Wednesday, September 4, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ४: रामपूर बुशहर से टापरी

४: रामपूर बुशहर से टापरी
 

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२९ जुलाई की शाम रामपूर बुशहर में बिताई| दो दिन शिमला और नार्कण्डा में ठहरने के बाद यहाँ बहुत गर्मी हो रही है| शाम को कुछ समय के लिए लगा कि बुखार तो नही आया है| उस दिन ठिक से विश्राम नही हो पाया| रात बारीश भी हुई| ३० जुलाई की सुबह नीन्द खुली तो नकारात्मक विचार मन में हैं| शायद ठीक से विश्राम नही हो पाया है और शरीर जब ताज़ा नही होता, तो मन भी ताज़ा नही हो सकता है| दो दिनों की ठण्डक के मुकाबले यह गर्मी कुछ भारी पड़ रही है| बुखार जैसी स्थिति में क्या मै आगे चला पाऊँगा? बारीश के भी आसार लग रहे हैं| कुल मिला कर जब भी ऐसी साईकिल यात्रा की है, पहले दिन मन में जो तनाव होता है; जो शंकाएँ होती हैं, वो सब आज तिसरे दिन मन में हैं| कुछ समय के लिए लगा भी कि शायद आज टापरी जा भी नही पाऊँगा और उसके पहले ही झाकड़ी में ही हॉल्ट करना पड़ेगा| धीरे धीरे हिम्मत बाँधी| सामान भी साईकिल पर बान्धा| पहले दो दिन मै स्पेअर टायर को सीट के नीचे रख रहा था| पेडल चलाते समय वह पैर को चुभ रहा था| अभी उसको सामने हैंडल पर एडजस्ट कर दिया| ऐसे ही बाकी शंकाओं को भी थोड़ा एडजस्ट कर दिया| गेस्ट हाऊस में पराठा खा कर निकलने के लिए तैयार हुआ| जैसे ही निकला, सतलुज की गर्जना फिर तेज़ हुई| हल्की हल्की बून्दाबान्दी भी हो रही है| मन का एक हिस्सा तो बारीश भी चाहता है| क्यों कि अगर बारीश नही होती है, तो यहाँ की गर्मी में साईकिल चलाना कठीन ही होगा| उससे अच्छा है कि कुछ बारीश आ जाए|







पेडलिंग शुरू‌ करने तक मन की शंकाएँ जारी रही| लेकीन जब धीरे धीरे पेडलिंग शुरू की, कुछ किलोमीटर गए तब शंकाएँ भी विदा हो गई| लेकीन तब झमाझम बरसात शुरू हुई| आसपास के पहाड़ों पर भी बारीश का मौसम है| इसलिए रूकने से लाभ नही होगा| और कितनी देर रूकना पड़े यह कह नही सकते हैं| इसलिए साईकिल चलाता रहा| रामपूर के बाद जेवरी, झाकड़ी आदि गाँव भी पीछे छूट गए| और लगभग एक घण्टे के बाद बारीश रूक गई| लेकीन अब कोई दिक्कत नही है| चारों ओर नजारे ही नजारे हैं| अन्दरुनी हिमालय का वैभव! बीच बीच में पहाडों से नीचे बहनेवाले झरने! एक तरह से यह हरियाली अच्छे से पी ले रहा हूँ, क्यों कि अब जल्द ही धीरे धीरे हरा रंग कम होता जाएगा| हरा हिमालय पीछे छूटता जाएगा| और अब सड़क भी और रोमांचक हो रही है| रामपूर से कुछ आगे आने पर सड़क संकरी हो गई है|‌ बीच बीच में सड़क टूट फूट भी गई है| अब वाकई दुर्गम सड़क की यात्रा शुरू हो रही है!





सड़क हल्की चढ़ाई के साथ उपर उठ रही है| लगभग दो घण्टे साईकिल चलाने के बाद जब पास में देवदार वृक्ष दिखे, तब अच्छा लगा| क्यों कि इसका मतलब है मै लगभग १४००- १५०० मीटर की ऊँचाई पर आ गया हूँ और आज के दिन में इससे बहुत ज्यादा चढाई नही मिलेगी| बारीश के बाद इस ऊँचाई पर आने पर मौसम भी‌ ठण्डा हो गया है, अब गर्मी के प्रकोप से राहत मिली| और एक से एक बेहतर नजारे खुल रहे हैं| बादल अब भी मण्डरा रहे हैं, लेकीन एक जगह बादलों के बीच से बर्फाच्छादित शिखर का दीदार हुआ! वाह! सतलुज से सट कर जानेवाली यह सड़क कितनी अनुठी है| हिमालय को बिल्कुल अन्दर से कांटनेवाली सतलुज की धार पर बनी यह एक सुरंग ही है| अब प्रतीक्षा है किन्नौर के उस प्राकृतिक द्वार की- जहाँ पर प्राकृतिक टनेल के भीतर से सड़क जाती है! सड़क पर अब बार बार 'डरावने' मोड़ आने लग गए हैं! कई बार सड़क नदी के ठीक उपर से जा रही है, कई बार कच्ची सड़क लग रही है....

  



जल्द ही किन्नौर की वो प्राकृतिक टनेल आ ही गई! और ऐसी कई टनेल मिली| उनका कुछ भी डर नही लगा| जहाँ बिल्कुल खाई के पास से सड़क जाती है और वह भी गिली मिट्टी के कारण फिसलनवाली सड़क है, वहीं पर कुछ कुछ डर लगता है| लेकीन सड़क पर लगनेवाला डर यह धीरे धीरे कम होता गया और जल्द ही ऐसी सड़क की भी आदत सी हो गई, आँखें और मन उनके लिए अभ्यस्त होता गया| देवभूमि किन्नौर! किन्नौर कैलाश का सान्निध्य! आखिर कर किन्नौर जिले में प्रवेश हो गया| और यहाँ से सड़क का नियंत्रण बीआरओ के हाथ में दिखाई देने लगा| बीआरओ ने सड़क पर हर जगह चेतावनी देनेवाले बोर्डस लगाए हैं| साथ ही बहुत ही अर्थपूर्ण सुविचार भी लगाए हैं!  अब सफर का रोमांच और भी बढ़ गया है| एक जगह फिर एक बार स्पैनिश साईकिलिस्टस क्रॉस हो गए| एक चढाई पर वे धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे| फिर एक बार हाय- हैलो कहा और मै आगे बढ़ गया|





  

बीच बीच में ब्रेक ले कर बढ़ता रहा| यहाँ आलू- पराठा और चाय- बिस्कीट लगभग हर जगह पर मिलता है| इसलिए फ्युएल की इतनी परेशानी नही हुई| बाद में तो मौसम सुहावना होने के कारण थकान भी उतनी नही हुई| सतलुज नदी के किनारे बसे एक एक गाँव पार होते गए| और जैसे टापरी करीब आने लगा, सड़क पर कुछ कुछ डरावने मोड़ आने लगे| कई बार सड़क सतलुज के बहुत पास से जा रही है| सतलुज तो सामने से बहती आ रही है, इसलिए उससे बहनेवाली हवा भी साईकिल को थोड़ा रोक रही है| कुछ कुछ जगह पर सतलुज इतने नीचे बह रही है कि कुछ देर तक उसकी गर्जना सुनाई भी नही देती है| लेकीन जब सड़क उसके ठीक उपर से जाती है, तो यकायक उसकी गर्जना सुनाई देती है| ऐसे खाई से डर भी बहुत लग रहा है| जगह जगह सड़क का काम चल रहा है| कई डायवर्जन्स लग रहे हैं|






कई बार सड़क मूडती है और दो पहाडों के बीच उफनते एक झरने को क्रॉस कर आगे जाती है| यह दृश्य तो एक टेंपलेट जैसा बार बार आता रहा! टापरी के कुछ पहले सड़क ने सतलुज क्रॉस की| मुझे इसका अन्दाजा नही था| जब इस तरफ का पहाड़ सड़क के लिए अनुकूल नही रहा, तो सड़क उस पार गई| यहाँ से टापरी के कुछ पहले तक बहुत अच्छी सड़क मिली| अच्छी उतराई भी मिली और उसका पूरा लाभ लिया! न जाने इसके बाद अच्छी सड़क कब मिले, ना मिले! बीच में एक जगह पर शूटिंग स्टोन्स का खतरे का भी बोर्ड लगा| आगे एक जगह पर छोटे पत्थर गिर भी रहे थे! ऐसी सड़क पर अनगिनत अद्भुत नजारों की मैफिल का आनन्द लेते हुए दोपहर टापरी में‌ पहुँच गया| यहाँ भी गेस्ट हाऊस का पता किया था|‌ गेस्ट हाऊस नदी के करीब ही है| पहुँचने पर देखा कि यहाँ सरकारी अनाउंसमेंट चल रही है कि डैम से पानी नदी में छोडा जा रहा है, इसलिए नदी के पास कोई न जाए| शाम को विश्राम किया और टापरी के मेन रोड पर जा कर राजमा चावल का भोजन किया| आज तीसरा दिन सबसे रोचक रहा, अब वास्तविक दुर्गम यात्रा शुरू हुई है| आज लगभग ६९ किलोमीटर पूरे हुए और सात घण्टे साईकिल चलाई| चढाई तो थी, लेकीन इतनी तिखी नही लगी| आज शुरुआत तो बहुत कठीन लगी थी, मन बिल्कुल राजी नही‌ था| लेकीन टापरी में विश्राम करते हुए बहुत फ्रेश लग रहा है| एक तरह से शरीर और मन अब इस यात्रा के फ्लो में आ गए हैं|


आज का रूट मैप| बादलों में जीपीएस काम न करने के कारण स्ट्राव्हा app भी काम नही कर पाया था|


चढाई तो थी, लेकीन इतनी नही जितनी यहाँ दिखाई दे रही है| चढाई स्टेडी थी|

अगला भाग: साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ५: टापरी से स्पिलो

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2019) को    "हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम"   (चर्चा अंक- 3450)    पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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