Wednesday, July 25, 2018

पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग २: पहाड़ में बंसा एक गाँव- सद्गड

भाग २: पहाड़ में बंसा एक गाँव- सद्गड  

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२८ नवम्बर २०१७ की‌ सर्द सुबह! पिथौरागढ़ में पहुँचने के बाद पहला काम है कि एक व्यक्ति से बात हुई है, उससे साईकिल लेनी है| हिमालय में सिर्फ- छह दिन के लिए जाने के समय भी साईकिल चलाने का मन था| इसलिए हर तरह से प्रयास किया कि पिथौरागढ़ पहुँचने पर मुझे साईकिल मिल सके| इंटरनेट पर उत्तराखण्ड के विविध साईकिलिस्ट ग्रूप्स से सम्पर्क किया, पिथौरागढ़ या आसपास के साईकिलिस्ट ग्रूप्स से भी सम्पर्क करने का प्रयास किया| लेकीन किसी से सीधा सम्पर्क नही हुआ| कुछ लोग साईकिल देते हैं, लेकीन पैकेज में; किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए नही‌ देते| फिर पिथौरागढ़ के परिचित लोग और उनके व्हॉटसएप ग्रूप पर सम्पर्क किया| तब जा कर एक व्यक्ति ने कहा कि वह मुझे उसकी साधारण सी साईकिल देगा| अब उसकी प्रतीक्षा है| जैसे तय हुआ था, बस अड़्डे के पास रूक कर उसे सम्पर्क किया| सम्पर्क हुआ नही| जब हुआ तो उसने कहा कि वह किसी और स्थान पर है| आखिर कर होते होते पता चला कि वह किसी दूसरी जगह पर है| अत: साईकिल नही मिल सकी| अब तक मन में इच्छा थी कि यहाँ साईकिल चलाऊँगा, मन में‌ उसकी योजना चल रही थी| अब मन की‌ वह धारा टूट गई! एक तरह से हताशा हुई| पता था ही की‌ पहाड़ के लोग कोई‌ बहुत प्रॉम्प्ट नही होते हैं| फिर भी कुछ देर तक दु:ख हुआ| लेकीन बाद में यह भी समझ आई की देख! हिमालय में आने के बाद भी कैसे तू रो रहा है कि साईकिल नही मिली! हिमालय तुझे मिल रहा है, हिमालय का सत्संग मिल रहा है, उसके सामने साईकिल की बिशात क्या है? फिर सबके साथ आगे बढ़ा| पिथौरागढ़ के आगे धारचुला रोड़ पर बीस किलोमीटर पर सत्गढ़ या सद्गड गाँव है| वहाँ पहला पड़ाव होगा|





Monday, July 23, 2018

पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग १: प्रस्तावना

प्रस्तावना

उत्तराखण्ड! हिमालय! पिथौरागढ़! लगभग ढाई साल के बाद अब फिर हिमालय का बुलावा आया है! नवम्बर- दिसम्बर २०१७ में पिथौरागढ़ में घूमना हुआ| उसके बारे में आपसे बात करता हूँ| यह एक छोटी पर बहुत सुन्दर यात्रा रही| इसमें दो छोटे ट्रेक किए और पिथौरागढ़ के कुछ गाँवों में जाना हुआ| मेरी पत्नि मूल रूप से पिथौरागढ़ से है, अत: उनके यहाँ एक विवाह समारोह में जाना हुआ| पारिवारिक यात्रा, लोगों से मिलना और छुट्टियों की कमी इस कारण वश वैसे तो यह यात्रा एक सप्ताह की ही रही| लेकीन फिर एक बार हिमालय और खास कर सर्दियों में हिमालय की ठण्ड और रोमांच का अनुभव मिल सका| पुणे से २६ नवम्बर २०१७ को निकले| मुंबई में बांद्रा टर्मिनस जा कर दिल्ली की ट्रेन ले ली| २७ नवम्बर की दोपहर दिल्ली‌ में निजामुद्दीन उतर कर दिल्ली परिवहन निगम की बस से आनन्द विहार टर्मिनस गए| यहाँ से पिथौरागढ़ के लिए बस चलती हैं| इस बस अड़्डे पर बहुत से शहरों के लिए बसें निकलती हैं जिनमें वाराणसी, गोरखपूर, महेन्द्रनगर (नेपाल) आदि भी है| कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद पिथौरागढ़ की बस मिली| दिवाली की छुट्टियाँ होने के कारण बहुत भीड़ भी है| जैसे ही‌ बस में बैठे, एक मज़ेदार वाकया हुआ| बस में एक तृतीयपंथी आया और उसने मेरे और अन्य कुछ लोगों के सिर पर हात लगा कर पैसे मांगे| तभी उसने मेरी पत्नि को देखा और नमस्कार बोला (बोली)! मेरी पत्नि भी उसे जानती है, क्यों कि उसने मुंबई में इस विषय पर काम करनेवाली संस्था में काम किया है| दोनों में एकदम परिचित की तरह बातें हुई| वह तृतीयपंथी नेपाल का (की) है और वही जा रहा (रही) है! कहाँ कहाँ कैसे पहचान के लोग मिल जाते हैं!