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Wednesday, February 8, 2017

जुन्नैद के ११ गुरू

सुफी फकीर जुन्नैद ने कहा है कि जब वह ज्ञान को उपलब्ध नही हुआ था, जब वह पण्डीत था, तब हर किसी को पकड कर अपनी बातें कहता था, अपना पांडित्य बताता था. एक बार उसे एक लडका मिला. लडके के पास मिट्टी का एक दिया था. दिया जल रहा था. जुन्नैद ने उसे पूछा, बता, इसे किसने जलाया है, कहॉं से रोशनी आती है. लडके ने कहा की मुझे तो पता नही और उसने फूंक मार कर उसे बुझाया और जुन्नैद से पूछा, अब आप बताईए कहॉं गई लौ? आपके सामने तो थी ना. उस दिन से जुन्नैद बदल गया. अपना थोता ज्ञान झाडना उसने बन्द किया. वह लडका उसका पहला गुरू हुआ.

जुन्नैद ने कहा है कि एक बार उसे एक गॉंव में पहुंचते समय देर रात हो गई. कहीं ठहरने की जगह नही मिली. उसे सिर्फ एक चोर दिखा जो बाहर निकल रहा था. चोर ने कहा, तुम मेरे पास ठहर सकते हो, लेकीन मै चोर हूं. लेकिन अगर तुम कच्चे फकीर हो और तुम्हे डर लगता होगा कि मै तुम्हे बदल दूंगा, तो फिर तुम्हारी मर्जी. लेकीन मै पक्का चोर हूं. जुन्नैद उसके यहॉं ठहर गया. चोर ने कहा कि मै महल में चोरी करने जा रहा हूं, बडा माल लेकर आऊंगा.


लेकीन सुबह चोर खाली हाथ लौटा. फिर भी बिल्कुल खुश था. जुन्नैद कुछ दिन उसके पास ही रूका. चोर हर रात बाहर निकलते समय कहता की आज बडी चोरी करूंगा, बडा हाथ साफ करूंगा. लेकीन वह खाली हाथ लौटता था. फिर भी उसकी उम्मीद टूटती नही थी. वह खुशी से अगले दिन कोशिश करता. जुन्नैद एक महिना उसके पास रहा.


जुन्नैद ने कहा है कि बाद में परमात्मा की खोज में लगा रहा. लेकिन कहीं कुछ नही होता था. तब वह निराश होता. लेकीन तब उसको उस चोर की याद आती. चोर ने उसे कहा था, तुम कच्चे फकीर हो तो मेरे पास रूक जाओ. तब चोर की याद से उसकी हिम्मत बनी रहती, उम्मीद कायम रहती. फिर अन्त में जुन्नैद ज्ञान को उपलब्ध हुआ. उसने उस लडके जैसे और उस चोर जैसे ११ लोगों के बारे में कहा की वे सब उसके गुरू थे जिन्होने उसे रास्ता दिखाया.

Friday, January 27, 2017

भीतर क्या है?

"मेरे गाँव में एक पुजारी था| वह सुबह तीन घण्टे और शाम को तीन घण्टे बालाजी के मन्दिर में भजन करता था| उसका नाम किसी को भी याद नही था, सभी उसे बालाजी ही कहते थे| उसका भजन चिल्लाना ज्यादा था| सभी लोग उसके शोर से पीडित थे, लेकिन पुजारी होने के कारण कोई नही बोलता था| सभी लोग उसे बहुत धार्मिक समझते थे, इसलिए कोई कुछ नही कहता था| वह उस मन्दिर के पास एक खाट पे ही रात नौ बजे सो जाता था| उसकी खाट के सामने एक छोटा सा कुंआ था|

एक बार मैने सोचा की उसके चिल्लाने- चीखने का कुछ उपाय करना चाहिए| सोचा कि रात को ग्यारह बजे उसे उठा कर खाट समेत कुंए पर रख देते हैं और तब देखते है कि उसे बालाजी की कितनी याद आती है| मै छोटा था, तो मैने तीन पहलवानों को तैयार किया| रात में ग्यारह बजे वे आनेवाले थे| लेकिन एक पहलवान राजी नही हुआ| इसलिए मैने मेरे दादा को तैयार किया| पहले तो दादा बड़े चकित हुए कि उनसे ही मैने मदद माँगी| मैने कहा कि आप बस दो मिनट खाट उठाने के लिए हात दिजिए, फिर आप जो कहेंगे वह मै करूँगा| वे भी बड़े विरला थे, इसलिए वे तैयार हुए|

जब पहलवानों ने मेरे दादा को आते देखा तो वे डर गए- उन्हे लगा की पकड़े गए| मैने उनको समझाया कि एक पहलवान नही आनेवाला था, तो उसकी जगह दादा आए हैं| रात ग्यारह बजे पूरा सन्नाटा था| हमने चुपके से उसे उठाया और धीरे से खाट कुएं पर रख दी| वह सोता ही रहा| मैने तुरन्त दादा को जाने के लिए कहा- क्यों कि वे पकड़े जाते तो मुसीबत होती| फिर हम लोग कुछ दूरी पर खड़े हो कर उसे पत्थर मारने लगे| थोड़े ही‌ देर में वह जग गया और उसके रौंगटे खड़े हुए! उसने जो चीख मारी... उस शोर से भीड़ इकठ्ठी हो गई. . . वह बहुत डर गया था| लोगों ने ही उसे कहा कि पहले कम से कम खाट से उठ कर बाहर तो आओ| तब भीड़ में से मैने उसे पूछा, क्यों जी, आपने सहायता के लिए बालाजी को क्यों नही याद किया? आप उसे भूल तो नही गए? वह आदमी सच्चा था| उस दिन से वह बदल ही गया| फिर उसने मुझे बाद में कहा, कि अच्छा किया तुमने| तुम्हारे कारण ही मै अब देख सकता हुँ कि मै जो शोरगुल करता था, वह उपर ही उपर था| भीतर तो डर के अलावा कुछ भी नही था| उस दिन जो चीख मैने मारी; वो मेरे अन्तर्मन से आयी थी| उससे मुझे एहसास हुआ कि मै कितनी बाहरी लिपापोती में लीन था| ऐसे उसने मुझे धन्यवाद दिया और उस दिन से उसकी जिन्दगी बदल सी गई| धीरे धीरे उसने सब पूजा बन्द की| वह कहने लगा कि, मन में अगर बालाजी नही है और डर है तो वही सही| उसे कैसे झुठलाएं? बूढा होते होते वह आदमी जागृत होता गया|" - ओशो