भाग ४: मलकापूर- आंबा घाट- लांजा- राजापूर (९४ किमी)
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९ सितम्बर की सुबह| कल रात अच्छा विश्राम होने से बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज रविवार है, इसलिए थोड़ी देरी से निकलना है| लेकीन सुबह नीन्द जल्द खुल गई, इसलिए लॉज के बाहर आकर थोड़ा मॉर्निंग वॉक लिया| बाहर सब शान्ति शान्ति है, चाय का होटल तक खुला नही है| फिर आराम से सात बजे बाहर निकला| अब होटल खुला मिला| नाश्ता करते समय मेरी साईकिल देख कर कई बस ड्रायवर और कंडक्टर मुझसे मिलने लगे! यहाँ पास ही तो बस स्टैंड है| कुछ देर तक उनसे बात की और लगभग पौने आठ बजे मलकापूर से निकला| विगत चार दिनों से क्या यात्रा रही है! और आज का पड़ाव बहुत अहम होगा| आज लगभग ९२ किलोमीटर ही जाना है, लेकीन यह भी सफर चढने- उतरनेवाले रास्तों के बीच होगा| इसी रोड़ पर लगभग आठ साल पहले एक बार आया हूं, इसलिए कुछ तो याद है| इतिहास में प्रसिद्ध विशालगढ़ के पास से यह सड़क गुजरती हैं| मलकापूर से आगे आते ही नजारों की झड़ी जैसे शुरू हुई!
बारीश का मौसम बिल्कुल नही है और अच्छी धूप खिली हुई है| लेकीन इस कारण सड़क पर छाँव के बीच चलते समय दिखाई देने में कठिनाई हो रही है| कल जो विंड मिल्स दिखी थी, वे आज भी साथ चल रही हैं| जल्द ही आंबा गाँव लगा| यहाँ से एक सड़क विशालगढ़ की तरफ जाती हैं! वाह! धीरे धीरे चारों ओर दिखनेवाले पहाड़ सिर्फ सामने दिखाई देने लगे और धीरे धीरे वे भी हट गए! अब आएगा पन्द्रह किलोमीटर का बड़ा आंबा घाट! लेकीन वह मुझे उतरना है| हालांकी इस तरह के घाट को उतरते समय भी बहुत सावधानी की जरूरत होती है| और वह भी उतना ही चुनौतिपूर्ण होता है| धीरे धीरे सड़क नीचे जाने लगी और दूर कोंकण का तल दिखने लगा! घाट उतरते समय धिमी रफ्तार से उतरनेवाले ट्रक्स और ट्रेलर्स ने थोड़ा परेशान जरूर किया| बीच में एक जगह पर बन्दरों की टोली भी मिली! लेकीन क्या नजारे हैं! इतने विशाल पहाड़ों में ऐसी सड़क का होना भी आश्चर्य से कम नही है| बीच बीच में रूकते रूकते और फोटो खींचते हुए उतरता रहा| बीच में एक- दो जगह पर बड़े बादल आने से कुछ अन्धेरा हुआ, तब यही घाट कुछ डरावना भी लगा! लेकीन जल्द ही आंबा घाट पार किया और हापूस आम के जगत् में प्रवेश हुआ- रत्नागिरी जिला! और एक तरह से मन्जर भी अब बदल रहा है| यहाँ अब साखरपा गाँव में मै मेरे एक साईकिल मित्र से- महेश गवळे से मिलूँगा| साईकिल के नेटवर्क में होने के कारण इनसे सम्पर्क हुआ| इन्होने मुझे यहाँ की सड़कों के बारे में बहुत गाईड भी किया है| उनके साथ साखरपा में नाश्ता किया, यहाँ तक ३५ किलोमीटर हो गए, इसलिए एक बार स्वयं को रिचार्ज किया| अच्छी बातें हुईं| महेशजी भी साईकिल चलाते हैं| आगे वे भी दस किलोमीटर तक मेरे साथ साईकिल चलाने के लिए आएंगे| साखरपा से निकलते ही अब कोंकण साफ महसूस हो रहा है| लगातार चढ़ती- उतरती सड़क, लाल मिट्टी, छोटे छोटे कोंकणी घर और सुन्दर नजारे! जिला रत्नागिरी! कुछ देर साथ चल कर राजापूर की तरफ जाने का सही रास्ता बता कर महेशजी लौट गए| छोटी लेकीन बहुत यादगार मुलाकात रही यह|
अब अगला पड़ाव लांजा गाँव है जो मुंबई- गोवा हायवे पर पड़ता है| लेकीन उसके पहले सड़क बड़े ही विराने से जा रही है| और मौसम भी लगातार बदलता जा रहा है| पहले तो अधिकतर आसमां साफ था, अचानक जैसे बादलों का आक्रमण हुआ और धीरे धीरे सामने बड़े बादल और बारीश भी दिखाई देने लगी| और आई भी बड़ी तेज़ी से! इस यात्रा की योजना बनाते समय मेरे देवगड़ के रिश्तेदारों ने कहा भी था कि बरसात में कोंकण में साईकिल पर मत आओ, ऐसी तुफानी बरसात होती है कि कुछ भी नही सुझेगा| एक तरह से उसका डर मन में था| एकदम से झमाझम बारीश शुरू हुई| लेकीन साईकिल रोकी नही और आगे जाता रहा| बारीश का भी खूब मज़ा लिया| और थोड़ी ही देर में फिर बारीश हट सी गई और सिर्फ बून्दाबान्दी रह गई| बाद में वो भी बन्द हुई और फोटो खींचने का मौका मिला| बारीश तो रूक गई, लेकीन नजारे लगातार बरस रहे हैं| ऐसे अनुठे नजारे हैं कि अपने आप मन में गाना शुरू होता है- होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है, साईकिल चलाईए, फिर समझिए जिन्दगी क्या चीज़ हैं! या फिर 'नजारे अपनी मस्तियाँ दिखा दिखा के सो गए, सितारें अपनी रोशनी लूटा लूटा के सो गए, खिज़ा का रंग आ चला है मोसम ए बहार में...
धीरे धीरे लांजा पास आता गया| लेकीन सड़क इस विराने से जा रही है, की बीच बीच में पूछना पड़ा| लांजा गाँव में पहुँच कर अच्छा लगा| अब यहाँ से राजापूर तक सीधा हायवे हैं| कल दोपहर तबियत जब ठीक नही थी और बीच में रूकने का मन हो रहा था, तब "दूर बनाई थी मन्जिल पर रस्ते में ही शाम हुई" गाना याद आ रहा था| और अब मुंबई- गोवा हायवे पर पहुँच गया हूँ तो यह गाना याद आ रहा है- "हम हैं नए, अन्दाज़ क्यों हो पुराना!” साईकिल चलाते समय बीच बीच में विचार रोकने के लिए और मन को व्यस्त रखने के लिए मन ही मन गाने सुनता हूँ| कभी कभी तो कोई गाना पकड़ सा लेता है| अब वैसे बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ, रोमांचित हूँ, फिर भी "दूर बनाई थी मन्जिल पर रस्ते में ही शाम हुई" गाना अपने आप बज रहा है, उस गाने की बांसुरी मन में बार बार गूँज रही है| इसलिए हंसी भी आ रही है|
मुंबई- गोवा हायवे
लांजा गाँव में बस स्टैंड के आगे एक छोटे से चाय के ठेले पर रूका| यहाँ गरम वड़ा भी मिलेगा| यह ठेला चलानेवाला आदमी बहुत अनुठा मिला| उसने पहले मेरा संक्षिप्त इंटरव्ह्यू लिया| उसे बहुत खुशी हुई| एक तो पूरे कोंकण में जल्द ही गणेश उत्सव शुरू होनेवाला है, अभी से उसका माहौल बन रहा है| इसी के बीच मेरा आना हुआ| बाद में उसने कहा कि वो मुझसे पैसे नही लेगा, क्यों कि मै एक तरह का यात्री हूँ और जब भी कोई भी ऐसे यात्री (जो श्रद्धालु कैटेगरी में आते हैं- पैदल चलते हैं या छात्र आते हैं) आते हैं, तो वो उनसे पैसे नही लेता है| और यह वह बहुत सच्चे मन से कह रहा था| मैने पैसे तो दिए, लेकीन उसने मुझे अपने पैसों का वडा खिलाया और चाय भी दी| अब तक प्राकृतिक कोंकण से मिल रहा था, अब सादे- सरल इन्सानों के कोंकण से भी मिलना शुरू हुआ! आज की यात्रा की यह दूसरी मुलाकात रही! लांजा से आगे फिर बरसात आई| पहली बार मुंबई- गोवा हायवे पर साईकिल चला रहा हूँ| बीच बीच में यह हायवे ऐसे पहाडों के पास से गुजरता है, चढाई- उतराई के साथ छोटे घाट भी बीच में आते हैं, इसलिए बाद में मै तो जैसे भूल गया कि यह हायवे भी है| गज़ब के नजारे जारी रहे!
राजापूर की अर्जुना नदी
लगातार चढ़ती और उतरती सड़क! साफ तौर पर हिमालय की याद आ रही है| हिमालय और कोंकण में कई असमानताएँ हैं, लेकीन कुछ समानता भी लग रही है| हिमालय में हम जैसे कई पर्वत- पहाड़ चढते उतरते हैं, वैसे ही यहाँ चार कदम भी चलने हो तो उसमें भी चढाई- उतराई है| और जैसे हम सब पहाड़ पार कर हिमालय से उतरते हैं, तो हमें उत्तर भारतीय मैदान लगता है, वैसे ही यहाँ भी जब सब चढाई- उतराई खत्म हो जाती है, तो समुद्र का प्रतल मिलता है! आज मैने राजापूर तक ही जाने का जो निर्णय लिया, वह बिल्कुल सही है| क्यों कि राजापूर पहुँचते पहुँचते ही दोपहर के तीन बजे हैं| और यहाँ से देवगड़ सिर्फ ५१ किलोमीटर दूर जरूर है, लेकीन यहाँ भी सड़क उछलती- कून्दती होगी| इसलिए इस ५१ किलोमीटर के लिए अधिक समय लगेगा| वैसे तो जहाँ अच्छा हायवे होता है, वहाँ चढाई और उतराई अपने आप बैलन्स हो जाते हैं (जैसे पुणे- सातारा के बीच हुआ), लेकीन यहाँ सड़क लगातार मूडती भी है और किसी भी उतराई या चढाई पर भरोसा नही कर सकते हैं| उतराई देख कर हायर गेअर में साईकिल चलाना शुरू किया तो तुरन्त सामने चढाई आ जाती है| या उतराई में कई बार सड़क पर पत्थर या गड़्ढे होने से भी उतराई कैश नही की जा सकती है| इसलिए आज भी ९४ किलोमीटर के लिए लगभग कल जितना याने साढ़े छह घण्टे का समय लगा| कल इससे थोड़े अधिक समय में ११४ किलोमीटर हुए थे| आज सिर्फ ९४ हुए, क्यों कि चढाई बहुत ज्यादा है| आंबा घाट की १५ किलोमीटर की उतराई जरूर थी (वहाँ भी धिमी रफ्तार से ही आना पड़ा), लेकीन बाद में लगातार चढाई- उतराई जारी रही और राजापूर पहुँचने तक १४५३ मीटर हाईट गेन रहा|
आज का लेखाजोखा
लाल मिट्टी!
आज ९४ किलोमीटर साईकिल चलाई हैं, लेकीन समतल इलाकों में किए गए १२५ किलोमीटर से भी ये मुश्कील हैं| इसलिए मानो तीन दिन में मेरा तिसरा शतक ही हुआ है| वाह! मेरे देवगड़ के रिश्तेदारों के एक मित्र राजापूर में रहते हैं, उनके घर पर ही रूका| राजापूर वैसे तो तहसील का गाँव है, लेकीन पूरा पहाड़ पर- चढाई पर बंसा गांव| ऐसे छोटे गाँव के कोंकणी घर में रहने का दुर्लभ अवसर मिला है| आज ज्यादा थकान तो नही हुई, लेकीन समय अधिक लग गया| एक तरह से विश्वास नही हो रहा है कि मै देवगड़ के इतने करीब पहुँचा हूँ! यहाँ से सिर्फ ५१ किलोमीटर दूर देवगड! यकीन ही नही हो रहा है| मानसिक तौर पर तो अभी ही पहुँच गया हूँ| क्यों कि इतने किलोमीटर साईकिल चलाने के बाद बचे ५१ किलोमीटर कुछ भी कठीन नही है| वाकई गज़ब का दिन रहा है यह, या गज़ब की यात्रा रही है यह|
अगला भाग: साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ५: राजापूर- देवगड़ (५२ किमी)
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९ सितम्बर की सुबह| कल रात अच्छा विश्राम होने से बहुत ताज़ा महसूस कर रहा हूँ| आज रविवार है, इसलिए थोड़ी देरी से निकलना है| लेकीन सुबह नीन्द जल्द खुल गई, इसलिए लॉज के बाहर आकर थोड़ा मॉर्निंग वॉक लिया| बाहर सब शान्ति शान्ति है, चाय का होटल तक खुला नही है| फिर आराम से सात बजे बाहर निकला| अब होटल खुला मिला| नाश्ता करते समय मेरी साईकिल देख कर कई बस ड्रायवर और कंडक्टर मुझसे मिलने लगे! यहाँ पास ही तो बस स्टैंड है| कुछ देर तक उनसे बात की और लगभग पौने आठ बजे मलकापूर से निकला| विगत चार दिनों से क्या यात्रा रही है! और आज का पड़ाव बहुत अहम होगा| आज लगभग ९२ किलोमीटर ही जाना है, लेकीन यह भी सफर चढने- उतरनेवाले रास्तों के बीच होगा| इसी रोड़ पर लगभग आठ साल पहले एक बार आया हूं, इसलिए कुछ तो याद है| इतिहास में प्रसिद्ध विशालगढ़ के पास से यह सड़क गुजरती हैं| मलकापूर से आगे आते ही नजारों की झड़ी जैसे शुरू हुई!
बारीश का मौसम बिल्कुल नही है और अच्छी धूप खिली हुई है| लेकीन इस कारण सड़क पर छाँव के बीच चलते समय दिखाई देने में कठिनाई हो रही है| कल जो विंड मिल्स दिखी थी, वे आज भी साथ चल रही हैं| जल्द ही आंबा गाँव लगा| यहाँ से एक सड़क विशालगढ़ की तरफ जाती हैं! वाह! धीरे धीरे चारों ओर दिखनेवाले पहाड़ सिर्फ सामने दिखाई देने लगे और धीरे धीरे वे भी हट गए! अब आएगा पन्द्रह किलोमीटर का बड़ा आंबा घाट! लेकीन वह मुझे उतरना है| हालांकी इस तरह के घाट को उतरते समय भी बहुत सावधानी की जरूरत होती है| और वह भी उतना ही चुनौतिपूर्ण होता है| धीरे धीरे सड़क नीचे जाने लगी और दूर कोंकण का तल दिखने लगा! घाट उतरते समय धिमी रफ्तार से उतरनेवाले ट्रक्स और ट्रेलर्स ने थोड़ा परेशान जरूर किया| बीच में एक जगह पर बन्दरों की टोली भी मिली! लेकीन क्या नजारे हैं! इतने विशाल पहाड़ों में ऐसी सड़क का होना भी आश्चर्य से कम नही है| बीच बीच में रूकते रूकते और फोटो खींचते हुए उतरता रहा| बीच में एक- दो जगह पर बड़े बादल आने से कुछ अन्धेरा हुआ, तब यही घाट कुछ डरावना भी लगा! लेकीन जल्द ही आंबा घाट पार किया और हापूस आम के जगत् में प्रवेश हुआ- रत्नागिरी जिला! और एक तरह से मन्जर भी अब बदल रहा है| यहाँ अब साखरपा गाँव में मै मेरे एक साईकिल मित्र से- महेश गवळे से मिलूँगा| साईकिल के नेटवर्क में होने के कारण इनसे सम्पर्क हुआ| इन्होने मुझे यहाँ की सड़कों के बारे में बहुत गाईड भी किया है| उनके साथ साखरपा में नाश्ता किया, यहाँ तक ३५ किलोमीटर हो गए, इसलिए एक बार स्वयं को रिचार्ज किया| अच्छी बातें हुईं| महेशजी भी साईकिल चलाते हैं| आगे वे भी दस किलोमीटर तक मेरे साथ साईकिल चलाने के लिए आएंगे| साखरपा से निकलते ही अब कोंकण साफ महसूस हो रहा है| लगातार चढ़ती- उतरती सड़क, लाल मिट्टी, छोटे छोटे कोंकणी घर और सुन्दर नजारे! जिला रत्नागिरी! कुछ देर साथ चल कर राजापूर की तरफ जाने का सही रास्ता बता कर महेशजी लौट गए| छोटी लेकीन बहुत यादगार मुलाकात रही यह|
अब अगला पड़ाव लांजा गाँव है जो मुंबई- गोवा हायवे पर पड़ता है| लेकीन उसके पहले सड़क बड़े ही विराने से जा रही है| और मौसम भी लगातार बदलता जा रहा है| पहले तो अधिकतर आसमां साफ था, अचानक जैसे बादलों का आक्रमण हुआ और धीरे धीरे सामने बड़े बादल और बारीश भी दिखाई देने लगी| और आई भी बड़ी तेज़ी से! इस यात्रा की योजना बनाते समय मेरे देवगड़ के रिश्तेदारों ने कहा भी था कि बरसात में कोंकण में साईकिल पर मत आओ, ऐसी तुफानी बरसात होती है कि कुछ भी नही सुझेगा| एक तरह से उसका डर मन में था| एकदम से झमाझम बारीश शुरू हुई| लेकीन साईकिल रोकी नही और आगे जाता रहा| बारीश का भी खूब मज़ा लिया| और थोड़ी ही देर में फिर बारीश हट सी गई और सिर्फ बून्दाबान्दी रह गई| बाद में वो भी बन्द हुई और फोटो खींचने का मौका मिला| बारीश तो रूक गई, लेकीन नजारे लगातार बरस रहे हैं| ऐसे अनुठे नजारे हैं कि अपने आप मन में गाना शुरू होता है- होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है, साईकिल चलाईए, फिर समझिए जिन्दगी क्या चीज़ हैं! या फिर 'नजारे अपनी मस्तियाँ दिखा दिखा के सो गए, सितारें अपनी रोशनी लूटा लूटा के सो गए, खिज़ा का रंग आ चला है मोसम ए बहार में...
धीरे धीरे लांजा पास आता गया| लेकीन सड़क इस विराने से जा रही है, की बीच बीच में पूछना पड़ा| लांजा गाँव में पहुँच कर अच्छा लगा| अब यहाँ से राजापूर तक सीधा हायवे हैं| कल दोपहर तबियत जब ठीक नही थी और बीच में रूकने का मन हो रहा था, तब "दूर बनाई थी मन्जिल पर रस्ते में ही शाम हुई" गाना याद आ रहा था| और अब मुंबई- गोवा हायवे पर पहुँच गया हूँ तो यह गाना याद आ रहा है- "हम हैं नए, अन्दाज़ क्यों हो पुराना!” साईकिल चलाते समय बीच बीच में विचार रोकने के लिए और मन को व्यस्त रखने के लिए मन ही मन गाने सुनता हूँ| कभी कभी तो कोई गाना पकड़ सा लेता है| अब वैसे बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ, रोमांचित हूँ, फिर भी "दूर बनाई थी मन्जिल पर रस्ते में ही शाम हुई" गाना अपने आप बज रहा है, उस गाने की बांसुरी मन में बार बार गूँज रही है| इसलिए हंसी भी आ रही है|
मुंबई- गोवा हायवे
लांजा गाँव में बस स्टैंड के आगे एक छोटे से चाय के ठेले पर रूका| यहाँ गरम वड़ा भी मिलेगा| यह ठेला चलानेवाला आदमी बहुत अनुठा मिला| उसने पहले मेरा संक्षिप्त इंटरव्ह्यू लिया| उसे बहुत खुशी हुई| एक तो पूरे कोंकण में जल्द ही गणेश उत्सव शुरू होनेवाला है, अभी से उसका माहौल बन रहा है| इसी के बीच मेरा आना हुआ| बाद में उसने कहा कि वो मुझसे पैसे नही लेगा, क्यों कि मै एक तरह का यात्री हूँ और जब भी कोई भी ऐसे यात्री (जो श्रद्धालु कैटेगरी में आते हैं- पैदल चलते हैं या छात्र आते हैं) आते हैं, तो वो उनसे पैसे नही लेता है| और यह वह बहुत सच्चे मन से कह रहा था| मैने पैसे तो दिए, लेकीन उसने मुझे अपने पैसों का वडा खिलाया और चाय भी दी| अब तक प्राकृतिक कोंकण से मिल रहा था, अब सादे- सरल इन्सानों के कोंकण से भी मिलना शुरू हुआ! आज की यात्रा की यह दूसरी मुलाकात रही! लांजा से आगे फिर बरसात आई| पहली बार मुंबई- गोवा हायवे पर साईकिल चला रहा हूँ| बीच बीच में यह हायवे ऐसे पहाडों के पास से गुजरता है, चढाई- उतराई के साथ छोटे घाट भी बीच में आते हैं, इसलिए बाद में मै तो जैसे भूल गया कि यह हायवे भी है| गज़ब के नजारे जारी रहे!
राजापूर की अर्जुना नदी
लगातार चढ़ती और उतरती सड़क! साफ तौर पर हिमालय की याद आ रही है| हिमालय और कोंकण में कई असमानताएँ हैं, लेकीन कुछ समानता भी लग रही है| हिमालय में हम जैसे कई पर्वत- पहाड़ चढते उतरते हैं, वैसे ही यहाँ चार कदम भी चलने हो तो उसमें भी चढाई- उतराई है| और जैसे हम सब पहाड़ पार कर हिमालय से उतरते हैं, तो हमें उत्तर भारतीय मैदान लगता है, वैसे ही यहाँ भी जब सब चढाई- उतराई खत्म हो जाती है, तो समुद्र का प्रतल मिलता है! आज मैने राजापूर तक ही जाने का जो निर्णय लिया, वह बिल्कुल सही है| क्यों कि राजापूर पहुँचते पहुँचते ही दोपहर के तीन बजे हैं| और यहाँ से देवगड़ सिर्फ ५१ किलोमीटर दूर जरूर है, लेकीन यहाँ भी सड़क उछलती- कून्दती होगी| इसलिए इस ५१ किलोमीटर के लिए अधिक समय लगेगा| वैसे तो जहाँ अच्छा हायवे होता है, वहाँ चढाई और उतराई अपने आप बैलन्स हो जाते हैं (जैसे पुणे- सातारा के बीच हुआ), लेकीन यहाँ सड़क लगातार मूडती भी है और किसी भी उतराई या चढाई पर भरोसा नही कर सकते हैं| उतराई देख कर हायर गेअर में साईकिल चलाना शुरू किया तो तुरन्त सामने चढाई आ जाती है| या उतराई में कई बार सड़क पर पत्थर या गड़्ढे होने से भी उतराई कैश नही की जा सकती है| इसलिए आज भी ९४ किलोमीटर के लिए लगभग कल जितना याने साढ़े छह घण्टे का समय लगा| कल इससे थोड़े अधिक समय में ११४ किलोमीटर हुए थे| आज सिर्फ ९४ हुए, क्यों कि चढाई बहुत ज्यादा है| आंबा घाट की १५ किलोमीटर की उतराई जरूर थी (वहाँ भी धिमी रफ्तार से ही आना पड़ा), लेकीन बाद में लगातार चढाई- उतराई जारी रही और राजापूर पहुँचने तक १४५३ मीटर हाईट गेन रहा|
आज का लेखाजोखा
लाल मिट्टी!
आज ९४ किलोमीटर साईकिल चलाई हैं, लेकीन समतल इलाकों में किए गए १२५ किलोमीटर से भी ये मुश्कील हैं| इसलिए मानो तीन दिन में मेरा तिसरा शतक ही हुआ है| वाह! मेरे देवगड़ के रिश्तेदारों के एक मित्र राजापूर में रहते हैं, उनके घर पर ही रूका| राजापूर वैसे तो तहसील का गाँव है, लेकीन पूरा पहाड़ पर- चढाई पर बंसा गांव| ऐसे छोटे गाँव के कोंकणी घर में रहने का दुर्लभ अवसर मिला है| आज ज्यादा थकान तो नही हुई, लेकीन समय अधिक लग गया| एक तरह से विश्वास नही हो रहा है कि मै देवगड़ के इतने करीब पहुँचा हूँ! यहाँ से सिर्फ ५१ किलोमीटर दूर देवगड! यकीन ही नही हो रहा है| मानसिक तौर पर तो अभी ही पहुँच गया हूँ| क्यों कि इतने किलोमीटर साईकिल चलाने के बाद बचे ५१ किलोमीटर कुछ भी कठीन नही है| वाकई गज़ब का दिन रहा है यह, या गज़ब की यात्रा रही है यह|
अगला भाग: साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ५: राजापूर- देवगड़ (५२ किमी)
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/10/2018 की बुलेटिन, "सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !! “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन लिख रहे हैं। लिखते रहिए.....
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