Saturday, November 8, 2014

जन्नत को बचाना है: जम्मू कश्मीर राहत कार्य के अनुभव ४

राहत कार्य में देशभर के कार्यकर्ताओं का योगदान


६ अक्तूबर की रात कई कार्यकर्ताओं से मिलना हुआ| इसमें एक थे कर्नाटका के मण्ड्या के अर्जुनजी! जहाँ देशभर से आए कई सारे कार्यकर्ता डॉक्टर थे, ये इंजिनिअर थे| यहाँ सभी लोग उनके लगन और मेहनत से प्रभावित हुए| रात को अर्जुन जी ने राहत कार्य के लिए और एक पहल करते हुए करीब सत्तर हजार रूपयों का चैक दादाजी को सौंपा| जब दादाजी ने उन्हे पूछा कि इतने पैसे क्यों दे रहे हैं, तो अर्जुनजी ने कहा, 'क्यों कि वे मेरे खाते में है|' कुछ करने की इतनी तत्परता और अनुठी सरलता! वाकई ऐसे लोग ही देश को बनाने की क्षमता रखते हैं. . .

७ अक्तूबर को प्रात: साढेतीन बजे सब लोग श्रीनगर से निकलने के लिए तैयार हैं| आज कई सारे डॉक्टर लोग वापस लौटेंगे| वस्तुत: सेवा भारती एवम् एनएमओ (नॅशनल मेडिको ऑर्गनायजेशन) का यह एक तीन दिन (३ से ५ अक्तूबर) का चिकित्सा शिविर था| लेकिन बाढ के परिप्रेक्ष्य में इसको और बढाया गया और अधिक डॉक्टर आए| ये सब डॉक्टर आज लौट रहे हैं| लोग अपने अपने समयानुसार आ रहे हैं और जा रहे हैं| यहाँ एक बात देखने में आयी कि सभी डॉक्टर इकठ्ठा काम कर रहे हैं| इसमें कोई काफी सिनिअर- पैंतीस वर्ष का अनुभव एचओडी हैं और कई इंटर्नशिप करनेवाले भी डॉक्टर्स हैं| लेकिन अब सब घुल मिल गए हैं| सब एक टीम की भाँति कार्यरत है| आज शाम जम्मू में इन्ही लोगों की मीटिंग है जिसमें वापस लौटनेवाले भाई- बहन अपने अनुभव शेअर करेंगे
 
तीन एम्ब्युलन्स प्रात: चार बजे रेसिडन्सी रोड के आश्रम से निकली| कुछ साथियों को काफी प्रयास से उठाना पड़ा| लेकिन समय पर ही सब निकले| अब ठण्ड काफी घनी हो चुकी है| तीन दिन पहले उतनी नही थी| अन्धेरे में ही पुलवामा और शोपियाँ तक की यात्रा हुई| शोपियाँ यह सेब शहर (एप्पल सिटी) के तौर पर जाना जाता है| करीब दो हजार मीटर ऊँचाई पर बंसा यह शहर रमणीय है| यहाँ लौटनेवाले साथियों ने काफी सेब खरिदें| पेट्रोल पम्प ढूँढने में भी समय लगा| पेट्रोल पम्प थे कई जगह, पर सुबह के कारण खुले नही हैं| वाकई आपदा के एक महिने के भीतर काफी कुछ स्थिति सामान्य बनाने के प्रयास हुए दिखते हैं|

शोपियाँ के आगे से ही प्रसिद्ध मुघल रोड़ शुरू होता है| यहाँ से नजारा जैसे करवट लेता है| पीर की गली तक सीधी पैतालिस किलोमीटर की चढाई है| पीरपन्जाल श्रेणि से यह सड़क गुजरती है| माहौल काफी ठण्डा है| लगभग बर्फबारी का मौसम है| मुघल रोड़ पर कुछ स्थानों पर मिलिटरी के चेक पोस्टस है| ऐसे स्थान आने पर सभी साथी मिल कर बोल रहे हैं- 'जय हिंद! आर्मी ज़िंदाबाद!' यह सुन कर जवानों के चेहरे खिल उठ रहे हैं| पीर की गलि से फिर सिधी उतराई है|

साथी अपने अनुभव शेअर कर रहे हैं| उनमें से कई गुजरात के भावनगर से आए हुए हैं| अपने अनुभव बता रहे हैं| हर एक अपने नजरिए से घटनाओं की ओर देख रहा हैं| कुछ लोग अनुभवों से खासे नाराज हैं| कुछ जगहों पर शिविर लेते समय छोटा मोटा विवाद भी हुआ| कुछ कश्मिरियों के मन में जो कड़वाहट है, उसका भी अनुभव कुछ लोगों को आया| यह सब सुनते हुए बार बार मन में एक प्रश्न आ रहा है कि क्यों लोग एक दूसरे से इतना अलग सोचते हैं? कुछ लोग दो और दो को चार क्यों नही देख पाते हैं? और इतनी कड़वाहट क्यों
 
मन में यह विचार चल रहे हैं, तब एक छोटी सी कहानी याद आती है| एक फकीर रास्ते से गुजर रहा था| एक बड़े पेड़ के पास से जब वह जा रहा था, तब संयोग से पेड़ की एक छोटी टहनी उस पर गिरी| एक पल वह ठिठका और फिर चला गया| एक आदमी उसे गौर से देख रहा था| उसने कुछ सोचा और अगले दिन जब वह फकीर उसी रास्ते से आ रहा था, तब उस पर एक बड़ा डण्डा मारा| एक पल के लिए फकीर चौंका और उसने उस आदमी की तरफ देखा| फिर कुछ सोचते हुए बिना कुछ बोले वह आगे बढा| उस आदमी से रहा न गया और उसने फकीर को रोक कर पूछा, 'कल तुम शांत रहें क्यों कि पेड़ द्वारा अपने आप टहनी गिरी थी| लेकिन आज तो मैने जान बुझ कर तुम्हे डण्डा मारा| फिर भी तुम शांत क्यों‌ रहें?' तब फकीर बोला, 'एक पल के लिए यही विचार मेरे मन में आया| पेड से टहनी गिरना एक संयोग था| फिर मुझे ध्यान आया कि तुम्हारे मन में ऐसा विचार आना और तुम्हारा मुझे डण्डा मारना भी बिलकुल वैसा ही संयोग ही तो है! फिर जब मैने पेड़ पर गुस्सा नही किया, तो तुम पर भी गुस्सा करने का कारण नही था|' शायद यह कहानि हमें ऐसी चीजों के बारे में सही सोचने का मार्ग बताती है. . .

. . . छोटे छोटे स्थानों से होते हुए यह रोड बाफ्लियाज़ पर पूँछ से करीब बीस किलोमीटर दूर से जाते हुए थाना मंडी के रास्ते राजौरी की तरफ चला जाता है| अब धीरे धीरे पहाड़ से उतरना है| राजौरी के बाद नौशेरा, अखनूर और जम्मू! अखनूर के पास चिनाब नदी देख कर यकीन नही हो रहा है कि इसी ने कुछ ही दिन पहले काफी नुकसान पहुँचाया था| अब तो नदी चुपचाप बह रही है| तवी नदी भी अब सिमटी सी है|

जम्मू में सेवा भारती के दफ्तर पहुँचने तक दोपहर के चार बज चुके हैं| सेवा भारती का दफ्तर अम्बफला इलाके में है| आसपास मिलिटरी के कई दफ्तर भी है| सेवा भारती दफ्तर के साथ विद्या भारती, राष्ट्रीय सीक्ख संगत और जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर जैसे संस्थानों का दफ्तर भी है|

यथा समय शाम की मीटिंग शुरू हुई| यह एक अनौपचारिक संवाद है| खुल कर सभी साथी बात कह रहे हैं| सेवा भारती के कई सिनिअर कार्यकर्ता मौजुद है| लेकिन वे भाषण नही दे रहे हैं वरन एक एक कार्यकर्ता को सामने बुला कर अनुभव कहने के लिए बोल रहे हैं| और कार्यकर्ताओं ने किया हुआ काम भी बता रहे हैं| दादाजी भी बड़े प्यार के साथ एक एक को आग्रहपूर्वक अपनी बात रखने को कह रहे हैं| वे अपने बारे में कुछ नही कह रहे हैं, पर सभी कार्यकर्ता उनके मार्गदर्शन का जिक्र करने से नही चूक रहे हैं| कई मौकों पर दादाजी से कठोर शब्द सुने थे; पर अब उनके चेहरे पर अनुठी पुलक है| जितनी भी बार मन में कुछ सवाल खड़े हुए, वे दादाजी के द्वारा निरस्त हो रहे हैं| कई लोग काफी कुछ डर और पूर्वग्रहयुक्त मानस से यहाँ आए थे| अब धरातल की स्थिति देखने के बाद उनकी राय बदली है| यहाँ से जाने के बाद भी जुड़े रहने के बारे में‌ सब कह रहे हैं| कोई मित्र अपने अपने तरिके से इस काम को आगे बढ़ाएँगे| बंगलोर में आयटी मिलन का एक ग्रूप हैं जो इस कार्य के लिए कुछ कर रहा है| एक मित्र ने सेवा भारती के कार्य को फेसबूक द्वारा लोगों तक पहुँचाना शुरू किया| कई बार लोग तिखि टिप्पणियाँ भी करते हैं, पर सबका यही मानना है कि किसी भी बहस के बजाय हमें कार्य पर ध्यान देना हैं| दादाजी बार बार यही कह रहे हैं कि सेवा भारती मात्र जरिया बना| जम्मू- कश्मीर आपदा देख कर समाज में सहायता का बड़ा भाव बना और बड़ी संख्या में लोग सामने आए; सेवा भारती बस माध्यम बना|

मीटिंग के बाद रिपोर्ट और पाम्पलेट पर भी काम किया गया| उसमें निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं| राहत कार्य का व्हिडिओ भी बनाना है| अब कुछ साथी वैष्णोदेवी दर्शन करने के लिए जाएँगे| बहोत से लोग कल लौट जाएँगे
 
. . ७ अक्तूबर की रात श्रीनगर की तुलना में जम्मू में ठण्ड बिलकुल ही कम है| संस्था के दफ्तर में रिपोर्ट बनाते बनाते दस बज गए| जैसे ही दीपनिर्वाण कर नींद की तैयारी करने लगा, तब अचानक से बड़ी भयंकर बारीश शुरू हुई| एकदम से तेज हवाएँ चलने लगी और चारों ओर से चीजें टकराने की आवाजें आने लगी| कमरे में तेज बारीश अन्दर आने लगी| खिडकियों को तोडते हुए हवा सब जगह नाच रही है| खिडकियों का नृत्य शुरू हुआ| बिजलियों के सूरज थिरकने लगे और बादलों की गर्जनाओं ने सभी‌ आवाजों को खामोष किया| कमरे में धीरे धीरे पानी आ रहा है. . . अचानक मन में आया शायद ७ सितम्बर जैसी ही तो यह बरसात नही है? जम्मू एक तरह से पहाड़ के एक सीरे पर है| यहाँ पहाड़ समाप्त होता है|‌ इसलिए शायद पहाड़ से आनेवाले बादल और तेज हवाएँ जम्मू पर थिरक रही हैं. . .

कुछ समय बाद बाहर जा कर एक कार्यकर्ता से मिलने का साहस हुआ| नीचे एक बड़ा पेड टूटा है| एक टेबल ध्वस्त हुआ है| यह साथी कुछ साथियों को छोडने के लिए स्टेशन पर गया था| उसने बताया दो मिनट में जैसे तुफान आया और सड़क की विजिबिलिटी खतम हुई| कई वाहन लगातार टकराते गए| जैसे तैसे लगभग जिरो स्पीड से गाडी चलाते हुए वह लौटा| ऐसा डरावना समाँ है कि मन में एक ही बात चल रही है कि कब ये बरसात रूक जाए| जो साथी थोडी ही देर पहले वैष्णोदेवी के लिए निकले हैं, वे कहीं फँस तो नही गए होंगे? उनके बारे में एक साथी से पूछा तो पता चला कि नही, वे शायद पहुँच गए होंगे| तेज बरसात से वाकई बुद्धी की परत क्षीण हो कर भीतर दबा पडा डर खुल गया है| हम कितना भी कहें कि हम डरते नही, हम फलां स्किल के व्यक्ति है, हम इतने समर्थ हैं; पर जब ऐसा समय और ऐसा माँजरा होता है, तो बुद्धी की परत टूटती है और डर सामने होता है| उस समय पर भी एक कहानि ने कुछ राहत दी| यह कहानि एक राजा कि है| उसे एक साधू ने एक अँगूठी दी थी और कहा था जब कि जब भी इतनी भयंकर मुसीबत हो कि अन्य सभी विकल्प बन्द हो जाएँगे, तब इसका सहारा लेना| राजा हिम्मतवाला था| कई बार मुश्किल स्थिति में होने पर भी उसने यह सहारा लेने से मना किया| लेकिन एक बार स्थिति बहुत बुरी थी| चारों ओर से शत्रूओं से वह घिरा था| अब उससे रहा नही गया और उसने उस अँगूठी का सहारा लिया| उसने वह अँगूठी देखी और उसे गौर से देखा| उसमें एक कागज़ बन्धा हुआ था| राजा ने बड़े अचरज से उसे खोला और उस कागज़ को देखा| उसपर मात्र यह लिखा था- 'यह भी बीत जाएगा| समय रूकता नही|' यह देख कर राजा को राहत मिली| उसने फिर सोचा और वह सम्भला| शत्रू आए, उन्होने उसे पकड़ा भी| लेकिन फिर कुछ दिनों बाद वह उनकी चँगुल से निकला|

कहानि ने काफी धीरज दिया| कहते हैं ना की, सिर्फ परिवर्तन स्थिर चीज है! धीरे धीरे बरसात धिमी हुई| फिर मात्र बिजली और तेज हवाओं का खेल चला| देर रात वातावरण शान्त होता गया| लेकिन करीब दो घण्टों के लिए एक महिने के पहले दिन की झलक मिली. . . 
इस एम्ब्युलन्स में यात्रा हुई

























इस कार्य को ऊँचे नीचें रास्तों से अपनी मंजिल तक पहुँचाना है. .
ये कश्मीर है!


















































 
जम्मू दफ्तर की दीवार पर अपील बॅनर



























































क्रमश:
जन्नत बचाने के लिए अब भी सहायता की आवश्यकता है. . .   
सहायता हेतु सम्पर्क सूत्र:
SEWA BHARTI J&K
Vishnu Sewa Kunj, Ved Mandir Complex, Ambphalla Jammu, J&K.
www.sewabhartijammu.com 
Phone:  0191 2570750, 2547000
e-mail: sewabhartijammu@gmail.com, jaidevjammu@gmail.com
 

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