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Tuesday, June 19, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा भाग १०: मेहकर- मंठा

१०: मेहकर- मंठा
 

आज यह लिखते समय बरसात शुरू हो गई है, लेकीन योग साईकिल यात्रा का नौवा दिन बहुत गर्मी का था- १९ मई की सुबह| आज लगभग ७० किलोमीटर साईकिल चलानी है| और आज की सड़क भी निम्न गुणवत्ता वाली है| इसकी एक झलक कल देखी है| इसलिए ये ७० किलोमीटर बेहद कठीन जाएंगे| सुबह मेहकर में मन्दीर के पास चलनेवाले एक महिला योग वर्ग की साधिकाओं से मिल कर आगे बढ़ा| आज की सड़क पर विश्व प्रसिद्ध लोणार सरोवर आएगा जो एक उल्का के गिरने से बना है| जल्द ही सुलतानपूर से आगे निकला| यहाँ से लोणार सिर्फ बारह किलोमीटर है, लेकीन अब सड़क बहुत बिगड़ने लगी| बिल्कुल उखडी हुई टूटी फूटी‌ सड़क| नया चार या छह लेन का हायवे बनाने के लिए पूरी सड़क ही उखाड़ दी गई है| बीच बीच में थोड़ी सी सड़क; बाकी सिर्फ पत्थर और मिट्टी!

लोणार के कुछ पहले सड़क के पास एक खेत में एक लोमड़ी से मिलना हुआ| पहले तो कुत्ता ही लगा, लेकीन फिर काला मुंह और गुच्छे जैसी पूँछ! जरूर यह पानी की तलाश में खेत- गाँवों में आया होगा| उसने भी मुझे देखा, लेकीन उसे इन्सान देखनी की आदत होगी, इसलिए वह आगे बढ गया| यह मुख्य  शहरों को जोड़नेवाली सड़क न होने के कारण यातायात कम ही है| धीरे धीरे लोणार पास आता गया| लेकीन उसके साथ यह भी तय हुआ कि आज यात्रा बिल्कुल कछुए की गति से होनेवाली है| लोणार गाँव के बाद नाश्ता किया और आगे सरोवर की तरफ बढ़ा|‌ सरोवर सड़क के पास ही है| बचपन में एक बार यह सरोवर देखा था| आज की यात्रा बहुत लम्बी होने के कारण सड़क से थोड़ा हट कर उपर से ही सरोवर देखा और आगे बढ़ा| यह अभयारण्य होने के कारण मोर की आवाज आ रही है|


लोणार सरोवर!!




Saturday, June 2, 2018

एटलस साईकिल पर योग- यात्रा: भाग ४: परतूर- अंबड

४: परतूर- अंबड
 

योग साईकिल यात्रा का तिसरा दिन, १३ मई की सुबह| रात में अच्छा विश्राम हुआ है और कल जो योग साधकों से मिलना हुआ था, उससे भी बहुत ऊर्जा मिली है| इस यात्रा के लिए उत्साह और भी बढ़ गया है| कल जहाँ ठहरा था वह परतूर गाँव! इसे वैसे तो परतुड़ भी कहा जाता है|‌ और महाराष्ट्र और भारत के इतिहास में भी इस गाँव से जुड़ा एक घटनाक्रम है| १७६१ में पानिपत में मराठा सेना और अब्दाली के बीच पानिपत का तिसरा युद्ध हुआ| जब मराठा सेना इस युद्ध के लिए निकली थी, तो तब वह यहाँ परतूड़ में थी| परतूड़ में पेशवा सदाशिवरावभाऊ की अगुवाई में मराठा सेना ने निज़ाम की सेना को मात दी थी|‌ यहीं मराठा सेना को अब्दाली और नजीबखान रोहीला की सेना ने मराठा सरदार दत्ताजी शिंदे को मात देने की की खबर मिली और सीधा परतूड़ से ही मराठा सेना दिल्ली के लिए निकली थी|