सैदपोरा में स्वास्थ्य शिविर
१५
अक्तूबर की सुबह प्रोपोझल्स
पर चर्चा हुई|
कुछ
करेक्शन्स करने के बाद दादाजी
ने उन्हे मेल कर दिया|
व्हिडिओ
के लिए जो टेक्स्ट लिखा हुआ
था,
उसे
भी दादाजी ने देखा|
देखने
के बाद उन्होने कहा कि,
बुरा
मत मानना पर इसमें अभी बहुत
कुछ करना है|
एक
तरिका होता है सीधा बात कह
देने का|
इससे
जानकारी पहुँचती हो;
पर
कहने की बात जीवन्त नही होती|
दूसरा
तरिका होता है किसी चीज को
जीवित बना कर कहना|
उसके
बारे में उन्होने कई बातें
बतायी|
एक
तो नॅरेशन के लिए जो शैलि चाहिए
वह बच्चों की पुस्तिका-
चन्दामामा
की कथाओं सरिखी होनी चाहिए|
उसमें
इंटरेस्ट बनाया जाता है|
कहानि
जैसे ढंग से बातें कही जातीं
है जिससे पढ़नेवाले का इंटरेस्ट
बनता है|
दादाजी
ने फिर कहा कि बिलकुल जल्दी
नही है;
आप
समय लो और इस टेक्स्ट को लिखो|
फिर
उन्होने सेवा भारती के कुछ
व्हिडिओज भी दिखाए|
एकल
विद्यालय अभियान पर 'दस्तक'
नाम
का व्हिडिओ बहुत ही रोचक लगा|
संस्था
के कश्मीर में चल रहे कार्य
पर भी व्हिडिओ दिखाया|
एक
व्हिडिओ संस्था द्वारा अगस्त
२०१० में लेह में किए गए राहत
कार्य पर भी है|
और
एक व्हिडिओ अमरनाथ श्राईन
आन्दोलन पर भी है;
वह
भी काफी रोचक है|
समय
न रहते उसे देख नही सके|
दादाजी
ने यह भी कहा कि डॉक्युमेंटेशन
के साथ मै डॉक्युमेंटरी भी
कर सकता हुँ|
यह
मेरे लिए एक नया डोमैन हो सकता
है|
काफी
महत्त्वपूर्ण लगे उनके सुझाव|
दादाजी
और अन्य साथी आज लौट रहे हैं|
सुरेन्द्रजी
ने शिविरों की जानकारी का
दैनंदिन रिपोर्टिंग बता दिया|
अब
आज से इसे हमें मेंटेन करना
होगा|
आज
भी पवनजी फॉगिंग के लिए जाएँगे|
उन्होने
बताया कि कल वे जहाँ गए थे,
वहाँ
सरकारी दफ्तरों का बुरा हाल
था|
अब
भी काफी कीचड़ वहाँ है|
तेज
बदबू के भीतर अफसर लोग काम
करते हैं;
इससे
उनका सिर भी चकराता है|
और
जो
अनुभव चिकित्सा शिविरों में
आ रहा है,
वहीं
उन्हे भी आय|
सरकारी
अफसरों ने उन्हे कई स्थानों
पर फॉगिंग करने के लिए कहा|
उनमें
से कई तो उनके अपने रिश्तेदारों
के घर थे|
घर
घर जा कर टॉयलेट सहित कई स्थानों
पर उन्हे फॉगिंग करना पड़ा|
वे
थोडे नाराज भी थे;
लेकिन
दादाजी ने उन्हे समझा दिया
और आज वे फिर फॉगिंग के लिए
तैयार है|
सुबह
का शिविर आश्रम में यथाक्रम
हुआ|
कार्यकर्ता
नही हैं;
लेकिन
अब उनकी आवश्यकता भी नही|
सब
अच्छे से मॅनेज हो रहा है|
वहाँ
पहुँचते ही चाचाजी स्वागत
करते हैं|
बीच
में चाय भी पिलाते हैं|
अब
धीरे धीरे कौनसी बीमारी के
लिए क्या दवाईयाँ देनी है,
यह
भी याद हो रहा है!
एक
पुलिसवाला रुग्ण आया था|
उसे
किसी ने बड़ी बेरहमी से मारा
था|
पुलिस
भी इन्सान होते हैं,
यह
देखने का मौका मिला|
उन्हे
अन्दरूनी चोट आयी थी जिसके
लिए डॉक्टर सर ने दवाईं दी|
बाहर
सड़क पर कुछ नारेबाजी भी हो रही
है;
फिर
भी शिविर चलता गया|
अपेक्षा
के अनुसार लोग आखिर तक आते
रहें और जैसे तैसे समय के चलते
शिविर रोकना पड़ा|
तब
तक ८३
रुग्ण हुए|
आज
पुलवामा जिले के सैदपोरा गाँव
में दूसरा शिविर होगा|
उसके
लिए हिलाल भाई,
फयाज़
भाई,
नज़ीर
भाई आदि कार्यकर्ता भी साथ
होंगे|
और
दादाजी आज श्रीनगर से जम्मू
जा रहे हैं|
इसका
मतलब आज के बाद दफ्तर एकदम
सुना सुना होगा|
दादाजी
की उपस्थिति से ही एक वातावरण
बनता है|
सैदपोरा
गाँव में पहुँचने तक दोपहर
के चार बज चुके हैं|
यह
शिविर खुले ग्राउंड में लेने
के बजाय कमरे में लेने का विचार
है जिससे भीड नही होगी और एक
समय एक ही रुग्ण देखा जाएगा|
कार्यकर्ताओं
ने विश्वास दिलाया कि इस बार
इतनी भीड़ नही होगी|
यथा
समय शिविर शुरू हुआ|
एक
कार्यकर्ता के बड़े घर के एक कमरे में चालू
हुआ|
बाहर
गेट पर बॅनर लगा है जिससे लोगों
को पता चलेगा|
एक
बात यह है कि गाँव में इसकी
सूचना बहुत पहले नही दी जा
सकी|
एक
तो कार्यकर्ताओं का प्लॅनिंग
उसी दिन होता है;
एक
दिन पहले नही होता है|
उन्हे
भी कई काम होते हैं और कईं चीजें
देखनी होती हैं|
फिर
भी एक बार शिविर शुरू होने पर
लोग निरंतर आते रहते हैं|
पूर्व
में जब कई शिविर एक साथ होते
थे और कई डॉक्टर शिविर लेते
थे,
तब
मस्जीदों से और मस्जिद कमिटियों
के द्वारा शिविरों की घोषणा
की जाती थी|
यहाँ
के गाँवों में एक बात और खास
लगी कि ग्राम पंचायत के लेटरहेड
अंग्रेजी में हैं!
लोग
हिन्दी अच्छी समझते है|
हालाकि
हमें कश्मिरी थोड़ी ही समझ आती
है|
पीछले
शिविर के मुकाबले यह शिविर
ज्यादा नियंत्रित है;
फिर
भी भीड़ तो हो गई|
करीब
८३
रुग्ण होने के बाद पंजीयन बन्द
किया गया|
फिर
भी लोग आते ही रहें|
काफी
अन्धेरा होने पर रुकना पड़ा|
रुग्ण
न रुकते देख कर धीरे धीरे
दवाईयाँ एम्ब्युलन्स में रख
दी|
फिर
भी लोग नही माने|
अब
कार्यकर्ताओं को और पवनजी को
लाईटस के वितरण की चिन्ता हो
रही है|
उन्हे
इसी गाँव के एक मोहल्ले में-
खोमेनी
मोहल्ला-
वितरण
करना है|
वह
यहाँ से अधिक दूर नही है|
अब
सड़कें सुनसान है और वितरण का
काम शुरू होनेवाला है|
लेकिन
आज और समय लगेगा|
क्यों
कि जैसे ही उस मोहल्ले में
पहुँचे,
कई
लोग सामने आए और कार्यकर्ताओं
से माँग करने लगे|
इस
गाँव के अन्य वार्डों के लोगों
को भी लाईटस और कँबल चाहिए|
अब
क्या करें?
यह
सोचने में ही काफी समय गया|
एम्ब्युलन्स
एक तरफ खड़ी की गई है|
कार्यकर्ताओं
में भी दो विचार हैं|
कुछ
बन्दे कह रहे हैं कि यदि कुछ
पंगा होने की सम्भावना है तो
वितरण टाल दो|
दूसरे
बन्दे कह रहे हैं कि कोई पंगा
नही होगा,
आज
ही बाँटते है|
यह
पूरा काम ही काफी ट्रिकी है|
काफी
टेढ़ा है|
कार्यकर्ताओं
में से एक इसी गाँव के पंच है|
वे
कह रहे हैं कि कोई अड़चन नही
होगी;
वितरण
कराते है|
अगर
नही करते हैं तो लोग नाराज
हो जाएँगे|
फिर
पंगा हो सकता है|
इससे
कुछ समय तनाव बन गया है|
काफी
सोच विचार के बाद तय किया गया
कि लाईटस और कँबल बाँट ही देते
है|
फिर
छोटी मीटिंग हुई|
फोटों
खींचे गए|
लोग
आते रहें और कुछ लोग शिकायत
भी करते रहें|
वितरण
का काम चलता रहा और उसमें समय
जाता रहा|
डॉक्टर
भी हैं,
यह
लोगों को पता चलते ही लोग बीमार
होते और दवाईयाँ माँगते|
निकलते
समय कुछ लोगों को दवाईयाँ देनी
पड़ी|
लोग
कई दवाईयाँ चाहते हैं|
डॉक्टर
सर ने विनम्रतापूर्वक उन्हे
समझाया|
जाते
जाते भी अतिरिक्त लाईटस देने
पड़े|
पवनजी
इससे काफी चिन्तित हुए|
कश्मीर
के हालात के बारे में बिना कोई
जानकारी उन्हे यहाँ भेजा गया|
रास्ते
पर जमा हुआ पानी देख ने के बाद
ही उन्हे फ्लड आये थे यह पता
चला|
डॉक्टर
सर भी कह रहे हैं कि आगे से
लाईटस वितरण के काम को शिविरों
से अलग रखना चाहिए|
हमें
तब यही लगा कि कंपनी सेवा भारती
के साथ जुड़ कर बड़ा मुनाफा कमा
रही हैं|
जम्मू
से श्रीनगर तक १५० लाईटस लाना,
यहाँ
गाँव में जा कर उनका वितरण
करना;
कँपनी
के ऑन ड्युटी बन्दे के ठहरने
खाने का खर्चा आदि सब पैसे
कंपनी
ने बचाएँ|
अर्थात्
दादाजी इससे अन्जान नही हैं|
वे
कुछ अलग तरिके से सोचते हैं|
लेकिन
अब उन्हे और कार्यकर्ताओं को
बताना पड़ेगा कि वितरण को शिविर
से अलग रखना चाहिए|
रात
में गाँव के भीतर की सड़कें
सुनसान हो गई हैं|
श्रीनगर
भी धीरे धीरे ठण्ड की गिरफ्त
में जा रहा हैं|
पता
चला कि दादाजी श्रीनगर से
निकले थे;
लेकिन
कुछ काम बाकी होने से रूक गए|
अच्छा
लगा कि और एक दिन उनके पास सीखने
के लिए मिलेगा|
आज
रात का भोजन मयूरजी ने बनाया
है|
महाराष्ट्रीयन
पिठले बनाया हैं|
और
खाना अच्छा खासा तिखा हो गया
जिससे कुछ समय के लिए ठण्ड
गायब हुईं|
भोजन
चल ही रहा हैं जब मयूर जी
ने कहा कि गोली की आवाज आ रही
हैं|
यहाँ
श्रीनगर में यह आम बात है|
आज
सीआरपीएफ के शिविर पर भी लोगों
ने नारेबाजी की हैं|
उसी
समय पता चला कि आज कुछ सरकारी
अफसर दफ्तर में आए थे और कुछ
दवाईयाँ ले जाना चाहते थे|
दादाजी
ने उन्हे समझाया और ऐसा करने
से रोका|
दादाजी से गाँव के अनुभव के बारे में बात हुई| डॉक्टर सर ने भी उनसे कहा कि वितरण के काम को अलग रखा जाना चाहिए जो उन्होने माना| दादाजी से मात्र बात करने से ही दिन के काम का जो सूक्ष्म तनाव था, वह दूर हो गया| हिलाल
भाई
के पिताजी आज भी हॉस्पिटल में
ही हैं;
उनकी
वहाँ से छुट्टी नही हुई है|
आज
हिलाल भाई के रिश्तेदार और
कुछ अन्य कार्यकर्ता भी दफ्तर
में ही रुकेंगे|
ठण्ड
इतनी है कि लग रहा है तुरन्त
कँबल ओढ़ कर नीन्द की शरण मे
जाऊँ|
बाढ़ के जख्म अब भी ताज़ा है| |
गाँव जानेवाली पक्की सड़क- कश्मीर के समृद्ध देहात की झलक |
क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .
सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com
Phone: 0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com
बढ़िया । कहीं कभी झाडू वालों से भी मुलाकत हुई आपकी राहत कार्य करते हुऐ ?
ReplyDeleteधन्यवाद सर! झाडूवाले यदा कदा मिलते थे| सरकारी दफ्तर ही जब गंदगी से पीडित थे, तब अन्य जगहों पर सफाई की अपेक्षा नही कर सकते हैं|
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