Friday, November 21, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १४


नैकपोरा में शिविर

१७ अक्तूबर की सुबह नींद जल्दी न खुलने से शंकराचार्य मंदीर नही जा सके| लेकिन ठण्डी सुबह में चाय का लुफ्त उठाया| जैसे ही सूरज की कृपा बरसी, उसका भी आनन्द लिया| सर्दी में धूप लेने का मजा और है| यहाँ के एक मुख्य कार्यकर्ता- हिलाल भाई के पिताजी अब भी हॉस्पिटल में हैं| उनकी कुछ चिन्ता हो रही है| यदि जाने का इन्तजाम होता है, तो उन्हे देखने भी जाना है| कल से ही दफ्तर में बार बार संस्था के राहत कार्य का व्हिडिओ बज रहा है-





यहाँ अब थोड़े ही लोग है| काफी लोग जा चुके हैं|‌ स्थानीय कार्यकर्ता आते जाते रहते हैं| और दफ्तर के पास ही रहनेवाले अंकल भी आते हैं| वो जम्मू के हैं और यहाँ मार्केटिंग के काम से आते हैं| सुबह के शिविर की तैयारी कल रात ही हो‌ गई थी| और भी कुछ मेडिसिन सेटस तैयार है| सोच रहे हैं आज तो गाँव का शिविर होना चाहिए|

सुबह के शिविर ले जाने के लिए बिलालभाई आए| इनसे पहली बार मिलना हुआ| ये गोपालपोरा के रहनेवाले हैं| सुबह का शिविर रोज की तरह सम्पन्न हुआ| इस शिविर का एक पहलू यह है कि बड़े विशाल चिनार (देवदार) वृक्ष के करीब होने का अवसर मिलता है; तथा बाद में आश्रम की शांति में भोजन भी मिलता है| और धूप भी मिलती है! बस एक ही‌ बात कुछ चिन्तित कर रही है कि २१ अक्तूबर के बाद कोई डॉक्टर आते नही दिख रहे हैं| वैसे अभी चार दिन हैं; फिर भी किसी के आने की सूचना नही मिल रही है| एक विचार यह भी है कि कश्मीर या जम्मू के डॉक्टर्स और फार्मसिस्टस की‌ सहायता ली जाए| पर वे शायद पहले ही काफी काम कर चुके हैं और आने की स्थिति में नही हैं| देखते हैं|

दोपहर में दफ्तर पैदल ही गए| श्रीनगर देखना वाकई‌ एक खास अनुभव है| जब तीन साल पहले श्रीनगर आना हुआ था, विश्वास ही नही हुआ था कि हम लोग श्रीनगर में हैं! इस बार तो श्रीनगर में होने का अभ्यास हो गया है, आदत हो गई है! फिर भी उसकी खासियत हर कदम महसूस होती है. . . दफ्तर जा कर थोड़ा विश्राम भी हुआ| कार्यकर्ताओं ने शाम के शिविर की योजना बनायी है| थोड़ी देर में‌ निकलना है| श्रीनगर से बीस किलोमीटर दूर नैकपोरा गाँव में शिविर लेना है|

जैसे ही वहाँ जाने के लिए निकले, पहले तो चोटी पर दीपस्तंभ की‌ भाँति अडिग खडा हुआ शंकराचार्य मन्दीर दिखा| फिर आगे जाने पर दूर चोटी पर कुछ दिखने लगा| बिलाल भाई ने बताया कि ये तो परिमहल गार्डन है! तीन साल पहले इस गार्डन में भी गए थे| आज उसी दिशा में उसके तले बसे एक गाँव में जाना है| बिलाल भाई का बोलना बहुत ही ढंग का है| यहाँ कई लोग काफी अच्छा हिन्दी और अंग्रेजी भी बोलते हैं| और कश्मिरी संस्कृति में बोलने की शैलि भी शायद ऐसी विनम्र और लुभावनी है| बिलाल भाई ने आगे बताया कि इस गाँव के पास ही वह बाँध है जो फटने के कारण ७ सितम्बर को श्रीनगर में सैलाब आया| नैकपोरा में १८ फीट तक पानी था| दोमंजिल मकान के दूसरी मंजिल तक पानी आया था|

लगभग श्रीनगर के आउटस्कर्टस में ही यह गाँव है| दूर से परिमहल दिखाई दे रहा है| गाँव की सड़कें ठीक है| लेकिन गाँव के बीच में अब भी सड़कों पर कीचड़ है| यहाँ बिलाल भाई अकेले कार्यकर्ता है और बाकी गाँव के ही कार्यकर्ता साथ में होंगे| एक दुकान की खाली जगह शिविर के लिए चुनी गई| यहाँ से थोड़ा ही आगे बाँध है| लेकिन शिविर के कारण उसे नही देख पाए| यह शिविर शायद गाँव का मेरा अन्तिम शिविर हो सकता है| क्यों कि कल डॉक्टर सर शायद गांदरबल जा सकते हैं| अभी तक जितने गाँव के शिविर हुए, उसमें यह सबसे ठीक लगा| लोगों की भीड़ नियंत्रित है| रुग्ण लगातार आते रहे; फिर भी उतनी दिक्कत नही हुई|

इस शिविर की खास बात यह भी है कि यहाँ आए रुग्णों में‌ करीब ९०% रुग्ण महिलाएँ है| अब तक पाँच- छह शिविर हुए हैं; अत: दवाईयों के नाम पता हो गए हैं| दवाईयाँ अब ढूँढे बिना तुरन्त मिलती है| इतना ही नही, कौनसी बीमारी के लिए क्या दवाईयाँ देनी है, यह भी पता है! किसी ने कमजोरी- थकान बताया तो उसको आयरन की बोतल| किसी को मल्हम चाहिए तो फेनाक प्लस| बदन दर्द बताया तो कॅल्शिअम के लिए सिपकॅल| और ऐसे अन्य भी! एक बार बड़ी मजे की बात हुई| एक महिला ने कमजोरी और बदन दर्द बताया| तुरन्त सिपकॅल और आयरन की बोतल निकाली| डॉक्टर सर भी हंस पड़े| मजे की बात यह थी कि आगे भी‌ दो महिलाओं को ठीक यही बीमारी है; अत:‌ वहीं‌ दवाईयाँ निकाली| एक तरह से हॅटट्रिक हो गई!

कश्मिरी भाषा के कुछ शब्द भी अब पल्ले पड़ते है| वे वस्तुत: अन्य भारतीय भाषाओं के ही शब्द है| जैसे यहाँ बुखार के लिए ताप कहते हैं; आमांश के लिए आमांश कहते हैं| तीन को त्रैण कहते हैं| मलने को मलना ही कहते है| और अब्र शब्द (बादल) अभ्र शब्द से जुड़ा है| आबो- हवा अर्थात् जल वायू कहते हैं| आबो शब्द आप (पानी) से आया है| यहाँ तक की पंजाब शब्द भी वैसा ही है| पंच + आब- आप (पानी) अर्थात् पाच नदियों का पानी जैसे उत्तर प्रदेश में दुआब है जिसमें गंगा यमुना का पानी है| खैर|

शिविर अच्छा चला| अन्धेरे के कारण बन्द करना पड़ा| हालाकि आखिर में और रुग्ण आते रहे| और पंजीयन बन्द करने के बाद भी रुग्ण चालू ही रहे| करीब ९३ रुग्ण हुए|

इस गाँव में सरकारी सहायता काफी कम मिली‌ है, ऐसा बताया गया| यहाँ जमाते इस्लामी ने कुछ मदद की है| यह गाँव बाढ़ से सबसे पहले डूबा था| यहाँ अब भी स्प्रे करने की आवश्यकता है| गाँव से निकलते समय वहाँ के एक डॉक्टर को लिफ्ट दी| तब उन्होने बताया कि इस सैलाब के बाद लोगों में ऐसी भावना है कि कश्मीर में हुए पापों के फल के रूप में यह बाढ़ आयी है| क्यों कि इतनी तबाही पीछले सौ सालों में भी नही‌ हुई थी| बाद में उन्होने यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में लोगों को एक तरह से निर्भर बना कर रखा है| केंद्र सरकार से इतनी अधिक आर्थिक सहायता दी जाती हैं; जिससे लोग आलसी हो जाते हैं| उन्होने यह भी कहा कि यह आर्थिक सहायता मुख्य रूप से दो सौ परिवारों तक पहुँचती है और उसका उद्देश्य इतना ही होता है कि लोग शांत रहें; आवाज ना करे| सुनने में यह भी आया कि जे- के सरकार एक तरह से अलगाववादियों का ही दूसरा युनिट है| खैर|

शाम को मयूरभाई और पडौसी अंकल ने भोजन बनाया है| आज हम चार ही लोग है दफ्तर में| भोजन बनाने के बाद आपस में बातचीत शुरू हुई| यह अंकल जम्मू के डोगरा समाज से आते हैं| काफी अनुभव और तजुर्बा उनके पास है|‌ हमारे शिविर के अनुभव उन्होने सुने| उसके बाद उन्होने कई बातें‌ कही| ये उनके अपने विचार हैं और पॉलिटिकली करेक्ट नही हैं| फिर भी उनके विचार महत्त्वपूर्ण लगे| परिस्थिति का आंकलन करने के लिए उपयोगी लगे| अंकलजी ने कश्मीर की थोड़ी पृष्ठभूमि बतायी और कहा कि कश्मीर के लोग- कश्मिरी पण्डित हो या अभी के कश्मिरी मुसलमान हो, उनमें यह धारणा होती है कि हम सबसे अलग हैं; सबसे श्रेष्ठ है| और इतिहास में कश्मिरी पण्डितों ने अन्य समुदायों का और मुस्लीम समाज का शोषण किया; उसे ही अब मुस्लीम समाज दोहरा रहा है| कश्मिरी पण्डित और मुस्लीम समाज में‌ आज भी कईं बातें समान है- जैसे खाने का ढंग; रहने का तरिका| उन्होने अपने पुराने नाम या गोत्र भी वैसे ही रखे है| जैसे जो भट या भट्ट थे वे मुस्लीम होने के बाद भट या बट्ट बने| जो धर थे; वे अब दर बन गए (तुरन्त ध्यान में‌ आनेवाले नाम- भारत की‌ महिला क्रिकेटर रुमेली धर और पाकिस्तान के अंपायर अलीम दर) और कचरू किचलू बने| ऐसे और भी है| मजहब बदलने के बावजूद एक तरह की उनकी पहचान समान है|

अंकलजी ने आगे कहा कि आज भी कश्मिरी पण्डित खुद को अलग मानते हैं और इसलिए इतना अन्याय सहने के बाद भी कश्मिरी मुस्लीमों के साथ ही पहचान रखते हैं| वे बीजेपी को नही वरन् नॅशनल कॉन्फरन्स को ही‌ सपोर्ट करेंगे| जब कश्मिरी पण्डितों को व्हॅली से खदेड़ा गया और बाहर निकलने पर बाध्य होना पड़ा, तब वे अधिक संख्या में जम्मू आए| तब वहाँ के गुज्जर, डोगरा जैसे समाजों ने ही‌ उनकी सहायता की|‌ यहाँ तक की वहाँ के संसाधनों पर भी उनकी संख्या से बर्डन हुआ| जम्मू के स्थानीय समाजों‌ की‌ तुलना में‌ वे अधिक अफ्लुअंट थे; इसलिए स्थानीय समाजों की प्रगति में‌ भी कुछ रुकावट हुई| फिर भी‌ उन समाजों ने इनकी बहुत सहायता की| उनको आसरा दिया| नया घर बनाने में मदद की| लेकिन. . इतना करने पर भी कश्मिरी पण्डित आज भी डोग्रा- गुज्जर जैसे जम्मू के समाजों को अपने से नीचा ही मानते हैं| और उनके घर खाना खाने के बजाय कश्मिरी मुसलमान के पास जाते हैं| अंकलजी इस पूरे विषय पर डोग्रा परस्पेक्टिव्ह ही कह रहे हैं|

बाद में उन्होने कहा कि एक तरह से इन लोगों‌ के आने से हमें तकलीफ जरूर हुई; संसाधन शेअर करने पड़े; पर उससे हमारा अन्त में लाभ ही हुआ| कंपिटिशन के कारण हम भी आगे बढ सकें| उन्होने आगे कहा, कश्मीर के लोग ऐसा दिखाते है कि वे सबसे शक्तिशाली है; आपको डराने की कोशिश करते हैं| अगर आप नही डरे फिर वे आपसे डरते हैं| और अधिकतर लोग ऐसे है जो पैसों के लालची‌ है| पैसों के ही दोस्त हैं| आज कश्मिरी पण्डितों‌ को काफी कन्सेशन्स हैं; काफी बेनिफिटस मिलते हैं; फिर भी वे अपना दर्द बाँटते रहते हैं| . . . नि:सन्देह इस डोग्रा परस्पेक्टिव्ह को जाने बिना इन चीजों का आंकलन अधुरा रहता|

आगे उन्होने कहा, कि कुछ लोगों को जरूर लगता है कि, पाप अधिक हो जाने से बाढ़ आयी|‌ पर लोग यह उनका पाप नही‌ देखते हैं; लोग यही कहते हैं कि आर्मी ने इतने जुल्म ढाए; उससे बाढ आयी| उनके कहने में आया कि कश्मिरी लोग खुद को कितना श्रेष्ठ मानते है इसका एक उदाहरण यह भी है कि श्रीनगर के राजभवन को स्वच्छ करने के लिए कोई कर्मचारी नही मिल रहा था| इसलिए १९६० के दशक में चंडीगढ़ से ख्रिश्चन सफाईवालों को यहाँ लाया गया| उनकी पिढियाँ अब भी यहीं रहती हैं; लेकिन अब भी‌ वे स्टेट सब्जेक्ट (राज्य के नागरिक) नही बने हैं और किराए से ही रहते हैं|

उसके बाद बात राजनीति पर आयी| कश्मीर में इलेक्शन्स हैं| अभी, यह लिखते समय, वहाँ रॅलियाँ शुरू हो चुकी‌ है| कश्मीर आने से पहले लगता था कि वहाँ पर भी मोदी जी की लहर होगी|‌ पर लोगों की सोच का अन्दाजा होने पर लगता है कि यहाँ मोदी जी लहर बिलकुल भी नही है| अंकलजी ने भी यही कहा कि जम्मू और लदाख में बीजेपी को अच्छा अवसर है; पर कश्मीर में बिलकुल नही| यहाँ कश्मिरी पण्डित भी बीजेपी को व्होट नही देंगे| कश्मीर की विधानसभा की सीटें देखें तो कुल १११ सीटें है| उनमें से २४ सीटें पाकव्याप्त कश्मीर की‌ हैं जो रिक्त रहती‌ हैं| बाकी बची ८७ सीटें| उनमें से ४६ कश्मीर व्हॅली की; ४ लदाख क्षेत्र की और ३७ जम्मू क्षेत्र की‌ है| देखा जाए तो क्षेत्रफल और जनसंख्या के अनुपात से जम्मू और लदाख क्षेत्र की‌ अधिक सीटें बनती‌ हैं| लेकिन जम्मू- कश्मीर में शुरू से ही‌ कश्मीर का डॉमिनंस है और इसलिए जम्मू और लदाख क्षेत्रों को दबाया जाता है| अंकलजी ने बाद में कहा की बीजेपी जम्मू और लदाख में अच्छा प्रदर्शन करती‌ हैं और कश्मीर व्हॅली में एक सीट भी‌ ला सकती है तो वह पीडीपी के साथ सत्ता में आ सकती‌ है| क्यों कि ओमर अब्दुल्ला पर लोग खासे नाराज है| इसलिए उनकी सत्ता जाना लगभग तय है| यह बातचीत व्यक्तिगत और आउट ऑफ द वे हो कर भी महत्त्वपूर्ण लगी| ऐसे सभी दृष्टीकोण समझना आवश्यक है| चाहे हम उनसे सहमत ना भी हो| बाद में‌ कुछ बात श्री अमरनाथ श्राईन आन्दोलन पर भी हुई| उस आन्दोलन में पहली बार जम्मू‌ क्षेत्र ने अपनी पहचान के लिए लड़ते हुए कश्मीर क्षेत्र के शोषण के खिलाफ आवाज उठायी और अपनी माँगे पूरी करने के लिए सरकार को मजबूर किया| उससे वादी में हालात बदलने शुरू हो गए है| खैर

दाए तरफ दूर चोटी पर परिमहल गार्डन

































नैकपोरा की सड़क

डॉ. सर शिविर लेते हुए
















































 

क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
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Shri. Jaidevji 09419110940
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com

1 comment:


  1. नैकपोरा में शिविर की विस्तृत व प्रेरक जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद! ....

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