Thursday, December 2, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) २: सत्गड परिसर में भ्रमण

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२६ अक्तूबर का दिन! अत्यधिक थकानेवाली यात्रा के बाद अच्छी नीन्द हुई| अलार्म ऑफ करने के बावजूद सुबह जल्दी नीन्द खुली| उजाला होने के पहले ही बाहर आया| अहा हा! सामने एक ही नजर में शब्दश: हजारो वृक्ष और घनी हरियाली! सत्गड से एक ही नजर में करीब तीन हजार देवदार वृक्ष तो दिख ही रहे हैं! अब पता चल रहा है कि हम देर रात कहाँ आए हैं| और महसूस हो रहा है कि हम कितने किस्मतवाले हैं| यहाँ के परिसर और दृश्यों का आनन्द लेते समय बड़ी ठिठुरन हो रही है| ब्रश करना भी जैसे एक टास्क है| टास्क नही, टॉर्चर! सुबह का फ्रेश होना सज़ा जैसे लग रहा है| ठण्ड पानी अत्यधिक ठण्डा जैसे वह जला रहा है| बड़ा दाह लग रहा है| दो दिनों की यात्रा के कारण कम से कम आज नहाना आवश्यक है| थोड़ी देर बाद सूर्य उपर आने पर और तपमान थोड़ा बढ़ने पर नहा लिया| लेकीन नहाने के लिए हुआ उबलता पानी भी सौम्य नही, शीतल लग रहा है! अर्थात् अत्यधिक ठण्डा पानी जला रहा है और उबलता हुआ पानी शीतल लग रहा है!



 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

वैसा ही मज़ा चाय पीने का| यहाँ चाय सिर्फ पीनी नही होती है| वैसे यहाँ चाय बड़ी किमती चीज है| चाय का कप आने के बाद पहले दोनों हाथों से गर्मी सोखनी है| हाथों को थोड़ा जलाना है| अहा हा, क्या मस्त लगता है! उसके बाद चाय का कप चेहरे के पास ला कर उसकी भांप लेनी है| अहा हा! तब जा कर एक एक घूंट लेना है| और दिन में चाय की गिनती बिल्कुल नही करनी है| यहाँ चाय बिना शक्कर का बनाते है| बाहर से गूड़ या मिशरी चाय में डाल कर एक एक घूंट लेना होता है! सुबह धीरे धीरे सभी उठते गए| आज वैसे तो विश्राम ही करना है| एक अर्थ से अक्लमटाईज होना है| सत्गड की ऊँचाई १८५० मीटर है| कम हवा की तकलीफ तो नही होगी, लेकीन अत्यधिक ठण्ड (भोर का तपमान लगभग ५ अंश होगा) और अलग आबो- हवा| और इतनी शुद्ध हवा की आदत हमारे शरीर को कहाँ होती है! साथ ही दो दिनों की थकान और यात्रा में शरीर का बिगड़ा हाल| इसलिए विश्राम तो चाहिए ही|


 

 

 

 

 

 

 

 

सत्गड!






















फिर भी नहाने का टास्क होने के बाद लगा कि घूम के आऊँ| और फिर शुरू हुआ पहला ट्रेक! सत्गड यह ध्वज मन्दीर के नीचे स्थित एक पहाड़ी गाँव है| उतराई पर बसें घर और उनमें से जाती हुई पगडण्डी| यह पगडण्डी कई लोगों के घर- आँगन में से जाती है! यहाँ घर शहर जैसे पक्के हैं| घर में डिश टीवी के एंटेना भी दिखाई देते हैं| मिलने पर नमस्कार करने का रिवाज है| सुबह सभी लोग उठ कर अपने काम में लगे हैं| गाय- भैस, बकरियाँ, मुर्गियाँ, उनकी व्यवस्था| कोई खेत में जा रहे हैं| कोई घास ले जा रहे हैं| यह सब लिखते समय भी लग रहा है कि मत लिखूं! वही सब नजारा सामने उपस्थित होता है! विरह की बड़ी पीड़ा हो रही है! शब्द जैसे लुप्त होते हैं|



 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

सूरज की कृपा होने के बाद और शरीर गर्म होने के बाद पगडण्डी से नीचे उतरने लगा| चार साल पहले यहाँ आया हूँ, इसलिए इस दृश्य से परिचित हूँ| यहाँ से नीचे सड़क तक पहुँचने में दस मिनट लगते हैं| ढलान तेज़ है| उतरते समय ठीक पता चला कि हम देर रात अन्धेरे में कितने उपर तक आए थे| उतरते समय रफ्तार तो तेज़ है, लेकीन नजारे इतने अद्भुत कि, बार बार रूक कर फोटो खींच रहा हूँ| दस मिनटों में सड़क पर पहुँचा| यह राष्ट्रीय ०९ (टनकपूर- पिथौरागढ़- धारचुला) है| अहा हा! एक से एक अद्भुत नजारे! मूड मूड कर जाता हुआ घाट का रास्ता और दूर नीचे खाई में दिखनेवाले गाँव! कुछ देर चलने के बाद पहाड़ से झाँकनेवाले बर्फ शिखर भी दिखाई दिए! रोमांच पर रोमांच! हिमालय! थोड़ी देर चलता रहा! वह माहौल और उस अनुभव को हृदय में समेट लिया और वापस मूड़ा| चलने के कारण शरीर में गर्मी लग रही है| उपर जाते समय हल्की सी साँस फूल गई| फोटो लेता रहा| एक दो बार पगडण्डी में भटक भी गया| उतना ही लोगों से बोलने का मौका मिला| रिश्तेदारों के यहाँ पहुँचते पहुँचते अच्छा पसीना आया है! पसीने से बहुत अच्छा लगा! लेकीन यह खुशी कुछ ही देर रही| आधे घण्टे के भीतर फिर ठण्ड शुरू हुई!



 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बाकी का दिन रिश्तेदारों के साथ और साथ आए मित्रों के साथ बित गया| धूप सेंकते हुए छते से दिखनेवाले हजार वृक्षों का दृश्य देखता रहा| चाय के साथ हिमालय का सत्संग करता रहा| सत्गड पहाड़ों के बीचोबीच है| इसलिए सूर्य उगने के एक घण्टे बाद यहाँ प्रकट होता है और डूबने के एक घण्टा पहले पहाड़ के पीछे छीप जाता है! सूरज के रहते समय लेकीन अच्छा गर्म लगता है| यहाँ आसमान बिल्कुल साफ है, इसलिए सूरज की‌ धूप भी तेज़ लगती है| लेकीन जब सूरज बादलों के पीछे छीप जाता है, तो फिर ठण्ड शुरू होती है! कोई मिल गया के "जादू" को सूरज की जितनी चाह थी, उतनी ही यहाँ सभी को है! दोपहर में नीचे का सामान लाने के लिए फिर एक बार सड़क तक जाकर आया| यह दूरी मुश्कील से पौन किलोमीटर होगी, लेकीन इसमें ६० मीटर की चढाई है जो कि घाट जैसी ही है| यहाँ पर अब ऐसे ट्रेक्स लगातार होते रहेंगे|


दोपहर में बच्चों के साथ क्रिकेट खेला| उतनी ही कम ठण्ड लगी| शाम को अन्धेरा होने के पहले और एक ट्रेक करने का मन हुआ| यहाँ से पगडण्डी से सिर्फ दस मिनट की दूरी पर पहाड़ के उपर एक ग्राउंड जैसी जगह है| सभी मिल कर वहाँ घूमने के लिए गए| आसान सी पगडण्डी का एक सरल ट्रेक! वहाँ से बहुत दूर के पहाड़ नजर आ रहे हैं| बादलों में लिप्त हिमशिखर भी दिखे| इतना जबरदस्त नजारा! ऐसे स्थान पर ध्यान अपने से हो जाता है| हमें सिर्फ एक चीज़ करनी होती है और वह यह कि हमारे मन के रोजमर्रा के यातायात को रोकना होता है| सामने जो है उसके लिए मन और आँखें खुली छोड़ देनी होती है| अगर हमारी अँजुली खाली है, तो वह निश्चित रूप से भर दी जाती है| कुछ देर यहाँ के आनन्द में डूबता रहा| अन्धेरा होने के पहले वापस निकला| उतरते समय बच्चों ने और एक पगडण्डी दिखाई| अद्भुत नजारों वाला यह ट्रेक हुआ| अब ऐसे ट्रेक अलग अलग जगह पर रोज होते रहेंगे| 

































छह बजे ही अन्धेरा हुआ और ठण्ड और बढ़ी| लेकीन नजारे अभी थमे नही हैं! हिमालय के नजारे तो अन्धेरे में सो गए, लेकीन आकाश के अविष्कार शुरू हुए! वाकई, तारों की चकाचौंध! दिन में आँखों के सामने हजार वृक्ष दिखाई दे रहे थे, तो अब रात में कम से कम तीन हजार सितारे दिखाई दे रहे हैं! बायनॅक्युलर से न दिखनेवाले कितने तो भी तारकागुच्छ, तारका समूह और मन्द रोशनी के तारे आसानी से दिख रहे हैं| साथ में मोनोक्युलर भी उसी लिए लाया है| आसमान को देख कर यह याद आ रहा है-

झगमगाती हुई जागती रात है
रात है या सितारों की बारात है

मोनोक्युलर में से तो सितारों का ढेर दिखाई दे रहा है! आसमान में चन्द्रमा न होने से तो सितारें ही सितारें दिखाई दे रहे हैं| इतने सारे सितारे खाली आँखों से हम देख सकते हैं, इसकी हम शहर से कल्पना भी नही कर सकते हैं| महाराष्ट्र की तुलना में उत्तर अक्षांश १२ अंश अधिक होने के कारण सितारों की जगह भी अलग दिखाई‌ दे रही है| यह सब बहुत अद्भुत है, लेकीन सितारों की इस महफील में ठण्ड की बाधा है| ठण्ड तो बाहर ठहरने नही दे रही है| फिर भी कुछ देर तक ठण्ड से दो हाथ करते हुए सितारों को थोड़ा लूट लिया| उसके बाद जल्द भोजन कर साढ़े सांत बजे तो सोने का समय हुआ| यहाँ सभी घर भी अन्धेरा होने के बाद थोड़ी ही देर में सो जाते हैं| सभी लोग बहुत मेहनत करते हैं और रात में ठण्ड भी बढ़ती है| साथ ही यहाँ घना जंगल पास ही है जिससे शेर और अन्य प्राणी भी यहाँ आते हैं... लेकीन क्या अद्भुत दिन रहा!



 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ३: अग्न्या और बुंगाछीना गाँव में ट्रेक

मेरे हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com

1 comment:

  1. वाह!! रहने की शुरुआत ही इतने ट्रेक से हुई है तो आगे भी ये ट्रेक आते रहेंगे। आगे आने संस्मरणों का इंतजार रहेगा।

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