Friday, October 31, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव २


राहत कार्य सहभाग की पहली शाम

५ अक्तूबर की‌ शाम! श्रीनगर पहुँचने पर सेवा भारती का कार्यालय देखा| यह एक रिटायर्ड पुलिस अफसर का मकान है जिसे संस्था ने किराए पर लिया है| दो मंजिला घर है| बताया गया कि पहली मंजिल पूर्ण रूपेण जलमग्न हुई थी| अब भी एक- दो स्थानों पर फर्श पर किचड़ दिख रहा है| यहाँ ७ सितम्बर से १८ सितम्बर तक पानी भरा था| फिर वो धीरे धीरे कम होता गया| अब निचले कमरों में मेडिसिन्स, राशन, खाने के पॅकेटस और अन्य राहत सामग्री रखी हुई है| कुछ कमरों में कार्यकर्ता भी ठहरे हैं| घर में उपर जानेवाली सिढी की लकड़ी भी पानी के निशान बयाँ कर रही है| उपर के कमरों में ज्यादा कार्यकर्ता ठहरे हैं| दफ्तर उपर ही है| करीब पच्चीस कार्यकर्ता तो यहाँ होने चाहिए|

सेवा भारती का राहत कार्य देखनेवाले बुजुर्ग कार्यकर्ता ने पहुँचते ही स्वागत किया| वास्तविक नाम अलग है, पर उन्हे यहाँ सभी लोग दादाजी नाम से ही बुला रहे हैं| वे वैसे तो हैं बंगाल के; पर दस वर्षों से कश्मीर में ही रहते हैं और बंगाली लहेजे की हिन्दी तथा ठेठ पंजाबी बोलते हैं| आने से पूर्व उन्हे फोन पर पूछा था कि किस प्रकार कार्य करना है बताईए सो तैयारी कर के आ सकूँ| तब उन्होने कहा था, बीरे! बस तुम अपना तन, मन और बुद्धी के साथ आना! अब धीरे धीरे यहाँ क्या किया जा रहा है और मुझे क्या करना है यह पता चलेगा| दादाजी ने बताया की, एक मीटिंग होने जा रही है जिसका मुझे रिपोर्ट लिखना है| श्रीनगर में ही प्रसिद्ध लाल चौक के पास रेसिडन्सी रोड पर एक पुराना आश्रम है| वहाँ सेवा भारती के कई डॉक्टर और कार्यकर्ता ठहरे हैं और कुछ दिनों से वहाँ हर रोज एक चिकित्सा शिविर भी होता है| वहीं पर आज रात सभी डॉक्टरों की एक मीटिंग है जिसमें वे अपने अनुभव शेअर करेंगे| उसमें सभी से परिचय भी हो जाएगा|

जैसे ही उन कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ, मानो साठ घण्टों की यात्रा शरीर भूल ही गया| एकदम से ताज़गी महसूस हुई| मीटिंग में बातचीत भी काफी गर्म रही| देश के कई राज्यों से आए डॉक्टर्स और कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव सामने रखें| अभी तक कश्मीर के बाढ प्रभावित सभी जिलों में चिकित्सा शिविर हुए हैं- कुपवाडा, गांदरबल, बांदीपोरा, पुलवामा, श्रीनगर, अनंतनाग, बड़गाम आदि| यहाँ सेवा भारती के स्थानीय कार्यकर्ता साथ में होते हैं जो एकल विद्यालय प्रकल्प में अध्यापक, क्षेत्र प्रमुख जैसे तौर पर कार्य करते हैं| एकल विद्यालय देशभर में दूर- दराज के इलाकों में एक अध्यापक का विद्यालय चलानेवाला बड़ा अभियान है| इसी को ले कर सेवा भारती धरातल तक पहुँची है| इतना ही नही, जब सैलाब आया, तब आर्ट ऑफ लिव्हिंग और बाबा रामदेव की संस्था ने भी सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को राहत के लिए एक तरह से खरीदने की कोशिश की थी| इन कार्यकर्ताओं को बड़े 'ऑफर' दिए गए और पैसे भी दिए गए| क्यों कि यहाँ धरातल पर काम करनेवाले ऐसे कार्यकर्ता कम ही होंगे| पर वे सेवा भारती के साथ ही रहें| ऐसे दो स्थानीय कार्यकर्ता और दो या अधिक डॉक्टर एक एक गाँव में जा कर शिविर लेते हैं|

चर्चा में डॉक्टर और व्हॉलंटिअर्स के कई समूह किए गए हैं| हर एक समूह का व्यक्ति आ कर बात कह रहा है| अधिक डॉक्टरों ने लोगों की मेहमान नवाज़ी के बारे में बताया और कहा कि चिकित्सा शिविरों के बारे में लोग काफी सन्तुष्ट थे| कुछ गाँवों में शिविर देर रात तक चलने के कारण उन्हे रूकना भी पड़ा| उसके लिए कार्यकर्ता और स्थानीय लोग काफी उत्साहित थे| कहीं कहीं बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए मकानों में लोग एक ही कमरे में रह रहे थे| फिर भी उन्होने इन डॉक्टरों की अच्छी ख़िदमद की| कुछ डॉक्टरों के कहने में आया कि लोग शिविर समाप्त होने के बाद भी आ रहे थे| लगातार दवाईयाँ मांग रहे थे और कुछ जगहों पर तो अगले दिन जाते जाते भी लोग दवाईयाँ मांग रहे थे|

कुछ शिविर चरमपंथियों के इलाकों में हुए ऐसा बताया गया| 'इंडियन डॉग्ज गो बॅक' का बोर्ड भी एक डॉक्टर ने देखा| कई डॉक्टरों ने यह भी बताया की, रात में जब वे घरों में ठहरे थे, तब तिखी बातें भी सुनने को मिली| एक- दो मामलों में डॉक्टरों को भारत सरकार के बारे में बहोत कुछ सुनना पड़ा जिस पर वे मौन रहें| एक डॉक्टर असम के थे, उन्होने बताया की जब लोग भारत सरकार की शिकायत कर रहे थे, तब वे बोलने के लिए बाध्य हुए और उन्होने लोगों को बताया की, असम में भी काफी बाढ़ हुई है और वहाँ केंद्र सरकार ने पांच हजार करोड़ सहायता की घोषणा की जब की कश्मीर को तब तक इक्किस हजार करोड़ की राशि घोषित हुई थी| ऐसे इक्का- दुक्का मामलें बताए गए| एक ने तो यह भी बताया कि जब उसने राहत कार्य के लिए कश्मीर आने का फैसला किया तो घरवालों ने इस 'पागलपन' के लिए उसे धिक्कारा| एक ने तो अपना बीमा परिवारवालों को सौंपा| 'एक ना एक दिन मौत आएगी ही, वही मौत कश्मीर में लोगों को सहायता करते समय आती है तो क्या हर्ज,' यह भी किसी ने सोचा था!

चर्चा के अन्त में दादाजी ने सबका हौसला बढाया| कुछ डॉक्टरों को आए अप्रत्याशित अनुभवों के बारे में उन्होने समझाया कि देखिए, हर घर- हर परिवार में ऐसा व्यक्ति जरूर होता है जो सबसे अलग होता है| हर जगह पर एकाध तो बिगड़ा बच्चा होता ही है जो नशा करता है; झगडा करता है| वैसे ही यहाँ पर भी कुछ लोग हैं| उन्होने समझाया कि जैसे माँ अपने बिगड़े बच्चे पर भी उतना ही वरन् अधिक प्रेम करती है, वैसे ही ऐसी सोच के बारे में हमारे विचार होने चाहिए| उन्होने जोर दे कर यह भी कहा कि इक्का दुक्का लोगों की वजह से हमें सभी लोगों के बारे में राय नही बनानी चाहिए| दादाजी ने यह भी बताया कि कुछ शिविर तो आतंकवादियों के गढ़ में भी हुए| एक शिविर पुलवामा जिले में होना था, वो एक दिन बाद करना पड़ा क्योंकी उसी गाँव में एनकाउंटर हुआ था| दादाजी ने बताया की जैसी झारखण्ड में, महाराष्ट्र में और अन्य राज्यों में भी गोली चलती है, वैसी यहीं पर भी चलती है! उसकी इतनी फिकर नही करनी चाहिए| दादाजी ने कहा यहाँ हमें किसी को कुछ समझाना नही है; वरन् लोगों को समझना है!

एक डॉक्टर ने एक सीक्ख परिवार के बारे में बताया जो कि उस गाँव का एकमात्र सीक्ख परिवार था| उनके बाकी परिवार वहाँ से बाहर निकले; पर वे अब भी वहीं डटे हैं| चर्चा के अन्त में एक साथी को रहा न गया और उन्होने आंसूभरे आँखों से बताया कि अरसे के बाद पहली बार वे अपने गाँव के काफी करीब गए| वे कश्मिरी हिन्दु थे और वादी से कश्मिरी हिन्दुओं के निकलने के बाद पहली बार अपने गाँव के करीब गए| यहाँ श्रीनगर में भी वे बिना डर के घूम रहे हैं; जो कि पहले नही होता था| उन्होने विश्वास जताया कि इस प्रकार बाढ़ के कारण पूरे देश से डॉक्टर और कार्यकर्ता आए हैं तो और भी बहुत परिवर्तन क्यो नही हो सकता है!

देर रात वह मीटिंग समाप्त हुई और काफी लोगों से परिचय हुआ| यहाँ देश के लगभग हर हिस्से से लोग आए हैं| दो डॉक्टर चेन्नै से आए हैं| उन्हे तो सेवा भारती के बारे में कुछ भी पता नही था| बस, बाढ़ में फंसे लोगों को मदद करना है यह ठान कर वे श्रीनगर पहुँचे| सेवा भारती के बारे में उनको टॅक्सीवाले ने ही बताया! इसी प्रकार कई लोग पहली बार सेवा भारती से जुड़े है| लेकिन अब सब साथ है| गुजरात से भी कई सिनिअर डॉक्टर और इंटर्नशिप करनेवाले डॉक्टर आए है| नॅशनल मेडिको ऑर्गनायजेशन अर्थात् एनएमओ ने भी काफी डॉक्टरों को भेजा है|

अब कार्य के बारे में काफी कुछ पता चला है| लेकिन इसके साथ मन में कुछ सवाल भी है| अधिकांश डॉक्टरों ने बताया कि शिविरों का लोगों को अच्छा लाभ हुआ| पर थोड़े ही डॉक्टरों ने वाकई लोगों की आवश्यकता क्या थी इसके बारे में कुछ कहा| मन में प्रश्न आया कि कहीं ऐसा तो नही कि लोगों की जरूरत और कुछ हो| मन में बार बार इस राहत कार्य की तुलना पीछले साल उत्तराखण्ड की बाढ में किए गए राहत कार्य से हो रही है| उस समय परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ बिलकुल अलग थी| वहाँ तब रास्ते टूटे थे; कनेक्टिव्हिटी सबसे अहम मुद्दा था| नदी के बगल में से और दुर्गम पहाड़ी राहों से जैसे तैसे पार होना पड़ता था| यहाँ तो कनेक्टिव्हिटी पूरी है; सड़कें अच्छी स्थिति में है| यह भी सुनने में आया कि सभी जगह कार्यकर्ता वाहन से ही जा रहे हैं; कहीं पर दूर तक पैदल चलने की स्थिति नही है| और एक बात भी जेहन में आयी कि उस समय राहत कार्य जिसके साथ किया था, वह पुणे की मैत्री संस्था थी जो कि राहत कार्य में एक तरह से स्पेशलाईज्ड है और यहाँ सेवा भारती शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका आदि मुद्दों पर काम करनेवाली संस्था है| अत: पीछले साल के कार्य में और इसमें कुछ भेद तो अवश्य होगा...

जो कुछ भी हो, अब सबके साथ मिल कर काम करना है| कुछ साथी रात को आश्रम में ही ठहर गए और दादाजी एवं अन्य साथियों के साथ मै फिर से मगरमल बाग़ स्थित सेवा भारती कार्यालय में गया| रात को लुभावनी ठण्ड है और आसमाँ साफ है; कई परिचित सितारे रात की रौनक बनाए हुए हैं. . . कल सवेरे नीचे से पानी भरना है| अब भी पानी और बिजली की थोड़ी किल्लत है|

राहत कार्य में जुटे डॉक्टर्स, कार्यकर्ता और कई मान्यवर


























गांदरबाल में खीर भवानी आर्मी कँपस में शिविर| फोटो- https://www.facebook.com/sewabhartijk
एक शिविर का दृश्य फोटो- https://www.facebook.com/sewabhartijk


















































जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . . 
सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com 

क्रमश:

3 comments:

  1. Writing critically will not only help people but you too for depicting grass root reality. You may published your field insights in JOURNALS like EPW. It may help to understand the stakeholders about the situation, issues, needs and demands. With my limited understanding i would suggest to go for analytical approach rather than novelistic. Praveen

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  2. अच्छा है कोई कुछ कर रहा है ।

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  3. Much appreciate the efforts of brethren from JAmmu

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!