Wednesday, February 2, 2022

हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) ९: अदू के साथ किया हुआ ट्रेक

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३ नवम्बर २०२१! हिमालय से लौट कर ढाई महिने हो गए हैं, फिर भी वे दिन आँखों के सामने हैं| आप सब ठीक होंगे, ऐसी आशा करता हूँ और आगे के अनुभव शेअर करता हूँ| बुंगाछीना गाँव में होनेवाली पूजा, यही इस पारिवारिक यात्रा का मुख्य कारण था| उसके लिए सब बुंगाछीना पहुँचे| सत्गड- पिथौरागढ़- बुंगाछीना ऐसी यात्रा में दूरी सिर्फ ५० किलोमीटर होगी, लेकीन ढाई घण्टे लगे| बुंगाछीना में कुछ दिन पहले आए थे, तब प्रदीपजी के साथ पास के पहाड़ पर और पगडण्डियों पर अच्छा सा घूमना हुआ था| अब उसी पहाड़ के मन्दिर पर अदू को ले जाना है| जब हम गूंजी गए थे, तब वह यहाँ अच्छे से ठहरी थी| घर की भेड़- बकरियाँ, खेत का वातावरण, रिश्तेदार और अलग लोग, अत्यधिक ठण्ड, रात में बाघ का डर यह सब माहौल उसने बहुत एंजॉय किया| अत्यधिक ठण्ड से उसका चेहरा काला हो गया है| हम सभी का! उसके गाल बाद में लाल होने की मै राह देख रहा हूँ!



सुबह की ठण्डक में निकले| बुंगाछीना की ऊँचाई सत्गड से थोड़ी कम है, इसलिए ठण्ड में मामुली कमी है| अदू बड़े जोश से चलने के लिए तैयार हुई| निकलते समय ही उसे कहा था कि तुम्हे घूमाने ले जाऊँगा, लेकीन मेरी एक शर्त है| शर्त यह की गोदी में बिल्कुल नही उठाऊँगा! उसने भी हाँ भरी थी और हम निकल गए| हिमालय के इतने बीचोबीच बंसा अग्न्या- बुंगाछीना गाँव और उपर उठनेवाली पैदल राह! थोड़े ही समय में मेन रोड़ पर पहुँचे| कुछ ही दिन पूर्व प्रदीपजी के साथ आने के कारण सड़क परिचित है| सिर्फ पगडण्डियों से नही जा सकूँगा, क्यों कि वहाँ तो जानकार साथी चाहिए होता है| अदू की रफ्तार से मज़े से चलते रहे| धीरे धीरे घाट जैसी चढाई शुरू हुई और दुकान- घर पीछे रह गए| थोड़ा उपर चढ़ने पर पीछे मूड़ कर देखा तो सुबह की सुनहरी धूप में जगे हुए हिमशिखर दिखे! सड़क जैसे उपर जा रही है, वैसे वे और उपर उठ रहे हैं और शानदार ढंग से चमक भी रहे हैं| अदू बहुत एंजॉय कर रही है! लेकीन ये क्या! मुझे शर्त तोड़नी पड़ी! क्यों कि उसने चलने से मना कर दिया| थोड़ा रूकेंगे, ब्रेक ले कर चलेंगे कहा, लेकीन उसने सुना नही! फिर जैसे तैसे उसे उठा कर धीरे धीरे आगे बढ़ता गया| उसे उठा कर चलना अब बहुत मुश्कील वेट ट्रेनिंग बन गया है!




सुन्दर दृश्यों का आनन्द लेते हुए और फोटो खींचते हुए आगे बढ़े| चढाई के कारण ठण्ड भी महसूस नही हो रही है| बीच में एक गाड़ी क्रॉस हुई| बाद में घास ढोनेवाली एक दिदी भी मिली| यहाँ के लोग इतने सरल और प्रकृति- सम्मुख हैं कि वे एकदूसरे के बहुत करीब रहते हैं| उन्होने हमसे बात भी की| अदू को उठा कर ठीक से चल नही पा रहा हूँ| जब मन्दिर और पहाड़ बिल्कुल सामने आए, तब उसे कहा कि देखो अब अपनी शक्ती लगाओ| ताकत लगाओ| बस इतना सा चलो तो वापसी में पूरी ढलान ही तो है| तब वह तैयार हुई| यह सड़क आगे दूसरे गाँव भी जाती है| मन्दिर के पास पहुँचे| थोड़ी देर वहाँ रूके| पीछली बार यहीं से लोमड़ी दिखी थी, ऐसा उसे बताया| बस्ती पास में होने पर भी यह परिसर वीरान है| इसलिए ज्यादा देर रूके नही| उतरते समय भी उसे थोड़ी देर उठाना पड़ा| लेकीन एक शानदार ट्रेक हुआ|





अगले दिन पूजा है, इसलिए तैयारी में फिर गाँव में आना हुआ| कुमाऊँ में गाँव छोटें हैं, लेकीन शहर में जाना दुभर होने के कारण छोटे गाँवों में भी शहर की बहुत सी चीज़ें मिलती है| दुकानों में उतनी विविधता होती है| यहाँ सब तरफ समुदाय के बीच का अपनापन देखने को मिलता है| सब लोग एक दूसरे के साथ चलते हैं| गाँव में पूजा है और सौ लोगों को भोजन देना है| लेकीन इसकी तैयारी और व्यवस्था भी सामुहिक तरीके से ही की जाएगी| गाँव के मन्दिर में सामुहिक रसोई के बड़े बर्तन हैं| वे वहाँ से ले आए| पानी के लिए तो झरने से लगा हुआ नल है ही| ऐसा ही कुछ शहर में करना होता तो बहुत खर्चा आता| यहाँ सब अच्छा है| बस गूड़ या मिशरी की चाय मुझे दिक्कत में डाल देती है| गूड़ या मिशरी का टुकड़ा चाय में डुबो कर मै चाय नही पी पाता हूँ| उसके बजाय मै वैसे ही चाय पीता हूँ और बाद में गूड़ या मिशरी मुंह में डालता हूँ! वैसे भी यहाँ चाय के स्वाद के साथ उसकी गर्मी और भांप भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है|




 

आगे का दिन विश्राम में बीत गया| सत्गड में नेटवर्क न के बराबर है| यहाँ वह पूरा आ रहा है| इसलिए एक तरह से वापस बाहर की दुनिया में मन कनेक्ट होना चाहता है| इतनी खूबसूरत जगह पर हो कर भी आदत से छुटकारा नही हो रहा है! लेकीन यहाँ का पूरा माहौल बिल्कुल रमणीय वॉलपेपर जैसा है| कहीं भी बैठिए और सामने के दृश्य में खुद को भूल जाईए| शर्त एक ही, कि आपके मन में बाहर की कोई भी याद नही‌ आनी चाहिए! ऐसे दृश्यों का मज़ा लेता रहा| जहाँ बैठा था, वहाँ सामने देखा तो एक ही नजर में बारह छोटे- बड़े मन्दिर हैं- गाँव के, बस्ती के और ठीक पहाड़- खाई में भी बंसे हुए!



अगला भाग: हिमालय की गोद में... (कुमाऊँ में रोमांचक भ्रमण) १०: ध्वज मन्दिर का सुन्दर ट्रेक

मेरे ध्यान, हिमालय भ्रमंती, साईकिलिंग, ट्रेकिंग, रनिंग और अन्य विषयों के लेख यहाँ उपलब्ध: www.niranjan-vichar.blogspot.com फिटनेस, ध्यान, आकाश दर्शन आदि गतिविधियों के अपडेटस जानना चाहते हैं तो आपका नाम मुझे 09422108376 पर भेज सकते हैं| धन्यवाद|


1 comment:

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