Sunday, December 23, 2018

एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव: १२. वाशिम से अकोला

१२. वाशिम से अकोला
 

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२३ नवम्बर की सुबह| आज वाशिम से अकोला जाना है और चौथे बाल गृह को विजिट करना है| यह इस यात्रा का एक वाकई चरम बिन्दू होगा| सुबह की ठण्डक में वाशिम में‌ विहान प्रोजेक्ट ऑफीस से निकला| वहाँ देवानन्द जी ने मुझे विदा किया| उसके पहले सवेरे जल्द उठ कर कॉफी‌ भी पिलाई थी| यह ऑफीस अकोला कॉर्नर पर ही है, इसलिए मुझे तुरन्त हायवे मिल गया| आज काफी उतराई भी मिलनेवाली है और कल कुछ दूरी तक इसी सड़क पर वापस आऊँग, तो वह चढाई बन कर मिलेगी| मन ही मन सोच रहा हूँ क्या सफर रहा है यह अब तक| साईकिल ने क्या खूब साथ निभाया है! यकीन नही‌ होता| शुरू के चार पाँच दिन तो जैसे मै बहाव के विपरित तैर रहा था| लेकीन उसके बाद एक बहुत प्रबल बहाव पैदा हुआ है| शरीर और मन की एक पूरी धारा बन गई है| अब सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा है| सुबह साढ़ेचार बजे आराम से नीन्द खुलती है, शरीर अपने आप साईकिल चलाता है और मन भी‌ बिल्कुल तैयार रहता है| पानी की जैसे लकीर बनती है और पानी‌ उसी लकीर में से गुजरता है, वैसे ही शरीर और मन इस क्रम में बिल्कुल स्थिर हो गए हैं| या युं कहूँ तो ठीक रहेगा- मै ठहरा रहा, जमीं चलने लगे| इतना सब आसान हुआ है| आज का दिन तो बढिया रहेगा, आज वैसे ८४ किलोमीटर साईकिल चलानी है, लेकीन कुछ ढलान भी होगी| इसलिए मज़ा तो पूरा आएगा| साथ ही आज कई दिनों बाद बाल गृह में‌ बच्चों से मिलना भी होगा|






२१ किलोमीटर पूरे होने पर मालेगांव जहांगीर में पहला ब्रेक लिया| होटलवालों को मेरी यात्रा और उद्देश्य के बारे बताया| कल के वाशिम के कार्यक्रम की खबर आई थी, एक ने पढ़ी है| लगभग हर जगह पत्रकार और अखबारवालों ने मेरी खबर छापी| लोग भी‌ पूरी यात्रा में‌ पूछताछ करते रहे| कई बार ऐसे लोग भी मिले जिन्होने कहा, तुम्हारी‌ गेअर की साईकिल है ना, इसलिए बहुत दौड़ती होगी, ज्यादा चलाना ही नही पड़ता होगा| कुछ लोग तो टीशर्ट के पीछे का पढ़ कर लगता है यहाँ जाँच शुरू है, ऐसा समझ लेते थे| मालेगांव जहांगीर के बाद नजारे धीरे धीरे बदलते गए| पातूर के कुछ पहले एक घाट उतरना है| वहाँ पर तो जंगल जैसा नजारा है| शायद यह वन क्षेत्र है भी| घाट उतरते समय बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहे हैं| अकोला जिले में आने पर अब लग रहा है शायद सातपुड़ा के आँगन में पहुँच रहा हूँ! सह्याद्री के चरणतल से शुरू हुई यह यात्रा अब सातपुड़ा के सान्निध्य में पहुँच रही है| इस रोड़ पर पहले लोगों ने कहा था बहुत ट्रैफिक मिलेगी, बच के रहना| लेकीन ज्यादा ट्रैफिक लगी नही| सड़क जरूर थोड़ी छोटी है| लेकीन सड़क की स्थिति है बहुत सुन्दर| इसलिए तेज़ी से आगे बढता रहा|  अकोला में सूर्योदय बाल गृह शहर के एक तरफ है| अकोला जिले का कार्यक्रम सिविल हॉस्पिटल में है, इसलिए पहले मुझे वहाँ जाना होगा| अकोला में यात्रा के बीच तो कई बार आया हूँ, लेकीन गाँव में पहली बार आया हूँ| पता पूछते हुए हॉस्पिटल की तरफ पहुँच गया|





यहाँ का कार्यक्रम जिला सर्जन महोदया के कक्ष में हुआ| दनईकर सर के साथ डापकू की टीम, विहान टीम, लिंक वर्कर्स आदि लोग चर्चा में थे| यहाँ एचआयवी से जुड़े कुछ अलग मुद्दों पर चर्चा हुई| जैसे एचआयवी होनेवाली गर्भवती महिला के बेटा/ बेटी को एचआयवी न हो इसके लिए बहुत प्रयास किया जाता है| अठारह महिनों तक नेवारीपीन दवा और निगरानी आवश्यक होती है| साथ ही शिशु के माता- पिता की जागरूकता भी चाहिए| यहाँ चर्चा में बताया गया कि कैसे हर गर्भवती की एचआयवी जाँच भी की जाती है| हमारे समाज में जिम्मेदारी की भावना न होने से कई बार कचरे में बच्चे पाए जाते हैं, उनकी भी एचआयवी जाँच होती है| कई बार एचआयवी होनेवाली महिलाएँ अपना स्टेटस बताए बिना डिलिवरी करने आती हैं, उससे स्वास्थ्य कर्मियों की दिक्कतें बढ़ती हैं| उनकी तरफ से उन्हे बहुत सावधानी भी बरतनी होती है| स्वास्थ्य कर्मियों के कामों में लेकीन विहान जैसी टीम और अन्य एनजीओज होने से बहुत सहायता मिलती है| एचआयवी व्यक्तियों की जाँच कर उन्हे ट्रीटमेंट पर लिंक करना, इसी उद्देश्य के साथ सरकार की ओर से चलाया जानेवाला और एनजीओज द्वारा क्रियान्वयन किया जानेवाला लिंक वर्कर प्रोजेक्ट काम करता है| इस काम में जटिलताएँ बहुत होती है| सेक्स वर्कर्स, ट्रान्सजेंडर व्यक्ति और समलिंगी व्यक्तियों से काम करना आसान नही होता है| लेकीन इस क्षेत्र में धीरे धीरे जागरूकता बढ़ रही है, रिस्क ग्रूप में भी जागरूकता बढ़ रही है| इससे एचआयवी के संक्रामण का अनुपात धीरे धीरे कम जरूर हो रहा है| फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है| लेकीन एक बात जरूर थोड़ीसी राहत देती है कि भविष्य में अच्छी जागरूकता और उपचारों की सुविधा के बाद माता से शिशु को यह संक्रामण होना लगभग बन्द हो जाएगा| लेकीन तब तक बच्चों के लिए काम करने की बड़ी आवश्यकता है| इस कार्यक्रम के बाद हॉस्पिटल में ही मेरे एक रिश्तेदार से मिलना हुआ| बाल गृह का रास्ता दिखाने के लिए अस्पताल के दो कर्मी‌ मेरे साथ आए|







अकोला के आउटस्कर्टस में- मलकापूर में सूर्योदय बाल गृह है|‌ यहाँ पहुँचने पर मेरे आज के ८४ किलोमीटर पूरे हो गए| आज अपेक्षाकृत सबसे अधिक रफ्तार मिली| और कल मेरे हजार किलोमीटर भी पूरे होंगे| लेकीन आज की यह विजिट बहुत महत्त्वपूर्ण है| सूर्योदय बाल गृह भय्युजी महाराज की श्री दत्त धार्मिक एवम् पारमार्थिक ट्रस्ट, इंदौर द्वारा चलाया जाता है| भय्युजी महाराज की प्रेरणा से विविध विषयों पर सामाजिक कार्य किया जाता है| इसके बारे में जानकारी भय्युजी‌ महाराज के निधन के बाद ही हुई, यह मलाल रहेगा| खैर| इस बाल गृह में भी डॉ. पवन चाण्डक की एचएआरसी संस्था द्वारा सहायता दी जाती है| जब बाल गृह में पहुँचा, तब दोपहर के दो बज गए हैं| यहाँ के अधीक्षक शिवराज सिंह पाटील जी और बच्चों ने यहाँ भी स्वागत किया| यह बाल गृह बस्ती के बीच ही है| बच्चों ने ही मुझे मेरी रूम दिखाई, बाकी चीज़ें बताई| आराम होने के बाद बच्चों से और यहाँ के एक सदस्य से बातचीत शुरू हुई| भय्युजी महाराज ने जो विविध सामाजिक पहलें शुरू की थी, उसमें से यह भी एक है| यहाँ सभी कक्षाओं के दसवी तक के पॉजिटीव बच्चे रहते हैं| कुछ बच्चे सरकारी विद्यालयों में और कुछ बच्चे प्रायवेट विद्यालयों में जाते हैं| बच्चों की देखभाल के लिए यहाँ पर एक वैन भी है| अब तक जो बाल गृह देखे थे, उनसे यह संस्था थोड़ी अलग लगी| और स्वाभाविक भी है, अन्य बाल गृह की पृष्ठभूमि अलग थी| उन बाल गृहों को एक एक कार्यकर्ता ने खड़ा किया था, यहाँ श्री दत्त ट्रस्ट, इन्दौर ने काम शुरू किया और अलग अलग कार्यकर्ता उसमें जुड़ते गए| अभी अधीक्षक का काम करनेवाले शिवराज सिंह जी भी भय्युजी महाराज के सम्पर्क में आए कार्यकर्ता हैं| उन्होने कहा भी कि जब तक महाराज जीवित थे, तब तक बाल गृह की कोई चिन्ता उन्हे थी, महाराज बाल गृह की आवश्यकताओं पर ध्यान देते थे| लेकीन उसके बाद अब उन्हे सब इन्तजाम करना है| यह बाल गृह भी समाज के विविध व्यक्तियों के सहयोग और साथ आने से खड़ा हुआ है|



शाम को मेरे एक परिचित श्रीकांत जी मुझे मिलने के लिए आए| बच्चों से भी धीरे धीरे बात होने लगी| यहाँ बच्चे आसपास में खेलते हैं| बाल गृह का भवन तीन मंजिला है| यहाँ बच्चों के साथ महिला केअरटेकर्स और अन्य कार्यकर्ता रहते हैं| बच्चों के अलावा कुछ पॉजिटीव लोग भी यहाँ रहते हैं और इसमें योगदान देते हैं| एक बार एक मूक- बधिर महिला यहाँ आई, यही उसे आसरा मिल गया और आज वह सफाई का काम करती है| मेरे परिचित श्रीकांत जी स्वयं शिक्षक है, तो उन्होने बच्चों को केन्द्रीय विद्यालय प्रवेश प्रक्रिया के बारे में बताया| मेरे कारण वे भी इस बाल गृह से जुड़ गए हैं| बच्चों से अच्छा मिलना हुआ| बच्चों से बात करते समय यह कोशिश करूँगा उनके चेहरे पर मुस्कान आनी चाहिए| इसीलिए कोई भी औपचारिक बातचीत करने के बजाय उनको बोलने दिया| और ऐसे बात की कि आप में से ऐसा कौन है जो बिल्कुल भी नही झगड़ता है? या फिर ऐसी बात बताओ जो आपको बहुत पसन्द है और ऐसी बताओ जो बहुत नापसन्द है| बच्चे धीरे धीरे हंसने लगे, खुल कर बात करने लगे| कुछ बच्चों यह जरूर कहा कि मुझे रोना नापसन्द है... जब बच्चों ने अपना परिचय दिया तब कुछ बच्चों ने सिर्फ उनका नाम कहा, उनके पिता का नाम या सरनेम भी नही कहा.... इस बातचीत में ही एक दसवी की लड़की ने यह गीत गा कर सबको भावुक कर दिया-

राते ढलती नही
दिन भी निकलता नही
उसकी मर्ज़ी बिना पत्ता हिलता नही
रब जो चाहे वही तो होना है
आदमी खिलौना है..
रब जो चाहे वही तो होना है..
आदमी खिलौना है..

जीना है हसके हमे जीवन का हर पल,
कोई न जाने यहा क्या हो जाये कल..

हर ख्वाब यहा पे संजोना है..
आदमी खिलौना है..
रब जो चाहे वही तो होना है..
आदमी खिलौना है......

...सभी बाल गृहों की तरह इस बाल गृह में बच्चों के लिए आवश्यक सुविधाएँ हैं| कुछ हद तक इन्हे कई संस्था, निजी डोनर्स आदि से सहयोग भी मिलता है| लेकीन इसके बाद बढनेवाली महंगाई, नए आनेवाले बच्चे, अधिक सुविधाओं की आवश्यकता आदि के चलते और सहायता की भी जरूरत होती है| इसलिए फिर एक बार आपसे अनुरोध करता हूँ कि इन बाल गृहों का काम समझिए, कभी मौका आने पर वहाँ जा कर उन बच्चों से मिलीए और यथा इच्छा इस कार्य में अपना सहयोग लीजिए जैसा मै कर पाया|

सहभाग के लिए सम्पर्क:

सूर्योदय बाल गृह, भांडे नर्सिंग महाविद्यालय के पास, बसेरा कॉलनी, अकोला, महाराष्ट्र 444004. श्री शिवराज पाटील जी का मोबाईल क्र: 090282 33077

अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव १३. अकोला से रिसोड

मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com

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