Tuesday, February 15, 2022

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ११: उद्ध्वस्त बस्तड़ी गाँव के पास ट्रेक

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६ नवम्बर की शाम शिंगाली गाँव में पहुँचे| तब मन में बस्तड़ी गाँव की यादें उमड़ पड़ी| इसी गाँव के रिश्तेदारों के पास दिसम्बर २०११ में मै एक बार आया था| पहाड़ की ढलान पर और खाई के थोड़ा पहले यह गाँव बंसा है| यह पूरा क्षेत्र पहाड़ में ही है| यहाँ चोटियों के साथ खाई भी होती है| सड़कें तो निरंतर घाट की ही होती हैं| यह गाँव ऐसे स्थान पर है कि पिथौरागढ़ वापस जाते समय सड़क जब कुछ दूरी चढ़ कर फिर खाई के आगे सामने आती है, तब वहाँ से भी बस्तड़ी का परिसर दिखाई देता है| ३० जून २०१६ की रात्र यहाँ काल की रात साबित हुई| अत्यधिक बारीश चल रही थी| बादल फटा, बिजलियाँ कड़की और पानी आने लगा| लोगों को डर महसूस हुआ| सब लोग जग गए और हमारे जो रिश्तेदार गाँव में थे, वे सब एक घर में‌ इकठ्ठा हुए| और पूरे गाँव पर ही पहाड़ टूट पड़ा! अचानक आयी तेज़ बारीश के कारण पानी की बड़ी धारा तेज़ी से नीचे बहने लगी और वह इस पहाड़ की क्षमता से अधिक थी| इसलिए पहाड़ गिर पड़ा (लैंड स्लाईड) और उसके नीचे बंसा बस्तड़ी गाँव उसमें समा गया| गाँव के २१ व्यक्तियों ने अपने प्राण खोए और लगभग पूरा गाँव तबाह हुआ| पहाड़ से इतनी मिट्टी बह कर आयी थी कि कई दिनों की खोज के बाद भी मृतकों के अवशेष भी नही मिल पाए| हमारे उस समय वहाँ होनेवाले कई रिश्तेदार उसमें गुजर गए| संयोग से जो बाहर थे, वही बच गए| महाराष्ट्र में २०१४ में माळीण नाम के गाँव में भी कुछ इसी तरह का हादसा हुआ था...




इस दुर्घटना के कारण देखें तो कई हैं और स्पष्ट भी हैं| प्रकृति में अचानक से कुछ भी नही होता है| प्रकृति पहले कई बार चेतावनी देती है| लेकीन हम सीखते नही हैं| हिमालय में जैसे पेड़ कम होते गए, प्रकृति पर मानवीय तनाव बढ़ा, वैसे वहाँ की पर्यावरणीय व्यवस्था चरमराने लगी| लैंड स्लाईड में कई गाँव अब उद्ध्वस्त होते हैं| लेकीन उसकी शुरुआत में पानी के अचानक आए प्रपात में एक घर बहने से होती है| मानवीय कारणों से और पेड़ कम होने के कारण पहाड़ का ढाँचा कमजोर होता है| खेती में बदलाव होते हैं| उस क्षेत्र की प्रकृति का ख्याल रखनेवाले इन्सान स्थानान्तरण से कम हो जाते हैं| इसके अलावा पानी के बहने के मार्ग तनाव के कारण कमजोर हुए होते हैं| आज सभी शहरों के पास के पहाड़ भी लगभग खोखले किए गए हैं| पानी के बहने के रास्ते रोके जाते हैं| इसलिए अब हर बरसात आफत ला सकती है| इसके साथ वातावरण में बदलाव होने के कारण थोड़े ही समय में अत्यधिक बारीश होती है| और इतनी ज्यादा बारीश वहाँ की प्राकृतिक प्रणाली सह नही कर सकती है... ज्यादा हो या कम, यह सब तरफ होनेवाला है| और इसके बारे में हमारी सोच का पता इससे चलता है| सरकारी स्तर पर २०१३ का उत्तराखण्ड का जल प्रलय हो या यह आपत्ति हो, इन्हे "दैवी आपदा" कहा जाता है!! इस दुर्घटना के बाद बस्तड़ी गाँव रहनेयोग्य नही रहा|‌ इसके बारे में एक समाचार यहाँ पढ़ सकते हैं| 




जिन्होने अपने प्रिय जन खोए, उनकी अपरंपार हानि हुई| ऐसी दुर्घटना वास्तव में मृत्यु का इशारा होता है कि जगिए, सचेत होई| भ्रम में मत रहिए| और हम अगर दूसरे किसी स्थान पर हो, तो भी यह इशारा हमारे लिए उतना ही लागू है| खैर| हमारे जो रिश्तेदार बच गए, उन्होने बाद में बस्तड़ी के पास और थोड़े अधिक सुरक्षित होनेवाले शिंगाली गाँव में फिर से नयी इनिंग शुरू की| जीवन रूकता नही है| कुछ यात्री चले जाने पर ट्रेन रूकती नही है| यहाँ उन्होने नया घर खड़ा किया और आगे का संसार शुरू हुआ| जब उनके घर पहुँचा, तो पहले आँगन में जलनेवाले चूल्हे पर अच्छे से हाथ सेंके| इस मुलाकात पर उस दुखद यादों का साया नही है| क्यों कि अब साढ़े चार साल होंगे| ट्रेन अब आगे निकल चुकी है| यहाँ के घर में अब दो जुड़वा शिशु हैं| यहाँ अदू २०१७ में एक बार आयी थी- डेढ़ साल की थी तब| तब वह जिस कुत्ते के पीठ पर सवार हुई थी, वह कुत्ता- कल्लू भी मिला! बाकी बहुत बातें हुई| लोग बातों में व्यस्त होने पर भी मन से बस्तड़ी का विषय नही जा रहा है| यहाँ से मुश्कील से पन्द्रह मिनट पैदल उतर कर उस गाँव में गया था, यह बार बार याद आ रहा है...




सुबह नीन्द जल्द खुली| तैयार हो कर बाहर आया और आसपास का परिसर देखा| पहले सड़क शिंगाली तक ही थी| लेकीन अब सड़क और अन्दर तक जाती है| बस्तड़ी गाँव नक्शे पर हैं और थोड़ी बस्ती भी वहाँ पर है| यहाँ आँगन से भी पंचचूली और अन्य शिखर सुन्दर दिखाई‌ दे रहे हैं| पूरब में पहाड़ है, इसलिए धूप आने में बहुत समय लगा| तब तक चाय के कई राउंडस हुए| बाकी लोगों को मुख्य सड़क पर ओगला में मिलूँगा, ऐसा कह कर निकला| पहले बस्तड़ी के पास गया| मुझे कहा गया था कि वहाँ अब कुछ भी अवशेष नही बचे हैं| फिर भी एक बार देखने का मन हुआ| गाँव जानेवाली पगडण्डी जहाँ से नीचे उतरती है, वहां तक जा कर लौटा| अब लगभग पाँच किलोमीटर का बेहतरीन ट्रेक करना है|




पंचचूली और अन्य शिखर दिखाई दे रहे हैं| प्रकृति इतनी सुन्दर है कि यहाँ सिर्फ चलना नितान्त सुखद है| बिल्कुल सुनसान सड़क, खाली आकाश और रमणीय नजारे! और क्या चाहिए! मनचाहे फोटो खींचता हुआ जाता रहा| दूर के गाँव भी दिखाई दे रहे हैं| दूर से दिखनेवाला अस्कोट पहचान सका| पहाड़ के बीच बीच के पीले दाग़ लैंडस्लाइड का स्मरण करा रहे हैं! सड़क जैसे मूड़ती हुई जा रही है, वैसे सुदूर के हिमशिखर भी अलग अलग कोणों से दिखाई दे रहे हैं| वास्तव में बहुत बड़ा सुख है यह| इसके लिए भी शायद किस्मत ही चाहिए| बीच बीच में छोटे गाँव लग रहे हैं| घर सड़क की नीचे की तरफ हैं, इसलिए एक घर का छत सड़क से सटा दिखा| आगे देवदारों का सुन्दर वन लगा| वैसे तो यह सब वन ही है| इसलिए रात में कोई अकेले पैदल नही जाता है| हिमालय के चरण कमलों से शुरू होनेवाला पहाड़! अनगिनत मोड़, असंख्य पहाड़ की पंक्तियाँ और खाई- इनमें से होनेवाली उसकी यात्रा और हिमशिखर का चरम बिन्दु! हिमालय का यह पैमाना, हिमशिखरों की ऊँचाई में भी उसके चरण तल के साकार रूप को देखते समय अध्यात्म याद आया| साधना भी ऐसी ही तो होती है| निम्न स्तर के असंख्य अनुभव, अनगिनत मोड़ और चढाई- उतराई के साथ आगे जाती है| वह भी तो एक ऐसा ही शिखर है ना! खैर|


 

घण्टे भर का सुन्दर ट्रेक हुआ और ओगला पहुँच गया| बाकी लोग बाद में गाड़ी से आए| लौटते समय सत्गड में ठहरने के बजाय पिथौरागढ़ में एक रिश्तेदार के यहाँ आए| दोपहर थोड़ा आराम हुआ| बाद में बाकी लोग शॉपिंग के लिए गए| मुझे जानना था कि पिथौरागढ़ में ट्रेकिंग़ के लिए अच्छी जगह कौनसी है| तब पता चला कि यहाँ चण्डाक हिल एक अच्छा स्थान है| बहुत प्रसिद्ध जगह है| तब वहीं जाना तय किया| शाम को पिथौरागढ़ में थोड़ा टहला| यहाँ ठण्ड तो हमेशा ही होती है| लेकीन अत्यधिक ठण्ड के दो- तीन महिने होते हैं| अर्थात् यहाँ भी अब पहले के मुकाबले बर्फ बहुत देरी से और कम गिरती है| पहले तो दिसम्बर में बर्फ गिरती थी| अब लोग बताते हैं कि जनवरी में थोड़े दिन ही गिरती है और कम भी गिरती है| लेकीन ठण्ड तो होती ही है| इसलिए घर घर रूम हीटर हैं| इसके साथ घरों की दिवारे भी मोटी होती है| शहर देखते समय इस फर्क तुरन्त पता चलता है| यहाँ घूमते समय ॐ पर्वत का पोस्टर ढूँढ रहा हूँ, लेकीन कहीं पर भी मिल नही रहा है| अब कुछ ही दिनों में वापस लौटना है| लेकीन उसके पहले जितना सम्भव होगा, जरूर घूमता रहूँगा|



अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १२: रमणीय चण्डाक हिल पर २० किमी ट्रेक

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