प्रकृति, पर्यावरण और हम १: प्रस्तावना
प्रकृति, पर्यावरण और हम २: प्राकृतिक असन्तुलन में इन्सान की भुमिका
प्रकृति, पर्यावरण और हम ३: आर्थिक विकास का अनर्थ
प्रकृति, पर्यावरण और हम ४: शाश्वत विकास के कुछ कदम
प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा
प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग
प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!
इस्राएल का जल- संवर्धन
इस्राएल! एक छोटासा लेकिन बहुत विशिष्ट देश! दुनिया के सबसे खास देशों में से एक! इस्राएल के जल संवर्धन की चर्चा करने के पहले इस्राएल देश को समझना होगा| पूरी दुनिया में फैले यहुदियों का यह देश है| एक जमाने में अमरिका से ले कर युरोप- एशिया तक यहुदी फैले थे और स्थानिय लोग उन्हे अक्सर 'बिना देश का समाज' कहते थे| यहाँ तक कि युरोप और रूस में यहुदियों को दुश्मन समझ कर उन्हे देश से निकाला गया| खास कर द्वितीय विश्व युद्ध में यहुदियों पर ढाए गए जुल्म! साठ लाख से अधिक यहुदियों को तो नाझी जर्मनी ने मार दिया| जिस समाज का अपना देश नही था- जो अलग अलग देशों में बिखरे थे; जिनकी अपनी पहचान नही थी उस समाज १९४८ में एक नया देश बन गया!
अक्सर कहा जाता है कि कोई बात अगर एक छोर तक जाती है, तो उसमें बिल्कुल विपरित छोर के गुणधर्म आ जाते हैं| जैसे सैकडों वर्षों तक यहुदियों ने मुसीबत, संघर्ष और चुनौतियों का सामना किया और इसीके कारण उनका देश खड़ा हुआ जो उस समाज के स्थिति के ठीक विपरित है- सशक्त, समर्थ और बड़ी पहचानवाला! जैसे अगर कोई अंगुलीमाल जैसा क्रूर और खूंखार हो जाता है, तो उस छोर से- उस एक्स्ट्रीम से उसका सन्त बनना दूर नही होता है| बस एक ही बात चाहिए कि उस इन्सान या उस चीज़ को उस छोर के अन्त पर पहुँचना चाहिए| जो लोग वाकई धनवान होते हैं; सम्पत्ति अर्जित करते हैं, वे ही एक दिन उस धन- दौलत के मोह से छूट भी सकते हैं| जैसे पानी अगर १०० डिग्री तक गरम हो, तो ही भांप बनता है; कुनकुने पानी में वह बात नही होती है| उसी तरह जिस समाज को बुरी तरह सैकडों सालों तक लताडा गया, जीसस को सूली देने की सजा दिन्हे दो हजार सालों तक मिलती रही; आखिर कर उनकी किस्मत ने करवट ले ली| १९४८ में इस्राएल का जन्म हुआ|