६. बीड से अंबेजोगाई
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१७ नवम्बर की भोर| इन्फँट इंडिया बाल गृह से निकला| निकलते समय दत्ताजी और सब बच्चों ने मुझे विदा कहा| बड़े प्यार से मेरे लिए बहुत जल्द उठ कर भोजन भी बनाया| इस हिल से उतरते समय नीचे के सरोवर का परिसर बहुत सुन्दर लगा! कल की मुलाकातें याद करते हुए आगे बढा| आज भी मेरे लिए कुछ बहुत निम्न स्तर की सड़क लगनेवाली है| आज ऐसा तीसरा दिन होगा जब शुरू के तीस- पैतीस किलोमीटर तक ऐसी सड़क होगी और उसके बाद बेहतर सड़क मिलेगी| सोच रहा हूँ या उम्मीद कर रहा हूँ कि सिर्फ पैतीस किलोमीटर तक ही ऐसी सड़क मिले| आज सबसे पहले मुझे तो मांजरसुंबा घाट पार करना है| हायवे पर आते ही घाट की चढाई शुरू हुई| घाट तो मामुली ही है| लेकीन घाट में टैफिक जाम है! एक पल के लिए डर लगा कि कहीं फंस तो नही जाऊँगा? लेकीन हाथ में साईकिल है, इसलिए कुछ देर तक ट्रकों की कतार के दाए तरफ से आगे बढा और जब सड़क सँकरी हुई, तब बाए तरफ से आगे बढ़ा| सड़क के किनारे से आगे निकला| छोटा ही हो, घाट तो है ही| लेकीन उससे ज्यादा डरावनी बात काँच के छोटे टूकडे हैं जो जगह जगह फैले हुए हैं| उन पर से साईकिल चलाते समय वाकई डर लग रहा है| अगर घाट में साईकिल पंक्चर हुई तो??... लेकीन ऐसा हुआ नही| आसानी से छोटी सी जगह से आगे निकला और फिर स्लो हुए ट्रक्स को ओवरटेक भी करता गया| कुछ ही मिनटों में घाट पार हुआ और मांजरसुंबा चौराहे पर पहला ब्रेक लिया|
यहाँ से अंबेजोगाई तक स्ट्रेट फॉरवर्ड सड़क है- सीधी| लेकीन... नेकनूर तक सड़क ठीक रही| लेकीन उसके बाद सड़क गायब सी हो गई! फिर वही कहानि- उखाडी हुई सड़क! और अब मै सूखा होनेवाले क्षेत्र में हूँ, इसलिए बहुत बंजर दृश्य| हरियाली के बजाय अब सब कुछ ग्रे कलर का है| हालांकी हर दिन की तरह आज भी सड़क पर ओवरटेक करनेवाले लोग मुझसे बातचीत करते हैं| कुछ लोग तो चाय या नाश्ता भी ऑफर करते हैं| लेकीन उन्हे मुझे नही बोलना पड़ता है| कई बार कुछ लोग तो ऑर्डर भी देते हैं, इधर रूक, तुझे चाय देता हूँ| लेकीन मै उनके लिए नही रूक सकता हूँ| नेकनूर के बाद सड़क का नूर बिल्कुल भी नेक नही रहा| या सड़क ही नही रही, कहना चाहिए| मुझे लगा था कि नेकनूर के पन्द्रह किलोमीटर आगे केज होगा, लेकीन वह तो तीस किलोमीटर है| और सड़क ही नही है| बड़ी बसों को गुजरता देख कर उन पर भी दया आई! यहाँ एक बात जरूर अच्छी है कि पूर्व- सड़क के किनारे मिट्टी बनी है| वहाँ से साईकिल चला सकता हूँ| और बीच बीच में प्लास्टर भी मिल रहा है| कुछ कुछ जगह पर सड़क की दो फूट की लकीर बनी है| लेकीन वहाँ जाते समय टूव्हीलरवाले मुझे वहाँ से हटने के लिए कह रहे हैं|
ऐसी घनघोर सड़क पर वाकई लगा कि आज तो मुझे बहुत ज्यादा टाईम लगेगा| शायद तीन भी बज सकते हैं| क्यों कि जिनसे पूछ रहा था, वे यही कह रहे थे कि आगे भी ऐसी ही सड़क होगी| पंक्चर के डर से कम रफ्तार से बढ़ रहा हूँ| बेचारी साईकिल! लेकीन ऐसी सड़क या सड़क का अभाव मुझे बार बार इस विषय में जो संस्थाएँ काम कर रही हैं, उनकी यात्रा कितनी चुनौतिपूर्ण है, इसका स्मरण दे रही है| बड़ी ही चुनौतिपूर्ण सड़क! ऐसी स्थिति में जब मेरे मोबाईल पर किसी का कॉल आता तो मेरी रिंग टोन का यह गाना बजता- तुम ना जाने किस जहाँ में खो गए! मेरी स्थिति करीब करीब ऐसी ही है! लेकीन यही समय धीरज रखने का होता है| चलते रहो, लगे रहो| धीरे धीरे अंबेजोगाई पास आ रहा है| जब पास में से गुजरनेवाले किसी गाडी पर जाना पहचाना गाना बजा, तो कुछ राहत मिलती है| जब कोई गाना सुनाई देता है, तो उसके साथ दस किलोमीटर का इन्तजाम होता है! अब उसी गाने को मन ही मन सुनते हुए दस किलोमीटर कट जाएंगे| मन को गाना सुनने का काम मिल जाता है और जो ध्यान सड़क पर था, स्पीड पर था, वह वहाँ से हट जाएगा और राहत मिलेगी| इस तरह आगे बढ़ता रहा| केज को पहुँचने में इतनी देर लग रही है, कि उसके आंठ किलोमीटर पहले ही एक गन्ने के ज्युस के ठेले पर दूसरा ब्रेक लिया| मुझे दिया हुआ टिफिन यहाँ पर खत्म किया| चाय- बिस्कीट भी खाए|
इस सड़क पर एक मज़ेदार बात भी हुई| मेरे पास से एक ऑटो रिक्षा गुजरी और उसमें किसी ने तालि बजाई| पहले तो मुझे लगा कि कोई मुझे दाद दे रहा हो! पर वह तालि तो एक ट्रान्स- जेंडर व्यक्ति ने दी थी| ट्रेन में अक्सर हम इनकी तालियाँ सुनते हैं! ट्रान्स- जेंडर लोग भी एचआयवी की जोखीम होनेवाले समूहों में से एक होते हैं| बाद में कुछ जगहों की एनजीओज में इनसे मिलना भी हुआ| अपेक्षा की तुलना में बड़ी देरी से केज आया| केज गाँव की इतनी प्रतीक्षा कर रहा था जैसे यह कोई गाँव न हो कर कोई हिल स्टेशन ही हो! यहाँ मुझे एनर्जाल मिला| एनर्जाल के दो लिक्विड पैक्स लिए| लेकीन इनका इस्तेमाल बाद में करूँगा| और जैसे वन डे मैच में विराट कोहली बूमराह का एक स्पेल आखरी ओवर्स के लिए बचाता है, वैसे ही मै एक एनर्जाल आखरी पन्द्रह किलोमीटर के लिए बचाता हूँ| केज के बाद सड़क में धीरे धीरे सुधार होने लगा| कुछ कुछ जगह पर पुरानी सड़क लगी और कहीं कहीं नई भी मिली| और पेट में इन्धन भरने के कारण आगे का सफर आसान होता गया| लेकीन फिर भी सिर्फ दस- दस किलोमीटर के चरण पर ध्यान देते आगे बढ़ा| अंबेजोगाई के दस किलोमीटर पहले अच्छा हायवे मिला और एक तरह से अच्छी सड़क भी मिली| इस तरह केज के आगे सड़क होने के कारण तीन के बजाय दो बजे अंबेजोगाई में पहुँचा|
यहाँ ग्रामीण विकास मंडल के सय्यद सर ने मेरा स्वागत किया| संस्था के टी आय युनिट (टारगेटेड इंटरवेंशन) में फिर बड़ा कार्यक्रम हुआ जिसमें सरकारी कर्मी, विहान प्रोजेक्ट, आयसीटीसी काउंसिलर धनराज पवार, पॉजिटिव नेटवर्क के लोग, आउट रिच वर्कर्स, सेक्स वर्कर्स, पत्रकार आदि भी थे| सय्यद सर ने ग्रामीण विकास मण्डल का काम बताया| महाराष्ट्र के इस क्षेत्र में एचआयवी के विषय पर बहुत समय से काम करनेवाली उनकी संस्था है| दस साल पहले इस विषय पर काम करना और भी कठिन था| उस समय एचआयवी व्यक्तियों की लाईफलाईन जिसे कह सकते हैं- एआरटी (अँटी रिट्रोव्हायरल ट्रीटमेंट) सिर्फ बड़े महानगरों में ही उपलब्ध थी| उस समय वायरस के संक्रामण के लक्षण अत्यधिक होने पर ही यह ट्रीटमेंट दी जाती थी (जैसे सीडीफोर काउंट 250 से कम आना)| जब की अब एचआयवी संक्रामण की पुष्टि होने पर ही यह ट्रीटमेंट पॉजिटीव व्यक्ति को शुरू की जाती है| सीडीफोर काउंट का मतलब होता है शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की व्हाईट ब्लड सेल्स के एक प्रकार की संख्या| वायरस का शरीर पर कितना हमला हुआ है, इसका यह मापदण्ड होता है| इस विषय पर काम करनेवाले कार्यकर्ताओं को कई बार सामाजिक मानहानी भी झेलनी पड़ती है| यह विषय ही एक तरह से कलंक की नजरों से देखा जाता है| बाद में काउंसिलर धनराज पवार जी ने भी उनके अनुभव बताए| जो व्यक्ति पॉजिटीव आते हैं वे ट्रीटमेंट के लिए किसी दूसरे गाँव में जाना पसन्द करते हैं| क्यों कि उनके गाँव में अगर उन्हे सरकारी अस्पताल के इस सेक्शन में किसी ने देखा, तो बात तुरन्त फैल सकती है| कई बार जब पॉजिटीव व्यक्ति नए से ट्रीटमेंट शुरू करते हैं, तब वे बहुत तनाव और हताशा में होते हैं| उस समय काउंसिलिंग सेंटर्स में एक तरीका अपनाया जाता है| उन्हे अपॉईंटमेंट के लिए कुछ समय तक प्रतीक्षा में रखा जाता है| कतार में खड़े हो कर वे अपने जैसे अन्य लोगों को देखते हैं| तब उन्हे अहसास होता है कि मै ऐसा अकेला नही हूँ| कई जन मेरे जैसे हैं और वे भी यह ट्रीटमेंट ले रहे हैं| धीरे धीरे उनका हौसला बढता है|
चर्चा बहुत अच्छी हुई और कार्यकर्ताओं से ले कर पत्रकारों ने भी अपने विचार रखे| यहाँ पत्रकारों ने मेरी मुहीम को अच्छा कवरेज दिया| बाद में अच्छी खबर तो आई ही, विडियो भी बनाया गया| कार्यक्रम तो बहुत अच्छा हुआ| लेकीन अब मुझे विश्राम करना होगा| इसका इन्तजाम मानव लोक इस संस्था में किया गया है| मानव लोक अंबेजोगाई की विविध सामाजिक विषयों पर काम करनेवाली अग्रणि संस्था है| यहाँ सामाजिक कार्य महाविद्यालय भी है| अगर समय रहता तो संस्था के कार्यकर्ता और छात्रों से भी बात करने में मज़ा आता| लेकीन इन दिनों छुट्टियाँ चल रही हैं, आज शनिवार है, काफी देर भी हुई है| इसलिए संस्था भी ठीक से नही देख पाया और ना ही उनसे बात कर सका| लेकीन संस्था का कैंपस जरूर देख सका| रिन्युएबल ऊर्जा से ले कर जल संवर्धन तक संस्था काम करती है| Go to the people, live among them, learn from them, love them; start from what they know; build on what they have यह संस्था का विजन बहुत अच्छा लगा| इस तरह आज इस यात्रा का छटवा दिन पूरा हुआ| आज ८६ किलोमीटर हुए और लगातार छह दिनों का मेरा औसत भी ८६ ही हैं| वाह! यहाँ से मेरा होमटाऊन और इस यात्रा का अन्तिम पड़ाव परभणी सिर्फ एक दिन की दूरी पर है- सिर्फ ९० किलोमीटर| लेकीन मै वहाँ सीधा नही बल्की घूम कर जैसे परिक्रमा करते हुए जाऊँगा|
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)
मेरी पीछली साईकिल यात्राओं के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं: www.niranjan-vichar.blogspot.com
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१७ नवम्बर की भोर| इन्फँट इंडिया बाल गृह से निकला| निकलते समय दत्ताजी और सब बच्चों ने मुझे विदा कहा| बड़े प्यार से मेरे लिए बहुत जल्द उठ कर भोजन भी बनाया| इस हिल से उतरते समय नीचे के सरोवर का परिसर बहुत सुन्दर लगा! कल की मुलाकातें याद करते हुए आगे बढा| आज भी मेरे लिए कुछ बहुत निम्न स्तर की सड़क लगनेवाली है| आज ऐसा तीसरा दिन होगा जब शुरू के तीस- पैतीस किलोमीटर तक ऐसी सड़क होगी और उसके बाद बेहतर सड़क मिलेगी| सोच रहा हूँ या उम्मीद कर रहा हूँ कि सिर्फ पैतीस किलोमीटर तक ही ऐसी सड़क मिले| आज सबसे पहले मुझे तो मांजरसुंबा घाट पार करना है| हायवे पर आते ही घाट की चढाई शुरू हुई| घाट तो मामुली ही है| लेकीन घाट में टैफिक जाम है! एक पल के लिए डर लगा कि कहीं फंस तो नही जाऊँगा? लेकीन हाथ में साईकिल है, इसलिए कुछ देर तक ट्रकों की कतार के दाए तरफ से आगे बढा और जब सड़क सँकरी हुई, तब बाए तरफ से आगे बढ़ा| सड़क के किनारे से आगे निकला| छोटा ही हो, घाट तो है ही| लेकीन उससे ज्यादा डरावनी बात काँच के छोटे टूकडे हैं जो जगह जगह फैले हुए हैं| उन पर से साईकिल चलाते समय वाकई डर लग रहा है| अगर घाट में साईकिल पंक्चर हुई तो??... लेकीन ऐसा हुआ नही| आसानी से छोटी सी जगह से आगे निकला और फिर स्लो हुए ट्रक्स को ओवरटेक भी करता गया| कुछ ही मिनटों में घाट पार हुआ और मांजरसुंबा चौराहे पर पहला ब्रेक लिया|
यहाँ से अंबेजोगाई तक स्ट्रेट फॉरवर्ड सड़क है- सीधी| लेकीन... नेकनूर तक सड़क ठीक रही| लेकीन उसके बाद सड़क गायब सी हो गई! फिर वही कहानि- उखाडी हुई सड़क! और अब मै सूखा होनेवाले क्षेत्र में हूँ, इसलिए बहुत बंजर दृश्य| हरियाली के बजाय अब सब कुछ ग्रे कलर का है| हालांकी हर दिन की तरह आज भी सड़क पर ओवरटेक करनेवाले लोग मुझसे बातचीत करते हैं| कुछ लोग तो चाय या नाश्ता भी ऑफर करते हैं| लेकीन उन्हे मुझे नही बोलना पड़ता है| कई बार कुछ लोग तो ऑर्डर भी देते हैं, इधर रूक, तुझे चाय देता हूँ| लेकीन मै उनके लिए नही रूक सकता हूँ| नेकनूर के बाद सड़क का नूर बिल्कुल भी नेक नही रहा| या सड़क ही नही रही, कहना चाहिए| मुझे लगा था कि नेकनूर के पन्द्रह किलोमीटर आगे केज होगा, लेकीन वह तो तीस किलोमीटर है| और सड़क ही नही है| बड़ी बसों को गुजरता देख कर उन पर भी दया आई! यहाँ एक बात जरूर अच्छी है कि पूर्व- सड़क के किनारे मिट्टी बनी है| वहाँ से साईकिल चला सकता हूँ| और बीच बीच में प्लास्टर भी मिल रहा है| कुछ कुछ जगह पर सड़क की दो फूट की लकीर बनी है| लेकीन वहाँ जाते समय टूव्हीलरवाले मुझे वहाँ से हटने के लिए कह रहे हैं|
ऐसी घनघोर सड़क पर वाकई लगा कि आज तो मुझे बहुत ज्यादा टाईम लगेगा| शायद तीन भी बज सकते हैं| क्यों कि जिनसे पूछ रहा था, वे यही कह रहे थे कि आगे भी ऐसी ही सड़क होगी| पंक्चर के डर से कम रफ्तार से बढ़ रहा हूँ| बेचारी साईकिल! लेकीन ऐसी सड़क या सड़क का अभाव मुझे बार बार इस विषय में जो संस्थाएँ काम कर रही हैं, उनकी यात्रा कितनी चुनौतिपूर्ण है, इसका स्मरण दे रही है| बड़ी ही चुनौतिपूर्ण सड़क! ऐसी स्थिति में जब मेरे मोबाईल पर किसी का कॉल आता तो मेरी रिंग टोन का यह गाना बजता- तुम ना जाने किस जहाँ में खो गए! मेरी स्थिति करीब करीब ऐसी ही है! लेकीन यही समय धीरज रखने का होता है| चलते रहो, लगे रहो| धीरे धीरे अंबेजोगाई पास आ रहा है| जब पास में से गुजरनेवाले किसी गाडी पर जाना पहचाना गाना बजा, तो कुछ राहत मिलती है| जब कोई गाना सुनाई देता है, तो उसके साथ दस किलोमीटर का इन्तजाम होता है! अब उसी गाने को मन ही मन सुनते हुए दस किलोमीटर कट जाएंगे| मन को गाना सुनने का काम मिल जाता है और जो ध्यान सड़क पर था, स्पीड पर था, वह वहाँ से हट जाएगा और राहत मिलेगी| इस तरह आगे बढ़ता रहा| केज को पहुँचने में इतनी देर लग रही है, कि उसके आंठ किलोमीटर पहले ही एक गन्ने के ज्युस के ठेले पर दूसरा ब्रेक लिया| मुझे दिया हुआ टिफिन यहाँ पर खत्म किया| चाय- बिस्कीट भी खाए|
इस सड़क पर एक मज़ेदार बात भी हुई| मेरे पास से एक ऑटो रिक्षा गुजरी और उसमें किसी ने तालि बजाई| पहले तो मुझे लगा कि कोई मुझे दाद दे रहा हो! पर वह तालि तो एक ट्रान्स- जेंडर व्यक्ति ने दी थी| ट्रेन में अक्सर हम इनकी तालियाँ सुनते हैं! ट्रान्स- जेंडर लोग भी एचआयवी की जोखीम होनेवाले समूहों में से एक होते हैं| बाद में कुछ जगहों की एनजीओज में इनसे मिलना भी हुआ| अपेक्षा की तुलना में बड़ी देरी से केज आया| केज गाँव की इतनी प्रतीक्षा कर रहा था जैसे यह कोई गाँव न हो कर कोई हिल स्टेशन ही हो! यहाँ मुझे एनर्जाल मिला| एनर्जाल के दो लिक्विड पैक्स लिए| लेकीन इनका इस्तेमाल बाद में करूँगा| और जैसे वन डे मैच में विराट कोहली बूमराह का एक स्पेल आखरी ओवर्स के लिए बचाता है, वैसे ही मै एक एनर्जाल आखरी पन्द्रह किलोमीटर के लिए बचाता हूँ| केज के बाद सड़क में धीरे धीरे सुधार होने लगा| कुछ कुछ जगह पर पुरानी सड़क लगी और कहीं कहीं नई भी मिली| और पेट में इन्धन भरने के कारण आगे का सफर आसान होता गया| लेकीन फिर भी सिर्फ दस- दस किलोमीटर के चरण पर ध्यान देते आगे बढ़ा| अंबेजोगाई के दस किलोमीटर पहले अच्छा हायवे मिला और एक तरह से अच्छी सड़क भी मिली| इस तरह केज के आगे सड़क होने के कारण तीन के बजाय दो बजे अंबेजोगाई में पहुँचा|
यहाँ ग्रामीण विकास मंडल के सय्यद सर ने मेरा स्वागत किया| संस्था के टी आय युनिट (टारगेटेड इंटरवेंशन) में फिर बड़ा कार्यक्रम हुआ जिसमें सरकारी कर्मी, विहान प्रोजेक्ट, आयसीटीसी काउंसिलर धनराज पवार, पॉजिटिव नेटवर्क के लोग, आउट रिच वर्कर्स, सेक्स वर्कर्स, पत्रकार आदि भी थे| सय्यद सर ने ग्रामीण विकास मण्डल का काम बताया| महाराष्ट्र के इस क्षेत्र में एचआयवी के विषय पर बहुत समय से काम करनेवाली उनकी संस्था है| दस साल पहले इस विषय पर काम करना और भी कठिन था| उस समय एचआयवी व्यक्तियों की लाईफलाईन जिसे कह सकते हैं- एआरटी (अँटी रिट्रोव्हायरल ट्रीटमेंट) सिर्फ बड़े महानगरों में ही उपलब्ध थी| उस समय वायरस के संक्रामण के लक्षण अत्यधिक होने पर ही यह ट्रीटमेंट दी जाती थी (जैसे सीडीफोर काउंट 250 से कम आना)| जब की अब एचआयवी संक्रामण की पुष्टि होने पर ही यह ट्रीटमेंट पॉजिटीव व्यक्ति को शुरू की जाती है| सीडीफोर काउंट का मतलब होता है शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की व्हाईट ब्लड सेल्स के एक प्रकार की संख्या| वायरस का शरीर पर कितना हमला हुआ है, इसका यह मापदण्ड होता है| इस विषय पर काम करनेवाले कार्यकर्ताओं को कई बार सामाजिक मानहानी भी झेलनी पड़ती है| यह विषय ही एक तरह से कलंक की नजरों से देखा जाता है| बाद में काउंसिलर धनराज पवार जी ने भी उनके अनुभव बताए| जो व्यक्ति पॉजिटीव आते हैं वे ट्रीटमेंट के लिए किसी दूसरे गाँव में जाना पसन्द करते हैं| क्यों कि उनके गाँव में अगर उन्हे सरकारी अस्पताल के इस सेक्शन में किसी ने देखा, तो बात तुरन्त फैल सकती है| कई बार जब पॉजिटीव व्यक्ति नए से ट्रीटमेंट शुरू करते हैं, तब वे बहुत तनाव और हताशा में होते हैं| उस समय काउंसिलिंग सेंटर्स में एक तरीका अपनाया जाता है| उन्हे अपॉईंटमेंट के लिए कुछ समय तक प्रतीक्षा में रखा जाता है| कतार में खड़े हो कर वे अपने जैसे अन्य लोगों को देखते हैं| तब उन्हे अहसास होता है कि मै ऐसा अकेला नही हूँ| कई जन मेरे जैसे हैं और वे भी यह ट्रीटमेंट ले रहे हैं| धीरे धीरे उनका हौसला बढता है|
चर्चा बहुत अच्छी हुई और कार्यकर्ताओं से ले कर पत्रकारों ने भी अपने विचार रखे| यहाँ पत्रकारों ने मेरी मुहीम को अच्छा कवरेज दिया| बाद में अच्छी खबर तो आई ही, विडियो भी बनाया गया| कार्यक्रम तो बहुत अच्छा हुआ| लेकीन अब मुझे विश्राम करना होगा| इसका इन्तजाम मानव लोक इस संस्था में किया गया है| मानव लोक अंबेजोगाई की विविध सामाजिक विषयों पर काम करनेवाली अग्रणि संस्था है| यहाँ सामाजिक कार्य महाविद्यालय भी है| अगर समय रहता तो संस्था के कार्यकर्ता और छात्रों से भी बात करने में मज़ा आता| लेकीन इन दिनों छुट्टियाँ चल रही हैं, आज शनिवार है, काफी देर भी हुई है| इसलिए संस्था भी ठीक से नही देख पाया और ना ही उनसे बात कर सका| लेकीन संस्था का कैंपस जरूर देख सका| रिन्युएबल ऊर्जा से ले कर जल संवर्धन तक संस्था काम करती है| Go to the people, live among them, learn from them, love them; start from what they know; build on what they have यह संस्था का विजन बहुत अच्छा लगा| इस तरह आज इस यात्रा का छटवा दिन पूरा हुआ| आज ८६ किलोमीटर हुए और लगातार छह दिनों का मेरा औसत भी ८६ ही हैं| वाह! यहाँ से मेरा होमटाऊन और इस यात्रा का अन्तिम पड़ाव परभणी सिर्फ एक दिन की दूरी पर है- सिर्फ ९० किलोमीटर| लेकीन मै वहाँ सीधा नही बल्की घूम कर जैसे परिक्रमा करते हुए जाऊँगा|
अगला भाग: एचआयवी एड्स इस विषय को लेकर जागरूकता हेतु एक साईकिल यात्रा के अनुभव ७. अंबेजोगाई से हसेगांव (लातूर)
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-12-2018) को "महज नहीं संयोग" (चर्चा अंक-3183)) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आप ने जिस विषय को लेकर यात्रा शुरु की वो काबिले तरिफे है और आपकी लेखनशैली बहुत सरल और सहज है
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