Monday, December 6, 2021

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण)३: अग्न्या और बुंगाछीना गाँव में ट्रेक

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२७ अक्तूबर! रात जल्द सोने से नीन्द जल्द खुली| बड़ी भयंकर ठण्ड है! लेकीन भोर का माहौल और आकाश भी देखनी की बड़ी इच्छा है| इसलिए ठिठुरते हुए बाहर आया| आसमान में तारों के खूबसूरत नजारे हैं| अष्टमी का चन्द्रमा ठीक उपर है, जिससे सितारे कुछ कम दिखाई दे रहे है| कुछ देर तक मेरे छोटे टेलिस्कोप से आकाश दर्शन किया| सुबह भी नही हुई है और घर घर लोग उठे हुए दिखाई दे रहे हैं| सत्गड का आज दूसरा दिन| लेकीन आज यहाँ से दूसरे गाँव में जाना है| वापस यही आएंगे, इसलिए थोड़ा ही सामान ले जाएंगे| सब उठ कर तैयार होने के पहले जैसे तैसे सुबह का टॉर्चर- टास्क निपट दिया और छोटे ट्रेक के लिए निकला|





























 

 

 

 

उतराई की पगडण्डी से सत्गड सुन्दर दिखाई देता है| थोड़ा नीचे आने पर राजमार्ग दिखाई देता है| फटाफट नीचे उतर कर धारचुला की तरफ जानेवाले रोड़ पर घूमने निकला| नजारों का क्या कहना, अहा हा! इस क्षेत्र में यह राजमार्ग काफी अच्छी स्थिति में है| बीच बीच में सेना के ट्रक्स दिखाई देते हैं| घाट होने के कारण निरंतर मूड़नेवाली सड़क! सत्गड गाँव के पास के घर दिखे और कुछ देर बाद बड़ी उतराई आई| वहाँ से सुदूर हिमाच्छादित पर्वतों की माला दिखाई दी! अहा हा! सुबह की सूरज की रोशनी में चमकनेवाली चोटियाँ! अभी विजिबिलिटी बहुत अच्छी है, इससे कम से कम २००- २५० किलोमीटर दूर के शिखर स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं! धूप में चलने से बहुत फ्रेश भी लग रहा है| थोड़ी देर वहाँ रूक कर और फोटो खींच कर वापस आया| सत्गड का छोटा लेकीन सुन्दर ट्रेक किया और उपर आया| फिर एक बार राह भटका भी!








































सभी लोग धीरे धीरे तैयार हो रहे हैं| थोड़ी देर अदू के साथ क्रिकेट खेला|‌ उसे यहाँ रहना बहुत पसन्द आया है| रमणीय पहाड़, पेड़, खुला आँगन, खेत, मिलने के लिए बहुत लोग और बच्चे, साथ में गाय- भैंस, बकरियाँ, मुर्गियाँ, कुत्ते- बिल्ली! वह पहले ही तय कर आई है कि वह हमारे साथ पुणे में नही लौटेगी| दो महिनों तक तो मौसी के पास रहेगी ही! इसलिए वह भी यहाँ बहुत आनन्द ले रही है| अब बैट से अच्छे से गेन्द धकेलती है, कैच भी अच्छा लेती है! उसके साथ नीचे उतरा और सड़क पर आकर रूका| बाद में सभी पहुँच गए| हम जब भी किसी वाहन से निकलते हैं, तो बिना चुके अदू "गणपती बाप्पा मोरया" कहती ही है| कुछ लोग बस से निकले और हम एक परिचित व्यक्ति की कार से पिथौरागढ़ पहुँचे| वहाँ थोड़ी देर मार्केट में रूके| कुछ देर तक शॉपिंग चला| अब तक यहाँ के पहाड़, सड़कें, खाई- पेड़ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनन्द लिया है| अब यहाँ अलग किस्म का सौन्दर्य दिखाई दे रहा है! बिल्कुल चलता- घूमता- बातचीत करता कुदरती सौंदर्य! हाय! लेकीन उस सौंदर्य का फोटो नही ले सकता! उसे तो बस अनुभव कर सकता हूँ और मन में रख ले सकता हूँ!






































आज जाना है बुंगाछीना और अग्न्या गाँव में| यह मेरी पत्नि के पिताजी का होमटाउन है| बुंगाछीना सड़क पर स्थित है और वहाँ से थोड़ा नीचे चलने पर अग्न्या गाँव| पिथौरागढ़ से दूरी सिर्फ २७ किलोमीटर है, लेकीन बस को डेढ घण्टा लगा| बीच रास्ते में कुछ स्थानों पर हाल ही की बरसात के कारण सड़क सिकुड़ी हुई है| कई पहाड चढ- उतर कर खाई से सटा हुआ यह रास्ता जाता है| चारों ओर अद्भुत नजारे! यहाँ हर पल सुन्दर दृश्य चलते ही रहते हैं| बुंगाछीना पहुँचने तक दोपहर हो गई| वहाँ से फिर परिचित लोगों को मिलते हुए अग्न्या गाँव में पहुँचे| यह भी सत्गड जैसा छोटा लेकीन खूबसूरत ट्रेक है| बस यहाँ सड़क से आधा किलोमीटर नीचे उतरना है| आसान सी रमणीय पगडण्डी! यहाँ सभी बहुत दिनों के बाद आ रहे हैं, इसलिए गले मिलना हुआ| भोटू नाम का कुत्ता मेरे भी गले मिला और दोनों पैर रख कर उसने मुझे आशीर्वाद भी दिया! छोटा और उतराई की खेतों के पास बंसा हुआ गाँव| कुछ देर तक बातें होती रही| चाय भी आती रही| यहाँ रहनेवाले प्रदीपजी उनके खेत में हमें ले गए| वहाँ भी ट्रेक! छोटी सी मिट्टी की पगडण्डी| कुछ जगह पर पैर फिसलने का डर लगा, लेकीन अच्छा लगा| एक छोटा झरना और उस पर एक पूल भी है| बहुत ही सुहावना माहौल! मानो सब सपने जैसा लग रहा है| बात करते करते प्रदीपजी बोले कि वे रनिंग करते हैं, आसपास घूमते हैं| फिर सुबह घूमने जाना तय हुआ| बाकी दिन रिश्तेदारों से मिलने में, बातचीत में और गाँव की बातें सुनने में गया| बीच बीच में घर के थोड़ा बाहर निकल कर सर्वश्रेष्ठ वॉलपेपर से भी खूबसूरत और वास्तव होनेवाले दृश्य के सामने चुपचाप बैठा रहा और बस वहाँ होने का अनुभव लेता रहा|






























 

अगले दिन २८ को सुबह प्रदीपजी के साथ निकला| पास ही एक मन्दिर है| वहाँ जाना है| कल जो उतराई थी, अब वह सुन्दर चढाई है| भोर की ठण्ड होने पर भी चढाई पर चलते हुए गर्मी मिलती गई| बुंगाछीना गाँव से ही उस तरफ सड़क निकलती है| जैसे जैसे सड़क उपर उठती गई, पास का परिसर दिखाई देने लगा| कुछ आगे जाने के बाद तो सुदूर पहाड़ों में छीपे बर्फ शिखर भी दिखाई देने लगे! और सुबह की ताज़ी धूप में वे बिल्कुल लाल दिखाई दे रहे हैं! अद्भुत! मन्दिर के पास जाने पर और भी हिमशिखरों की माला दिखी| आस पास के गाँव और सड़कें भी दिखाई देने लगी| कुछ देर तक मन्दिर के पास बैठ कर इन नजारों का लुत्फ लिया| एकदम से प्रदीपजी ने बताया कि देखो, सामने लोमड़ी हैं| दो लोमड़ी थी| बाद में एक लोमड़ी तो हमें ही देख रही है| बहुत देर तक वह सामने रूकी रही| उसका विडियो लिया, लेकीन कैमरा ठीक से ऑन ही नही हो पाया| थोड़ी देर बाद हम जिस सड़क से आए हैं, उस पर भी एक लोमड़ी दिखी| उसका फोटो ले पाया| यहाँ घने पेड़ हैं और लगातार पहाड़ है| इस कारण वन्य पशु यहाँ आते रहते हैं| शेर भी अक्सर दिखाई देता है| उतरने के समय सूरज और उपर आया है और उससे शिखर और स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं!















लोमडी!








 

 

लोमडी!











लौटते समय प्रदीपजी ने और एक रास्ता बताया| पहले बुंगाछीना गाँव के बजार से आगे गए| वहाँ सड़क फिर नीचे उतरने लगी| फिर एक बार शिखरों ने दर्शन दिया! उसके बाद प्रदीपजी ने मुख्य सड़क छोड़ दी और पगडण्डी से अन्दर ले जाने लगे| पहाड़ में ऐसी अनगिनत पैदल जाने की पगडण्डीयाँ हैं| आसान ही है, कहीं‌ पर भी खाई के पास से नही जा रही है और तेज़ चढाई भी नही है| और मिट्टी की राह होने के बावजूद पत्थरों के साथ इसे बनाया गया है| खेतों और पहाड़ से गुजरती इस पगडण्डी का आनन्द लिया| मनचाहे फोटो खींचे| धीरे धीरे यह सड़क से दूर अन्दर आती गई और पहाड़ की तरफ मूड़ी| बीच बीच में छोटे मन्दिर लग रहे हैं! इतनी शुद्ध रूप में प्रकृति और इतनी खुशी वाकई 'असहनीय' है! बातचीत करते हुए चलते रहे| कुछ स्थानों पर ओस गिरी है और कहीं कहीं पानी और किचड़ भी है| ऐसा घूमते घूमते सीधे अग्न्या गाँव में ही लौटे| अच्छा सा साढेपाँच किलोमीटर का ट्रेक हुआ| लेकीन एसी ऑन है, इसलिए बिल्कुल भी थकान नही हुई! बाद में दिनभर बातें हुई| खेतों में घूमना भी हुआ| गाँव में बीच बीच में शेर के आने के कई किस्से भी सुनने को मिले! उसके बारे में अगले भाग में बात करूँगा|


 

 

 

 

 

 

 

































अगला भाग: हिमालय की गोद में... (रोमांचक कुमाऊँ भ्रमंती)४: गूंजी की ओर प्रयाण...


मेरे हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुंदर विवरण...पहाड़ हर दिन अपने नए रूप दिखाता है... आप सर्दियों में आएँ तो ऐसा रूप... मुझे यकीन है कि आप बरसात में आएंगे तो और अच्छा रूप देखने को मिलेगा। अगली कड़ी का जल्द ही पढ़ूँगा।
    मैं भी अक्सर अपने ननिहाल जाता रहता हूँ। उसका बारिश के दिनों में लिखा वृत्तान्त का लिंक नीचे दे रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएगा।

    मोल्ठी #2 :बस्ग्याल तभी मनेलु जब छोया फुट्ला(बरसात तभी मानी जायेगी जब छोया फूटेंगे)

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