योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा १: असफलता से मिली सीख
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
पाँचवा दिन- वाई- सातारा- सज्जनगढ़
२ अक्तूबर. दो दिन वाई में ठहरने के बाद आज वाई से निकलना है| सुबह निकलने के पहले अन्धेरे में टहलने का आनन्द लिया! आज इस यात्रा का पाँचवा दिन! क्या यात्रा रही है यह! एक तरह से अब भी विश्वास नही हो रहा है कि मै कल सचमूच महाबळेश्वर गया था! आज देखा जाए तो आसान ही पड़ाव है| यहाँ से बत्तीस किलोमीटर पर सातारा शहर और उसके बाद पन्द्रह किलोमीटर पर सज्जनगढ़! कोई कठिनाई नही आनी चाहिए| लेकिन हम जो सोचते हैं, वैसा हर बार तो नही होता है!
सामान बान्ध कर जल्द निकल पड़ा| कल बड़ी चुनौति आसानी से पार करने से मन बड़ा प्रसन्न है| सुबह की हल्की ठण्डक, सुनसान सड़क और हरियाली! चौदह किलोमीटर के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग चार लगा| यहाँ से अठारह किलोमीटर पर सातारा है| बहुत बड़ा चौड़ा हायवे! मज़ा आ रहा है| यहाँ पर कुछ समय तो लगा कि मै पागल कुत्ते जैसे साईकिल दौड़ा रहा हूँ! बीच बीच में छोटे गाँव लग रहे हैं| दूर सब तरफ पहाड़! लेकिन यह देखना दुखद है कि हायवे के पास होनेवाले कुछ पहाड़ काटे गए हैं| धीरे धीरे सातारा पास आता गया| इस क्षेत्र में बहुत बार आया हूँ, पर कभी साईकिल नही चलाई है|
महाबळेश्वर से आई वेण्णा नदी
सातारा के लिए मूडने के पहले एक जगह पर धावडशी गाँव की सड़क दिखी! प्रतापी बाजीराव के समय के और उनके गुरुतुल्य रहे ब्रह्मेंद्रस्वामी का यह स्थान! मराठा इतिहास से जुड़ा और एक गाँव! फिर सातारा गाँव में ही नाश्ता किया| इसमें थोड़ा समय लग गया| वैसे तो नाश्ता पहले ही करना चाहिए था, लेकीन सातारा करीब आने से रूक गया था| खैर| यहाँ जितना हो सके सातारा गाँव को बायपास करते हुए सज्जनगढ़ की तरफ निकला| कई बार रास्ता पूछना पड़ रहा है| सातारा में पहुँचते ही सामने एक चोटी दिखाई दे रही है, वह अजिंक्यतारा है! जिन दो किलों पर मै साईकिल चलाऊँगा वे सज्जनगढ़ और अजिंक्यतारा हैं! आज सज्जनगढ़ जाऊँगा और उसके पहले सड़क इस किले के पास से जाएगी| यहाँ से जानेवाली सड़क पर काफी चढाई आयी| इतनी अधिक चढाई का अन्दाजा मुझे नही था| लेकीन सड़क पर भीड़ थी, इसलिए बिना रूके आगे जाता रहा| और यह हाल हुआ कि चढाई को ठीक न समझते हुए २-१ गेअर पर ही यह चरण पार किया जिससे बहुत तकलीफ हुई| कल- परसो से साईकिल का सबसे नीचला गेअर १ डालने में बाधा आ रही है और उसे नीचे उतर कर हाथ से डालना पड़ रहा है| इसलिए उसे डालने के लिए नीचे उतरना पड़ता है| चूँकी मैने इतनी चढाई की अपेक्षा नही की थी, इसलिए नीचे उतरा नही और २-१ पर ही आगे बढ़ा| लेकीन उससे बहुत कठिनाई हुई और जैसे तैसे उस चढाई को पार किया| यहाँ से अजिंक्यतारा बहुत पास है| वह भी बहुत डरावना लगा! लेकिन जैसे ही चढाई पार की, लम्बी उतराई शुरू हुई| सातारा शहर समाप्त हुआ, एक छोटा टनेल लगा और सामने दूर सज्जनगढ़ भी दिखाई देने लगा| दूर विंड मिल्स भी दिखाई देने लगी|
सातारा में जगह जगह ऐसे मिलिटरी के शहीदों के गाँव हैं…
अपने पति के शहीद होने के बाद स्वाती महाडीक जी खुद कठिण प्रशिक्षण ले कर सेना में भरती हुईं और लेफ्टनंट भी बनी!
उतराई पर अच्छा लगा| लेकीन चूँकी नाश्ता करने में थोड़ी देर हुई थी, इसलिए एनर्जी लेवल कुछ कम लग रही है| यहाँ से अब उरमोडी नदी तक ढलान मिलेगी| लेकीन उसका दूसरा अर्थ यह भी है कि इसके बाद अच्छी खासी चढाई भी होगी| मैने इस रूट का साईकिल मॅप- हाईट गेन भी देख रखा है| यहाँ से रोड़ अब और उपर जाएगा| फिर भी कल मैने महाबळेश्वर किया होने के कारण इतनी चिन्ता नही हुई| लेकीन जैसे चढाई शुरू हुई और कुछ तिखी चढाई आई, तब बहुत थकान लगने लगी| बात यह है कि कल तक मैने जितनी भी चढाईयाँ पार की है, सब सुबह ८- ९ बजे के अन्दर थी| और मै हर चढाई के लिए सुबह फ्रेश था| उसके पहले ज्यादा साईकिल नही चलाई थी| लेकीन आज लगभग चालिस किलोमीटर साईकिल चलाई है और सुबह के दस भी बजे हैं| इसलिए धूप भी निकली है| इससे कुछ कठिनाई हो रही है| खैर, यही तो मज़ा है! कल महाबळेश्वर के पहाड़ ने मेरी कुछ भी परीक्षा नही ली, वह काम आज सज्जनगढ़ और उसके भी पहले की चढाई कर रही है!
सज्जनगढ़ का पहला दर्शन!
“उरमोडी नदी"
यहाँ थोड़ा बार बार रूकना पड़ा| अब १-१ गेअर डाल दिया| इसमें धीरे धीरे आगे बढ़ सका| साईकिल चलाते समय कई बार कोई गाना मन में बजाता हूँ| इस समय मन में बज रहा है- रात अकेली है, बुझ गए दिए! बहुत समय से यही गाना मन में बज रहा है| हालाकी साईकिल चलाते समय ही इतनी तकलीफ हो रही है, कि एक बार यह गाना भी 'बुझ गया'! लेकीन फिर थोड़ी देर बाद अपने आप शुरू हुआ| और धीरे धीरे उस गाने से कुछ ऊर्जा भी मिली! क्यों कि इस गाने में भी एक तरह आशा भोसले जी की आवाज एक ऊँचाई तक पहुँचती है!
नजारे तो बेहद खूबसूरत हैं ही| और मै इतना ज्यादा थका भी नही हूँ कि उनका आनन्द न ले सकूँ| सज्जनगढ़ करीब आ रहा है| इतने में मेरे मित्र ने फोन कर मुझे बताया कि कास प्लेटू- फूलों की घाटी की तरफ जानेवाली सड़क धंस गई है और यातायात बन्द कर दी गई है| मै तो वहाँ परसो जानेवाला हूँ| आज तो सज्जनगढ़ पर ही रूकूँगा| आखिर कर सज्जनगढ़ जानेवाला तिराहा आया| यहाँ से अब असली घाट शुरू होगा| मन में वही गाना अब भी बज रहा है- तुम आज मेरे लिए रूक जाओ, फुरसत भी है! इसी लाईन से यह गाना अपने आप बज रहा है और मुझे भी ऊर्जा और ताज़गी दे रहा है!
यहाँ से गढ़ मुश्कील से डेढ किलोमीटर है| बिल्कुल धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| कल तक इस यात्रा में जितनी भी चढाईयाँ चढी, उसमें कभी डेस्परेशन नही हुआ कि कब पहुँचूंगा| लेकीन आज थोड़ा लग रहा है| लेकीन यह आखरी चरण उतना कठिन नही गया और अन्त में खुशहाल स्थिति में ही गढ़ पर पहुँच गया| हालांकी समय अपेक्षा से ज्यादा लगा| साडे ग्यारह बजे हैं सुबह के| पार्किंग में साईकिल लगाई और आगे पैदल जाने लगा| यहाँ सौ से अधिक सिढीयाँ (स्टेप्स) हैं| किले से बेहत खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा है| अब इसके बाद नजारे का कोई वर्णन नही करूँगा| फोटो में ही देख लीजिए! एक जगह यह भी लिखा था, 'करने से होता है, पहले करो तो!' दिल को छू गया यह सुविचार! यह समर्थ रामदास स्वामी की पंक्ति है जो सत्रहवी शताब्दि के महाराष्ट्र के सन्त रह चुके हैं| उनके निवास के कारण ही किले का नाम सज्जनगढ़ हुआ| किले के कई दरवाजे लगे और अन्त में किले पर पहुँच गया| वीकएंड नही होने के कारण आसानी से कमरा भी मिला| सज्जनगढ़ पर यात्रियों के ठहरने और भोजन की मुफ्त व्यवस्था है|
फिर थोड़ी देर विश्राम किया| एक डर यह था कि किले पर इंटरनेट नेटवर्क मिलना चाहिए| क्यों कि मै साथ में लॅपटॉप भी ले कर आया हूँ और मुझे काम भी करना है| यहाँ देखा तो अच्छा 4G नेटवर्क है! दोपहर में भोजन प्रसाद लिया, थोड़ी देर किले पर घूमा| मेरे कमरे के सामने से उरमोडी नदी के डॅम का अच्छा दृश्य दिखाई देता है| मराठी में उरमोडी का मतलब होता है 'छाति तोडनेवाली'! इस नदी को पार करने के बाद जो चढाई मिली, उससे मेरी छाति टूटते टूटते बच गई है! थकान भी बहुत हुई| आज वैसे गांधी जयंती है, इसलिए मेरे पास कोई अर्जंट सबमिशन का काम नही आया और सज्जनगढ़ पर लॅपटॉप खोलने की जरूरत भी नही पड़ी|
मै जिस सड़क से आया वह सड़क, उस पर बस और दाए
तरफ ठोसेघर जलप्रपात की तरफ जानेवाली सड़क!
"उरमोडी डॅम"
शाम को पूरा किला ठीक से देखा| समर्थ रामदास की समाधि यहीं पर है| उसके अलावा उनकी कुछ चीजें, उनके आवास से जुड़ी वस्तुएँ हैं| कई सारे मन्दीर भी है| पुराने ज़माने में कैसे आते होंगे लोग ऐसे पहाड़ी पर? इसी किले पर कई बार शिवाजी महाराज आते थे| उनका रामदास स्वामी से मिलना होता था| ऐसे स्थान पर आकर वे क्या चर्चा- विमर्श करते होंगे? दोनों के प्रति मन में आदर भाव हुआ| किले के एक छोर पर एक हनुमान मन्दीर है| वहाँ कुछ देर रूका| यहाँ से सुन्दर नजारा दिखाई देता है| नीचे की सड़क और ठोसेघर जानेवाली सड़क भी दिखाई दे रही है| कल मै वहीं से जाऊँगा! गढ़ की शान्ति का आनन्द लिया| लेकीन टूरिस्ट बड़ी संख्या में हैं| बाद में पता चला की, कास पठार की तरफ जानेवाली सड़क धंसने के कारण कई सारे लोग इस तरफ आ रहे हैं| मेरे टी- शर्ट पर योग- ध्यान देख कर एक पुरोहित ने कुछ बातचीत की| सड़क पर भी लोग पीछे मूड मूड कर मेरे साईकिल पर लगा बॅनर और टी- शर्ट पर लिखा योग- ध्यान पढ़ते थे| देर रात काफी बारीश भी हुई| मन में कुछ डर भी लगा कि मेरी साईकिल पार्किंग में है, वहाँ से खाई बहुत दूर नही है, कुछ हुआ तो? लेकीन फिर सो गया|
आज की चढाई ७१२ मीटर
इस तरह आज मैने अडतालीस किलोमीटर साईकिल चलाई और उसके बाद ट्रेकिंग भी की| सज्जनगढ़ पर ठहरने से बहुत अच्छा लग रहा है| वाकई इतने दुर्गम स्थान पर यात्रियों का इतना सब इन्तजाम करना बहुत बड़ी बात है! यहाँ सज्जनगढ़ पर भोजन- प्रसाद तो है, लेकीन रात में वह बहुत देरी से- नौ बजे है| मेरा तो मन था कि आंठ बजे सो जाऊँ| लेकीन भोजन और खाने के और विकल्प न होने के कारण रूकना पड़ा| कल ठोसेघर जलप्रपात देखने के लिए जाना है| और सड़क ऐसे ही होगी, चढाई ऐसे ही होगी! वाह! अब इस साईकिल यात्रा के पाँच दिन पूरे हुए हैं और सिर्फ दो ही दिन बचे हैं| लेकीन क्या मज़ा आ रहा है!
अगला भाग- योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ७: सज्जनगढ़- ठोसेघर- सातारा
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा २: पहला दिन- चाकण से धायरी (पुणे)
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ३: दूसरा दिन- धायरी (पुणे) से भोर
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ४: तिसरा दिन- भोर- मांढरदेवी- वाई
योग ध्यान के लिए साईकिल यात्रा ५: चौथा दिन- वाई- महाबळेश्वर- वाई
पाँचवा दिन- वाई- सातारा- सज्जनगढ़
२ अक्तूबर. दो दिन वाई में ठहरने के बाद आज वाई से निकलना है| सुबह निकलने के पहले अन्धेरे में टहलने का आनन्द लिया! आज इस यात्रा का पाँचवा दिन! क्या यात्रा रही है यह! एक तरह से अब भी विश्वास नही हो रहा है कि मै कल सचमूच महाबळेश्वर गया था! आज देखा जाए तो आसान ही पड़ाव है| यहाँ से बत्तीस किलोमीटर पर सातारा शहर और उसके बाद पन्द्रह किलोमीटर पर सज्जनगढ़! कोई कठिनाई नही आनी चाहिए| लेकिन हम जो सोचते हैं, वैसा हर बार तो नही होता है!
सामान बान्ध कर जल्द निकल पड़ा| कल बड़ी चुनौति आसानी से पार करने से मन बड़ा प्रसन्न है| सुबह की हल्की ठण्डक, सुनसान सड़क और हरियाली! चौदह किलोमीटर के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग चार लगा| यहाँ से अठारह किलोमीटर पर सातारा है| बहुत बड़ा चौड़ा हायवे! मज़ा आ रहा है| यहाँ पर कुछ समय तो लगा कि मै पागल कुत्ते जैसे साईकिल दौड़ा रहा हूँ! बीच बीच में छोटे गाँव लग रहे हैं| दूर सब तरफ पहाड़! लेकिन यह देखना दुखद है कि हायवे के पास होनेवाले कुछ पहाड़ काटे गए हैं| धीरे धीरे सातारा पास आता गया| इस क्षेत्र में बहुत बार आया हूँ, पर कभी साईकिल नही चलाई है|
महाबळेश्वर से आई वेण्णा नदी
सातारा के लिए मूडने के पहले एक जगह पर धावडशी गाँव की सड़क दिखी! प्रतापी बाजीराव के समय के और उनके गुरुतुल्य रहे ब्रह्मेंद्रस्वामी का यह स्थान! मराठा इतिहास से जुड़ा और एक गाँव! फिर सातारा गाँव में ही नाश्ता किया| इसमें थोड़ा समय लग गया| वैसे तो नाश्ता पहले ही करना चाहिए था, लेकीन सातारा करीब आने से रूक गया था| खैर| यहाँ जितना हो सके सातारा गाँव को बायपास करते हुए सज्जनगढ़ की तरफ निकला| कई बार रास्ता पूछना पड़ रहा है| सातारा में पहुँचते ही सामने एक चोटी दिखाई दे रही है, वह अजिंक्यतारा है! जिन दो किलों पर मै साईकिल चलाऊँगा वे सज्जनगढ़ और अजिंक्यतारा हैं! आज सज्जनगढ़ जाऊँगा और उसके पहले सड़क इस किले के पास से जाएगी| यहाँ से जानेवाली सड़क पर काफी चढाई आयी| इतनी अधिक चढाई का अन्दाजा मुझे नही था| लेकीन सड़क पर भीड़ थी, इसलिए बिना रूके आगे जाता रहा| और यह हाल हुआ कि चढाई को ठीक न समझते हुए २-१ गेअर पर ही यह चरण पार किया जिससे बहुत तकलीफ हुई| कल- परसो से साईकिल का सबसे नीचला गेअर १ डालने में बाधा आ रही है और उसे नीचे उतर कर हाथ से डालना पड़ रहा है| इसलिए उसे डालने के लिए नीचे उतरना पड़ता है| चूँकी मैने इतनी चढाई की अपेक्षा नही की थी, इसलिए नीचे उतरा नही और २-१ पर ही आगे बढ़ा| लेकीन उससे बहुत कठिनाई हुई और जैसे तैसे उस चढाई को पार किया| यहाँ से अजिंक्यतारा बहुत पास है| वह भी बहुत डरावना लगा! लेकिन जैसे ही चढाई पार की, लम्बी उतराई शुरू हुई| सातारा शहर समाप्त हुआ, एक छोटा टनेल लगा और सामने दूर सज्जनगढ़ भी दिखाई देने लगा| दूर विंड मिल्स भी दिखाई देने लगी|
सातारा में जगह जगह ऐसे मिलिटरी के शहीदों के गाँव हैं…
अपने पति के शहीद होने के बाद स्वाती महाडीक जी खुद कठिण प्रशिक्षण ले कर सेना में भरती हुईं और लेफ्टनंट भी बनी!
उतराई पर अच्छा लगा| लेकीन चूँकी नाश्ता करने में थोड़ी देर हुई थी, इसलिए एनर्जी लेवल कुछ कम लग रही है| यहाँ से अब उरमोडी नदी तक ढलान मिलेगी| लेकीन उसका दूसरा अर्थ यह भी है कि इसके बाद अच्छी खासी चढाई भी होगी| मैने इस रूट का साईकिल मॅप- हाईट गेन भी देख रखा है| यहाँ से रोड़ अब और उपर जाएगा| फिर भी कल मैने महाबळेश्वर किया होने के कारण इतनी चिन्ता नही हुई| लेकीन जैसे चढाई शुरू हुई और कुछ तिखी चढाई आई, तब बहुत थकान लगने लगी| बात यह है कि कल तक मैने जितनी भी चढाईयाँ पार की है, सब सुबह ८- ९ बजे के अन्दर थी| और मै हर चढाई के लिए सुबह फ्रेश था| उसके पहले ज्यादा साईकिल नही चलाई थी| लेकीन आज लगभग चालिस किलोमीटर साईकिल चलाई है और सुबह के दस भी बजे हैं| इसलिए धूप भी निकली है| इससे कुछ कठिनाई हो रही है| खैर, यही तो मज़ा है! कल महाबळेश्वर के पहाड़ ने मेरी कुछ भी परीक्षा नही ली, वह काम आज सज्जनगढ़ और उसके भी पहले की चढाई कर रही है!
सज्जनगढ़ का पहला दर्शन!
“उरमोडी नदी"
यहाँ थोड़ा बार बार रूकना पड़ा| अब १-१ गेअर डाल दिया| इसमें धीरे धीरे आगे बढ़ सका| साईकिल चलाते समय कई बार कोई गाना मन में बजाता हूँ| इस समय मन में बज रहा है- रात अकेली है, बुझ गए दिए! बहुत समय से यही गाना मन में बज रहा है| हालाकी साईकिल चलाते समय ही इतनी तकलीफ हो रही है, कि एक बार यह गाना भी 'बुझ गया'! लेकीन फिर थोड़ी देर बाद अपने आप शुरू हुआ| और धीरे धीरे उस गाने से कुछ ऊर्जा भी मिली! क्यों कि इस गाने में भी एक तरह आशा भोसले जी की आवाज एक ऊँचाई तक पहुँचती है!
नजारे तो बेहद खूबसूरत हैं ही| और मै इतना ज्यादा थका भी नही हूँ कि उनका आनन्द न ले सकूँ| सज्जनगढ़ करीब आ रहा है| इतने में मेरे मित्र ने फोन कर मुझे बताया कि कास प्लेटू- फूलों की घाटी की तरफ जानेवाली सड़क धंस गई है और यातायात बन्द कर दी गई है| मै तो वहाँ परसो जानेवाला हूँ| आज तो सज्जनगढ़ पर ही रूकूँगा| आखिर कर सज्जनगढ़ जानेवाला तिराहा आया| यहाँ से अब असली घाट शुरू होगा| मन में वही गाना अब भी बज रहा है- तुम आज मेरे लिए रूक जाओ, फुरसत भी है! इसी लाईन से यह गाना अपने आप बज रहा है और मुझे भी ऊर्जा और ताज़गी दे रहा है!
यहाँ से गढ़ मुश्कील से डेढ किलोमीटर है| बिल्कुल धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| कल तक इस यात्रा में जितनी भी चढाईयाँ चढी, उसमें कभी डेस्परेशन नही हुआ कि कब पहुँचूंगा| लेकीन आज थोड़ा लग रहा है| लेकीन यह आखरी चरण उतना कठिन नही गया और अन्त में खुशहाल स्थिति में ही गढ़ पर पहुँच गया| हालांकी समय अपेक्षा से ज्यादा लगा| साडे ग्यारह बजे हैं सुबह के| पार्किंग में साईकिल लगाई और आगे पैदल जाने लगा| यहाँ सौ से अधिक सिढीयाँ (स्टेप्स) हैं| किले से बेहत खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा है| अब इसके बाद नजारे का कोई वर्णन नही करूँगा| फोटो में ही देख लीजिए! एक जगह यह भी लिखा था, 'करने से होता है, पहले करो तो!' दिल को छू गया यह सुविचार! यह समर्थ रामदास स्वामी की पंक्ति है जो सत्रहवी शताब्दि के महाराष्ट्र के सन्त रह चुके हैं| उनके निवास के कारण ही किले का नाम सज्जनगढ़ हुआ| किले के कई दरवाजे लगे और अन्त में किले पर पहुँच गया| वीकएंड नही होने के कारण आसानी से कमरा भी मिला| सज्जनगढ़ पर यात्रियों के ठहरने और भोजन की मुफ्त व्यवस्था है|
फिर थोड़ी देर विश्राम किया| एक डर यह था कि किले पर इंटरनेट नेटवर्क मिलना चाहिए| क्यों कि मै साथ में लॅपटॉप भी ले कर आया हूँ और मुझे काम भी करना है| यहाँ देखा तो अच्छा 4G नेटवर्क है! दोपहर में भोजन प्रसाद लिया, थोड़ी देर किले पर घूमा| मेरे कमरे के सामने से उरमोडी नदी के डॅम का अच्छा दृश्य दिखाई देता है| मराठी में उरमोडी का मतलब होता है 'छाति तोडनेवाली'! इस नदी को पार करने के बाद जो चढाई मिली, उससे मेरी छाति टूटते टूटते बच गई है! थकान भी बहुत हुई| आज वैसे गांधी जयंती है, इसलिए मेरे पास कोई अर्जंट सबमिशन का काम नही आया और सज्जनगढ़ पर लॅपटॉप खोलने की जरूरत भी नही पड़ी|
मै जिस सड़क से आया वह सड़क, उस पर बस और दाए
तरफ ठोसेघर जलप्रपात की तरफ जानेवाली सड़क!
"उरमोडी डॅम"
शाम को पूरा किला ठीक से देखा| समर्थ रामदास की समाधि यहीं पर है| उसके अलावा उनकी कुछ चीजें, उनके आवास से जुड़ी वस्तुएँ हैं| कई सारे मन्दीर भी है| पुराने ज़माने में कैसे आते होंगे लोग ऐसे पहाड़ी पर? इसी किले पर कई बार शिवाजी महाराज आते थे| उनका रामदास स्वामी से मिलना होता था| ऐसे स्थान पर आकर वे क्या चर्चा- विमर्श करते होंगे? दोनों के प्रति मन में आदर भाव हुआ| किले के एक छोर पर एक हनुमान मन्दीर है| वहाँ कुछ देर रूका| यहाँ से सुन्दर नजारा दिखाई देता है| नीचे की सड़क और ठोसेघर जानेवाली सड़क भी दिखाई दे रही है| कल मै वहीं से जाऊँगा! गढ़ की शान्ति का आनन्द लिया| लेकीन टूरिस्ट बड़ी संख्या में हैं| बाद में पता चला की, कास पठार की तरफ जानेवाली सड़क धंसने के कारण कई सारे लोग इस तरफ आ रहे हैं| मेरे टी- शर्ट पर योग- ध्यान देख कर एक पुरोहित ने कुछ बातचीत की| सड़क पर भी लोग पीछे मूड मूड कर मेरे साईकिल पर लगा बॅनर और टी- शर्ट पर लिखा योग- ध्यान पढ़ते थे| देर रात काफी बारीश भी हुई| मन में कुछ डर भी लगा कि मेरी साईकिल पार्किंग में है, वहाँ से खाई बहुत दूर नही है, कुछ हुआ तो? लेकीन फिर सो गया|
आज की चढाई ७१२ मीटर
इस तरह आज मैने अडतालीस किलोमीटर साईकिल चलाई और उसके बाद ट्रेकिंग भी की| सज्जनगढ़ पर ठहरने से बहुत अच्छा लग रहा है| वाकई इतने दुर्गम स्थान पर यात्रियों का इतना सब इन्तजाम करना बहुत बड़ी बात है! यहाँ सज्जनगढ़ पर भोजन- प्रसाद तो है, लेकीन रात में वह बहुत देरी से- नौ बजे है| मेरा तो मन था कि आंठ बजे सो जाऊँ| लेकीन भोजन और खाने के और विकल्प न होने के कारण रूकना पड़ा| कल ठोसेघर जलप्रपात देखने के लिए जाना है| और सड़क ऐसे ही होगी, चढाई ऐसे ही होगी! वाह! अब इस साईकिल यात्रा के पाँच दिन पूरे हुए हैं और सिर्फ दो ही दिन बचे हैं| लेकीन क्या मज़ा आ रहा है!
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