Friday, October 11, 2013

चेतावनी प्रकृति की: ११ (अन्तिम)


. . . ८ अगस्त! 'मैत्री' तथा 'अर्पण' संस्थाओं की इस टीम का यह अंतिम दिन है| सहायता कार्य आगे भी जारी रहेगा| पर यह चरण अब समाप्त होगा| वैसे आगे की योजना भी तैयार हो रही है| महिला डॉक्टरों की टीम को लाने का प्रयास किया जा रहा है| आगे अब कई अन्य पहलूओं‌ पर काम करना है| अब आपत्ति प्रबन्धन के आरम्भिक चरण समाप्त होने पर दीर्घकालीन कार्य पर अधिक जोर दिया जाएगा| और अन्य भी‌ कुछ क्षेत्रों‌ में‌ असेसमेंट किया जा सकता है|
. . . जैसे ही‌ कार्य का अंतिम दिन आया और वह भी सबसे बड़ा दिन; तो हर एक को हल्के तनाव का अनुभव होने लगा| आखिर कर इतने बड़े पैमाने पर सामान को गाँवों में‌ ले जा कर बाँटना आसान काम तो नही होता है| और सड़क भी‌ चिंता का ही विषय है| पर अब पूरी टीम इकठ्ठा हो गई है|अर्पण के भी सभी सदस्य आ गए हैं| अन्य भी‌ साथी साथ है| सामान उठाने के लिए कुछ लोग भी ले लिए गए हैं| इससे इतनी परेशानी तो नही‌ आनी चाहिए| हाँ, कुछ ग्रामीण जरूर उत्तेजित हैं; भीड भी करेंगे| पर ऐसी स्थिति को सम्हालने का अनुभव भी तो टीम के पास है!
सुबह बहुत जल्दी निकले| स्टोअर पर सब इन्तजाम किया हुआ है| ऐसे स्थिति में अक्सर जो होता है, वह भी हुआ| कुछ लोग अधिक चिंतित होते हैं; कुछ पीछे रह जाते हैं| कहिं कुछ क्षणिक तनाव होता है| यह सामान्य बातें‌ हैं और किसी भी टीम में देखी जा सकती हैं| अचानक से तेज़ बारीश होने लगी|रास्ते पर भी कोहरा छा गया|लेकिन अब रूकने का समय नही है| हालांकि जौलजिबी पूल पर कुछ समय रुकना पड़ा| क्योंकि आगे एक जगह रास्ता बन्द है, ऐसी सूचना मिली| रात में‌ तेज बरसात हुईं है| जरूर पहाड़ से आनेवाले झरनों का बहाव बढा होगा| इसी वजह से आगे रास्ते पर तेज पानी गुजर रहा है| थोडी देर रुकने के बाद आगे निकले|
अब रास्ता बिलकुल जाना पहचाना हुआ है| फिर भी लग रहा है कि नदी में अधिक पानी है| उपर पहाड़ में तेज बरसात हुईं है| बीच बीच में रुकना पड़ रहा है| बरम के पहले एक जगह पानी का काफी बड़ा प्रपात रास्ते पर दिखाई पड़ा| इतना तेज पानी है कि टेम्पो उसमें से सामान के साथ नही जा पा रहे हैं| जीप बड़ी मुश्किल से उसमें से पार हो गईं| हालां कि बाकी लोग चल कर उसके पास ही बनी एक छोटीसी पैदल पुलिया से पार हो गए| लेकिन जीप को पार होते देख कर भी डर लग रहा था|उसके बाद वहाँ के अधिकारियों ने कुछ समय के लिए वाहनों को रोक दिया| जे.सी.बी. रास्ते के पत्थर हटा कर पानी के बहाव का मार्ग साफ कर रहा है| फिर भी काफी समय लगेगा| एक साहसी मोटरसाईकिलवाले ने उस प्रपात में गाड़ी डालने का जोखिम उठाया| आधे रास्ते तक आ कर उसे लौट जाना पड़ा| पानी का बहाव वाकई इतना तेज है कि वह बड़े बड़े पत्थरों‌ को भी उठा ले जा रहा है|जे.सी.बी. चलानेवाले का धैर्य तारीफ़ के क़ाबिल है! वहीं काफी देर तक रुकना पड़ा| काम चलता रहा; पानी का बहाव कम होता नजर नही आ रहा है| लेकिन जे.सी.बी. चलानेवालेने उस बहाव को चौडा किया; जिससे उसका बल थोड़ा फैल गया| अब शायद वह वाहनों‌ को इतना फैंक नही सकेगा| फिर एक एक कर वाहन शुरू हुए|आखिर कर हमारे टेम्पो और मिनि ट्रक भी पार आ गए . . .
अब तक कालिका पुलिया के पास हुड़की, घरूड़ी और मनकोट गाँवों के लोग इकठ्ठा हुए हैं| और भीड अक्सर अनियंत्रित होती है| वहाँ‌ पहुँचने पर एक स्थान पर टेम्पो और ट्रक रोक कर पास ही दूसरे स्थान पर टेबल लगाया| वहाँ पर लोग अपने कूपन दिखाने लगे| तब तक टेम्पो और ट्रक में से हर परिवार के लिए पॅकेट बनाना चालू‌ हुआ| जल्द ही यह व्यवस्था बन गईं|एक के बाद एक परिवार आने लगे| आरम्भिक हड़बड़ाहट के पश्चात् सब ठीक होने लगा| एक चिंता यह है, कि कुछ और सामग्री का एक टेम्पो पीछे है, उसे आना अभी बाकी है| और रास्ते में रुकावट बढ सकती है| लेकिन अभी सामग्री पर्याप्त है| इसलिए यहाँ पर दिक्कत नही आएगी| एक बार वितरण कार्य शुरू होने पर हर एक सदस्य ने अपना अपना मोर्चा सम्हाल लिया| कोई ट्रक में से गठरियां नीचे दे रहा है; कोई टेबल पर कूपन्स देख कर लोगों‌ को आगे भेज रहा है| कोई लोग एक ही बार सामान ले रहे हैं, इस पर ध्यान दिए हुए है| कोई भीड को नियंत्रित कर रहा है| जल्द ही सामान ले जाने वाले लोग लौटने लगे|धीरे धीरे नदी के पार वे पहुँच गए|इस वितरण कार्य का सबसे कठिन हिस्सा उस सामान को- पैतीस किलो की गठरी को घर तक ले जाना ही है! और उसमें‌ लोग खरे उतर रहे हैं! दिक्कत होने के बावजूद वे सामान उठा रहे हैं| महिलाएँ भी इसमें‌ पीछे नही है| ग्रामीण आपस में मिल कर उसे ले जा रहे हैं. . .
इस प्रकार वितरण का पहला हिस्सा पूरा हुआ| कुछ लोगों‌ ने समस्या खडी करनी चाही| पर उन्हे समझाया गया| सुचि में नाम न होनेवाले गाँव के वास्तविक ग्रामीणों को भी सामान बाँटा गया|हर परिवार को चावल, सूजी, शक्कर, तेल आदि निर्धारित किया हुआ सामान दिया गया| इसके पहले गाँवों में अर्पण के सदस्यों‌ की निगरानी में महिलाओं‌ के लिए सैनिटरी नैपकिन्स भी दिए गए थे|
यह सब होते होते दोपहर होने को आयी| सभी परिवार पूरे होने के पश्चात् वहाँ से लुमती के लिए निकले| रास्ते में चामी में भीड़ इकठ्ठा हुयी है| उन्हे बता कर आगे जाने के लिए निकले| लुमती के ठीक पहले एक जगह पर रास्ता बन्द है| वहाँ कुछ समय बितने पर निर्णय कर लिया गया कि अब वितरण यहीं‌ करना पडेगा| लोगों को सन्देस भेजा और वे आने भी लगे| यहाँ‌ भी बी.आर.. का बड़ा काम चल रहा है| पीछले वितरण काम के जैसे ही यहाँ व्यवस्था बनते देर नही लगी| पीछे से आ रहे सामान की प्रतीक्षा जरूर है| लुमती ग्राम के लोगों‌ को भी काफी‌ दूरी पैदल चल के आना पड़ा| और अब सामान ले कर भी‌ जाना है| लेकीन उसके लिए उन्होने तरकीब निकाली|कुछ लोग साथ में‌ डोर लाए हैं| वे गठरियों‌ को अब कमर या पीठ पर बांध कर ले जाएंगे| अपेक्षाकृत तरिके से काम चलता रहा|स्थानीय लोग भी सहायता कर रहे हैं. . .
अब बस एक गांव बाकी है|वहां का वितरण होने पर इस चरण का कार्य पूरा हो जाएगा| लुमती का काम पूरा कर चामी आ गए| भीड अब अनियंत्रित हो रही है| लेकिन सर और अर्पण के सदस्यों ने लोगों को समझाया| टेम्पो और ट्रक गाँव के एक तरफ रख दिए| बस आनेवाले दूसरे टेम्पो की प्रतीक्षा है| क्यों कि अब कुछ चीजें खतम हुईं है| तब तक चामी का स्टोअर भी फायनल किया गया| अब यहाँ बाँटने पर सामान बाकी रहा, तो उसे इधर ही रखा जा सकता है| पीछे रुका हुआ टेम्पो आने पर वापस टेबल लगा कर एक के बाद एक परिवारों को कूपन दे कर सामान दिया जाने लगा| इसमें कुछ युवक भी सहायता के लिए आगे आए| जैसे काम पुरा होते गया, वैसे सभी के उपर नजर आनेवाला हल्का सा तनाव भी कम हो गया|
टीम में‌ काम करने की खास बात यह है कि हर कोई अपने अपने तरिके से हाथ बँटाता है| कोई लोगों‌ को सामान बान्धने में‌ सहायता कर रहा है; कोई सामान की गिनती कर रहा है; देख रहा है कि कुछ समाप्त तो नही हो रहा| इस पूरे काम में दो बातें‌ सबसे अहम थी| एक तो परिवारों की सही सुचि बनाना और सुचि में जिनका नाम नही है; पर जो गाँव के निवासी‌ है: उनको परख कर कूपन देना| दूसरी बात थी भीड को नियंत्रित करना| यह बातें स्वाभाविक रूप से होती गयी| इस काम में साथ आए टेम्पो तथा ट्रक के चालक; सामान उठाने के लिए बुलाए गए लोग आदि ने भी अच्छा सहयोग दिया| इस काम के समय पुलिस को भी रखा गया था|उन्होने ने भी सहयोग दिया. . .
वापस जाते समय भी रास्ते पर रुकना पड़ा| बरम के पास के जल प्रपात का स्तर और बहाव अब कम हुआ है| इसलिए रुके बिना आगे जा सके|मन में कई विचार है| जो कुछ देखने में‌ आया, वह काफी सोचने के लिए मजबूर करनेवाला है| इस चरण का काम तो पूरा हो रहा है; पर आगे भी बहुत काम करना पड़ेगा| सर ने जैसे कहा है; कि लोगों‌ को सामग्री पहुंचाना; शिविर आयोजित करना; दवाईयाँ बाँटना आदि काम मात्र प्राथमिक स्तर के हैं| आवश्यक है हि; मगर पहले चरण के वे काम हैं|इसके बाद अब पैरवी के स्तर पर; जल प्रवाह के संशोधन के स्तर पर और उपजीविका के स्तर पर भी बहुत कुछ काम किया जाना चाहिए| और इतना ही नही, मूलत: हमें‌ प्रकृति की इस चेतावनी से सीख लेनी चाहिए| जीवनशैली तथा विकास की परिभाषा पर गहराई से सोचना चाहिए|क्योंकि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए हम इकठ्ठे ही‌ तो जिम्मेदार है| जगत् में‌ सब घटनाएं एक दूसरे से सम्बन्धित हैं|इसलिए एक स्थान पर भी यदि पर्यावरण में‌ इतना बड़ा तनाव हो; तो उसका अर्थ यही‌ है; कि प्रकृति में‌ बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहें‌ है| इसी लिए जैसा पहले कहा जा चुका है; हर एक को विकास तथा जीवनशैली के बारे में‌ गहराई से सोचने की आवश्यकता है|
. . . आखरी दिन काफी भावनाप्रधान रहा| हेल्पिया में पहुंचने पर सर ने विशेष प्रकार से सभी का हौसला बढाया| अर्पण तथा मैत्री- सभी के लिए सभी ने उल्हास के साथ 'थ्री चिअर्स' किया|मतभेदों‌ को भुलाते हुए एक सकारात्मक सोच के साथ वह कार्य पूरा हुआ| सर और अन्य एक मित्र पीछे रुकनेवाले है| बाकी मित्र वापस लौटेंगे|
वाकई ज़िन्दगी में कुछ दिन ऐसे आते है; की पीछे हमे लगता है कि क्या वे दिन वास्तविक थे? या हमने सपना तो नही‌ देखा? ये दिन भी वैसे ही हैं| इतना कुछ इतने कम दिनों‌ में देखने को मिला|जो किया, वह काम वैसे तो साधारण सा हि है| कोई विशेष बात नही‌ है| पर अक्सर रुग्ण को दवा के साथ दुवा और साथ होने की‌ भी आवश्यकता होती है| हौसला बढाने की आवश्यकता होती है| कोई कुछ भी कहें, वास्तव में कोई दुर्बल या असहाय नही‌ होता है और ना हि कोई बहुत समर्थ या शक्तिशाली जो कि दूसरे को मदद दे सकें| यहां हर कोई एक सामान्य यात्री है| इसमें‌ एक ही‌ बात हो सकती है- एक दूसरे का कुछ पल साथ दिया जा सकता है| और कुछ भी नही| खैर|
२८ जुलाई से ८ अगस्त के इन दिनों के पहले भी मैत्री‌ ने काफी कार्य किया| उसके बाद भी कार्य बरकरार है| अब भी कई पहलूओं‌ पर कार्य हो रहा है| केदारनाथ में‌ समारोह शुरू होने के बाद भी‌ पुनर्निर्माण का कार्य समाप्त नही हुआ है| वरन् अब गहरा काम शुरू‌ हुआ है| और यह एक आह्वान भी‌ है| आव्हान इस बात का है कि किस प्रकार प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना वहाँ मानवी गतिविधियाँ चलायी जाए| रहन- सहन और उपजीविका चलायी जाए| इसके लिए विकल्प ढुंढने चाहिए‌ और वैकल्पिक विकास नीती के बारे में‌ भी अत्यधिक सोचना चाहिए. . .
उन दिनों की यादें तो कईं है; पर लेखनसीमा यहीं पर ठीक है|

वितरण के लिए जा रहा सामान
 
तेज़् बहाव का जल प्रपात
























वितरण स्थान पर आए हुए ग्रामीण
 
टीम वर्क



























































यह युद्ध अभी समाप्त नही हुआ है| इसके बारे में‌ आगे जानने के लिए तथा सहयोग लेने के लिए सम्पर्क कर सकते है-
www.maitripune.net; maitri1997@gmail.com, ०२० २५४५०८८२.

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