भाग २: पहाड़ में बंसा एक गाँव- सद्गड
इस लेखमाला को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|
२८ नवम्बर २०१७ की सर्द सुबह! पिथौरागढ़ में पहुँचने के बाद पहला काम है कि एक व्यक्ति से बात हुई है, उससे साईकिल लेनी है| हिमालय में सिर्फ- छह दिन के लिए जाने के समय भी साईकिल चलाने का मन था| इसलिए हर तरह से प्रयास किया कि पिथौरागढ़ पहुँचने पर मुझे साईकिल मिल सके| इंटरनेट पर उत्तराखण्ड के विविध साईकिलिस्ट ग्रूप्स से सम्पर्क किया, पिथौरागढ़ या आसपास के साईकिलिस्ट ग्रूप्स से भी सम्पर्क करने का प्रयास किया| लेकीन किसी से सीधा सम्पर्क नही हुआ| कुछ लोग साईकिल देते हैं, लेकीन पैकेज में; किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए नही देते| फिर पिथौरागढ़ के परिचित लोग और उनके व्हॉटसएप ग्रूप पर सम्पर्क किया| तब जा कर एक व्यक्ति ने कहा कि वह मुझे उसकी साधारण सी साईकिल देगा| अब उसकी प्रतीक्षा है| जैसे तय हुआ था, बस अड़्डे के पास रूक कर उसे सम्पर्क किया| सम्पर्क हुआ नही| जब हुआ तो उसने कहा कि वह किसी और स्थान पर है| आखिर कर होते होते पता चला कि वह किसी दूसरी जगह पर है| अत: साईकिल नही मिल सकी| अब तक मन में इच्छा थी कि यहाँ साईकिल चलाऊँगा, मन में उसकी योजना चल रही थी| अब मन की वह धारा टूट गई! एक तरह से हताशा हुई| पता था ही की पहाड़ के लोग कोई बहुत प्रॉम्प्ट नही होते हैं| फिर भी कुछ देर तक दु:ख हुआ| लेकीन बाद में यह भी समझ आई की देख! हिमालय में आने के बाद भी कैसे तू रो रहा है कि साईकिल नही मिली! हिमालय तुझे मिल रहा है, हिमालय का सत्संग मिल रहा है, उसके सामने साईकिल की बिशात क्या है? फिर सबके साथ आगे बढ़ा| पिथौरागढ़ के आगे धारचुला रोड़ पर बीस किलोमीटर पर सत्गढ़ या सद्गड गाँव है| वहाँ पहला पड़ाव होगा|
पिथौरागढ़ में पहले भी कई बार आया हूँ| वह सब यादें ताज़ा हुई| टनकपूर से ही आगे बीआरओ का कार्य दिखने लगता है| उसके बाद सड़क पर आर्मी एवम् भारत तिब्बत सीमा पुलिस की उपस्थिति भी नजर आती है| और इसके साथ ही नजर आते हैं दूर दूर तक फैले पहाड़, कुदरती हरियाली, जंगल, देवदार वृक्ष और दूर से पुकारते हिमाच्छादित शिखर! साथ ही एक बहुत मुलायम सी ठण्ड और शीतलता! पिथौरागढ़ से बस में आगे बढ़े| बस में अच्छी भीड है| अब अच्छी ठण्ड महसूस हो रही है| यहाँ उतरने के बाद शहर में और बस में एक भी ऐसा बन्दा नही दिखा जिसने स्वेटर ना पहना हो! पिथौरागढ़ की समुद्र तल से ऊँचाई लगभग १६०० मीटर है| यहाँ से यह सड़क और उपर चढती है, फिर नीचे उतरती है| बीस किलोमीटर की दूरी में कई बार उपर चढ कर नीचे उतर रही है| जैसे ही कुछ ऊँचाई पर सड़क पहुँचती है, दूर से ॐ पर्वत और अन्य शिखर दिखाई देते हैं! ठण्ड में आने का एक लाभ यह है कि आसमान साफ होता है और विजिबिलिटी भी दूर तक होती है| इससे दोसौ, तीनसौ किलोमीटर दूर होनेवाले शिखर भी कुछ ऊँचाई के स्थानों से देखे जा सकते हैं! एक बहुत बड़ी गहरी शान्ति और ताज़गी भीतर महसूस हो रही है| लेकीन उसके साथ दो दिन तक का सफर और उसके बाद छह- सात घण्टों का पहाड़ी सफर इससे शरीर थक भी गया है| यह भी एहसास हो रहा है कि चाहे बीस ही किलोमीटर क्यों ना हो, लेकीन कुछ कुछ जगहों पर होनेवाली तिखी चढ़ाई साधारण साईकिल से कतई पार नही होती| शायद पूरी चढाई हाथ में साईकिल लानी पड़ती| खैर!
यात्रा से सभी सह यात्रियों की भी स्थिति ठीक नही है| मेरी छोटी बेटी को भी यात्रा से थोड़ी तकलीफ हुई| अब सब लोग विश्राम करना चाहते हैं| सद्गड गाँव सड़क से शुरू होता है और पहाड़ पर उपर उठता जाता है| जैसे उत्तराखण्ड में तल्ला एवम् मल्ला कहते हैं| हमे जहाँ ठहरना है वो घर सड़क से कुछ उपर है| कुछ लोग रिसीव करने के लिए नीचे भी आए हैं| सबसे बातें होती रही| यहाँ से घर तक पहुँचना भी एक वार्म अप ट्रेक ही है| बड़ी बड़ी पत्थर की पगडंडी से राह उपर उठती है| जैसे उपर चढते गए, वैसे आसपास के पहाड़ और दिखते गए! हिमालय की गोद में बसे गाँव के घर में जा कर आराम किया| दोपहर में भी अच्छी ठण्ड लग रही है!
अब मन में योजना बन रही है कि कहाँ कहाँ जाया जा सकता है| हाथ में मुश्कील से चार- पाँच दिन ही है| क्यों कि एक जगह विवाह समारोह में जाना है| उसके अलावा पारिवारिक मिलना- जुलना भी सब है| एक बार सोचा कि मुन्सियारी जाया जा सकता है| लेकीन बाद में पता चला कि एक दिन में जा कर आना सम्भव नही होगा| यह यात्रा मेरी पसन्दीदा सोलो ट्रेक की यात्रा न हो कर एक पारिवारिक यात्रा है, अत: देखना होगा मुझे कितना समय मिलता है| मेरी तीन साल की बेटी के साथ कई छोटे ट्रेक किए हैं, अब यहाँ उसके साथ हिमालय का आनन्द लेना है| उसके साथ पहाड़ से फूटनेवाले पानी की धारा के पास गया| यहाँ पीने का पानी पहाड़ के झरने से ही आता है| यहाँ की ठण्ड और हिमालय के वातावरण में जल्द ही उसके गाल भी यहाँ के पहाड़ी बच्चों जैसे लाल हो जाएंगे, मुझे प्रतीक्षा है! दोपहर में अच्छा विश्राम किया| वैसे तो इन दिनों हिमालय में दोपहर होती ही नही है| सुबह होती है और एकदम से साढ़ेपाँच बजे के बाद रात हो जाती है| सूरज तो चार बजे ही पहाड़ के पीछे चला गया|
अदू!
पहाड़ के इस छोटे से गाँव में आना और भी कई अर्थों में खास है| एक तो यहाँ मोबाईल नेटवर्क बहुत कम मिलता है| इसलिए हमारे रोज के मोबाईल और इंटरनेट से जुड़े काम लगभग बन्द हो जाते है| एक बहुत बड़ा सन्नाटा जैसे चारों तरफ से बरसता है| नए लोग, पुराने परिचितों से नई मुलाकातें, हंसना, मुस्कुराना और कुदरत का सत्संग! साथ में पहाड़ी कुत्ते और पहाड़ी वृक्ष भी हैं! यह सद्गड गाँव वैसे तो जंगल के बहुत पास है| यहाँ रात में कई जानवर आते हैं और पहाड़ी खेती को नुकसान पहुँचाते हैं| यहाँ के सभी लोग एक ही बिरादरी के हैं| अब कई परिवार या परिवारों के कई लोग पिथौरागढ़ में या बाहर दिल्ली- मुंबई में भी बंसे हैं| इसलिए यहाँ के कुछ घर विरान से हैं| लेकीन फिर भी यहाँ भी शहर का प्रभाव बहुत है| बच्चे अंग्रेजी स्कूल में स्कूल बस से जाते हैं| कई लोग शहर जैसे जॉब्ज करते हैं| खेती भी करते हैं, लेकीन परिवार में सभी खेती नही करते हैं| बातचीत में वह दिन बीत गया| अब एक लम्बी नीन्द चाहिए| और यहाँ नीन्द बड़ी स्वाभाविक और जल्द भी आती है| शाम को सात बजते बजते नीन्द आने लगी|
क्रमश:
अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ३: एक सुन्दर ट्रेक: ध्वज मन्दीर
इस लेखमाला को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए|
२८ नवम्बर २०१७ की सर्द सुबह! पिथौरागढ़ में पहुँचने के बाद पहला काम है कि एक व्यक्ति से बात हुई है, उससे साईकिल लेनी है| हिमालय में सिर्फ- छह दिन के लिए जाने के समय भी साईकिल चलाने का मन था| इसलिए हर तरह से प्रयास किया कि पिथौरागढ़ पहुँचने पर मुझे साईकिल मिल सके| इंटरनेट पर उत्तराखण्ड के विविध साईकिलिस्ट ग्रूप्स से सम्पर्क किया, पिथौरागढ़ या आसपास के साईकिलिस्ट ग्रूप्स से भी सम्पर्क करने का प्रयास किया| लेकीन किसी से सीधा सम्पर्क नही हुआ| कुछ लोग साईकिल देते हैं, लेकीन पैकेज में; किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए नही देते| फिर पिथौरागढ़ के परिचित लोग और उनके व्हॉटसएप ग्रूप पर सम्पर्क किया| तब जा कर एक व्यक्ति ने कहा कि वह मुझे उसकी साधारण सी साईकिल देगा| अब उसकी प्रतीक्षा है| जैसे तय हुआ था, बस अड़्डे के पास रूक कर उसे सम्पर्क किया| सम्पर्क हुआ नही| जब हुआ तो उसने कहा कि वह किसी और स्थान पर है| आखिर कर होते होते पता चला कि वह किसी दूसरी जगह पर है| अत: साईकिल नही मिल सकी| अब तक मन में इच्छा थी कि यहाँ साईकिल चलाऊँगा, मन में उसकी योजना चल रही थी| अब मन की वह धारा टूट गई! एक तरह से हताशा हुई| पता था ही की पहाड़ के लोग कोई बहुत प्रॉम्प्ट नही होते हैं| फिर भी कुछ देर तक दु:ख हुआ| लेकीन बाद में यह भी समझ आई की देख! हिमालय में आने के बाद भी कैसे तू रो रहा है कि साईकिल नही मिली! हिमालय तुझे मिल रहा है, हिमालय का सत्संग मिल रहा है, उसके सामने साईकिल की बिशात क्या है? फिर सबके साथ आगे बढ़ा| पिथौरागढ़ के आगे धारचुला रोड़ पर बीस किलोमीटर पर सत्गढ़ या सद्गड गाँव है| वहाँ पहला पड़ाव होगा|
पिथौरागढ़ में पहले भी कई बार आया हूँ| वह सब यादें ताज़ा हुई| टनकपूर से ही आगे बीआरओ का कार्य दिखने लगता है| उसके बाद सड़क पर आर्मी एवम् भारत तिब्बत सीमा पुलिस की उपस्थिति भी नजर आती है| और इसके साथ ही नजर आते हैं दूर दूर तक फैले पहाड़, कुदरती हरियाली, जंगल, देवदार वृक्ष और दूर से पुकारते हिमाच्छादित शिखर! साथ ही एक बहुत मुलायम सी ठण्ड और शीतलता! पिथौरागढ़ से बस में आगे बढ़े| बस में अच्छी भीड है| अब अच्छी ठण्ड महसूस हो रही है| यहाँ उतरने के बाद शहर में और बस में एक भी ऐसा बन्दा नही दिखा जिसने स्वेटर ना पहना हो! पिथौरागढ़ की समुद्र तल से ऊँचाई लगभग १६०० मीटर है| यहाँ से यह सड़क और उपर चढती है, फिर नीचे उतरती है| बीस किलोमीटर की दूरी में कई बार उपर चढ कर नीचे उतर रही है| जैसे ही कुछ ऊँचाई पर सड़क पहुँचती है, दूर से ॐ पर्वत और अन्य शिखर दिखाई देते हैं! ठण्ड में आने का एक लाभ यह है कि आसमान साफ होता है और विजिबिलिटी भी दूर तक होती है| इससे दोसौ, तीनसौ किलोमीटर दूर होनेवाले शिखर भी कुछ ऊँचाई के स्थानों से देखे जा सकते हैं! एक बहुत बड़ी गहरी शान्ति और ताज़गी भीतर महसूस हो रही है| लेकीन उसके साथ दो दिन तक का सफर और उसके बाद छह- सात घण्टों का पहाड़ी सफर इससे शरीर थक भी गया है| यह भी एहसास हो रहा है कि चाहे बीस ही किलोमीटर क्यों ना हो, लेकीन कुछ कुछ जगहों पर होनेवाली तिखी चढ़ाई साधारण साईकिल से कतई पार नही होती| शायद पूरी चढाई हाथ में साईकिल लानी पड़ती| खैर!
यात्रा से सभी सह यात्रियों की भी स्थिति ठीक नही है| मेरी छोटी बेटी को भी यात्रा से थोड़ी तकलीफ हुई| अब सब लोग विश्राम करना चाहते हैं| सद्गड गाँव सड़क से शुरू होता है और पहाड़ पर उपर उठता जाता है| जैसे उत्तराखण्ड में तल्ला एवम् मल्ला कहते हैं| हमे जहाँ ठहरना है वो घर सड़क से कुछ उपर है| कुछ लोग रिसीव करने के लिए नीचे भी आए हैं| सबसे बातें होती रही| यहाँ से घर तक पहुँचना भी एक वार्म अप ट्रेक ही है| बड़ी बड़ी पत्थर की पगडंडी से राह उपर उठती है| जैसे उपर चढते गए, वैसे आसपास के पहाड़ और दिखते गए! हिमालय की गोद में बसे गाँव के घर में जा कर आराम किया| दोपहर में भी अच्छी ठण्ड लग रही है!
अब मन में योजना बन रही है कि कहाँ कहाँ जाया जा सकता है| हाथ में मुश्कील से चार- पाँच दिन ही है| क्यों कि एक जगह विवाह समारोह में जाना है| उसके अलावा पारिवारिक मिलना- जुलना भी सब है| एक बार सोचा कि मुन्सियारी जाया जा सकता है| लेकीन बाद में पता चला कि एक दिन में जा कर आना सम्भव नही होगा| यह यात्रा मेरी पसन्दीदा सोलो ट्रेक की यात्रा न हो कर एक पारिवारिक यात्रा है, अत: देखना होगा मुझे कितना समय मिलता है| मेरी तीन साल की बेटी के साथ कई छोटे ट्रेक किए हैं, अब यहाँ उसके साथ हिमालय का आनन्द लेना है| उसके साथ पहाड़ से फूटनेवाले पानी की धारा के पास गया| यहाँ पीने का पानी पहाड़ के झरने से ही आता है| यहाँ की ठण्ड और हिमालय के वातावरण में जल्द ही उसके गाल भी यहाँ के पहाड़ी बच्चों जैसे लाल हो जाएंगे, मुझे प्रतीक्षा है! दोपहर में अच्छा विश्राम किया| वैसे तो इन दिनों हिमालय में दोपहर होती ही नही है| सुबह होती है और एकदम से साढ़ेपाँच बजे के बाद रात हो जाती है| सूरज तो चार बजे ही पहाड़ के पीछे चला गया|
अदू!
पहाड़ के इस छोटे से गाँव में आना और भी कई अर्थों में खास है| एक तो यहाँ मोबाईल नेटवर्क बहुत कम मिलता है| इसलिए हमारे रोज के मोबाईल और इंटरनेट से जुड़े काम लगभग बन्द हो जाते है| एक बहुत बड़ा सन्नाटा जैसे चारों तरफ से बरसता है| नए लोग, पुराने परिचितों से नई मुलाकातें, हंसना, मुस्कुराना और कुदरत का सत्संग! साथ में पहाड़ी कुत्ते और पहाड़ी वृक्ष भी हैं! यह सद्गड गाँव वैसे तो जंगल के बहुत पास है| यहाँ रात में कई जानवर आते हैं और पहाड़ी खेती को नुकसान पहुँचाते हैं| यहाँ के सभी लोग एक ही बिरादरी के हैं| अब कई परिवार या परिवारों के कई लोग पिथौरागढ़ में या बाहर दिल्ली- मुंबई में भी बंसे हैं| इसलिए यहाँ के कुछ घर विरान से हैं| लेकीन फिर भी यहाँ भी शहर का प्रभाव बहुत है| बच्चे अंग्रेजी स्कूल में स्कूल बस से जाते हैं| कई लोग शहर जैसे जॉब्ज करते हैं| खेती भी करते हैं, लेकीन परिवार में सभी खेती नही करते हैं| बातचीत में वह दिन बीत गया| अब एक लम्बी नीन्द चाहिए| और यहाँ नीन्द बड़ी स्वाभाविक और जल्द भी आती है| शाम को सात बजते बजते नीन्द आने लगी|
क्रमश:
अगला भाग- पिथौरागढ़ में भ्रमण भाग ३: एक सुन्दर ट्रेक: ध्वज मन्दीर
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-07-2018) को "कौन सुखी परिवार" (चर्चा अंक-3045) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
---------------