा|
यह
पगडण्डी शॉर्ट कट की है|
बीच
बीच में यह मुख्य सड़क से भी
जुड़ेगी|
जैसे
ही पगडण्डी उपर उठने लगी;
नजारा
बेहद सुन्दर होने लगा|
दूर
जोशीमठ के नीचे अलकनन्दा दिखाई
दे रही है|
और
वो दुर्गम स्थान पर बंसा हुआ
एक गाँव!
लेकिन
थोड़ी ही देर में कठिनाई आने
लगी|
पगडण्डी
अच्छी थी|
जो
तजुर्बेकार ट्रेकर होंगे,
वे
तो कहेंगे कि यह तो पक्की सड़क
ही है;
पगडण्डी
थोडे ही है!
लेकिन
मुझे कठिनाई हुई क्युंकि
पगडण्डी में एक एक स्टेप की
लम्बाई या ऊँचाई अधिक है|
लगभग
दो फीट की एक स्टेप और निरन्तर
ऐसी स्टेप्स|
जल्द
ही थकने की नौबत आयी|
थोड़ा
चलना और फिर रूकना शुरू हुआ|
जोशीमठ
के उपरी हिस्से की बस्ती अब
भी चल रही है|
कुछ
कुछ घर लग रहे है|
एक
जगह माँग कर पानी पिया|
यहाँ
भी पेडों पर अच्छे फूल हैं!
लेकिन
अब पैर लड़खड़ा रहे हैं|
यह
इसलिए हो रहा है कि शायद मुझे
ट्रेकिंग का पहले का कोई अनुभव
नही है|
कल
मै जरूर उन्न्सीस किलोमीटर
चला था;
लेकिन
वह पगडण्डी नही थी|
और
पण्डुकेश्वर में पगडण्डी पर
थोड़ा ही चला तो दिक्कत हुई|
यह
वैसा ही शॉर्टकट हैं;
जिसमें
लम्बाई तो कम हैं;
मगर
ऊँचाई का अनुपात अधिक है|
इसलिए
अधिक ऊर्जा लग रही है और पैर
जल्दी थक रहे हैं|
और
शायद कल की १९ किलोमीटर की
ट्रेकिंग के कारण शरीर में
पहले से ही ऊर्जा स्तर कम होगा|
जो
भी हो;
अब
बिल्कुल भी चढ़ा नही जा रहा है|
जोशीमठ
से सुबह ९ बजे निकला हुँ|
दो
घण्टों में मुश्किल से तीन-
चार
किलोमीटर आगे पहुँचा होऊँगा|
रूकते
रूकते चलने के बाद कुछ देर में
मुख्य सड़क मिली|
चलो,
पगडण्डी
से तो राहत मिली|
लेकिन
इतना थका हुँ कि अब इस सड़क पर
चलने में भी दिक्कत हो रही
हैं|
थोड़ी
देर रूक कर ऊर्जा आने की प्रतीक्षा
की|
लेकिन
बात बन नही सकी और पैर बिल्कुल
थक गए|
अब
एक ही विकल्प बचा है कि कोई
वाहन मिल जाए औली जानेवाला|
चाय
पीते पीते उसकी भी प्रतीक्षा
की|
प्रायवेट
टूरिस्ट गाडीयाँ तो जा रही
हैं,
लेकिन
कोई गाड़ी रूक नही रही है|
अब
दोपहर के बारह बज रहे हैं|
अगर
घसीटते घसीटते चला भी जाऊँ;
तो
वहाँ पहुँचने में चार-
पाँच
घण्टे लगेंगे|
अर्थात्
वही रूकना होगा|
और
शायद औली में होटल इस समय या
तो बन्द हैं या फिर बहुत महेंगे
रेसॉर्ट है|
इन
दोनों के लिए मै तैयार नही
हुँ|
वैसे
भी ट्रेकिंग की पहली ही कक्षा
में मैने प्रवेश किया है|
अत:
और
कोई उपाय न देख वापस जोशीमठ
के लिए लौटना पड़ा|
मन
स्वयं को कोस रहा है|
लेकिन
क्या करें!
मेरी
तैयारी शायद कम रही|
या
मेरी इच्छाशक्ती नाकाफी है|
जो
भी हो|
उतरते
समय कुछ शान्ति मिल रही है|
उतरते
समय मुख्य सड़क से आया और उसके
बाद एक शॉर्ट कट लिया जो मिलिटरी
एरिया से जाता है|
जोशीमठ
सिर्फ एक पर्यटक स्थान ही नही
है,
वरन्
एक सैनिकी स्थान भी है|
तिब्बत
सीमा से ७५ किलोमीटर पहले इस
स्थान पर सेना का बड़ा केन्द्र
होना स्वाभाविक है|
स्काउट
का केन्द्र हैं;
बीआरओ
के भी कार्यालय यहाँ हैं|
मिलिटरी
एरिया से जाते समय एक जवान से
पूछ लिया की साबजी इस रास्ते
से जाने की परमिशन तो है ना|
नही
तो और मुसीबत हो जाती|
खैर;
यह
सड़क जल्द ही जोशीमठ ले गई|
रास्ते
में मिलिटरी के कई युनिटस,
क्वार्टर्स
और कँटिन्स लगे|
करीब
एक घण्टे में जोशीमठ के स्टैंड
पर पहुँच गया|
कुछ
जीपें खड़ी हैं|
एक
पल के लिए लगा कि,
क्या
आज तपोबन जा सकूँगा?
दोपहर
के डेढ़ बज रहे हैं|
शायद
कोई जीप जानेवाली हो|
पता
किया तो तुरन्त जीप मिल गई|
यह
तपोबन गाँव जोशीमठ-
मलारी
सड़क पर स्थित है|
इस
तरफ जीपें इस गाँव तक चल रही
हैं,
ऐसा
बताया गया|
जोशीमठ
से तपोबन लगभग बीस किलोमीटर
होगा|
एक
नक्शे में तपोबन की ऊँचाई ३०००
मीटर से अधिक बतायी गई थी,
इसलिए
तपोबन जाने की इच्छा थी|
नजारे
अद्भुत ही हैं|
एक
और रमणीय स्थान की सैर!
उत्तराखण्ड
में जब भी जीप में बैठा;
बड़े
शानदार गाने बजते रहें|
अब
भी यही क्रम चल रहा है|
नए
शिखर दिखाई दे रहे हैं|
लगभग
एक घण्टे में तपोबन आ गया|
एक
छोटा सा गाँव|
सड़क
यहाँ से आगे भी खुली है|
कम
से कम अगले एक-
दो
गाँवों तक जरूर खुली होगी|
लेकिन
उतना चलने की इच्छा नही है|
फिर
भी तपोबन के पास थोड़ा घूम लिया|
सड़क
से लग कर कुछ दूरी पर एक मन्दिर
है|
वहाँ
तक पैदल गया|
सड़क
के किनारे स्कूल भी हैं|
फैली
हुई बस्ती है|
रोड़
निर्माण के कार्मिक भी दिख
रहे हैं|
टहलते
टहलते उस मन्दिर तक पहुँचा|
इसी
सड़क की दिशा में आगे द्रोणगिरी
पर्वत है!
मन्दिर
के पास एक गर्म पानी का झरना
(कुण्ड)
मिला|
प्रकृति
की कृपा भी बहुत खुब है!
जितना
उसके पास जाओ;
उसकी
कृपा बढ़ती जाती है|
यहाँ
का माहौल बहुत ठण्डा होता है|
शायद
उसी से बचने के लिए कुदरत ने
यहाँ गर्म पानी दे रखा है|
लदाख़
में भी देखा था कि नुब्रा व्हॅली
में पनामिक के पास भी गर्म
पानी के झरने हैं|
इतने
ठण्डे मौसम में भी उस पानी से
भांप आ रही हैं|
थोड़ी
देर वहाँ टहल कर कच्चे रास्ते
से वापस मूड़ा|
यहाँ
पास से ही एक छोटी नदी भी बह
रही है|
उस
पर भी काफी निर्माण कार्य चल
रहा है|
कच्ची
सड़क मुख्य सड़क को समानान्तर
है|
बीच
बीच में काम करनेवाले मजदूर
दिखाई दे रहे हैं|
थोड़ी
ही देर में स्कूल की इमारत पास
आई और वहीं से यह कच्ची सड़क
मुख्य सड़क से जुड़ गयी|
तपोबन
गाँव छोटा हो कर भी यहाँ पर
मिनि बँक है|
डाक
का दफ्तर है|
होटल
हैं|
जोशीमठ
की जीप जल्दी ही मिलेगी|
गाँव
के लोग बहुत सरल हैं|
यहाँ
अभी तक टूरिजम का रोग नही फैला
है|
इसलिए
होटल भी सस्ते हैं|
यह
सड़क मलारी गाँव जाती है जो
तिब्बत सीमा से सटा है|
हालाकि
अभी मलारी के बहुत पहले ही सड़क
बन्द हुई होगी|
लेकिन
एक बात जरूर लग रही है कि तपोबन
की ऊँचाई शर्तिया ३००० मीटर
नही होगी|
उसके
कम ही होगी|
शायद
जोशीमठ के बराबर होगी|
लेकिन
नजारे की खूबसुरती में कोई
कमी नही है|
वापसी
में सड़क से अपूर्व नजारे दिखें|
बी.आर.ओ.
सड़क
को बनाए रखने के लिए निरन्तर
कार्यरत है|
आज
भी बहुत बरफ दिखी;
लेकिन
वह सब दूर पहाड़ी पर|
कल
जैसी सड़क पर नही मिली|
खैर|
पाँच
बजे जोशीमठ पहुँचा|
आज
मेरा जोशीमठ का आखरी दिन है|
कल
ऋषीकेश के लिए निकल जाऊँगा|
जोशीमठ
में एक जगह पेठा दिखी|
पूछा
की क्या यह जोशीमठ का स्थानीय
उत्पाद है,
तो
दुकानवाले ने कहा कि नही;
यह
तो आगरे की ही पेठा है!
और
दुकानवाला भी सहारनपूर का
है|
सर्दी
के मौसम में भी व्यापार चलता
है|
अब
रात फैलने लगी है|
जल्द
ही डॉर्मिटरी में रजाई के भीतर
हुँ|
आज
भी अच्छे नजारे देखने को मिले|
लेकिन.
. . औली
नही जा पाया|
मन
में एक सवाल बार बार आ रहा है|
कल
मै बद्रिनाथ की ओर जाते समय
आसानी से सात किलोमीटर की चढाई
चढ़ गया,
कोई
परेशानी नही आयी|
ऐसा
लग रहा था कि मानो कोई मुझे
खींच रहा है|
लेकिन
औली में तो लगा की कोई रोक रहा
है.
. . खैर|
कोई
बात नही;
असफलता
ही सफलता का पहला कदम होता है|
रात
के साथ ठण्ड भी बढ़ने लगी और
नीन्द भी आने लगी|
अब
बस सुबह जल्दी उठ कर साढ़ेपाँच
की ऋषीकेश की बस पकड़नी है.
. .
शंकराचार्य मन्दिर से आगे जानेवाली पगडण्डी से पीछे देखने पर |
नीचे जोशीमठ और सामने एक दुर्गम गाँव की ओर जाती सड़क |
यही पगडण्डी. . . |
मलारी रोड़ पर स्थित तपोबन! |
मन्दिर के पास गर्म पानी का झरना |
अगला
भाग:
अस्ति
उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः
पर्वतोs
हिमालय:
७
हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश
की ओर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-09-2015) को "हिंदी में लिखना हुआ आसान" (चर्चा अंक-2114) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद महोदय! हार्दिक शुभकामनाएँ!
Deleteऔली की यात्रा विवरण बहुत सुंदर था साथ ही चित्र भी बहुत सजीव.
ReplyDeleteधन्यवाद इस यात्रा में सम्मिलित करने हेतु..
मैं भी जोशीमठ गयी थी। । मैंने तो सुना था तपोवन में सन्यासी रहते हैं गांव नहीं है। । खैर अच्छी जानकारी मिली है
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र..औली पहुंचते तो और अच्छा रहता।
ReplyDeleteसभी को बहुत धन्यवाद!
ReplyDelete@ कविता जी, वह तपोवन शायद गंगोत्री के पास होनेवाला तपोवन होगा; यह जोशीमठ- मलारी रोड़ पर दूसरा तपोबन है|