Monday, October 9, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख

नमस्ते! साईकिलिंग दोबारा शुरू कर चार साल हो चुके हैं| साईकिल ने इतना कुछ सीखाया, इतनी नई दृष्टि दी! इस पूरी यात्रा में साईकिल के साथ कई दिग्गज साईकिलिस्ट, फिटनेस के खिलाडी और प्रेरणा देनेवाले लोग मिलते रहे हैं| इस विवरण को शुरू करने के पहले उन सबको एक बार नमन करता हूँ|

मेरी पीछली अन्तिम साईकिल यात्रा या बड़ी राईड २०१५ के दिसम्बर में हुई थी|‌ तब दूसरे ही दिन मै पूरी तरह थक गया था| और जैसे लगा कि साईकिल चलानी छोड ही देनी चाहिए| हर साईकिलिस्ट के अनुभव में यह जरूर आता है| लेकीन खैर, साईकिल नही छूटी| कुछ दिनों के बाद ही लम्बी यात्राओं के सपने दिन में आने लगे| २०१५ में ही लदाख़ की आंशिक यात्रा की थी, तो लगा कि २०१६ में भी एक बार ट्राय करता हूँ| पहले के अनुभवों से सचेत हो कर और बेहतर तैयारी शुरू की| इस बार स्टैमिना और फिटनेस को और बढ़ाने के लिए रनिंग शुरू किया| रनिंग शुरू करना कठिन रहा| शारीरिक रूप से नही, बल्की मानसिक रूप से| कई दशक पहले जब स्कूल में कभी दौड़ा करता था तो सब चिढाते थे कैसा दौड़ता है यह! वह बात अब भी मन में थी| इसलिए लगा की सुबह के अन्धेरे में ही दौड़ूंगा! लेकीन सुबह के अन्धेरे में दौड़ने के लिए बहुत जल्द उठना पड़ता है! वो तो अक्सर नही ही होता था| लेकीन फिर भी धीरे धीरे दौड़ना शुरू किया| पहले दो दिन तो पाँच किलोमीटर चला और उसमें सिर्फ सौ सौ मीटर दौड़ता था, हाँफता था और फिर कुछ समय खड़े रह कर दौड़ता था| उसे चलना और थोड़ासा जॉगिंग ही कहना चाहिए| ऐसे २-३ दिन जाने के बाद धीरे धीरे पूरे पाँच किलोमीटर जॉगिंग कर सका| उसमें भी बहुत बार रूकना पड़ता था| लेकीन धीरे धीरे कुछ ही हफ्तों में रफ्तार भी बढी और आसानी भी होने लगी| ऐसे करते करते एक ही बार में दस किलोमीटर की भी दौड़ लगा सका| चलो, साईकिलिंग के साथ यह भी बहुत सीखना हुआ, स्वास्थ्य और फिटनेस की दिशा में एक कदम और आगे जाने लगा|






लेकीन २०१६ में लदाख़ की साईकिल यात्रा नही हो पायी| तैयारी बहुत की, बहुत योजना बनाई| लेकीन फिर भी साईकिलिंग का उतना अभ्यास नही कर पाया| और एक बड़ी राईड ने घूटने (सचमूच) टेकने के लिए मजबूर कर दिया| तब तय किया की लदाख़ नही जाऊँगा| लेकीन फिर भी २०१६ के मान्सून में भी डे- ड्रिमिंग करता था कि इधर जाऊँगा| ये ये देखूँगा| लेकीन कहीं भी नही जा सका| बस कुछ प्रैक्टीस राईडस ही हुईं और यदा कदा दौड़ना हुआ| एक तरह से मन में बार बार लग रहा था कि लम्बी साईकिल यात्रा करना मेरे बस में नही है! खैर|

भला हो उन लोगों का जो अक्सर दूसरों को प्रेरणा देते रहते हैं| कई साईकिलिस्ट के विवरण पढ़ता था| एक बार तो लगा भी कि अब क्यों ये सब पढ़ें! जाने दो! लेकीन नही| साईकिल से रिश्ता टूटा नही और थोड़ी साईकिलिंग शुरू रही| इसको गति २०१७ के मई में मिली जब तय किया की २०१७ के बरसाती सीज़न में कही ना कही तो साईकिल यात्रा करनी ही है! मई से ही छोटी प्रैक्टीस राईडस शुरू की| बीच बीच में थोड़ा दौड़ता भी था| क्यों कि यह तो साफ हुआ था कि अगर स्टैमिना/ फिटनेस बढ़ाना है, तो उसका रास्ता रनिंग से जाता है| क्यों कि साईकिल चलाने की तुलना में रनिंग ज्यादा हेवी एक्टिविटी है; ज्यादा थकानेवाला व्यायाम है| इसलिए अगर मै कुछ दूरी तक रनिंग कर पाता हूँ- जैसे १० या १५ किलोमीटर तो उससे मेरा स्टैमिना बढ़ेगा और साईकिल चलाने में आसानी होगी| जल्द नही थकूँगा| इस सोच के साथ दौड़ना भी चालू था| मन बना लिया था|



ऐसे में अगस्त २०१७ में पुणे के एक दिग्गज खिलाडी- हर्षद पेंडसे जी की मुहीम का पता चला| वे खार्दुंगला चॅलेंज अल्ट्रा मॅरेथॉन में हिस्सा ले रहे थे और उसके साथ एक संस्था के लिए भी लोगों से अपील कर रहे थे| और इस अल्ट्रा मॅरेथॉन के लिए वे एक हप्ते में १०० किलोमीटर से शुरू कर एक दिन में ५० किलोमीटर तक दौड़ रहे थे| उनसे वाकई बहुत प्रेरणा मिली| वे और डॉ. पवन चांडक जैसे साईकिलिस्ट जो अक्सर अपनी साईकिलिंग के अपडेटस भेजते थे (सबको याद कराते थी की रोज साईकिल चलानी है) और बीच बीच में किसी थीम के साथ लम्बी यात्रा भी साईकिल पर करते थे| इनसे बहुत प्रेरणा मिली| खास कर हर्षद पेंडसे जी को उनके अल्ट्रा मॅरेथॉन के लिए शुभकामना देते समय मै कम से कम हाफ मॅरेथॉन तो दौड़ूँ, ऐसा मन बना| अब तक ११ किलोमीटर से अधिक कभी दौड़ा नही था| लेकिन मन बनाया| इन लोगों से बहुत कुछ समझ रहा था, सीख रहा था| इसलिए फिर १५ किलोमीटर, फिर १८ किलोमीटर और कुछ दिनों के बाद २१ किलोमीटर भी दौड़ पाया| इसी दौरान संजयराव बनसकर जैसे नए दोस्त मिले और उनसे भी काफी सीखने को मिला|

अगस्त महिने में ज्यादा फोकस रनिंग पर ही दिया| साईकिल बहुत थोड़ी चलाई| अगस्त में थोड़े ही दिन ११- १५ किलोमीटर इतने छोटे डिस्टंस पर साईकिल चलायी थी| लेकीन २२ किमी दौड़ने से (उसमें १९ किमी दौड़ना था और बाकी ३ किलोमीटर चला था) हौसला बुलन्द था| बहुत कम समय में सीधे ५ किलोमीटर से २२ किलोमीटर तक दौड़ पाया, इसमें भी साईकिल चलाने का हाथ था| शरीर ऐसे अभ्यास के लिए थोड़ा ही सही, पर तैयार था| अब मन में योजना बनने लगी की सितम्बर में एक मान्सून साईकिलिंग की जाए| और उसकी कुछ थीम भी होनी चाहिए| तब मन में योजना बनी की इस बार 'योग- ध्यान के लिए साईकिलिंग' इस थीम के साथ साईकिल चलाता हूँ| बड़ी अच्छी योजना बनायी| मेरी साईकिल चलाने की हैसियत ध्यान में रखते हुए छोटे छोटे पड़ाव ही बनाए| हर रोज सिर्फ ५०- ६० किलोमीटर साईकिल चलाऊँगा और उसके बाद लॅपटॉप पर मेरा रूटीन काम भी करूँगा, ऐसा तय किया|

३ सितम्बर को पुणे जिले के भीमाशंकर को साईकिल पर गया| यह एक ८२ किलोमीटर की राईड थी और इसमें काफी चढाई भी थी| इसलिए मैने सोचा कि इसे दो दिन में करूँगा| पहले दिन दोपहर तक वहाँ पहुँचूँगा और अगले दिन सुबह वहीं से लौटूँगा| इसके पहले वैसे तो २०, ३०, ४० किलोमीटर की छोटी‌ राईडस करनी चाहिए थी| लेकीन फिर भी सीधे इसी तरफ आया| ऐसा होता है मन! एकदम से चल देता है! और तब जो होना था, वही हुआ| यहाँ भी बुरी तरह विफलता हाथ लगी| सोचा था कि छह घण्टों में यह ८२ किलोमीटर की दूरी पार करूँगा| उसे नौ घण्टे लगे| और हालत भी बहुत बिगड़ी| इसमें कई बातें थी|‌ पहले तीन घण्टों तक तो अच्छी साईकिल चलाई| पहले के मुकाबले अधिक स्पीड भी मिली| लेकीन उसके बाद चढाई पर थकता गया| जो बड़ा घाट था, उसमें थोड़ा ही चल पाया और ज्यादा दूरी तो साईकिल ढो कर ही पूरी की| एक बार तो ऐसे पैदल साईकिल ले जाना भी कठिन हुआ|

दूसरी तकलीफ सामान ने दी| दो दिन की राईड सोच कर लॅपटॉप भी साथ लिया था| कुछ कपड़े, पंक्चर का किट आदि| कॅरिअर पर लगी सैक बार बार निकल रही थी| उसे ठीक करने में कम से कम एक घण्टा गया होगा| और सारा सामान कॅरिअर पर रखने से भी साईकिल चढाई पर ले जाना कठिन हुआ| खैर, जैसे तैसे भिमाशंकर पहुँचा| उस यात्रा में सिर्फ एक ही चीज़ अच्छी हुई- नजारे बेहद सुन्दर थे| लेकीन वक़्त इतना गलत चल रहा था कि बारीश में पुराने मोबाईल से फोटो खींचे, उसका मेमरी कार्ड करप्ट हुआ था| उस कारण वे फोटोज भी गए| कुछ ही फोटोज है जो नए मोबाईल से बारीश के पहले लिए थे| खैर| फिर भिमाशंकर से बस से उसी दिन वापस लौटा| क्यों कि अगला दिन वर्किंग डे था और इतना सामान लाते समय अधिकतर उतराई होने के बावजूद मुझे आठ- नौ घण्टे लगते ही थे| इसी लिए तुरन्त वापस लौटा| फिर भी, इस यात्रा में भी कुछ मूल्यवान अनुभव जरूर आए| एक तो जैसे तैसे हो, साईकिल पर भिमाशंकर पहुँच गया| नजारे भी बेहद लाजवाब मिले| और वहाँ एक सज्जन भी मिले जिन्होने साईकिल बस पर रखने में सहायता की| वे बस अड्डे के कर्मचारी नही, बल्की मेरे तरह ही यात्री थे, लेकीन फिर भी उन्होने मेरी मदद की| बाँधने के लिए रस्सी लाकर दी| मेरी हालत खस्ता थी, ऐसे समय में उन्होने बड़ी सहायता की| खैर|











भीमाशंकर यात्रा के कुछ फोटो



वापस आने पर एक- दोन दिन तो ऐसे ही गुजारे- अब बस, बहुत हुआ! लेकीन फिर तीसरे दिन साईकिल ने मुंह उपर उठाया| फिर मन में योजना बनने लगी| सामान को अलग तरीके से बाँध कर देखा| और वह कारगर हुआ| पीछे सिर्फ लॅपटॉप और सामने पंक्चर किट- कपड़े आदि ऐसी व्यवस्था की| ऐसी एक राईड भी की| कोई तकलीफ नही हुई| और कुछ प्रैक्टिस राईडस की- २५- ३० किलोमीटर तक की| फिर साईकिल की सर्विसिंग भी करा ली| अब थोड़ी ठोस योजना बनने लगी| योजना ऐसे बनी की २१ सितम्बर को पुणे के पास चाकण से निकलूँगा, हर रोज पचास के आसपास दूरी पार करते हुए महाबळेश्वर को जाऊँगा| सातारा जिले के रमणीय स्थान देखूँगा| सिर्फ एक रविवार के दिन बड़ा ८९ किलोमीटर का पड़ाव करूँगा|

जिस दिन निकलनेवाला था, उसके पहले महाराष्ट्र के इस क्षेत्र में तेज़ बरसात होने लगी| कुछ जगहों पर सड़कें अवरुद्ध होने की खबरें भी थी| फिर लगा कि जाना मुश्कील है| इसलिए एक हफ्ता इस यात्रा को पोस्टपोन किया| यह निर्णय भी बहुत सही साबित हुआ| इस बीच एक प्रैक्टीस राईड की- ७० किलोमीटर साईकिल चलाई| तब लगा की चार- पाँच घण्टे के बाद साईकिल चला पाना कठिन होगा| इसलिए योजना थोड़ी बदली| इसके साथ 'ध्यान योग' लिखे हुए टी- शर्टस भी बनवा लिए| किसी अन्य के लिए हुआ हो या न हुआ हो, मेरे लिए यह मॅसेज बड़ा उपयोगी रहा| इससे मनोबल बढ़ने में सहायता हुई| योग- ध्यान इस थीम के बारे में पहले बता चुका हूँ|

. जैसे जैसे साईकिल यात्रा का दिन पास आ रहा है, वैसे कई चीज़ें साफ होने लगी| मेरी पुरानी यात्राओं का विवरण रखना बहुत उपयोगी रहा| क्यों कि अतीत में मैने बड़ी आसानी से ८०, ९० या १३०, १५० किलोमीटर की यात्रा भी की थी| तो अब मै कैसे ५०- ६० किलोमीटर में थक रहा हूँ? तब जा कर पता चला की साईकिल चलाते समय मेरा आहार उतना ठीक नही है| उसमें सुधार करना होगा| उसके साथ साईकिल चलाने के बाद अच्छा सा विश्राम भी करना चाहिए| रात अच्छी नीन्द लेनी चाहिए| तब जा कर अगले दिन फ्रेश रहूँगा| उसके साथ योगासन- प्राणायाम और स्ट्रेचिंग तो आवश्यक है ही| मेरी तैयारी और फिटनेस को ध्यान में रखते हुए यात्रा की योजना में थोड़ा परिवर्तन किया और जो बड़ा ८९ किलोमीटर का पड़ाव था, उसे कम किया| उससे दो लाभ हुए| इस यात्रा का सबसे बड़ा चरण- महाबळेश्वर में साईकिलिंग करना है| अब योजना बदलने के कारण मै महाबळेश्वर में बिना लगेज जा सकूँगा| और हॉल्ट महाबळेश्वर का बेस वाई में ही कर सकूँगा| पहले सोचा था कि महाबळेश्वर चढने के बाद दूसरे रास्ते से सीधा सातारा जाऊँ| लेकीन फिर योजना बदल दी| खैर|

अब यह भी साफ हो चुका है कि यह सिर्फ साईकिल चलाना नही है या सिर्फ शरीर का काम भी नही है| इसमें पूरा मन है, पूरा व्यक्तित्व है| साईकिल तो चार- पाँच घण्टे चलाऊँगा| वास्तविक मॅनेजमेंट तो उसके बाद का होगा| अच्छा और पर्याप्त आहार- ठीक से विश्राम- उसके लिए ठहरने की सुविधा आदि| आहार के बारे में भी कई चीज़ें जान गया हूँ| और चार- पाँच घण्टों तक साईकिल चलानी हो, तो क्या और कितना खाना चाहिए, यह भी जानता हूँ| उसमें गल्ती नही करूँगा| बीच बीच में रूकने के लिए हॉल्ट भी तय हुए| पहले दिन भाई के घर और दूसरे दिन दोस्त के पास रुकूँगा| तीसरे और चौथे दिन वाई में हॉल्ट करना होगा| उसके बाद का वहाँ जाने पर देखूँगा|






ऑन पेपर पर तो सब ठीक है| लेकीन क्या मै यह कर पाऊँगा? सच में? मन को कैसे समझाऊँ? रह रह कर यही बात मन में आती है| लेकीन तय किया कि इस बार मुझे आफ्रिकी क्रिकेट टीम का सदस्य (चोकर) नही बनना है| मुझे तो विराट या धोनी के टीम का ही‌ सदस्य बनना है जो टारगेट आसानी से पूरा करता है!! जाने के ठीक एक दिन पहले मन कुछ शान्त हुआ| एक सकारात्मक सा भाव मन में आ गया कि मै यह कर सकता हूँ| बस जो कुछ भी हो, वहाँ मन को शान्त रखना है| चाहे कुछ भी हो जाए, 'सो व्हॉट?' कह कर आगे बढ़ना है| साईकिल यात्रा के पहले कुछ दिन अक्सर कठिन होते हैं| कल २८ सितम्बर को निकलना है| २७ की रात नीन्द बड़ी मुश्कील से लगी| अब आगे देखते हैं क्या होता है| क्या मै इतनी लम्बी यात्रा कर भी सकता हूँ? या मेरा हश्र वही होगा जो पहले हुआ था? इसमें एक बात जरूर कुछ सहारा दे रही है कि मै अब अच्छी रनिंग कर सकता हूँ| पहले मेरे लिए जो लगभग नामुमकीन था, वो मैने मुमकीन बनाया| कभी सोचा नही था इतना दौड़ पाऊँगा, लेकीन दौड़ पाया| तो अब यह भी देखते हैं!



अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)

2 comments:

  1. इस.लेख से आपके मन में क्या खींचतान चल रही थी। पता लगी। दिल खोलकर ऐसे ही अपने जज्बात विचार रखते जाइये। पढने वाले आपकी समस्या से रुबरु हो जायेंगे।

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  2. reading your blog, will time to read all articles..

    Thank You!

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!