Thursday, August 15, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति १: प्रस्तावना

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति १: प्रस्तावना
 

सभी को नमस्कार! हाल ही में किन्नौर- स्पीति यात्रा साईकिल पर की| इसके बारे में अब विस्तार से लिखना आरम्भ कर रहा हूँ| हर साईकिल यात्रा काफी कुछ सीखा जाती है, समृद्ध कर जाती है| इस यात्रा में भी बहुत कुछ सीखने को मिला| एक तरह से स्पीति में साईकिल चलाने का सपना भी पूरा हुआ| यह साईकिल यात्रा सिर्फ एक साईकिल यात्रा न हो कर एक सामाजिक उद्देश्य होनेवाली यात्रा थी| स्वास्थ्य, फिटनेस, पर्यावरण इन बातों के बारे में जागरूकता का मैसेज दिया जाना तथा इन्ही विषयों पर विभिन्न लोगों और समूहों से बात करना भी इसका एक अंग था| पुणे की संस्था मंथन फाउंडेशन, रिलीफ फाउंडेशन और अन्य संस्थाएँ तथा सहयोगियों का कई तरह का सहयोग इस सोलो साईकिल यात्रा के लिए मिला| एक तरह से यह एक नई पहल थी| समाज के सहयोग के साथ और सामाजिक उद्देश्य को ले कर यह यात्रा हुई| इसके बारे में अलग अलग सोच हो सकती है| किसी को ऐसा भी लग सकता है साईकिल यात्रा करनी हो तो अपने ही बल पर क्यों नही करते, संस्था का और अन्य व्यक्तियों का सहयोग क्यों लेना चाहिए| यह भी एक राय हो सकती है| मेरे विचार से मैने इस बार थोड़ा नया करने की कोशिश की| एक विचार और एक थीम ले कर कई लोगों के पास गया| पुणे की मंथन फाउंडेशन और रिलीफ फाउंडेशन इन दो संस्थाओं ने इस अभियान और उसके सामाजिक मैसेज में रूचि ली| उनके अपील पर कई और संस्थाएँ और व्यक्तियों ने भी इसमें रुचि ली| इसमें और एक बात भी है| जब मै अकेला साईकिल चलाता हूँ, तो वह मेरे तक या सिर्फ मेरे सोशल मीडीया तक सीमित रहता है| लेकीन जब मै किसी संस्था के साथ, व्यापक समाज के सामने आ कर साईकिल चलाता हूँ, तो वह ज्यादा लोगों तक पहुँचता है| प्रिंट मीडिया से और अधिक अनुपात में सोशल मीडिया में आने से कई लोगों तक यह विचार पहुँचता है| और जहाँ तक यात्रा के खर्च में सहयोग का मुद्दा है, यह सहयोग बहुत आंशिक होता है| इस यात्रा के प्रत्यक्ष यात्रा में होनेवाले अनुमानित खर्च के लिए संस्थाएँ और व्यक्तियों से सहयोग मिला| लेकीन काफी खर्च तो अप्रत्यक्ष होता है- जैसे मैने यात्रा की तैयारी के लिए कई महिनों तक जो राईडस की, जो अभ्यास किए उसका खर्च तो अलग ही होता है| या छुट्टियों की वजह से भी जो एक तरह का आर्थिक नुकसान होगा, वह भी तो होता ही है| खैर|



इस यात्रा की मूल योजना स्पीति- लदाख़ तक जाने की थी और रूपरेखा इस तरह थी-

पुणे स्थित मंथन फाउंडेशन यह स्वयंसेवी संस्था स्वास्थ्य और पर्यावरण पर काम करती है| यह सोलो साईकिल अभियान स्पीति व लदाख़ में होगा जहाँ अत्यधिक दुर्गम मानी जाती है| यहाँ चलना भी कठिन होता है| ऐसे दुर्गम क्षेत्र में यह सोलो साईकिल अभियान किया जानेवाला था| इस अभियान के उद्देश्य इस प्रकार थे-

१. साईकिल यह स्वास्थ्य और फिटनेस का संदेश देनेवाला माध्यम है|

२. साईकिल चलाना पर्यावरण- अनुकूल जीवनशैलि की ओर ले जानेवाला एक कदम है| पर्यावरण के प्रति आदर और पर्यावरण संवर्धन का संदेश उसमें दिया जाता है|

३. स्पीति और लदाख़ भारत के दुर्गम क्षेत्र हैं और वहाँ का लोकजीवन वैविध्यपूर्ण है| यहाँ साईकिल चलाते समय स्थानीय लोगों के साथ संवाद किया जा सकता है|

४. यहाँ साईकिल चलाना एक तरह से राष्ट्रीय एकात्मता और विविधता में एकता भी दर्शाता है|

5. ये हिस्से सीमा से सटे होने के कारण यहाँ साईकिल चलाते समय आर्मी के जवानों से भी मिलना होता है और उनसे अनौपचारिक संवाद भी किया जा सकता है| ये कितने विपरित स्थिति में काम करते हैं, यह जाना जा सकता है| उनसे मिलना भी उन्हे किया जानेवाला एक तरह का सैल्यूट ही है|

पुणे की रिलीफ फाउंडेशन, महा- एनजीओ फेडरेशन महाराष्ट्र, माहिती सेवा समिती, हरित सेना, महाराष्ट्र इन संस्थाओं का सहयोग इस अभियान को मिला| उसके अलावा कई व्यक्तियों ने भी इस अभियान में सहभाग ले कर अपना सहयोग दिया| एक साईकिलिस्ट के तौर पर यह बहुत बड़ी बात थी| एक साईकिल यात्रा के लिए लोगों का इतका समर्थन मिल पाना और उनका विश्वास जताना बहुत बड़ी बात होती है|


इस यात्रा के लिए कई महिनों से तैयारी करता रहा| एक तो जैसे मैरेथॉन दौड़ पाया था, तो काफी हद तक फिटनेस बढ़ गया था| उसी क्रम को जारी रखा| यात्रा के कुछ महिने पहले पुणे के आस पास के कुछ घाट या चढाई होनेवाले रूटस पर लगातार अभ्यास करता रहा| स्पीति- लदाख़ के रूटस का थोड़ा अध्ययन किया| पीछली बार २०१५ में जो यात्रा की थी, उसको बेसलाईन मान कर आगे की तैयारी की| साईकिल ले जाने के लिए इस बार एक बड़ा थैला बनवा लिया| अर्थात् साईकिल कैरी केस| मार्केट में ऐसा केस तो महंगा मिलता है, लेकीन मेरे परभणी के एक दिग्गज साईकिल रेसर- खुदुस भाई ये खुद बनाते हैं| कई जगहों पर रेस के लिए जाने के लिए वे इसी साईकिल केस में से साईकिल ले जाते हैं| ऐसी साईकिल केस ट्रेन में बर्थ के नीचे आराम से बैठ जाती है| मार्केट से बहुत कम रेट में उन्होने ये मेरे लिए बनवा दी|साईकिल किस प्रकार फोल्ड करते हैं, कैसे उसे खोलते हैं यह भी सीखा दिया| एक बार ट्रेन में इसका ट्रायल भी लिया| उसमें रखी हुई साईकिल कन्धे पर ले जाने का भी अभ्यास किया| शुरू में तो कन्धा जल जाता था| लेकीन धीरे धीरे अभ्यास हुआ| यह एक अलग ही व्यायाम भी हुआ| फोल्ड की हुई साईकिल, कैरी केस और साईकिल के टूल किट का कुल वजन १५ किलो से अधिक होता था| इसे उठा कर ले जाने में बड़ी दिक्कत होती थी| लेकीन वजन के साथ चलने का व्यायाम भी हुआ| ऐसे एक- दो किलोमीटर के कई वॉक भी व्यायाम के लिए भी किए| इसी दौरान मेरी साढ़ेचार साल की बेटी को उठा कर ५-६ किलोमीटर भी चलता रहा| उससे भी एक तरह के वेट ट्रेनिंग जैसा व्यायाम हुआ|



२८ जुलाई को निकलने के पहले कुछ छोटे कार्यक्रम हुए| पुणे में मंथन संस्था के दफ्तर में एक तरह का सेंड ऑफ हुआ| बाद में परभणी में परभणी के साईकिलिस्टस और मंथन संस्था का एक कार्यक्रम हुआ जिसमें यह पूरा अभियान, उसका उद्देश्य, स्वरूप, स्पीति में सोलो साईकिलिंग की चुनौतियाँ आदि पर बात हुई| इस पूरे अभियान में कई तरह से परभणी के साईकिलिस्टस का बड़ा सहयोग मिलता रहा| उस लिहाज से तो कोई भी सोलो साईकिल यात्रा सोलो नही होती है| कई तरह से उसमें बहुत से लोगों का सहभाग होता ही है| परभणी में हुए कार्यक्रम में परभणी के साईकिलिस्टस- रनर्स आदि ने भी अपने अलग- अलग अनुभव शेअर किए| कार्यक्रम के पहले लोगों को अनुरोध किया गया था कि वे कार्यक्रम के लिए साईकिल पर या पैदल आने की कोशिश कीजिए| क्यों कि अक्सर यह होता है कि हम दूसरों की उपलब्धियों के मैसेजेस अक्सर फॉरवर्ड करते हैं, लेकीन खुद एक कदम भी चलाने से बच जाते हैं| खैर|


परभणी से २५ जुलाई को निकला| निकलते समय मन में कई विचार हैं| प्लैन तो बहुत अच्छा महिने भर का बनाया है| छुट्टियों का भी जुगाड़ किया है| लेकीन क्या इस प्लैन के मुताबिक साईकिल चला सकूँगा? अनिश्चितताएँ बड़ी हैं| एक तो शुरू के कुछ दिन और मध्य के कुछ दिनों में भारी बारीश की सम्भावना होगी| लैंड स्लाईड, बादल फटना, सड़के बन्द होना आम बात है| कुदरत का भी सहयोग चाहिए, रास्तों को ले कर लक भी अच्छा होना चाहिए, साईकिल का साथ भी होना चाहिए! उसके साथ तबियत भी ठीक रहनी चहिए| इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मै अगर ६०% भी योजना पूरी कर सकूँगा, तो सन्तोषजनक रहेगा, ऐसा लग रहा है| साथ ही ऐसा भी मेरा मानना है कि यह वास्तविक एक्स्पीडीशन परीक्षा के परिणाम जैसी है| वास्तविक परीक्षा तो पूरे साल की तैयारी ही थी| खैर! देखते हैं अब कैसे और कितना हो पाता है| ट्रेन में यात्रा करते समय थोड़ा डर जरूर है, लेकीन उससे ज्यादा उत्कण्ठा है कि कहाँ तक यह सपना सच हो सकेगा, कहाँ तक चला पाऊँगा...


 

अगला भाग: साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति २: शिमला से नार्कण्डा 

1 comment:

  1. नई श्रृंखला की शुरुआत हुई है।पढ़ना रोचक रहेगा। आगे की कड़ियों का इन्तजार है।

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