Sunday, November 16, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव १२


सैदपोरा में स्वास्थ्य शिविर

१५ अक्तूबर की‌ सुबह प्रोपोझल्स पर चर्चा हुई|‌ कुछ करेक्शन्स करने के बाद दादाजी ने उन्हे मेल कर दिया|‌ व्हिडिओ के लिए जो टेक्स्ट लिखा हुआ था, उसे भी‌ दादाजी‌ ने देखा| देखने के बाद उन्होने कहा कि, बुरा मत मानना पर इसमें अभी बहुत कुछ करना है| एक तरिका होता है सीधा बात कह देने का| इससे जानकारी पहुँचती हो; पर कहने की बात जीवन्त नही होती| दूसरा तरिका होता है किसी चीज को जीवित बना कर कहना| उसके बारे में उन्होने कई बातें बतायी| एक तो नॅरेशन के लिए जो शैलि चाहिए वह बच्चों की पुस्तिका- चन्दामामा की कथाओं सरिखी‌ होनी चाहिए| उसमें इंटरेस्ट बनाया जाता है| कहानि जैसे ढंग से बातें कही जातीं है जिससे पढ़नेवाले का इंटरेस्ट बनता है| दादाजी ने फिर कहा कि बिलकुल जल्दी नही है; आप समय लो और इस टेक्स्ट को लिखो| फिर उन्होने सेवा भारती के कुछ व्हिडिओज भी दिखाए| एकल विद्यालय अभियान पर 'दस्तक' नाम का व्हिडिओ बहुत ही रोचक लगा| संस्था के कश्मीर में चल रहे कार्य पर भी व्हिडिओ दिखाया| एक व्हिडिओ संस्था द्वारा अगस्त २०१० में लेह में किए गए राहत कार्य पर भी है| और एक व्हिडिओ अमरनाथ श्राईन आन्दोलन पर भी है; वह भी काफी रोचक है|‌ समय न रहते उसे देख नही सके|‌ दादाजी ने यह भी कहा कि डॉक्युमेंटेशन के साथ मै डॉक्युमेंटरी भी कर सकता हुँ| यह मेरे लिए एक नया डोमैन हो सकता है| काफी महत्त्वपूर्ण लगे उनके सुझाव|

दादाजी और अन्य साथी आज लौट रहे हैं| सुरेन्द्रजी ने शिविरों की जानकारी का दैनंदिन रिपोर्टिंग बता दिया| अब आज से इसे हमें मेंटेन करना होगा| आज भी पवनजी फॉगिंग के लिए जाएँगे| उन्होने बताया कि कल वे जहाँ गए थे, वहाँ सरकारी दफ्तरों का बुरा हाल था|‌ अब भी काफी कीचड़ वहाँ है| तेज बदबू के भीतर अफसर लोग काम करते हैं; इससे उनका सिर भी चकराता है| और जो अनुभव चिकित्सा शिविरों में आ रहा है, वहीं उन्हे भी आय| सरकारी अफसरों ने उन्हे कई स्थानों पर फॉगिंग करने के लिए कहा| उनमें से कई तो उनके अपने रिश्तेदारों के घर थे| घर घर जा कर टॉयलेट सहित कई स्थानों पर उन्हे फॉगिंग करना पड़ा| वे थोडे नाराज भी थे; लेकिन दादाजी ने उन्हे समझा दिया और आज वे फिर फॉगिंग के लिए तैयार है|

सुबह का शिविर आश्रम में यथाक्रम हुआ| कार्यकर्ता नही हैं; लेकिन अब उनकी‌ आवश्यकता भी नही| सब अच्छे से मॅनेज हो रहा है| वहाँ पहुँचते ही चाचाजी स्वागत करते हैं| बीच में चाय भी पिलाते हैं| अब धीरे धीरे कौनसी बीमारी के लिए क्या दवाईयाँ देनी है, यह भी‌ याद हो रहा है! एक पुलिसवाला रुग्ण आया था| उसे किसी ने बड़ी‌ बेरहमी से मारा था| पुलिस भी इन्सान होते हैं, यह देखने का मौका मिला| उन्हे अन्दरूनी चोट आयी थी जिसके लिए डॉक्टर सर ने दवाईं दी| बाहर सड़क पर कुछ नारेबाजी भी हो रही है; फिर भी शिविर चलता गया| अपेक्षा के अनुसार लोग आखिर तक आते रहें और जैसे तैसे समय के चलते शिविर रोकना पड़ा| तब तक ८३ रुग्ण हुए|

आज पुलवामा जिले के सैदपोरा गाँव में दूसरा शिविर होगा| उसके लिए हिलाल भाई, फयाज़ भाई, नज़ीर भाई आदि कार्यकर्ता भी साथ होंगे| और दादाजी आज श्रीनगर से जम्मू जा रहे हैं| इसका मतलब आज के बाद दफ्तर एकदम सुना सुना होगा| दादाजी की उपस्थिति से ही एक वातावरण बनता है|

सैदपोरा गाँव में पहुँचने तक दोपहर के चार बज चुके हैं| यह शिविर खुले ग्राउंड में लेने के बजाय कमरे में लेने का विचार है जिससे भीड नही होगी और एक समय एक ही रुग्ण देखा जाएगा| कार्यकर्ताओं ने विश्वास दिलाया कि इस बार इतनी भीड़ नही होगी| यथा समय शिविर शुरू हुआ| एक कार्यकर्ता के बड़े घर के एक कमरे में चालू हुआ| बाहर गेट पर बॅनर लगा है जिससे लोगों को पता चलेगा| एक बात यह है कि गाँव में इसकी सूचना बहुत पहले नही दी जा सकी| एक तो कार्यकर्ताओं का प्लॅनिंग उसी दिन होता है; एक दिन पहले नही होता है|‌ उन्हे भी कई काम होते हैं और कईं चीजें देखनी होती हैं| फिर भी एक बार शिविर शुरू होने पर लोग निरंतर आते रहते हैं| पूर्व में जब कई शिविर एक साथ होते थे और कई‌ डॉक्टर शिविर लेते थे, तब मस्जीदों से और मस्जिद कमिटियों के द्वारा शिविरों की घोषणा की जाती थी| यहाँ के गाँवों में एक बात और खास लगी कि ग्राम पंचायत के लेटरहेड अंग्रेजी में हैं! लोग हिन्दी अच्छी समझते है| हालाकि हमें कश्मिरी थोड़ी ही समझ आती है|

पीछले शिविर के मुकाबले यह शिविर ज्यादा नियंत्रित है; फिर भी भीड़ तो हो गई| करीब ८३ रुग्ण होने के बाद पंजीयन बन्द किया गया| फिर भी लोग आते ही रहें| काफी अन्धेरा होने पर रुकना पड़ा| रुग्ण न रुकते देख कर धीरे धीरे दवाईयाँ एम्ब्युलन्स में रख दी| फिर भी लोग नही माने| अब कार्यकर्ताओं को और पवनजी को लाईटस के वितरण की चिन्ता हो रही है| उन्हे इसी गाँव के एक मोहल्ले में- खोमेनी मोहल्ला- वितरण करना है| वह यहाँ से अधिक दूर नही है|‌

अब सड़कें सुनसान है और वितरण का काम शुरू होनेवाला है| लेकिन आज और समय लगेगा| क्यों कि जैसे ही उस मोहल्ले में पहुँचे, कई लोग सामने आए और कार्यकर्ताओं से माँग करने लगे| इस गाँव के अन्य वार्डों के लोगों को भी लाईटस और कँबल चाहिए| अब क्या करें? यह सोचने में ही काफी समय गया| एम्ब्युलन्स एक तरफ खड़ी की गई है| कार्यकर्ताओं में भी दो विचार हैं| कुछ बन्दे कह रहे हैं कि यदि कुछ पंगा होने की सम्भावना है तो वितरण टाल दो| दूसरे बन्दे कह रहे हैं कि कोई पंगा नही होगा, आज ही बाँटते है| यह पूरा काम ही काफी ट्रिकी है| काफी टेढ़ा है| कार्यकर्ताओं में से एक इसी गाँव के पंच है| वे कह रहे हैं कि कोई अड़चन नही होगी; वितरण कराते है| अगर नही करते हैं‌ तो लोग नाराज हो जाएँगे| फिर पंगा हो सकता है| इससे कुछ समय तनाव बन गया है| काफी सोच विचार के बाद तय किया गया कि लाईटस और कँबल बाँट ही देते है|

फिर छोटी मीटिंग हुई| फोटों खींचे गए|‌ लोग आते रहें और कुछ लोग शिकायत भी करते रहें| वितरण का काम चलता रहा और उसमें समय जाता रहा| डॉक्टर भी हैं, यह लोगों को पता चलते ही लोग बीमार होते और दवाईयाँ माँगते| निकलते समय कुछ लोगों को दवाईयाँ देनी पड़ी| लोग कई दवाईयाँ चाहते हैं| डॉक्टर सर ने विनम्रतापूर्वक उन्हे समझाया| जाते जाते भी अतिरिक्त लाईटस देने पड़े| पवनजी इससे काफी चिन्तित हुए| कश्मीर के हालात के बारे में बिना कोई जानकारी उन्हे यहाँ भेजा गया| रास्ते पर जमा हुआ पानी देख ने के बाद ही उन्हे फ्ल आये थे यह पता चला| डॉक्टर सर भी कह रहे हैं कि आगे से लाईटस वितरण के काम को शिविरों से अलग रखना चाहिए| हमें तब यही लगा कि कंपनी सेवा भारती के साथ जुड़ कर बड़ा मुनाफा कमा रही हैं| जम्मू से श्रीनगर तक १५० लाईटस लाना, यहाँ गाँव में जा कर उनका वितरण करना; कँपनी के ऑन ड्युटी बन्दे के ठहरने खाने का खर्चा आदि सब पैसे कंपनी ने बचाएँ| अर्थात् दादाजी इससे अन्जान नही हैं| वे कुछ अलग तरिके से सोचते हैं| लेकिन अब उन्हे और कार्यकर्ताओं को बताना पड़ेगा कि वितरण को शिविर से अलग रखना चाहिए|

रात में गाँव के भीतर की सड़कें सुनसान हो गई हैं| श्रीनगर भी धीरे धीरे ठण्ड की गिरफ्त में जा रहा हैं| पता चला कि दादाजी श्रीनगर से निकले थे; लेकिन कुछ काम बाकी होने से रूक गए| अच्छा लगा कि और एक दिन उनके पास सीखने के लिए मिलेगा| आज रात का भोजन मयूरजी ने बनाया है| महाराष्ट्रीयन पिठले बनाया हैं| और खाना अच्छा खासा तिखा हो गया जिससे कुछ समय के लिए ठण्ड गायब हुईं| भोजन चल ही रहा हैं जब मयूर जी ने कहा कि गोली की आवाज आ रही है| यहाँ श्रीनगर में यह आम बात है| आज सीआरपीएफ के शिविर पर भी लोगों ने नारेबाजी की हैं| उसी समय पता चला कि आज कुछ सरकारी अफसर दफ्तर में आए थे और कुछ दवाईयाँ ले जाना चाहते थे| दादाजी ने उन्हे समझाया और ऐसा करने से रोका| दादाजी से गाँव के अनुभव के बारे में बात हुई| डॉक्टर सर ने भी उनसे कहा कि वितरण के काम को अलग रखा जाना चाहिए जो उन्होने माना| दादाजी से मात्र बात करने से ही दिन के काम का जो सूक्ष्म तनाव था, वह दूर हो गया| हिलाल भाई के पिताजी आज भी हॉस्पिटल में ही हैं; उनकी वहाँ से छुट्टी नही हुई है| आज हिलाल भाई के रिश्तेदार और कुछ अन्य कार्यकर्ता भी दफ्तर में ही रुकेंगे| ठण्ड इतनी है कि लग रहा है तुरन्त कँबल ओढ़ कर नीन्द की शरण मे जाऊँ

बाढ़ के जख्म अब भी ताज़ा है|
























गाँव जानेवाली पक्की सड़क- कश्मीर के समृद्ध देहात की झलक










































 



क्रमश:

जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   

सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com

2 comments:

  1. बढ़िया । कहीं कभी झाडू‌ वालों से भी मुलाकत हुई आपकी राहत कार्य करते हुऐ ?

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  2. धन्यवाद सर! झाडूवाले यदा कदा मिलते थे| सरकारी दफ्तर ही जब गंदगी से पीडित थे, तब अन्य जगहों पर सफाई की अपेक्षा नही कर सकते हैं|

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