Saturday, October 14, 2017

योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर










: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर

२९ सितम्बर| कल रात अच्छी नीन्द हुई| आज इस यात्रा का दूसरा दिन है और आज एक घाट भी पार करना है| हालांकी, अब टनेल होने के कारण यह घाट अब सिर्फ मामुली चढाई ही रह गया है| फिर भी शुरू में लगातार बारह किलोमीटर तक चढाई होगी, उसके बाद पच्चीस किलोमीटर तक उतराई और बाद में थोड़ी चढाई- उतराई रहेगी| आज से मेरे लिए बिल्कुल नया रास्ता शुरू हो जाएगा|

सुबह निकलते समय लगा था कि शायद कोहरे के कारण थोड़ा लेट निकलना पड़ेगा| लेकीन समय पर निकल गया| सामान बान्धने में थोड़ी दिक्कत हो रही है| उसे बार बार रूक कर ठीक करना पड़ा| सुबह इतने जल्दी मुझे मेरी एक दोस्त ने शुभकामनाएँ दी| ऐसी दोस्त जो मेरे लेखन के कारण मुझसे जुड़ी! जल्द ही टनेल के पहले की चढ़ाई शुरू हुई| याद आ रही हैं अतीत की कुछ राईडस जो मैने इस रोड़ पर की थी| सुबह की ताज़गी और ठण्ड में चढाई भी कुछ खास नही लगी| धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| अब टनेल आएगा| उसके लिए एक जगह पर रूक कर ब्लिंकर शुरू कर लिया| लगभग डेढ किलोमीटर का यह टनेल है| इस टनेल के बाद माहौल बदल ही जाएगा| बड़ा फैला हुआ कॅनव्हास सामने आएगा और लम्बी उतराई भी शुरू होगी| इसी चढाई के बीच एक खूबसूरत झील दिखी जो अब धीरे धीरे शहर में खो जा रही है| शहर इसे निगल रहा है|



























जांभुळवाडी लेक या उसका बचा हुआ छोटासा हिस्सा!






























टनेल के पहले का दृश्य



... यह टनेल पहले भी‌ तीन बार पार किया था| फिर भी एक तरह का तनाव लग रहा है| ब्लिंकर होने के कारण पीछे से आनेवाले वाहनों को मेरी‌ साईकिल दिख रही‌ है| और सुबह होने के कारण भीड़ भी कम है| बीच बीच में टनेल में तेज़ हॉर्न बजानेवाले वाहन! तेज़ हुईं साँस! बीच में कुछ जगह पर पहाड़ से टपकनेवाला पानी! धीरे धीरे टनेल पार होता गया और सामने से रोशनी दिखाई देने लगी| और हो गया टनेल पार! अब उतराई का मज़ा आएगा! लगातार चौबीस किलोमीटर तक उतराई!

सड़क के इस हिस्से से सिंहगढ़ दिखाई देता है| लेकीन आज कोहरा/ बादल होने के कारण नही दिखाई दे रहा है! सिंहगढ़ मेरी साईकिलिंग का एक साक्षीदार है| सिंहगढ़! मराठा इतिहास का एक अभिन्न गवाह! आज ही के दिन कपूरहोळ नाम का एक गाँव भी आएगा| यह भी मराठा इतिहास में महत्त्व रखता है, क्यों की इसी गाँव की धाराऊ वह महिला थी जिसने शिवाजी महाराज के बेटे सम्भाजी महाराज को अपना दुध पिलाया था| यह सोचते सोचते आगे बढ़ता गया| साईकिल पर 'योग- ध्यानासाठी सायकल' का बोर्ड लगाने का लाभ हुआ, कई लोग उसे पढ़ रहे हैं और मेरे शर्ट पर लिखे योग- ध्यान को भी देख रहे हैं|



































थोड़ी देर बाद लगा कि अब नाश्ता करना चाहिए| क्यों कि ज्यादा गॅप नही होनी चाहिए| लेकिन लगा कि थोड़ा और आगे जा कर करूँगा| और उसके पहले एक चिक्की खा ली| आगे बढ़ता गया| उतराई होने के कारण बड़ा मज़ा आ रहा है| आखिर में कपूरहोळ गाँव के बाद ही नाश्ता किया| अब यहाँ से भोर सिर्फ चौदह किलोमीटर रह गया है| और अभी सुबह के नौ भी नही हुए हैं! मतलब आज भी मै बहुत जल्द पहुँच जाऊँगा| हालांकी यहाँ से आगे कुछ चढाई भी होगी| बिना किसी दिक्कत के आगे बढ़ता गया|

जैसे ही हायवे छोड कर भोर की सड़क पर पहुँचा, माहौल और भी खूबसूरत हुआ| बिल्कुल शान्त परिसर और शानदार सड़क! और दूर दिखाई देते पहाड़! बीच बीच में लगनेवाले छोटे छोटे गाँव और छोटे जल प्रवाह! अच्छा नाश्ता करने से थकान भी‌ बिल्कुल नही लग रही है| एक जगह से थोड़ी चढाई शुरू हुई| अब शायद डॅम आने तक यह चढाई जारी रहेगी| फिर भी चढाई इतनी तेज़ नही है| आराम से गुजरता गया| अब अच्छे नजारे भी दिखाई‌ देने शुरू हुए| कल मै जिस मांढरदेवी की पहाड़ी की तरफ जाऊँगा, उस दिशा के पहाड़ दिखाई देने लगे| निरा नदी का रमणीय दृश्य भी दिखाई दिया| बाद में डैम की दीवार दिखाई दी| लेकीन डैम के पास जाने का रास्ता बन्द है|











































 


निरा नदी और डॅम की दीवार







































भोर के ठीक पहले एक मेकेनिक के पास जा कर साईकिल का एक हूक टाईट कर लिया| इससे सामान रखने में आसानी होगी| जल्द ही भोर गाँव में दोस्त के घर पहुँचा| पहले तो यहाँ किसी लॉज में रूकनेवाला था, लेकीन दोस्त ने उसके पास ही रूकने के लिए कहा| फिर वहीं पर थोड़ा आराम किया, दोपहर में मेरा काम किया|

शाम को मित्र के साथ भोर के आसपास और डॅम के पास थोड़ा घूमना हुआ| बहुत सारी बातें भी हुईं| मेरे मित्र लगभग पन्द्रह सालों से पुणे की मैत्री संस्था से जुड़े हुए हैं| मेरी उनसे दोस्ती भी मैत्री संस्था के एक टीम में ही हुई थी! उन दिनों की यादें ताज़ा हो गईं| उसके अलावा उन्होने इतने सालों में संस्था के लिए जो काम किया, उसके अनुभव बताए| उनसे मिल कर लगा कि सच्चे मन से काम करनेवाले कार्यकर्ता जरूर ऐसे ही होते होंगे| बाद में उन्होने उनके पुराने दिनों के ट्रेकिंग के अनुभव भी बताए| आज जो ग्रामीण जीवन हमसे बिछडता जा रहा है, अपरिचित होता जा रहा है, उसके स्वर्णिम दिनों की बातें सुन कर अच्छा लगा| जो व्यक्ति जितना संघर्ष करता है, जितनी चुनौतिभरी स्थिति का सामना करता है, उतने ही नेतृत्व गुण उसमें आते हैं! उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला|




































रात में भोर गाँव में थोड़ा चलना हुआ| मेरे मित्र दत्ताभाऊ मुझे उनके घर के पीछे से बहनेवाली निरा नदी पर ले गए| क्या दिन रहा यह! इस यात्रा का दूसरा दिन भी ठीक अपेक्षा जैसे ही गया| बहुत कम समय में पहुँचा और थकान भी कम हुई| अब अगले दिन भोर से मांढरदेवी होते हुए वाई को जाना है| कल मेरी पहली परीक्षा होगी| भोर से निकलते ही चढाई शुरू होगी और मांढरदेवी में अच्छा घाट भी मिलेगा! देखते हैं|







































आज की यात्रा- ४७ किमी| आज चढाई भी थी, लेकीन उतराई ज्यादा थी|
 



































अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा : भोर- मांढरदेवी- वाई

1 comment:

  1. लगातार 24 किमी की उतराई देखकर तो मन खुश होना ही है। मैंने गंगौत्री से वापसी में ऐसी लम्बी उतराई बहुत देखी है। खासकर चम्बा से नरेन्द्र नगर की ओर तो 22 किमी लम्बी है।

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