५: टापरी से स्पिलो
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३१ जुलाई! टापरी में सतलुज की गर्जना के बीच नीन्द खुली| कल की साईकिल यात्रा क्या रही थी! और सड़क कितनी अनुठी थी! आज भी यही क्रम जारी रहेगा| अब मन बहुत प्रसन्न एवम् स्वस्थ है| एक दिन में बहुत फर्क लग रहा है| कल डर लग रहा था कि कहाँ आ फंसा हूँ| तब समझाना पड़ा था कि अरे तू तो कुछ दिनों के लिए ही यहाँ होगा, यहाँ के स्थानीय लोग और मिलिटरी के लोग तो कैसे रहते होंगे, सड़क की अनिश्चितताओं को कैसे सहते होंगे| कल ऐसा खुद को कहते कहते ही साईकिल चलाई थी| लेकीन आज तो अब खुद को खुशकिस्मत मान रहा हूँ कि इन सड़कों पर साईकिल चलाने का मौका मिल रहा है| एक तरह से जीवन की आपाधापी, तरह तरह के उलझाव, पहले शिक्षा और बाद में करिअर के दबाव इन सबमें जो जवानी जीना भूल गया था, उसे जीने का यह मौका लग रहा है! आज जाना है स्पिलो को जो लगभग अठावन किलोमीटर दूर होगा| आज भी सड़क बहुत मज़ेदार होगी!

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३१ जुलाई! टापरी में सतलुज की गर्जना के बीच नीन्द खुली| कल की साईकिल यात्रा क्या रही थी! और सड़क कितनी अनुठी थी! आज भी यही क्रम जारी रहेगा| अब मन बहुत प्रसन्न एवम् स्वस्थ है| एक दिन में बहुत फर्क लग रहा है| कल डर लग रहा था कि कहाँ आ फंसा हूँ| तब समझाना पड़ा था कि अरे तू तो कुछ दिनों के लिए ही यहाँ होगा, यहाँ के स्थानीय लोग और मिलिटरी के लोग तो कैसे रहते होंगे, सड़क की अनिश्चितताओं को कैसे सहते होंगे| कल ऐसा खुद को कहते कहते ही साईकिल चलाई थी| लेकीन आज तो अब खुद को खुशकिस्मत मान रहा हूँ कि इन सड़कों पर साईकिल चलाने का मौका मिल रहा है| एक तरह से जीवन की आपाधापी, तरह तरह के उलझाव, पहले शिक्षा और बाद में करिअर के दबाव इन सबमें जो जवानी जीना भूल गया था, उसे जीने का यह मौका लग रहा है! आज जाना है स्पिलो को जो लगभग अठावन किलोमीटर दूर होगा| आज भी सड़क बहुत मज़ेदार होगी!