Monday, September 9, 2019

साईकिल पर जुले किन्नौर- स्पीति ५: टापरी से स्पिलो

५: टापरी से स्पिलो

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३१ जुलाई! टापरी में सतलुज की गर्जना के बीच नीन्द खुली| कल की साईकिल यात्रा क्या रही थी! और सड़क कितनी अनुठी थी! आज भी यही क्रम जारी रहेगा| अब मन बहुत प्रसन्न एवम् स्वस्थ है| एक दिन में बहुत फर्क लग रहा है| कल डर लग रहा था कि कहाँ आ फंसा हूँ| तब समझाना पड़ा था कि अरे तू तो कुछ दिनों के लिए ही यहाँ होगा, यहाँ के स्थानीय लोग और मिलिटरी के लोग तो कैसे रहते होंगे, सड़क की अनिश्चितताओं को कैसे सहते होंगे| कल ऐसा खुद को कहते कहते ही साईकिल चलाई थी| लेकीन आज तो अब खुद को खुशकिस्मत मान रहा हूँ कि इन सड़कों पर साईकिल चलाने का मौका मिल रहा है| एक तरह से जीवन की आपाधापी, तरह तरह के उलझाव, पहले शिक्षा और बाद में करिअर के दबाव इन सबमें जो जवानी जीना भूल गया था, उसे जीने का यह मौका लग रहा है! आज जाना है स्पिलो को जो लगभग अठावन किलोमीटर दूर होगा| आज भी सड़क बहुत मज़ेदार होगी!








सुबह टापरी के होटल में चाय- बिस्कीट ले कर चल पड़ा| आज मुझे किन्नौर जिले के मुख्यालय- रिकाँग पिओ जानेवाला मोड़- पोवारी गाँव लगेगा| यहाँ से अधिकांश पर्यटक वापस जाते हैं| यहाँ से आगे रास्ते पर अधिकतर तो घूमक्कड, ट्रेकर आदि लोग ही होते हैं| सतलुज की धारा के साथ आगे बढ़ने लगा| इसी रोड़ पर कल ब्लास्टिंग हुई थी| यहाँ सड़कें बहुत अस्थिर होती है; बरसाती मौसम में तो अक्सर पहाड़ दरकता है; मलबा सड़क पर आता है| इससे सड़क निर्माण का काम निरंतर चलता है| और इसी के लिए बीच बीच में बीआरओ को ब्लास्टिंग करनी पड़ती है; सड़क को बार बार बनाना पड़ता है, चौडा करना पड़ता है या पत्थर हटा कर साफ करना पड़ता है| बरसात के मौसम में तो सड़कों की कोई गारंटी नही होती है| टापरी तक का भी मेरी सड़क एक दिन पहले ही कुछ घण्टों के लिए बन्द हो कर खुली थी| इन सब कारणों से इस यात्रा में एक बहुत अधिक मात्रा में अनिश्चितता बनी हुई है और इससे तालमेल करना कठिन जा रहा है| बरसात का डर भी लग रहा है| शुरू में हल्की बून्दाबान्दी हो भी रही है| लेकीन यह बरसात बहुत ही प्यारी है| बून्दे ऐसी बरस रही है जैसे कोई उपर से इत्र छिडक रहा हो! वाह! सतलुज की गूँज का एक विडियो का एक विडियो यहाँ पर देख सकते हैं|





धीरे धीरे सड़क बहुत नाज़ुक बन रही है| अब बार बार मिट्टी की सड़क है| बार बार डायवर्जन्स आ रहे हैं| प्राकृतिक टनेल तो जारी हैं ही| एक ट्रक को ऐसे ही एक टनेल में से जाते हुए देखा| टनेल इतना नीचे आया है कि ट्रक को पत्थरों से बच कर लगभग आधी सड़क से गुजरना पड़ रहा है| सभी तरह के वाहनों के लिए यह सड़क दुर्गम ही है| टापरी के कुछ ही आगे सतलुज पर बने डैम के पास से सड़क गुजरी| यहाँ जल विद्युत परियोजना भी है| कल इसी डैम में से पानी छोडने को ले कर चेतावनी दी जा रही थी| हिमालय के बीचोबीच पहाड़- खाई में बसा यह डैम बहुत ही दुभर स्थान पर है| आगे बढ़ने पर सड़क और मटमैली हो रही है| और साथ ही सड़क से सटे पहाड़ भी अब बिखरे हुए नजर आ रहे हैं| कई जगह पर शूटींग स्टोन्स की चेतावनियाँ हैं| और जैसे आप फोटोज में देख सकते हैं, धीरे धीरे हरियाली कम हो रही है और एक तरह की ग्रे शेड पूरे कॅनवास पर छा रही है| धीरे धीरे हिमालय पीछे छूटता जा रहा है और ट्रान्स- हिमालयन रिजन- हिमालय के पार की धरती- तिब्बती प्लेटू पास आ रहा है| और यहाँ हवाएँ भी बहुत तेज़ चल रही है| इसी कारण इन पहाडों का वायु- क्षरण हुआ है| और कुछ कुछ जगहों पर यह हवाएँ मुझे डरा रही है, मेरी साईकिल को धकेल भी रही है!! कितनी अद्भुत है यह यात्रा! और इसमें सड़क पर हर पल साथ देनेवाली बीआरओ! बीआरओ को कितनी बार नमन करूँ! BRO is the real big bro here! 







पोवारी के पास नाश्ता किया| यहाँ एक अजीब दृश्य देखा| सतलुज नदी की एक धारा एक सुरंग में से निकल कर मुख्य धारा को मिल रही है| जरूर यह एक प्राकृतिक सुरंग होगी, जहाँ पर अब मानवीय टनेल बना दी गई है| तीन दिनों से सतलुज को देखता हुआ आ रहा हूँ, क्या फोर्स है, क्या ऊर्जा है! और सतलुज को मिलनेवाले अनगिनत जलप्रपात! पोवारी बहुत छोटा सा कस्बा है| जैसे जैसे तिब्बत बॉर्डर पास आ रही है, वैसे मिलिटरी के युनिटस बढ़ने लग गए हैं| जहाँ भी कहने का मौका है, वहाँ वहाँ जवानों को 'जय हिन्द' कह रहा हूँ| वे भी मुस्कुरा कर जवाब देते हैं| पोवारी से रिकांग पिओ की तरफ सड़क जाती है| इसके बाद यह सड़क और विरान होती जाएगी, और सुनसान होती जाएगी| रामपूर बुशहर के बाद निरन्तर वाहनों की संख्या कम हो रही है| और आज पोवारी के आगे तो वाहन बहुत कम हुए हैं| बीच बीच में एकाध बस, एक्का- दुक्का ट्रक, कुछ टूरिस्ट वाहन मिलते हैं| और आखिर कर वह पट्ट आ ही गया जिस पर लिखा था- आप विश्व के सबसे दुर्गम रस्ते से गुजर रहे हैं! Most trecherous road of the world! वाह!







जब सड़क खाई के पास से जाती है; जहाँ खुला पहाड़ सामने आता है, वहाँ पर बहुत ही तेज हवा बह रही है| और सतलुज विपरित दिशा में बहती हुई जा रही है, इसलिए यह हवा भी मेरे लिए विपरित ही है| बहुत तेज़ हेड विंड! एक जगह पर पीछे मूड कर फोटो लिया, तब देखा की मेरे पीछे अब हिमाच्छादित शिखर है! जैसे हिमालय पार होता हुआ जा रहा है, वैसे ऐसे कई हिमाच्छादित शिखर भी पीछे छूट रहे हैं| वाकई कितने अद्भुत जगह से मै गुजर रहा हूँ! अगर बादल ना होते, तो और भी रोमँटीक नजारे दिखाई देते! और अब बादल कम भी हो रहे हैं| आज तो कुछ बून्दाबान्दी छोड कर बारीश लगी ही नही| बादल पूरे तो नही हटे हैं, लेकीन बीच बीच में नीला आसमाँ दिखाई दे रहा है! वाह! धीरे धीरे स्पिलो पास आ रहा है| और अब वह जगह आएगी जहाँ पर कल ब्लास्टिंग की थी|







यहाँ पर अब भी बीआरओ के मजदूर और अधिकारी काम कर रहे हैं| सड़क अब भी बहुत संकरी है| उसी में से‌ ट्रक- बस जा रहे हैं! ऐसी ही एक पैच पर जाने लगा| ब्लास्टिंग के बाद अब भी सड़क पर बहुत मलबा है; पत्थर है; उसी में पानी और किचड़ भी है| एक जगह पर साईकिल का सामने का टायर उस पर फिसला! लेकीन तुरन्त हैंडल सीधा किया और तेज़ पेडल चला कर साईकिल असन्तुलित होने से बचाया| कई जगह पर ऐसे कच्चे पैच के कारण साईकिल पर बंधा सामान लूज हो रहा है| और बिल्कुल दिक्कतवाली जगह पर रूक कर उसे ठीक करना पड़ रहा है! वरना ब्लास्टिंग का यह पैच ऐसा है जहाँ रूकने का मन नही कर रहा है| कुछ कुछ जगह पर सड़क के नाम पर तो सिर्फ मिट्टी और पत्थर है| यहाँ जो फोटो खींचे हैं, वे बहुत कम जगह पर खींचे हैं| क्यों कि ऐसे पैच में कई बार तो ठीक से रूकने के लिए भी जगह नही है|  सड़क का एक पट्ट बहुत ही सही लगा- जननी जन्म देती है एक बार, सुरक्षा जन्म देती है बार बार! इस पैच में कई जगह पर बीआरओ के मैकेनिक और मजदूर हैं| उनमें महिलाएँ और बच्चे भी हैं| उनको देख कर अन्दर तक डर लगा| वे लोग कैसे यहाँ रहते होंगे? सड़क के नाम पर खाई के बीच पत्थर और मिट्टी| उपर पहाड़ और नीचे नदी| यहीं पे उनके टेंट लगते हैं| कैसे वे रहते होंगे... ????









पहाड़ में जहाँ जहाँ जगह है, वहाँ थोड़ी थोड़ी बस्ती है| छोटे छोटे गाँव भी है| एक ऐसे ही गाँव में नाश्ता किया| अब सभी घरों पर- दुकानों पर और सड़क के सभी ब्रिज आदि पर 'ॐ मणि पद्मे हुं' के प्रार्थना फ्लैग्ज लगे हैं! तिब्बत बहुत पास आ रहा है| लोगों के चेहरे भी अब कुछ कुछ तिब्बती- लदाख़ी जैसे हो गए हैं (ऐसे चेहरे, जिन्हे हम गलती से चायनीज मानते हैं)| एक होटल की मालकीन का नाम बड़ा अजीब था- संगीता लामा! यहाँ से वाकई हिन्दु पन्थ का प्रभाव और तिब्बत के बौद्ध धम्म का प्रभाव एक दूसरे में मिलते हुए नजर आ रहे हैं| जैसे स्पीति नदी सतलुज में खो कर उससे एकरूप हो जाती है, वैसे ही यहाँ तिब्बत के बौद्ध प्रभाव को हिन्दु प्रभाव से एकरूप होता देखा जा सकता है| चूँकि मै सतलुज की ओर से स्पीति की तरफ जा रहा हूँ, मेरे लिए यह इसके विपरित होगा| धीरे धीरे हिन्दु प्रभाव- हिन्दु परिभाषा- हिन्दु प्रतिक तिब्बती बौद्ध प्रतिकों में मिलते जाएंगे! अब शिव मन्दीर भी कम ही नजर आ रहे हैं| जो कुछ है, वो तो मिलिटरी- बीआरओ आदि ने बनाए लगते हैं| और धीरे धीरे इन मन्दिरों का ढंग भी गोन्पा जैसा ही बदल रहा है! वाह! एक जगह सड़क पर एक वृद्ध महिला जा रही थी| उसने मुझे देखा, शायद मेरे साईकिल पर लगे मन्त्र फ्लैग को भी देखा और एक पल के लिए उसे अचरज हुआ और उसने हाथ से नमस्कार किया! मैने भी नमस्कार किया| जरूर यहाँ के स्थानीय लोग भी इतने ही अनुठे होंगे जितनी यहाँ की प्रकृति है|






अपूर्व नजारों का आनन्द लेते लेते स्पिलो पहुँच गया| आज लगभग १६०० मीटर से चल कर २५०० मीटर की ऊँचाई पर पहुँच गया| सड़क धीरे धीरे चढ़ रही थी, इसलिए कहीं पर कोई दिक्कत नही हुई| स्पिलो में पहुँचने पर आसमां काफी हद तक साफ है| अब आसमाँ अधिक निला हो रहा है| यहाँ एक होटलवाले के पास होम स्टे ले लिया| होटल चलानेवालों से काफी बातचीत हुई! होटल के बाहर एक प्रेअर व्हील भी है| इसका मतलब अब तिब्बत- स्पीति और कहें तो लदाख़ भी शुरू हुआ है| उसी शृंखला की पहली कड़ी शुरू हुई है! आज सतलुज कुछ दूर और नीचे बह रही है, इसलिए कानों को थोड़ी राहत मिली| मलाल सिर्फ एक ही है कि यहाँ पर सामाजिक संवाद उतने पैमाने पर मै नही कर पा रहा हूँ| होटल के आसपास कुछ लोगों से मिला, मेरे अभियान के बारे में बताया| लेकीन उससे अधिक कोई ठोस चर्चा या कार्यक्रम नही हो पाया| हालांकी स्वास्थ्य और पर्यावरण के बारे में मैने कई चीजें देखी हैं और इन पर अनौपचारिक तरीके से बात भी कर रहा हूँ| देखते हैं आगे कुछ कार्यक्रम हो पाता है क्या| लेकीन जहाँ तक साईकिल चलाने की और घूमने की बात है, मेरे नसीब का क्या कहूं! 




आज का रूट और चढाई


 

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2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-09-2019) को    "मजहब की बुनियाद"  (चर्चा अंक- 3455)    पर भी होगी।--
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. Niranjan , its nice that you spare time to wonder enjoying life . reading is also very interesting

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