३: नार्कण्डा से रामपूर बुशहर
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२९ जुलाई! इस यात्रा का दूसरा दिन| आज नार्कण्डा से रामपूर बुशहर की तरफ जाना है| कल नार्कण्डा में अच्छा विश्राम हुआ| रात बारीश भी हुई| २७०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर रात में कोई दिक्कत नही हुई| और वैसे आज का दिन एक तरह का आसान चरण भी है, क्यों कि आज बिल्कुल चढाई नही है, वरन् बड़ी उतराई है| सुबह चाय- बिस्कीट और केले का नाश्ता कर रेस्ट हाऊस से निकला| नार्कण्डा में कई घर और दुकानों पर 'ॐ मणि पद्मे हुं' मन्त्र लगे हुए हैं! सुबह के लगभग आठ बजने के बाद भी बाहर बहुत कोहरा- धुन्द है| बारीश तो रूक गई है, लेकीन रोशनी बहुत कम है| नीचे बादल दिखाई दे रहे हैं| नार्कण्डा से आगे बढ़ते ही उतराई शुरू होती है| जैसे ही उतराई शुरू हुई, सड़क बादलों के बीच घिर गई| जैसे सड़क नीचे उतरने लगी तो बिल्कुल बादलों का समन्दर शुरू हुआ| विजिबिलिटी बिल्कुल ही कम है| मुश्किल से दस कदमों तक दिखाई दे रहा है| साईकिल पर टॉर्च लगाया| सभी वाहन रोशनी और इमर्जन्सी लाईट लगा कर ही चल रहे हैं! इस तरह की कम रोशनी बड़ी कठिन होती है| अगर पूरी रात हो, तो भी एक तरह से आसानी होती है| धीरे धीरे कुछ बून्दाबान्दी हुई और ठण्ड भी बढ़ गई| तब चेहरे पर मास्क लगा कर आगे बढ़ने लगा| पेडल मारने की जरूरत तो बिल्कुल नही है| यही उतराई अब सीधा शतद्रू अर्थात् सतलुज के करीब आने तक जारी रहेगी!
जैसे जैसे सड़क नीचे उतरने लगी, कुछ डर होने लगा| एक तो अन्धेरा और घने बादल! उसके साथ तीखी उतराई! थोड़ी उतराई ठीक होती है, लेकीन बहुत तेज़ उतराई हो, तो साईकिल चलाना कठिन तो होता है, जोखीमभरा भी हो जाता है| इसलिए बीच बीच में रूकता रहा| दोनों ब्रेक्स का बारी बारी से प्रयोग करता रहा| स्पीड को नियंत्रण में रखा|
शुरू का एक घण्टा बेहद अनुठा रहा| जैसे रात में साईकिल चलाई| धीरे धीरे कोहरा हटता गया और सवा घण्टे में सोलह किलोमीटर नीचे उतरा| धीरे धीरे बादल हट गए हैं और अब नीचे रोशनी भी दिखाई दे रही है| दूर पहाडों के बीच पीली रोशनी में नहाए गाँव और घर भी दिखाई दे रहे हैं! एक जगह सेब का पेड़ भी दिखा! मौसम थोड़ा खुल गया| सड़क के पास एक होटल मिला| घर के छत पर यह होटल है! सड़क के पास में एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ खाई ही है! साईकिल सुरक्षित जगह पर रख कर नाश्ता किया| नाश्ता करते समय ठीक सामने नीचे उतरनेवाली सड़क दिखाई दे रही है| वहीं से कल जो दो साईकिलिस्ट मिले थे, वे जाते दिखे! जरूर कल उन्होने भी नार्कण्डा में ही हॉल्ट किया होगा|
सेब का पेड़
आगे बढ़ने पर उतराई जारी रही| एक बार एक विदेशी साईकिलिस्ट का ब्लॉग पढ़ा था, उसने इसी उतराई को विपरित दिशा से पार किया था- अर्थात् उसने रामपूर से नार्कण्डा चढाई पार की थी! यहाँ सड़क ३६ किलोमीटर में १९०० मीटर चढती/ उतरती है! मुझे उतराई है, इसलिए दिक्कत नही हुई| हालांकी बाद में जा कर मुझे फिर से अगले चरण की चढाई चढनी होगी| सड़क पर एक जगह पर पट्ट मिला- सतलुज नदी के प्रथम दर्शन! पहाडों में से गुजरती हुई नागीन जैसी यह नदी! और यह सड़क सतलुज तक नीचे जाएगी और फिर उसके साथ ही आगे बढ़ेगी! जैसे सतलुज करीब आने लगी, वैसे वैसे गर्मी बढ़ने लगी| अब सूरज ने भी दर्शन देना शुरू किया| फिर भी उतराई की हवा लग रही थी, इसलिए मास्क रहने दिया| कई झरने, छोटे छोटे पूल से आगे जाने के बाद दहाड़ती हुई सतलुज नदी से सामना हुआ! क्या तेज़ बहाव है, क्या गर्जना है!! क्या फोर्स है! यहीं से एक सड़क मण्डी और कुल्लु की तरफ भी जाती है|
समतल सड़क आने के बाद राहत की साँस ली| अब उतराई का डर नही है! अब यहाँ से रामपूर तक करीब करीब समतल सड़क ही है| लेकीन जल्द ही दिक्कत होने लगी| एक तो २७०० मीटर ऊँचाई से सीधा ८०० मीटर ऊँचाई पर आना बड़ी बात है| क्यों कि दोनों स्थानों का पर्यावरण अलग होता है| अब सेब या देवदार वृक्ष नही है, बल्की सामान्य- मैदानों में पाए जानेवाले वृक्ष है| प्रकृति के दृष्टिकोण से १९०० मीटर का फर्क बड़ा होता है| शरीर को इससे तालमेल बिठाने के लिए भी थोड़ा समय लगेगा| उसके साथ बहुत ज्यादा गर्मी भी होने लगी है| होगी ही| और पास ही बहती नदी के कारण भी ह्युमिडिटी बहुत ज्यादा है| इससे थकान भी होने लगी| कुछ देर बाद एक होटल मिला| यहाँ पर आलू- पराठा खाया| रामपूर अब सिर्फ २८ किलोमीटर दूर है| इसे वैसे आसान मान कर चल रहा था| लेकीन गर्मी और ह्युमिडिटी के कारण साईकिल चलाना कठिन रहा| उसके साथ बीच बीच में कुछ चढाई भी है| पहाड़ी सड़क समतल होती ही नही है| थोड़ी ही सही, लेकीन चढ़ती या उतरती ही है| इसी दौरान वे दोनों साईकिलिस्ट फिर एक बार क्रॉस हुए| शतद्रू का साथ जारी रहा! बड़ी चट्टानों के बीच कून्दती उफनती धारा!
शतद्रू!
अपेक्षाकृत आगे की यात्रा जल्द नही हो सकी| और बाद में तो गर्मी के कारण पसीना पसीना छूट गया| रामपूर बुशहर पहुँचने तक तो पसीने से नहाना हुआ| दोपहर के दो बजे रामपूर बुशहर पहुँचा| यहाँ ASHI अर्थात् Association for Self Help Institute in India संस्था से सम्पर्क हुआ था| उनके द्वारा HIRD अर्थात् Him Institute of Rural Development से भी सम्पर्क हुआ था| रामपूर में इन्ही संस्थाओं के सदस्यों ने स्वागत किया और मेरे ठहरने का इन्तजाम भी किया| पारंपारिक हिमाचली तरीके से माला पहना कर स्वागत किया गया! यहाँ विनोद शर्मा जी और विरेन्द्र शर्मा जी मिले, अच्छी बातचीत हुई| यहाँ ASHI स्वास्थ्य पर विशेष रूप से काम करती है| और HIRD ग्राम विकास पर काम करती है| विश्राम करने के बाद इन्ही के दफ्तर के पास छोटा सा कार्यक्रम हुआ| बुशहरी टोपी पहना के मेरा सम्मान किया गया! मुझे मेरे अभियान के बारे में बताने का अवसर मिला| खण्ड विकास अधिकारी भी उस समय मौजुद थे| संक्षेप में मैने मेरी बात रखी, मेरे साईकिलिंग के बारे में, साईकिल चलाने की प्रक्रिया में होनेवाले मैसेज के बारे में बताया| मन्थन फाउंडेशन किस प्रकार काम करती है, यह भी बताया| संस्था के सदस्यों से भी थोड़ी बात हुई| यहाँ महिलाएँ अपने को अधिक सुरक्षित मानती है, ऐसा सुनने में आया| मेरे रूट पर आगे भी संस्थाओं से सम्पर्क करने की कोशिश कर रहा हूँ| इसके बारे में भी लोगों से पूछा|
आज नार्कण्डा से रामपूर बुशहर तक कुल मिला कर ६५ किलोमीटर साईकिल चलाई| छह घण्टों से कम समय लगा| बाद में बहुत गर्मी हुई| मेरे रहने की व्यवस्था रेस्ट हाऊस में हुई है| यहाँ सतलुज बहुत पास है| बीच में बहुत पेड़ हैं, खाई है इसलिए दिखाई नही देती है, लेकीन उसकी गर्जना हर पल उसकी मौजुदगी बताती है! रामपूर बुशहर! बहुत पढ़ा था, सुना था इस गाँव के बारे में| लेकीन पता नही क्यों मुझे यह गाँव बड़ा ही अटपटा सा लगा| ऐसा लगा मानो यह हिमालय में है ही नही और शायद मैदान में किसी शहर में होती है वैसी गर्म जगह है! हिमालय की प्रकृति में यह एक अजीबोगरीब बिन्दु है! शिमला और नार्कण्डा तक जैसे ऊँचाई २७०० मीटर तक पहुंच गई थी, अब वह ८२१ मीटर तक कम हुई है| हालांकी चारो ओर बेहद रमणीय पहाड़ जरूर है| शाम को कुछ समय तक गर्मी लगती रही, मौसम में इतने बदलाव के कारण बुखार जैसा भी कुछ देर तक लगा| उसके बाद अच्छा विश्राम किया| अब कलसे किन्नौर जिला शुरू होगा और अब लगातार सड़क की ऊँचाई बढ़ती जाएगी...
आज का रूट मैप
बड़ी उतराई और कुछ कुछ चढाई
अगला भाग: साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ४: रामपूर बुशहर से टापरी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-08-2019) को "गीत बन जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3441) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रोचक। अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा।
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