Thursday, September 26, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ७: नाको से ताबो

७: नाको से ताबो
 

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१ अगस्त का वह दिन! गलितगात्र स्थिति में नाको पहुँचा| क्या दिन रहा यह! लगभग शाम होते होते अन्धेरे के पहले नाको पहुँच गया! जीवनभर के लिए अविस्मरणीय राईड रही! अविश्वसनीय भी! नाको में एक होटलवाले की जानकारी तो मिली थी, लेकीन थकान की वजह से सड़क पर जो होटल मिला, वही रूक गया| पहुँचते पहुँचते बहुत ठण्ड लगने लगी थी| गर्म पानी मिला तो नहा लिया| फिर धीरे धीरे कुछ राहत मिलती गई| गर्म चाय पी, गर्म खाना भी खाया| चारों ओर अद्भुत नजारे हैं! दोपहर तक मौसम जहाँ अच्छा था, वहीं अब बादल मंडलाए हैं| बहुत जगह पर बर्फ भी दिखाई दे रही है, ये जरूर दूर दूर के पहाड़ होंगे| सामने ही एक टीले पर बहुत ऊँचाई पर बना मन्दीर भी दिखाई दे रहा है| ठण्ड भी बढ़ गई है| दूर खाई में लकीर जैसी स्पीति बहती दिखाई दे रही है| एक दिक्कत यह है कि यहाँ मोबाईल नेटवर्क बिल्कुल न के बराबर है| और इसकी अपेक्षा भी थी| लेकीन मोबाईल नेटवर्क अगर पूरा नही होता, तो भी ठीक होता. बहुत धिमा सा नेटवर्क है, जिससे मॅसेज भेजे जाने की उम्मीद बनी है| लेकीन कुल मिला कर रात को किसी से बात नही हो सकी| सिर्फ दो मैसेज सेंड हो सके|









अगले दिन नाको में ही विश्राम किया| पाँच दिन लगातार साईकिल चलाने के बाद शरीर के साथ मन भी थक गया है| इसलिए और नाको की ऊँचाई देखते हुए भी यह विश्राम आवश्यक है| सुबह भी नाको गोम्पा देखने का मन नही हुआ| सुबह होटल की खिडकी से दो साईकिलिस्ट सड़क से निकलते दिखे| उनकी साईकिले अलग हैं और साथ में सामान नही, जरूर ये कोई और होंगे| बीच बीच में नेटवर्क आने पर मैसेज भेज पाया, मैसेज आ भी पाया| दिन भर विश्राम किया| पास ही होनेवाले गाँव में जाने की इच्छा भी शाम को ही हुई| शाम को जब अच्छी धूप निकली और जब फ्रेश महसूस होने लगा, तब एक नाको गाँव भी देख लिया| यहाँ एक प्राचीन गोम्पा भी है| साथ में छोटा सा तालाब भी है| यहीं पर मुझे वही दो स्पैनिश साईकिलिस्ट मिले| उनका स्वागत किया और उन्हे सलाह दी की, यहाँ पर एक दिन विश्राम करने से लाभ होगा| नाको में एक दिग्गज सामाजिक कार्यकर्ता शांताकुमार नेगी जी का कैंप भी लगता है, यह पता चला| लेकीन सम्पर्क ठीक से न हो पाने के कारण उनमें से किसी से नही मिल पाया| बस दो किलोमीटर साईकिल चलाई, उतने में भी बहुत ठण्ड लगने लगी| शाम को फिर मौसम खराब हो गया, बून्दाबान्दी भी हुई| होटल सड़क पर ही होने के कारण लगातार यात्रि आते- जाते दिखाई दिए| एक बार एक एक्टिवा लगभग बेबस सी नीचे से उपर चढ़ कर आयी| लगभग बन्द होते होते भी वह चलती रही!





नाको की होटल मालकीन से कुछ बातचीत हुई| वे यहाँ की स्थानीय है, लेकीन अन्य होटल कर्मचारी बिहारी है! होटल के पास ही सड़क और अन्य निर्माण कार्य में जुटे मजदूरों की झुग्गियाँ भी हैं| इन मजदूरों के तो परिवार भी यहीं रहते हैं| काम करनेवाली महिलाएँ और बहुत से बच्चे! बेचारों का हाल बेहाल है| होटल मालकीन ने बताया कि यहाँ‌ से अच्छा अस्पताल भी पास नही है| अच्छे अस्पताल के लिए नीचे पोवारी में जाना होता है| स्थानीय लोगों का जीवन भी बहुत संघर्षपूर्ण होता है| कोई सुविधाएँ नही है| ठण्ड में तो ये सब पहाड़ सफेद हो जाते है, सड़क बीच बीच में चालू तो रहती है, लेकीन बाकी जीवन जैसे सो जाता है| वाकई काफी चुनौतिपूर्ण स्थान है यह| एक दिन के विश्राम के बाद आखिर कर फ्रेश लगने लगा और बुखार जैसे जो लग रहा था, वह भी कम हुआ| साथ ही शरीर को ३६०० मीटर जितनी ऊँचाई से तालमेल करने का समय भी मिल गया| अब मै तैयार हूँ ताबो जाने के लिए! ताबो जाने पर औपचारिक रूप से स्पीति क्षेत्र में प्रवेश हो जाएगा|





३ अगस्त की सुबह! अब बिल्कुल तैयार हूँ निकलने के लिए! आज उम्मीद है कि ताबो में नेटवर्क भी मिलेगा! निकलने के बाद पहले चार किलोमीटर तिखी चढ़ाई है| सड़क लगातार उपर उठती जा रही है| बहुत धिमी गति से साईकिल चलाता जा रहा हूँ| बीच बीच में रूकना भी पड़ रहा है| अच्छी धूप निकली है और उससे तुरन्त गर्मी लगने लगी| चार किलोमीटर बाद कुप्रसिद्ध मलिंग नाला आया! वैसे पता तो था कि सुबह के समय इसे पार करना कोई कठीन नही होगा| वैसे तो अब यह उतना पागल रहा भी नही है| जब एक बार यहाँ नाले की उफान ने बस खाई में फेंक दी थी, उसके बाद सड़क भी बह गई| और नई सड़क कुछ उपर से इस नाले को क्रॉस करती है| इससे शायद पहले जितना इसका खतरा नही रहा है| फिर भी यहाँ पर बहुत सी सूचनाएँ दी थी कि ब्रेक जाँच लीजिए, रफ्तार कम कीजिए आदि| यहाँ सड़क लगभग ३८५० मीटर ऊँचाई पर ग्लेशियर के पानी को पार करती है| यह एक बड़ा झरना है| दूर से ही उसकी गर्जना सुनाई दे रही है| इस सड़क पर कुछ कुछ जगह पर मजदूर भी काम कर रहे हैं, लेकीन नाले के पास कोई नही| नाले के उस तरफ कुछ दूर मजदूर दिखाई दिए| यहाँ पैदल जाना ही उचित समझा| नाले का कुछ पानी बीआरओ के पाईप्स मोटर लगा कर नीचे फैंक रहे हैं| चार पाँच मोटे पाईप हैं वे भी! उसके बावजूद नाले में अच्छा पानी है| लेकीन अब उसे फैलाया गया है, उससे सड़क पर पानी की पर्त ज्यादा मोटी नही है| चप्पल पहने हुए होने कारण सीधा उसमें से चलता गया| एक पल के लिए डर लगा, लेकीन दूसरे पल उसके पार हो गया! वाह! आज की मुख्य कसौटी तो पार हो गई!





 
उसके बाद जो महाभयावह उतराई शुरू हुई, वो तो करीब बीस किलोमीटर चांगो तक जारी रही! इतनी बेहतरीन सड़क और लगातार नीचे उतरती ही जा रही है, उतरती ही जा रही है! यहाँ भी मिलिटरी के कई वाहनों को सैल्युट किया| एक सरदारजी की ट्रक पास हुई! उसने तो मुझे सैल्युट किया और हम दोनों हंस पड़े! ऐसी यह सड़क है! अब स्पीति नदी आने तक यह सड़क लगातार उतरती ही रहेगी! और जितना मै नीचे जाऊँगा, उतना मुझे आगे जाने पर चढना है! लेकीन क्या नजारे हैं! एक बहुत ही अन्जान दुनिया में मै पहुँच गया हूँ!





बड़ी देर बाद जा कर कहीं उतराई खतम हुई और तब बहुत गर्मी होने लगी| स्पीति नदी करीब आने से फिर से थोड़ी हरियाली दिखने लगी| अब तलाश है होटल की| लेकीन कुछ होटल लगा नही| फिर साथ में लिए बिस्कीट ही खाए| होटल मिलने की चिन्ता होने लगी| लेकीन जल्द ही चांगो गाँव का मुख्य स्थान आया और वहाँ पर होटल भी मिल गया| यहाँ आलू पराठा खाया, चाय बिस्कीट भी लिया| इसके बाद सुमडो तक सड़क फिर एक बार तिब्बत के बिल्कुल करीब जाएगी| परसो के खाब जैसे ही सुमडो स्थान बिल्कुल सीमा के पास है| सुमडो का अर्थ होता है संगम| जरूर यहाँ पर तिब्बत से आती होई कोई नदी स्पीति को मिलती होगी| यहाँ फिर एक बार मिलिटरी का चेक पोस्ट मिला| उन्हे जय हिन्द कह कर आगे निकला| यहाँ भी एक ब्रिज को सड़क ने पार किया और फिर मूडते हुए जाने लगी| सड़क अच्छी ही बनी है यहाँ| बीच बीच में बीआरओ के सुन्दर वचन भी है- हिन्दी हमारी मातृ भाषा है, एक मात्र भाषा नही! यहाँ के फोटोज के साथ बीआरओ के वचनों का भी सुन्दर कलेक्शन हो सकता है| खैर|




 

सुमडो तक कोई परेशानी नही हुई| एक जगह हिम ऊर्जा का भी केन्द्र लगा| सुमडो में मुझे महाराष्ट्र के एक मेजर से मिलने का मौका था, लेकीन मिलना नही हो पाया| कुछ जवानों को जय हिन्द कह कर आगे बढ़ा! यहाँ से लाहौल और स्पीति जिला शुरू हुआ! वाह! सड़क एक बार फिर मूड़ी और स्पीति के साथ साथ बढ़ने लगी| फिर एक बार तिब्बत के पर्वत करीब से देख पाया| लेकीन यहाँ से सड़क की गुणवत्ता में गिरावट आयी! कुछ देर बाद गियू गाँव से आनेवाला नाला लगा| यहाँ गियू गाँव में एक गोम्पा है जहाँ पुरानी ममी है| कहते हैं कि उस ममी के बाल अब भी बढ़ते हैं| सड़क से आंठ किलोमीटर अन्दर होने के कारण नही गया| ताबो अब भी पच्चीस किलोमीटर दूर है| बीच में छोटे छोटे गाँव लगते रहे| यहाँ पर भी एक बार खाना खाया| दोपहर हुई है, इसलिए राजमा चावल खाया| यहाँ पर भी कुछ फॉरेनर्स कार में से जाते हुए मिले और मज़े की बात है कि होटल में वे तो चपाती खा रहे हैं, लेकीन मै पेट की चिन्ता के कारण चावल ही खा रहा हूँ! फॉरेनर लोगों की वाकई‌ तारीफ होनी चाहिए! यहाँ भी होटल कर्मचारी बिहारी ही हैं|









ताबो के कुछ पहले सड़क फिर एक बार कुछ डरावनी जगहों से गुजरने लगी! लेकीन अब मुझे कोई परेशानी नही‌ है| आराम से बढ़ता रहा| यहाँ कुछ कुछ चढाई तो है, लेकीन इतनी तेज़ नही| ताबो के पहले लारी गाँव लगा| यहाँ बहोत समय के बाद हरियाली दिखी, खेती भी दिखी! इस रुखे हिमालय में हरियाली अब बहुत ही कम दिखाई देने लगी है| याद आता है किन्नौर का शुरुआती हिस्सा- हरा भरा हिमालय जो चार दिन पहले ही पीछे छूटा! अब तो यह तिब्बत की धरती है| और प्राकृतिक रूप से तो इसे विदेश ही कहना चाहिए| कहाँ हम समुन्दर की सतह पर रहनेवाले प्राणि और कहाँ यह यक्ष- किन्नर लोक! कुत्ते, गाय जैसे जानवरों में भी बहुत फर्क हो जाता है! इससे शरीर को भी दिक्कते होने लगी हैं| पेट की थोड़ी समस्या है| देखते हैं कैसे होता है आगे| दोपहर ढलने के पहले ही ताबो पहुँच गया! आज लगभग ६१ किलोमीटर हुए| यहाँ भी एक होटलवाले की जानकारी मिली थी, लेकीन उनका होटल खाली नही है| लेकीन पास में ही एक सस्ता वाला होम स्टे ले लिया| ताबो! वाह! आज स्पीति में पहुँच ही गया! सामने ही पहाड़ी पर ॐ मणि पद्मे हुं लिखा है! शाम को विश्राम करने के बाद ताबो गोम्पा देखने गया| यह बहुत ही प्राचीन गोम्पा है| गोम्पा में तिब्बती लिपी को देख कर अच्छा लगा! क्या दिन रहा यह भी!


बादल आवारा ताबो!









आज की चढाई



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