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Monday, July 4, 2016

प्रकृति, पर्यावरण और हम ११: इन्सान ही प्रश्न और इन्सान ही उत्तर


प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा

प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग

प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!

प्रकृति, पर्यावरण और हम ८: इस्राएल का जल- संवर्धन

प्रकृति, पर्यावरण और हम ९: दुनिया के प्रमुख देशों में पर्यावरण की स्थिति

प्रकृति, पर्यावरण और हम १०: कुछ कड़वे प्रश्न और कुछ कड़वे उत्तर


इन्सान ही प्रश्न और इन्सान ही उत्तर

उत्तराखण्ड में हो रही‌ तबाही २०१३ के प्रलय की याद दिला रही है| एक तरह से वही विपदा फिर आयी है| देखा जाए तो इसमें अप्रत्याशित कुछ भी नही है| जो हो रहा है, वह बिल्कुल साधारण नही है, लेकिन पीछले छह- सात सालों में निरंतर होता जा रहा है| हर बरसात के सीजन में लैंड स्लाईडस, बादल फटना, नदियों को बाढ और जान- माल का नुकसान ये बातें अब आम हो गई‌ हैं| फर्क तो सिर्फ इतना है कि इन बदलावों का अनुपात तेज़ी से बढ रहा है| उनकी फ्रिक्वेन्सी बढ गई‌ है| नुकसान भी बहुत बढ रहा है| पर्यावरण पर हो रहे इन परिणामों को रोकने के क्या उपाय है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर क्या है? उसका एक ही उत्तर है और वह है हम| हम ही‌ इसे रोक सकते हैं क्यों कि यह सब हमने ही किया है| चाहिए बरसात तबाही‌ ला रही हो, उस बरसात के कारण हम ही है और हम ही इसे चाहे तो रोक भी सकते हैं|

जैसे हमने पीछले लेखों‌ में चर्चा की, पर्यावरण और मानव के बीच काफी‌ तनाव है| मानव का पर्यावरण पर बर्डन बढ रहा है| अगर इन सभी बातों में परिवर्तन करना हो तो पर्यावरण के साथ तो काम करना ही होगा- जैसे पेड़ लगाने होंगे, जल संवर्धन के प्रयास करने होंगे, जंगल बचाने होंगे; लेकिन उसके साथ इन्सान की समझ और इन्सान की दृष्टी बढाने के भी प्रयास करने होंगे| तब जा कर धीरे धीरे इन्सान प्रकृति पर कर रहा है उस आक्रमण को समझ पाएगा और उससे यु- टर्न ले सकेगा| पर्यावरण की रक्षा का यह लाँग टर्म फोकस हो सकता है| शॉर्ट टर्म फोकस अर्थात् पर्यावरण के साथ काम करना होगा| इस लेख में इन्सान की दृष्टी और सजगता बढाने के प्रयासों पर एक नजर डालेंगे|