Thursday, October 1, 2015

अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ८ ऋषीकेश दर्शन

१. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: १ हिमालय की गोद में . . . 
२. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: २ नदियाँ पहाड झील और झरने जंगल और वादी
३. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ३ चलो तुमको लेकर चलें इन फिजाओं में
४. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोS हिमालय: ४ जोशीमठ दर्शन
५. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ५ अलकनन्दा के साथ बद्रिनाथ की ओर
    

६. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ६ औली जाने का असफल प्रयास और तपोबन यात्रा    
७. अस्ति उत्तरस्यां दिशि नाम नगाधिराजः पर्वतोs हिमालय: ७ हिमालय की आज्ञा ले कर ऋषीकेश की ओर
ऋषीकेश दर्शन

२० दिसम्बर की सुबह| अच्छा विश्राम मिला| आज कोई भागदौड नही है, इसलिए आराम से तैयार हुआ| होटल के पास ही गंगा का तट है| सुबह की ताज़गी और शान्ति से बहनेवाली गंगा की धारा. . . आज बस ऋषीकेश में घूमना है| कोई तय योजना नही है| बस ऋषीकेश में स्थित डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम देखना है, इतना विचार है| साथ ही गंगा के तट पर भी टहलूंगा|

कल जब मोबाईल में न्यूज देखें और बाहरी दुनिया से फिर अवगत हुआ, तो १६ दिसम्बर में दिल्ली में हुए बलात्कार काण्ड की जानकारी मिली| वाकई हम कितने रुग्ण समाज में जीते हैं, इसका अहसास हुआ| यही ख्याल मन में आया कि इस दुर्घटना को किसी अन्जान गुनहगार द्वारा किया कृत्य नही मानना चाहिए, वरन् इसे ऐसे समझना चाहिए कि मेरे जैसा- आपके जैसा ही कोई आदमी या आदमियों की टोली ऐसा कृत्य कैसे कर सकती हैं| एक इन्सान ऐसा कैसे कर सकता है- मेरे जैसा कोई ऐसा कैसे कर सकता है| मै ही ऐसा कैसे कर सकता हुँ, यह देखना चाहिए, यह सोचना चाहिए| मनस्विद कहते हैं कि जो इन्सान रोज ग़ुस्सा करता है; वह ग़ुस्सा इकठ्ठा नही करता है| उसका ग़ुस्सा निरन्तर बहता रहता है; निकलता रहता है| लेकिन अगर कोई आदमी हो जो ग़ुस्सा तो करता हो, लेकिन उसे दबा कर बैठा हो या उसे उसे दबाना पड़ा हो; तो वह ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा होता है| यह भी वैसी ही बात है| एक जटिल सामाजिक रुग्णता| खैर|

दिन धीरे धीरे बढ़ने लगा| होटल में अच्छी सजावट है; अच्छे फूल खिले हैं| गंगा की गूँज भी अविरत सुनाई देती है| हिमालय के चरणतल पर फैली हुई विश्रान्त धारा! इस माहौल में मन में शान्ति अपनेआप आती है| इस होटल में रूकने से इस नजारे का लुफ्त तो ले सकता हुँ! नाश्ता करने के बाद ऋषीकेश में स्थित डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम गया| ऋषीकेश में इस समय भीड़ तो कम है; लेकिन फिर भी एक शहर का ही अनुभव होता है| अतीत में यह स्थान और शान्त रहा होगा| डिव्हाईन लाईफ सोसायटी आश्रम की स्थापना स्वामी शिवानन्द जी ने की थी| दक्षिण भारत से आए स्वामी शिवानन्द जी पूर्व एशिया के मलाया में डॉक्टर थे और वहीं से वे साधना की खोज में हिमालय आए और फिर इस आश्रम के जरिए उन्होने आगे कार्य किया|

आश्रम में शान्ति और सादगी है| इस तरह का आश्रम मै इतने करीब से पहली बार देख रहा हुँ| देखने लायक स्थान है| स्वामीजी की जीवनि के बारे में जानकारी दी हुई है| उसके साथ प्रार्थना कक्ष, सभागार और ध्यान कक्ष भी है| एक शीतलता फैली हुई है| दोपहर तक उसी आश्रम में बैठ कर ध्यान किया| फिर वहीं कंप्युटर के कक्ष में सिडी पर स्वामीजी की जीवनि की फिल्म देखी|

दोपहर आश्रम के बाहर आ कर गंगा के तट पर टहला| यहाँ कई घाट है| आम लोग, पर्यटक, साधू सब घूम रहे हैं| गंगा नदी अपनी ही लय में अपने पथ पर बह रही है| हिमालय की कुछ छोटी चोटियाँ- द्वारपाल जैसे- सामने दिखाई पड़ रही है| बड़ी देर तक तट पर ही बैठा रहा| फिर थोड़ी देर आश्रम में आया और ध्यान किया| जब जाने का मन हुआ, तो वापस चलते चलते होटल में आया और विश्राम कर लिया| रात आश्रम में प्रवचन होनेवाला है; उसे भी जाऊँगा|

शाम गंगा नदी के साथ बिताई| एक बूँद के साथ गोमुख में प्रविष्ट होनेवाली धारा. . . यहाँ युवावस्था में दिखती है और यही नदी जब गंगासागर पहुँचती है, तो सागर ही होती है| वाकई नदी एक बहती- गतिमान जीवनधारा की सुन्दर प्रतिक है| नदी जीवन का सातत्य दर्शाती है| नदी जीवन का प्रवाह दर्शाती है| हमारी भाषा में नदी जैसा ही एक शब्द है- नाड़ी| नाड़ी शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है| वैसे ही नदी जीवन का प्रवाह होती है| और जब ऐसी शान्त, धीमें से बहनेवाली नदी के पास आते हैं, तो अपने आप वैसा अनुभव भीतर भी होता है|

भोजन पश्चात् फिर आश्रम में गया| ठण्ड बढ़ रही है| पहाड़ में दिए जल उठे हैं| आश्रम में एक कार्यक्रम है| और आम जनता के लिए खुला है| वह देखते देखते ध्यान भी हो जाएगा| स्वामी शिवानन्द को करीब से देखनेवाली एक शिष्या अनुभव कथन कर रही हैं| जब वे छोटी थी, तब स्वामीजी के पास रहने का अवसर उन्हे मिला था| निवेदन सामान्य था फिर भी अच्छा लगा| और आश्रम के वातावरण से तो और भी शान्त लगा| वह कार्यक्रम समाप्त होते होते रात के साढ़े नौ बज गए हैं| ठण्ड बढ़ चुकी है| अब मै होटल तक पैदल ही जाऊंगा| करीब तीन- चार किलोमीटर का रास्ता होगा|

चलते चलते ऊर्जा मिलती गई| शहर में अब सन्नाटा छाने लगा है| होटल के पास रात में गंगा का पानी रोशनी से चमक उठा है| आज का दिन भी अच्छा जा रहा है| वाकई जिन्दगी किसे कब कहाँ ले आती है! कल अब यहाँ से निकलना है| पिथौरागढ़ गए हुए परिवार सदस्य कल दिल्ली पहुँचेंगे| मै भी उन्हे वहीं मिलूँगा| आज हिमालय के पास की यह अन्तिम रात|















आश्रम के ठीक सामने यह हॉस्पिटल
स्वामीजी की संक्षिप्त जीवनि























 



































































6 comments:

  1. का प्रवाह दर्शाती है| हमारी भाषा में नदी जैसा ही एक शब्द है- नाड़ी| नाड़ी शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है| वैसे ही नदी जीवन का प्रवाह होती है| और जब ऐसी शान्त, धीमें से बहनेवाली नदी के पास आते हैं, तो अपने आप वैसा अनुभव भीतर भी होता है|
    ..बहुत अच्छी प्रस्तुति के साथ उपरोक्त आध्यात्मिक के साथ दार्शनिक पुट लाजवाब है ..

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-10-2015) को "तलाश आम आदमी की" (चर्चा अंक-2117) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आँखों देखी सा जीवंत वर्णन । लाजवाब चित्र ....

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  4. बेहद प्रभावशाली लेख और मनमोहक छायांकन......आप ने तो हमें भी यात्रा करा दी.....बहुत बहुत धन्यवाद....

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  5. बहुत ही सुंदर व शब्दों से सजा यह यात्रा लेख, इस पोस्ट मे आपके द्वारा खिंचे गए, फोटो भी मनमोहक है।
    Sachin3304.blogspot.in

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आपने ब्लॉग पढा, इसके लिए बहुत धन्यवाद! अब इसे अपने तक ही सीमित मत रखिए! आपकी टिप्पणि मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है!